गुरुवार, 3 सितंबर 2009
मनमोहन की भलमनशाहत और भाजपा
इस बीच प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भाजपा को नसीहत दे डाली की देश की सबसे दूसरी पार्टी में इस तरह बिखराव देश के घातक है। ऐसे में मजबूत विपक्ष की भूमिका नहीं निभ सकती। इसे मनमोहन की भल मन शाहत ही कहें की उनहोंने मजबूत विपक्ष की चिंता की, लेकिन इसके लिए उन्हें भाजपा की और से खरी खोटी ही सुनने को मिली। भाजपा के प्रवक्ता प्रकास जावडेकर ने दो टूक शब्दों में कहा की मनमोहन जी को भाजपा की चिंता करने की कोई जरुरत नहीं है, वे देश की चिंता करें। देश में महंगाई, सूखा तथा फ्लू से लोग परेशान व दहशत गर्द हैं। ऐसे में भाजपा में जो कुछ हो रहा है, यह पार्टी का अंदरूनी मामला है, इसमें किसी की हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह निश्चित ही दिल से साफ व्यक्तित्व के धनि है और उनहोंने जो कुछ कहा, उसमें किसी तरह से भाजपा को ताना देने या फिर जले में नमक छिडकने का भावः नहीं था। ऐसे में भाजपा की और से जो बयान आया, इसे किसी भी सूरत में ठीक नहीं कहा जा सकता। इसे तो ऐसा हुआ जैसे आग भुझाने गया व्यक्ति ख़ुद ही जल जाए। दूसरी और कईयों ने तो प्रधानमंत्री के सलाह को पते में हाथ डालने कहने से परहेज नहीं किया।
इसके पहले समाजवादी के महासचिव अमर सिंह ने भी भाजपा में जिन्ना की पुस्तक के कारन आए बिखराव पर चिंता जाहिर की थी। इस पर भाजपा की और से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई थी। ऐसे में जब मनमोहन जी ने विपक्ष के टूटते तारों को जोड़ने की बात क्या कही, भाजपा में भूचाल आ गया।
वैसे भी जिन्ना का भूत भाजपा का साथ नहीं छोड़ रहा है। एक साल पहले भाजपा के वरिष्ट नेता लालकृष्ण आडवानी जब पाकिस्तान गए थे। इस दौरान वे जिन्ना के मजार में माथा टेकने गए थे। इसके बाद भाजपा में भूचाल मच गया, लेकिन उन पर गाज नहीं गिरी।
अब जब जसवंत सिंह ने अपनी किताब में जिन्ना को हीरो बनाया। तो भाजपा में आग लग गई। स्थिति यह रही की जसवंत सिंह को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। अभी भी जिन्ना के भूत ने भाजपा का साथ नहीं छोड़ा है। लिहाजा भाजपा में कलह जरी है और यह कलह थमता नजर नहीं आ रहा है।
शनिवार, 29 अगस्त 2009
कांग्रेस की युवा शक्ति को मिली संजीवनी
कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव राहुल गाँधी के पिछले दिनों हुए छत्तीसगढ़ दौरे कई लिहाज से काफी अहम् रहे। उनके लोकसभा चुनाव के बाद यह छत्तीसगढ़ का पहला दौरा था। इस बार वे किसी प्रचार में नहीं निकले थे, बल्कि प्रदेश के कांग्रेस युवा शक्ति को जोड़ने आए थे। उनके इस दौरे से बजन सी पड़ी कांग्रेस की युवा शक्ति में जान आ गई है। युवा संसद राहुल गाँधी के दौरे से छत्तीसगढ़ में कांग्रेस युवा शक्ति को जैसी संजीवनी मिल गई है।
राहुल बाबा के दौरे से युवक कांग्रेस व एन एस यु आई के कार्यकर्ताओं में उर्जा का संचार हो गया है। राहुल कार्यक्रम में जिस ढंग से युवाओं में उत्साह देखा गया। इसे कांग्रेश की युवा शक्ति की बढती ताकत ही कही जा सकती है।
