देखा जाए तो भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड अर्थात बीसीसीआई के चयन के तौर-तरीके व चयनकर्ताओं की भूमिका पर कई अवसरों पर उंगली उठती रही हैं, मगर इस बार तो हद ही हो गई है। बीसीसीआई के मुख्य चयनकर्ता श्रीकांत ने जो किया है, उससे तो क्रिकेट के उभरते खिलाड़ियों के भविष्य पर कुठाराघात ही हुआ है। दरअसल, मीडिया में जिस तरह की खबरें आ रही हैं, उसके मुताबिक मुख्य चयनकर्ता श्रीकांत ने आस्ट्रेलिया में अगले महीने होने वाले तीन दिवसीय श्रृंखला के लिए अपने ही बेटे ‘अनिरूद्ध श्रीकांत’ का चयन किया है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि बीसीसीआई द्वारा सीनियर चयन कमेटी के जो पैनल बनाया गया था, उसके प्रमुख श्रीकांत ही थे। ऐसे में तरह-तरह के सवाल उठना भी स्वाभाविक लगता है। ऐसा भी नहीं कि अनिरूद्ध श्रीकांत का क्रिकेट में कोई विशेष परफार्मेंस है, खराब प्रदर्शन के बाद भी अनिरूद्ध के चयन ने बीसीसीआई की चयन समिति की ‘चयन प्रक्रिया’ पर भी प्रश्नचिन्ह लग गया है ? चयनकर्ताओं ने केवल उभरते हुए खिलाड़ी की दुहाई देकर अनिरूद्ध का चयन किया है। जानकारों की मानें तो तमिलनाडु की रणजी टीम में ओपनर के तौर पर खेलने वाले अनिरूद्ध का प्रदर्शन आईपीएल में भी बेहतर नहीं था। चेन्नई सुपर किंग्स इलेवन की ओर से खेलते हुए अनिरूद्ध ने 9 पारियों में महज 251 रन ही बना पाए थे, जिसमें सर्वोच्च स्कोर 64 था। अनिरूद्ध का प्रथम श्रेणी क्रिकेट भी कुछ अच्छा नहीं रहा है, क्योंकि उनके रन बटोरने की औसत महज 29.45 ही है। इसके इतर देखें तो आस्ट्रेलिया जाने के लिए 15 सदस्यीय टीम में जो खिलाड़ी शामिल किए गए हैं, उनमें अधिकांश का प्रदर्शन बेहतर है, सिवाय, अनिरूद्ध श्रीकांत के। जिन खिलाड़ियों को चयनकर्ताओं ने नकारा माना है, उन खिलाड़ियों ने आईपीएल के मैचों में अपनी खेल प्रतिभा का लोहा मनवाया है और यहां उनके चयन का कारण सिर्फ व सिर्फ उनका प्रदर्शन रहा है, बल्कि अनिरूद्ध श्रीकांत के चयन में केवल यह बात महत्वपूर्ण नजर आती है कि वे मुख्य चयनकर्ता श्रीकांत के बेटे हैं ? अब ऐसे में भारतीय क्रिकेट किस गर्त में जा रहा है ? और खेलप्रेमियों की आशाओं को कैसे चक्नाचूर किया जा रहा है ? यह तो सहज ही समझ में आता है। इन स्थितियों में यही कहा जा सकता है कि ‘बाप भए चयनकर्ता तो जुगाड़ काहे न होए।’
मजेदार बात यह है कि आस्ट्रेलिया में होने वाले तीन दिवसीय मैच के लिए ऐसे बहुत काबिल व उभरते खिलाड़ियों की प्रतिभाओं को नजर अंदाज किया गया है, जिनके पीछे केवल उनकी काबिलियत है, न कि किसी की छत्रछाया। ऐसे खिलाड़ियों के कोई गॉड फादर नहीं है, यही कारण हैं कि लाख काबिलियत होने के बाद भी उनके नाम को सूची में शामिल करना तो दूर, विचार तक नहीं किया गया। जानकार बताते हैं कि अनिरूद्ध श्रीकांत के मुकाबले झारखंड के इशांक जग्गी, कर्नाटक के अमित वर्मा, बड़ौदा के केदार देवधर तथा पंजाब के मनदीप सिंह का नाम उभर के सामने आए हैं, जिन्होंने अभी हाल ही में बेहतर क्रिकेट का मुजायरा पेश किए हैं। इन खिलाड़ियों ने रणजी के वनडे फार्मेट में भी अनिरूद्ध की अपेक्षा बढ़िया प्रदर्शन किए हैं, मगर जब जुगाड़ के अंतिम शिखर में कोई गिद्ध दृष्टि जमी हो तो फिर ऐसी खेल प्रतिभाएं