गुरुवार, 21 जुलाई 2011

कृषि व औद्योगिक नीति, बढ़ेगा टकराव

छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है और व्यापक धान पैदावार के लिए अभी हाल ही में प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह नेछग सरकारको सम्मानित किया है। निश्चित ही यह कृषि क्षेत्र में देश में एक अलग पहचान बनाने वाले राज्य के लिए गौरव की बात है, मगर प्रदेश के कई जिलों में जिस तरह कृषि रकबा को तहस-नहस कर औद्योगीकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है, वह कृषि प्रधान प्रदेश के किसानों के बेहतर भविष्य निर्माण करने वाला साबित नहीं हो सकता ? यही कारण है कि अधिकांश इलाकों में औद्योगीकरण के खिलाफ किसान मुखर हो गए हैं और सड़क पर लड़ाई लड़ने मजबूर हो गए हैं। किसान किसी भी सूरत में अपनी पूर्वजों की जमीन देने राजी नहीं है, कुछ जगहों पर तो दबाव की बातें सामने रही हैं। ऐसे में इसे दमनात्मक नीति ही कही जा सकती है। सबसे बड़ा सवाल यही है कि छग, सरप्लस बिजली वाला देश का पहला राज्य है, यह कहते प्रदेश सरकार नहीं थकतीं। ऐसी उपलब्धि होने के बाद भी किसानों का अहित कर पॉवर प्लांट लगाने अमादा होना, कहां तक सरकार की नीति को सही कही जा सकती है ?
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि केन्द्रीय कृषि राज्यमंत्री बनने के बाद डा. चरणदास महंत ने प्रदेश की भाजपा सरकार की पॉवर प्लांट लगाने की नीति को सवालों के कटघरे में खड़े किए हैं और पिछले दिनों जांजगीर के एक कार्यक्रम में उन्होंने यहां तक कह दिया कि रमन सरकार, किसानों से छलकर साजिश के तहत जमीनों की खरीदी करा रही है। उन्होंने बेतहाशा पॉवर प्लांट लगाने की औचित्य पर भी उंगली उठाई और कहा कि प्रशासन के अधिकारी जमीन खरीदी कराने के लिए दलाल की भूमिका निभा रहे हैं। कृषि राज्य मंत्री डा. महंत ने जो रूख सरकार की औद्योगिक नीति के खिलाफ अपनाया है, लगता है, उससे सरकार की मुसीबत आने वाले दिनों में बढ़ने वाली है, क्योंकि केन्द्र में सरकार कांग्रेस की है और छग में भाजपा की। डा. महंत, कांग्रेस से छग के इकलौते सांसद हैं, दूसरी ओर प्रदेश कांग्रेस, भाजपा सरकार को घेरने के लिए उसकी औद्योगिक नीति के खिलाफ लगातार आवाज बुलंद कर रही है। अब तो उन्हें डा. महंत के तौर पर एक नई ताकत मिल गई है। जांजगीर में जो बयान उनका आया है, उससे तो निश्चित ही कांग्रेस के आंदोलन को बल मिलेगा, क्योंकि सरकार द्वारा विकास के नाम पर जिस लिहाज से पॉवर प्लांट लगा रही है, खासकर जांजगीर-जिले में, उसकी कहीं भी जरूरत नहीं लगती। सरकार की सोच भले ही विकास की हो सकती है, लेकिन यह भी समझना जरूरी है कि कृषि रकबा घटने के बाद कृषि उत्पादन प्रभावित होगा ? ऐसा नहीं है कि किसान, पॉवर प्लांटों की स्थापना का विरोध नहीं कर रहे हैं, वे तो राजधानी तक चक्कर लगा रहे हैं, परंतु उनका कोई सुनने वाला नहीं है। किसानों के हित में कार्य करने वाले तथा संवेदनशील होने का दावा करने वाली सरकार के मुखिया डा. रमन सिंह का भी साथ किसानों को नहीं मिल रहा है ? लिहाजा, किसानों में निराशा गहराती जा रही है। कुछ इलाकों में किसानों व प्रबंधन के बीच झड़प व तोड़फोड़ की घटना कई बार सामने आ चुकी है। बावजूद, सरकार ने कड़ा रूख अपनाया हुआ है, उससे तो यही लगता है कि सरकार हर कीमत पर पॉवर प्लांट लगाने की मंशा रखती है ? यदि ऐसा नहीं होता तो जरूर किसानों के हित में कुछ पहल की जाती, जिससे किसानों में छाई निराशा खत्म होती।