विधानसभा चुनाव के पहले राहुल गाँधी का टैलेंट हंट चला था, जिसमें कुछ कर गुजरने वाले कार्यकर्ताओं को चुन्हंकित किया। इस बार के उनके यात्रा में वे युवा शक्ति को जोड़ने का प्रयास किया और उन्होंने इसके लिए यूनिवर्सिटी के कैम्पस को चुना। वे जानते हैं की उनके विचारों को कहाँ से नई उड़ान हासिल हो सकती है। राहुल गाँधी ने अपने दो दिवसीय कार्यक्रम में पूरी तरह युवा शक्ति को जागृत करने वाली बातों को फोकस किए।
इस बार उन्होंने प्रदेश प्रभारी होने के नाते एन एस यु आई में नए व उर्जावान चेहरों को सामने लाने नया प्रयोग शुरू किया है। इस बार चलाये जा रहे उनके सदस्यता अभियान में ऐसे युवाओं को ही सदस्यता दी जा रही है, जो कॉलेज में पढ़ते हैं। कुल-मिलाकर राहुल बाबा की सोच ऐसी युवा शक्ति का निर्माण करने का है, जो देश की खोखली हो राजनीती को अपनी ओजस्वी कार्यों से भर सके। उन्होंने यह बात भी कही है की युवा शक्ति ही देश में नया परिवर्तन ला सकता है।
राहुल गाँधी का छत्तीसगढ़ में बिताये दो दिन कांग्रेस की नींव कही जाने वाली एन एस यूं आई को नए सिरे से जीवित करने में अहम् भूमिका निभाई है। कल तक एक भी इनकी गधिविधि देखने को नहीं मिलती थी। अब ये राहुल बाबा के बातों को समझ गए हैं और लग गए हैं, युवाओं की नै ब्रिगेड बनाने।
भले ही राहुल गांघी का विधानसभा व लोकसभा के चुनाव में जादू न चला हो, लेकिन इस बार के उनकी छत्तीसगढ़ दौरे को कमतर नहीं आँका जा सकता। उन्होंने बातों-बातों में कांग्रेस की गुटबाजी को दोनों चुनाव में हार का कारन बताते हुए वरिष्ट नेताओं को एका करने की सम्झायिस भी दे दिए। प्रेस कांफ्रेंस में भी वे छत्तीसगढ़ में लगातार कांग्रेस की हार का ठीकरा वरिस्ट नेताओं के सर फोड़ा। इस बात को नेताओं ने स्वीकार भी। लेकिन क्या प्रदेश में सांप नेवले की तरह गुटबाजी की दुश्मनी रखने वाले कांग्रेसी, क्या रहू गाँधी की बातों पर सबक ले पाएंगे। यदि ऐसा होता है तो फिर राहुल का जादू ही कहा जा सकता है।
फिलहाल सामने में नगरीय चुनाव है। यहाँ भी कांग्रेस की गुटबाजी हावी रही तो समझ जाईये, इस पार्टी का कोई भला होने वाला नहीं है।
समय रहते कांग्रेसियों को संभलना होगा। नहीं तो जनता सब जानती व समझती है और फिर बाहर का रास्ता दिखा सकती है।
सोमवार, 24 अगस्त 2009
नहीं उतर रहा स्वाईन फ्लू का बुखार
विश्व स्वास्थय संगठन ने दुनिया के सभी देशों को आगाह किया है। किसी भी बीमारी को लेकर सरकार सतर्क रहनी चाहिए, किंतु ऐसा भी न हो की इसका नकारात्मक असर लोगों में हो। इन दिनों स्वाईन फ्लू को लेकर लोगों में कुछ ऐसी ही स्थिति है। बेवजह लोग डरे सहमें हैं और मुंह को इस ढंग से धक् कर रह रहें की उनके ख़ुद के घर वाले ही उन्हें पहचान नहीं पा रहे हैं।
स्वाईन फ्लू को लेकर यह बात भी विशेषज्ञों स्पष्ट किए हैं हैं की यह संक्रामक बीमारी तापमान कम होने की स्थिति में ज्यादा फैलता है। भारत में वैसे ही तेज तापमान होता है। यहाँ बहुत कम ही स्थान है, जहाँ तापमान कम है। लद्दाख जैसे स्थान में ही तापमान शुन्य से भी कम होता है। देश के अन्य स्थानों में बहुत ही कम देखने को मिलता है। तो ऐसे में गर्म जलवायु होने से देश में इस बीमारी के फैलने की संभावना ही कम नजर आती है। ऐसे में जिस ढंग से स्वाईं फ्लू को लेकर खलभली मची है और समाज का हर वो तबका परेशां है की आखिरकार इस बीमारी से कैसे बचा जा सकता है।