दम ही तोड़ेगी और फिर चरमराता है, देश का हर जुनूनी खेल। ऐसी घिनौनी हरकत से खेलप्रेमियों की भावनाओं को भी ठेस पहुंचती है, लेकिन इन बातों सेे चयनकर्ताओं को क्यों परवाह हो सकती है? जब चयन करने के लिए उनके मन में हिटलरशाही कायम हो गया है, तो फिर जुगाड़ू चाबुक चलाने से वे कैसे चूक सकते हैं ? क्या यह, मुख्यचयनकर्ता श्रीकांत की मनमानी नहीं है ? क्या यह, उन खिलाड़ियों की प्रतिभाओं को दम तोड़ने की कोशिश नहीं है, जो केवल अपनी काबिलियत पर भरोसा करते हैं ? यह बात किसी से छिपी नहीं है कि भारतीय क्रिकेट में खिलाड़ियों के चयन में भेदभाव का ऐसा खेल पहले से चलते आ रहा है। कभी क्षेत्रवाद तो कभी भाई-भतीजावाद, क्रिकेट खिलाड़ियों के चयन में हावी नजर आता है। ऐसे में प्रतिभावान खिलाड़ी कैसे दम नहीं तोड़ेंगे तथा ऐसे ही निर्णय उनकी राह के रोड़े साबित होते हैं? रसूख के दम पर जब कोई इस तरह कार्य करता है और रेवड़ी बांटे, घर-घर की तर्ज पर काम करता है तो निश्चित ही उस संस्था या फिर संगठन का बंटाधार होना तय है, जहां ऐसी करतूत को अंजाम दिया जाता है ?
जब जरा इतिहास खंगालें तो पाते हैं कि चयन के नाम पर गोलमाल आज की बात नहीं है। खिलाड़ियों के पिछले दरवाजे से भारतीय टीम में शामिल होने का पहले भी मामला सामने आ चुका है। लिटिल मास्टर के नाम से प्रसिद्ध व भारतीय क्रिकेट को बुलंदी तक पहुंचाने वाले सुनील गावस्कर के बेटे रोहन गावस्कर की भी भारतीय टीम में एंट्री, केवल इसी दमखम के आधार पर हुई थी कि वे, सुनील गावस्कर के बेटे हैं ? भले ही दबाव में उस समय चयनकर्ताओं ने रोहन गावस्कर को खेलने का मौका तो दे दिया था, किन्तु उस स्वर्णकाल के अवसर को वे भुना न सके और क्रिकेट की बाजीगरी में फेल साबित हुए। बिना बेहतर प्रदर्शन के सुनील गावस्कर के बेटे के नाते रोहन गावस्कर को खेलने का मौका कब तक मिलते रहता ? अंततः भारतीय टीम से उनका पत्ता साफ हो गया। कहने का मतलब यही है कि पंदोली देकर किसी को कहीं बिठाया जा सकता है, रसूख व पहुंच के आधार पर प्रतिभा दिखाने का अवसर तो दिया जा सकता है, मगर इतना तो तय है कि बुलंदी, वही छू सकता है, जिनमें दमखम होता है। चाहे किसी भी क्षेत्र में हो, खुद में बिना काबिलियत के कोई भी इस स्पर्धा के युग में ठहर नहीं सकता। इस बात को बीसीसीआई के मुख्य चयनकर्ता श्रीकांत जी को भी समझना चाहिए और उन्हें बिना विवाद में आए, अपने बेटे को पिछले दरवाजे से एंट्री देने की बात को दिमाग से निकाल देना चाहिए। उनकी कोशिश यह होनी चाहिए कि जिस तरह अन्य खिलाड़ी, देश के करोड़ों खेलप्रेमियों को क्रिकेट में अपना जौहर दिखाकर टीम में जगह बनाते हैं, कुछ ऐसी राह वे भी अपनाएं तो बेहतर होगा। खेलप्रेमियों के सब्र का बांध फूटने का इंतजार उन्हें नहीं करना चाहिए।