कुछ दिनों पहले डा. चरणदास महंत, को केन्द्रीय कृषि राज्य मंत्री बनकर आने के बाद मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने बधाई दी थी और इस दौरान दोनों ने कदम से कदम मिलाकर प्रदेश को कृषि क्षेत्र में एक नया आयाम दिलाने पर जोर दिया था। साथ ही कृषि मंत्री चंद्रशेखर साहू ने भी प्रसन्नता जाहिर की थी कि जिन मांगों व किसानों की जरूरतों को केन्द्र सरकार दरकिनार करती रही है, उन मांगों के निराकरण करने में सहायक साबित होगा। राज्य सरकार किसानों को बोनस समेत अन्य मांगों के मामले में केन्द्र सरकार पर ध्यान नहीं देने का आरोप लगाती आई है। एक बात सही है कि डा महंत के कृषि राज्य मंत्री बनने का लाभ प्रदेश के किसानों को मिलेगा और केन्द्र की योजनाओं के बेहतर क्रियान्वयन भी होगा।
दूसरी ओर जो बातें उभरकर आ रही हैं, उससे प्रदेश की भाजपा सरकार की मुश्किलें बढ़ने वाली है और आने वाले दिनों में आद्योगिक नीति के मामले में कांग्रेस-भाजपा में टकराव बढ़ने के आसार से इंकार नहीं किया जा सकता। यह बात भी समझ में आ रही है, क्योंकि भाजपा सरकार की औद्योगिक नीति कांग्रेस को कहीं से रास नहीं आ रहा है, ऐसे में राजनीतिक लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाने उन्हें तुरूप का पत्ता मिल गया है। कृषिमंत्री होने के नाते डा. महंत ने कहा भी है कि उनका फर्ज भी है, किसानों के हितों पर कुठाराघात न होने दें। वैसे भी प्रदेश में जांजगीर-चांपा जिले को सबसे अधिक सिंचित जिला माना जाता है, ऐसी स्थिति में यदि सरकार दर्जनों पॉवर प्लांट स्थापित कराने का मन बना ले तो फिर यह किसानों की तबाही का एक मंजर ही हो सकता है। कृषि राज्यमंत्री डा. महंत ने भी सरकार की नीति को गलत बताया है, खासकर जांजगीर-चांपा जिले के लिए तो और, क्योंकि जहां वन क्षेत्र नगण्य हैं और तापमान भी प्रदेश में अधिक रहता है। साथ ही खेती ही जिले के किसानों की आय का प्रमुख जरिया है, बावजूद सरकार कृषि रकबा को उजाड़ने पर उतारू हो जाए तो फिर किसानों के लिए सड़क की लड़ाई लड़ने के सिवाय कोई दूसरा चारा नहीं रह जाता।
प्रदेश की औद्योगिक नीति के खिलाफ डा. महंत मुखर नजर आ रहे हैं, वैसे ही केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री रहे जयराम रमेश ( वर्तमान में ग्रामीण विकास मंत्री ) ने भी कड़ी लकीर खींची थी और उन्होंने कई प्रोजेक्ट पर रोक लगा दी थी। इससे भी भाजपा सरकार की परेशानी बढ़ी थी, साथ ही उन उद्योगपतियों की आंखों में पर्यावरण मंत्री खटकते रहे। वैसे श्री रमेश का तेवर केवल छग के पर्यावरणीय स्थिति के हिसाब से ही नहीं था, बल्कि उनका रूख पूरे देश भर में पर्यावरण से खिलवाड़ करने वालों से सीधे तौर पर रहता था।
कुल-मिलाकर बात यही है कि राज्य सरकार की औद्योगिक नीति पर पहले भी उंगली उठती थी, अब तो और कांग्रेस का मुखर होना स्वाभाविक लगता है, क्योंकि कृषि रकबा घटने की बात को लेकर वे सरकार को घेरने में कहीं भी चूक करना नहीं चाहेंगी। केन्द्रीय कृषि राज्य मंत्री बनने के बाद डा. चरण महंत के बयान से कांग्रेसियों को बल मिलेगा और सरकार की बेतहाशा पॉवर प्लांट लगाने की नीति के खिलाफ, आने वाले दिनों में सड़क पर उतर आएं तो कोई चौंकाने वाली बात नहीं होगी। कारण भी है, क्योंकि पॉवर प्लांट के विरोध में अधिकांश इलाकों के किसान आंदोलन कर ही रहे हैं, ऐसी स्थिति में विपक्ष के नाते सरकार की नीति के खिलाफ कांग्रेस खड़ी होकर किसान व जनता के खिदमतगार बनने की कोशिश करेगी। ऐसे हालात में कांग्रेस व भाजपा सरकार के बीच टकराव बढ़ेगा, क्योंकि सत्ता की लड़ाई के लिए कहां कोई मुद्दा छोड़ सकता है और कांग्रेस समझ भी रही है कि सरकार को घेरने इससे बेहतर वक्त नहीं मिलेगा।

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