जहाँ देश में स्वाईं फ्लू से लोग अपने को बचने हर वो तरकीब खोज रहे हैं। ऐसे में कुछ लोग भी हैं, जिनकी मानवता मर गई है और इस संक्रामक बीमारी से निपटने में लोगों का हर सम्भव सहयोग करना चाहिए। इस बीच उन्हें अपनी दुकानदारी की फिक्र है और बीमारी से बचने चेहरे पर लगाने वाला मास्क को भी बाजार में नकली उतर दिए हैं। इस नकली मास्क से वे कमाई करने से नहीं चूक रहे हैं। उन्हें लोगों से कोई हमदर्दी नही हैं, उन्हें तो बस दुकानदारी की चिंता है।
बात यहाँ संक्रामक बीमारी स्वाईं फ्लू की है। देश हर दिन लोग दूसरी अन्य बिमारियों से रोज हजारों की संख्या में मर रहे है। इसकी फिक्र किसी को नही है। लोगों ने जो देखा उससे अमल करना शुरू कर दिया। गौर करने वाली बात है की स्वाईं फ्लू का लक्षण माने जाने वाला निमोनिया से देश में ही हर वर्ष बड़ी संख्या में लोग मर जाते हैं। इसके आलावा कई संक्रामक बीमारी से लोग असमय ही काल के गाल में समां जाते हैं। दूसरी ओर सड़क दुर्घटना में ही रोज सैकडों लोगों की मौत हो जाती है। यह सब होता है, लोगों के यातायात नियमों से अनजान होने से। ऐसे में लोगों को यातायात संबधी जागरूकता लाकर इन दुर्घटनाओं को कम किया जा सकता है। ठीक इसी प्रकार स्वाईं फ्लू बीमारी से लोगों में जागरूकता लाकर इससे बचा जा सकता है।
स्वाईं फ्लू से पुणे व मुंबई को ज्यादा प्रभावित बताया जा रहा है और वहां से आने वाले लोग पहले अस्पताल चेक एप के लिए पहुँच रहे हैं। यह भी देखने में आ रहा है की जो लोग पुणे व मुंबई क्षेत्र से आ रहे हैं, उनसे लोग दूर भाग रहे हैं। बीमारी से सुरक्षा जरुरी है, लेकिन किसी को स्वाईं फ्लू होने की पुस्ती नहीं हुई है तो लोगों का यह रवैया समझ से परे है।
देश भर में एक माह से स्वाईं फ्लू का बुखार चढा है। यह उतरने का नाम नहीं ले रहा है। आख़िर इससे पहले कभी ऐसा नहीं हुआ। लोगों में ऐसी परिस्थिति से लड़ने सरकार को प्रोत्साहित करना चाहिए।
भगवान् से हमारी कामना है की यह बीमारी को देश ही नहीं वरन दुनिया से खत्म कर दे और लोगों में इसकी व्याप्त दहशत खत्म हो।
गुरुवार, 6 अगस्त 2009
नक्सली बंद करे कायराना हरकत
बुधवार, 29 जुलाई 2009
...आख़िर किसकी मिलकियत
पिछले दिनों उत्तरप्रदेश में एक ओछी बयान कांग्रेश की प्रदेशाध्यक्ष श्रीमती रिता बहुगुणा जोशी द्वारा प्रदेश की मुख्यमंत्री सुश्री मायावती के खिलाफ जरी किया था। इस बयान की तीखी प्रतिक्रिया हुई थी। लेकिन जिस ढंग से बाद में कार्यकर्ताओं ने हरकत की। इसे भी किसी स्तर से ठीक नहीं कहा जा सकता। क्योंकि श्रीमती जोशी के घर को आग लगाने के बाद उत्तरप्रदेश में उत्पात मचाना ग़लत है। इससे जनता ही तो परेशां हुई है, जिनकी सेवा की बात को लाकर लोग राजनीती में आते हैं, वे पद मिलते ही इन बातों से कोई मतलब नहीं रखता। कार्यकर्ताओं ने बयान के बाद खूब तोड़फोड़ की। आख़िर वह किसकी मिलकियत है।