मजेदार बात यह है कि आस्ट्रेलिया में होने वाले तीन दिवसीय मैच के लिए ऐसे बहुत काबिल व उभरते खिलाड़ियों की प्रतिभाओं को नजर अंदाज किया गया है, जिनके पीछे केवल उनकी काबिलियत है, न कि किसी की छत्रछाया। ऐसे खिलाड़ियों के कोई गॉड फादर नहीं है, यही कारण हैं कि लाख काबिलियत होने के बाद भी उनके नाम को सूची में शामिल करना तो दूर, विचार तक नहीं किया गया। जानकार बताते हैं कि अनिरूद्ध श्रीकांत के मुकाबले झारखंड के इशांक जग्गी, कर्नाटक के अमित वर्मा, बड़ौदा के केदार देवधर तथा पंजाब के मनदीप सिंह का नाम उभर के सामने आए हैं, जिन्होंने अभी हाल ही में बेहतर क्रिकेट का मुजायरा पेश किए हैं। इन खिलाड़ियों ने रणजी के वनडे फार्मेट में भी अनिरूद्ध की अपेक्षा बढ़िया प्रदर्शन किए हैं, मगर जब जुगाड़ के अंतिम शिखर में कोई गिद्ध दृष्टि जमी हो तो फिर ऐसी खेल प्रतिभाएं दम ही तोड़ेगी और फिर चरमराता है, देश का हर जुनूनी खेल। ऐसी घिनौनी हरकत से खेलप्रेमियों की भावनाओं को भी ठेस पहुंचती है, लेकिन इन बातों सेे चयनकर्ताओं को क्यों परवाह हो सकती है? जब चयन करने के लिए उनके मन में हिटलरशाही कायम हो गया है, तो फिर जुगाड़ू चाबुक चलाने से वे कैसे चूक सकते हैं ? क्या यह, मुख्यचयनकर्ता श्रीकांत की मनमानी नहीं है ? क्या यह, उन खिलाड़ियों की प्रतिभाओं को दम तोड़ने की कोशिश नहीं है, जो केवल अपनी काबिलियत पर भरोसा करते हैं ? यह बात किसी से छिपी नहीं है कि भारतीय क्रिकेट में खिलाड़ियों के चयन में भेदभाव का ऐसा खेल पहले से चलते आ रहा है। कभी क्षेत्रवाद तो कभी भाई-भतीजावाद, क्रिकेट खिलाड़ियों के चयन में हावी नजर आता है। ऐसे में प्रतिभावान खिलाड़ी कैसे दम नहीं तोड़ेंगे तथा ऐसे ही निर्णय उनकी राह के रोड़े साबित होते हैं? रसूख के दम पर जब कोई इस तरह कार्य करता है और रेवड़ी बांटे, घर-घर की तर्ज पर काम करता है तो निश्चित ही उस संस्था या फिर संगठन का बंटाधार होना तय है, जहां ऐसी करतूत को अंजाम दिया जाता है ?
जब जरा इतिहास खंगालें तो पाते हैं कि चयन के नाम पर गोलमाल आज की बात नहीं है। खिलाड़ियों के पिछले दरवाजे से भारतीय टीम में शामिल होने का पहले भी मामला सामने आ चुका है। लिटिल मास्टर के नाम से प्रसिद्ध व भारतीय क्रिकेट को बुलंदी तक पहुंचाने वाले सुनील गावस्कर के बेटे रोहन गावस्कर की भी भारतीय टीम में एंट्री, केवल इसी दमखम के आधार पर हुई थी कि वे, सुनील गावस्कर के बेटे हैं ? भले ही दबाव में उस समय चयनकर्ताओं ने रोहन गावस्कर को खेलने का मौका तो दे दिया था, किन्तु उस स्वर्णकाल के अवसर को वे भुना न सके और क्रिकेट की बाजीगरी में फेल साबित हुए। बिना बेहतर प्रदर्शन के सुनील गावस्कर के बेटे के नाते रोहन गावस्कर को खेलने का मौका कब तक मिलते रहता ? अंततः भारतीय टीम से उनका पत्ता साफ हो गया। कहने का मतलब यही है कि पंदोली देकर किसी को कहीं बिठाया जा सकता है, रसूख व पहुंच के आधार पर प्रतिभा दिखाने का अवसर तो दिया जा सकता है, मगर इतना तो तय है कि बुलंदी, वही छू सकता है, जिनमें दमखम होता है। चाहे किसी भी क्षेत्र में हो, खुद में बिना काबिलियत के कोई भी इस स्पर्धा के युग में ठहर नहीं सकता। इस बात को बीसीसीआई के मुख्य चयनकर्ता श्रीकांत जी को भी समझना चाहिए और उन्हें बिना विवाद में आए, अपने बेटे को पिछले दरवाजे से एंट्री देने की बात को दिमाग से निकाल देना चाहिए। उनकी कोशिश यह होनी चाहिए कि जिस तरह अन्य खिलाड़ी, देश के करोड़ों खेलप्रेमियों को क्रिकेट में अपना जौहर दिखाकर टीम में जगह बनाते हैं, कुछ ऐसी राह वे भी अपनाएं तो बेहतर होगा। खेलप्रेमियों के सब्र का बांध फूटने का इंतजार उन्हें नहीं करना चाहिए।
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