यह कोई एक मामला नहीं है। ऐसे मामले आए दिन सामने आते रहते हैं। लोग सरकारी संपत्ति, हमारी संपत्ति के अर्थ को ग़लत तरीके से लेते हैं और यही कारन है की बिना सोचे समझे तोड़ फोड़ पर उतारू हो जाते हैं। उन्हें सोचना चाहिए की वे किसका नुकसान कर रहे हैं। देश के विकास में हम सब का भागीदारी होना चाहिए। इसके लिए हमें ऐसे कृत्यों से दूर रहना चाहिए।
कोई भी घटना घटने के बाद प्रभावित परिवार के प्रति सबकी संवेदना होती है, लेकिन क्या तोड़फोड़ करक्या यहाँ रास्ता बचता है।
यह एक यक्ष प्रश्न हम भारत के नागरिकों के समक्ष खड़ा है। इस पहलु को भूलकर हमें ग़लत राह में नहीं जन चाहिए।
देश के विकास में सहभागी बनें, न की बर्बादी में। is sabak ko yaad karna jaruri hai.
रविवार, 19 जुलाई 2009
नेताओं के कैसे-कैसे बेतुका बयान
एक बार फिर बेतुका बयान सामने आया है। जिसे सुनकर हर कोई अचरज में पड़ गया। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री गुलामनबी आजाद ने जनसँख्या नियंत्रण के लिए कुछ बेतुका बयान जरी किया है। उनका कहना था की बिजली रहेगी तो जनसँख्या पर नियंत्रण हो सकता है। लोग देर रत टीवी देखेंगे तो दे से सोयेंगे और लोंगों का यंहन खूब मनोरंजन हो जाएगा। ऐसे में वे जा कर सो जायेंगे और जनसँख्या पर नियंत्रण किया जा सकता है। नबी आजाद साहब को ऐसा कहते सोचना चाहिए था की कई राज्य हैं जन्हाँ बिजली की कमी है फिर भी जनसँख्या पर नियंत्रण कर लिए हैं। यह सब हुआ है, सिक्षा के प्रसार से, लोंगों में जागरूकता आने से।
नबी आजाद साहब क्या कभी छत्तीसगढ़ नहीं आए। प्रदेश में सर प्लस बिजली है, बावजूद जनसँख्या हर वर्ष हजारों में बढ़ ही रहा है। बिजली रहने से जनसँख्या पर नियंत्रण नहीं किया जा सकता, यह केवल शिक्षा के प्रसार तथा जनजागरूकता से ही सम्भव है। जनसँख्या पर रोक लगाने कई लोकलुभावन योजनायें चल रहीं हैं, बावजूद हर वर्ष देश में लाखों में जनसँख्या में वृद्धि हो रही है।
आजाद साहब जनसँख्या नियंत्रण के बारे में सोंच रहे हैं। यह अच्छी बात है, लेकिन केवल बयानों से इस दिशा में कुछ नही हो सकता। देश में पहले जनसँख्या बढ़ाने के लिए जद्दोजहद हुई, अब इस पर नियंत्रण के माथापच्ची हो रही है। यह सही बात है की बढती जनसँख्या देश के विकास के लिए चिंता की बात तो है। इस बारे में हम सब को सोचना चाहिए। यह केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं है।
...बच्चे पैदे करते हैं सरकार
छत्तीसगढ़ में एक वर्ष पहले तत्कालीन स्कूल शिक्षा मंत्री अजय चंद्राकर ने समारोह में बेतुका बयान दिया था जिसकी प्रदेश सहित देश के शिक्षा विदों ने भत्सर्ना की थी। यहाँ उनहोंने कहा था की सरकार बच्चे पैदा नहीं करती, की उनके लिए गुणात्मक शिक्षा की व्यवस्था कर सके। जब यह बयान मीडिया में आया तो, यहाँ उनको शिक्षा विडी ने अपने लेख के मध्यम से सीधे शब्दों में कहा- सरकार भले ही बच्चे पैदा न करे, लेकिन बच्चे जरुर सरकार पैदा करते हैं। कुल-मिलाकर आज राजनीती कितनी ओछी हो गई है, इससे ही पता चलता हैं। नेता कुछ भी बयान दे रहें है, वे समाज में इसका क्या संदेश जाएगा। इस बारे में नहीं सोचते।
उत्तरप्रदेश में आया भूचाल...
उत्तरप्रदेश की कांगेश अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी द्वारा जिस ढंग से मायावती पर बयानबाजी की गई। इससे भी वहां राजनितिक सरगर्मी बढ़ गई। बसपा के कार्यकर्ताओं ने बयानबाजी को लेकर बहुगुणा के घर पर आग लगा दी। साथ ही प्रदेश में खूब हंगामा किया। इसके बाद रही-सही कसर कांग्रेश के कार्यकर्ताओं ने पूरी कर दी। इस बिच किसी आम जनता के हितों का ख्याल न रहा। इस माहौल में जनता ने कितनी परेशानी झेली। इस बारे में में सोचने वाले कोई नहीं दिखे। क्या यही वह राजनीती है, जिसकी कल्पना देश के अमर सपूतों की थी।
बय्यांबजी का दौर राजनीती में आए दिन की बात है, लेकिन इससे किसी का व्यक्तिगत जिन्दगी पर छीटा कशी हो। इससे नेताओं को बचना चाहिए। बयानबाजी से देश का विकास नहीं हो सकता। इस बात को नेताओं को समझाना होगा। तभी देश में शान्ति स्थापित हो सकती है। नहीं तो यही चलता रहेगा और आम जनता इससे पिसती रहेगी।
सोमवार, 13 जुलाई 2009
आँध्रप्रदेश सरकार की पहल सराहनीय
छत्तीसगढ़ में अंधविश्वास की जड़ को खत्म करने कानून भी बना है। लेकिन यह कारगर साबित होता दिखाई नहीं दे रहा है। २००५ से टोनही प्रताड़ना कानून लागु किया गया है। इससे कुछ हद तक लोगों के सीधे प्रताड़ना पर विराम तो लगा, लेकिन जिस लिहाज से इस कानून से अंधविश्वास को खत्म करने शासन की मंशा थी, वह पूरी नहीं हो सकी है।
छत्तीसगढ़ में अंधविश्वास की जड़ें वर्षों से गहरी जमीं हैं। इसके चलते कई बार बड़ी वारदात भी सामने आती रहती हैं। कई बार निजी स्वार्थ के लिए बलि प्रथा भी सामने आ चुका है। लोग आधुनिक युग में जीने की बात करते हैं, लेकिन वे अंधविश्वास के साये से दूर नहीं हो पाए हैं। शहरी क्षेत्रो में स्थिति थोडी ठीक है, लेकिन गावों में अंधविश्वास की जड़ें गहरी हैं। ऐसा नहीं है की इसे दूर नहीं किया जा सकता। शिक्षा के विकास ने अंधविश्वास को दूर करने अहम् भूमिका निभाया है। बावजूद अंधविश्वास आज भी कायम है। इसके लिए लोंगों को जागरूक करना ज्यादा जरुरी है। केवल कानून बनाने से अंधविश्वास को ख़त्म नहीं किया जा सकता। इसके लिए सामूहिक प्रयास की जरूरत है।
आँध्रप्रदेश की सरकार ने शिक्षा पाठ्यक्रम में अंधविश्वास विरोधी पाठ शामिल करने का जो निर्णय लिया है, वह काबिले तारीफ है। शिक्षा से ही अंधविश्वास को खत्म किया जा सकता है। छत्तीसगढ़ सरकार को भी इस दिशा में पहल करनी चाहिए। प्रदेश में अंधविश्वास के मामले सामने आते रहते हैं। कुछ महीनों पहले रायपुर जिले के कसडोल ब्लाक के एक गाँव में सती होने का मामला सामने आया था। मीडिया ने इस बात को जिस ढंग से पेश किया, इससे अंधविश्वास को और बल मिला। सती हिने वाली महिला के परिवार के सदस्यों क्या कसूर, जो उन्हें इस मामले में घसीटा जा रहा है। गाँव में हुए इस घटना को अंधविश्वास के रंग देने वाले ग्रामीण सहित अन्य लोंगों पर कोई करवाई नहीं हुई। क्या ऐसे में ही अंधविश्वास को खत्म किया जा सकता है। छत्तीसगढ़ में यह कोई पहला मामला नहीं है, इससे पहले भी और प्रकरण सामने आ चुके हैं।
आख़िर ऐसे अंधविश्वास के मामलों को रोकने ठोस पहल क्यों नहीं करती। यह एक यक्ष प्रश्न बना हुआ है। आँध्रप्रदेश सरकार की तरह राज्य सरकार को भी सकात्मक सोंच लेकर कार्य करना होगा। तभी अंधविश्वास की बुनियाद मिटाई जा सकेगी।
रविवार, 12 जुलाई 2009
नक्सली हमला : अब हो आर - पार की लडाई
१२ जुलाई को हुए नक्सली हमले में जिले का प्रमुख पुलिस अधिकारी एसपी सहित तीन दर्जन से अधिक लोग सहीद हो गए। दिन भर ज्यादा समय तक चले मुठभेड़ में जवानों ने धरती माँ का कर्ज चुका दिया। इस नक्सली हमले को छत्तीसगढ़ बनने के नौ वर्षों में सबसे बड़ी घटना मानी जा रही है। इस हमले ने प्रदेश ही नहीं पुरे देश वासियों को रुला दिया है। बीते इन नौ वर्षों में सैकडों जवानों ने अपनी प्राण न्योछावर की है। आख़िर कब तक नक्सलियों का यह खुनी खेल चलता रहेगा। प्रदेश में अब नक्सलियों से आर - पार की लडाई लड़ने का समय आ गया है। नक्सलियों के राज के तांडव पर अब विराम लगना जरुरी हो गया है। राज्य सरकार को नक्सलियों पर लगाम लगाने सख्त कदम उठाना होगा। छत्तीसगढ़ में नक्सलियों की हिंसक गतिविधियों पर रोक लगाने किसी प्रकार की राजनीती नहीं होना चाहिए। प्रदेश के सभी नेताओं व जनता को एक मंच पर आकर नक्सलियों के खिलाफ मोर्चा खोलना होगा। इसके लिए केन्द्र सरकार को भी पर्यत सुरक्षा बल भी देना चाहिए। नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ सहित कई राज्यों में तबाही मचा रखा है और रोज बेकसूरों की जान लेने से नहीं चूक रहे है। ऐसी गतिविधियों पर सभी को मिलकर लडाई लड़नी होगी। तभी प्रदेश ही नहीं, वरन देश के अन्य राज्यों से भी इस गंभीर बीमारी से निजात पाई जा सकती है। आज की स्थिति में नक्सली कैंसर की बीमारी से भी बड़ी समस्या बनकर प्रदेश व देश में बनकर उभरी है।
छत्तीसगढ़ में कुछ महीने पहले भी पुलिस के उच्च पदस्थ अधिकारी पर भी हमला नक्सलियों ने किया था। इस दौरान कई जवान शहीद भी हुए थे। घटना में वह अधिकारी गोली लगने के बाद कई महीनों तक मौत से लडाई करते रहे। इस घटना ने भी लोंगों झकझोर कर रख दिया था। इस समय राजनीती फिर खूब हुई, लेकिन नक्सलियों की सफाया को लेकर कुछ खास नीतियाँ नहीं बने जा सकी। एक के बाद एक हो रही नक्सली हमले के बाद भी कड़े कदम नहीं उठाया जाना, समझ से परे लगता है। समाज में नक्सली खुनी संघर्ष कर क्या संदेश देना चाहते हैं, समझ से परे लगता है। नक्सलियों की आख़िर यहीं मंशा है की वे बेकशुरों की जान लेते रहे।
इधर एक बार फिर नक्सलियों ने राज नांद गौण ग्राम में हमला कर साबित कर दिया की वे अमन व शान्ति नहीं चाहते। वे प्रदेश में आतंक तथा दहशत फैलाना चाहते हैं। लेकिन वे भूल गए हैं की भारत माता के ऐसे सपूत भी इस धरती पर जन्म लिए हैं, जो उनके मनसूबे को कभी पूरा होने नहीं देंगे। पुलिस के जिले का प्रमुख अधिकारी सहित तीन दर्जन से अधिक जवान शहीद हुयें हैं। उनका लहूँ बेकार नहीं जाएगा, इसके लिए नक्सलियों जैसा का तैसा जवाब देना होगा। अब वह समय आ गया है, की नक्सलियों के नामों निशान मिटाने व्यापक रणनीति के तहत काम हो। सरकार को भी अब नक्सलियों के खात्मे के लिए सरे अधिकार सेना के जवानों दे देना चाहिए। तभी यह हिंशा का दौर थम पायेगा।
हमले में शहीद एसपी व जवानों के बलिदान को छत्तीसगढ़ वासी कभी नहीं भूलेंगे, उनकी शहादत को प्रणाम.
शनिवार, 11 जुलाई 2009
शराबखोरी से मौत का खुला तांडव
सोमवार, 1 जून 2009
चरमरा गई शिक्षा व्यवस्था
रविवार, 31 मई 2009
ख़ुद सुधरें, तब समाज होगा नशामुक्त
शुक्रवार, 29 मई 2009
छत्तीसगढ़ की ये कैसी उपेक्षा
गुरुवार, 28 मई 2009
राजनीती में फैली परिवारवाद की जड़
बुधवार, 27 मई 2009
कैसी कैसी आईपीएल की परिभाषा
गुरुवार, 21 मई 2009
चल पड़ी जूता मारने की परम्परा
बुधवार, 20 मई 2009
पलायन की पीडा
मंगलवार, 19 मई 2009
कैसे वापस आए विदेशों में जमा काला धन
एक यक्ष प्रश्न बना हुआ है देश की जनता को ही विदेशों में जमा कला धन को वापस लाने एकजुट होना होगा। तभी इस दिशा में कुछ हो सकता है
एक तरफ भारत के नेताओं द्वारा यहाँ के पैसे को विदेशों में चोरी छुपे रखा जाता है और आपात स्थिति में भारत को ही विदेशों से उधर लेना पड़ता है इससे बड़ी विडम्बना और क्या हो सकती है देश में जमे ऐसे सफेदपोशों की पहचान जरुरी है। साथ ही विदेशों में जमा काला धन को भी वापस लाना । । देश की गरीब जनता के पेट की रोटी छिनकर विदेशों में पैसे जमा करने वाले ऐसे लोगों की आत्मा क्या मर गई है। देश में एक बड़ी आबादी को दोनों समय रोटी पाने एडी चोटी एक करनी पड़ती है क्या सफेद पाशों को इस बात फिक्र नहीं है। गरीबों के हक़ पर वे अपना हक़ जमा ले रहे हैं विदेशों में काला धन होने दे इसका असर भारतीय अर्थ व्यवथा पर पड़ रहा है अभी संपन्न हुए चुनाव में काला धन वापस लेन को लेकर काफी राजनीती हुई हलाँकि जनता इस बात को समझ रही है इक्किश्वी सदी में लोगों में काफी जागरूकता आई है। भले ही इसका प्रतिक्रिया तत्काल न मिले लेकिन जनता चुप बैठकर भी सब कह व कर जाती है विदेशों में जमा काला धन के मामले में जनता को ही आगे आना होगा क्योंकि नेता तो अपनी ढपली अपना राग अलापेंगे ऐसे में मुख्या दायित्व जनता का ही बनता है की वे ऐसे ग़लत कार्यों पर अंकुश लगाने तत्पर हो।
सोमवार, 18 मई 2009
स्वार्थी नेताओं को वोट का मुक्का
रविवार, 17 मई 2009
नक्सली हमले से दहलता छत्तीसगढ़
शनिवार, 16 मई 2009
हैवानियत की पराकाष्ठा
शुक्रवार, 15 मई 2009
नक़ल पर खड़ी हो रही नयी बुनियाद
स्कूल शिक्षा में नक़ल की प्रवित्ति चरम पर है। अब उच्च शिक्षा में नक़ल ने पैर पसार लिया है। ऐसे में लगता है की समाज में नई बुनियाद नक़ल पर खड़ी हो रही है इसके चलते सृजनशील क्षमता प्रभावित हो रही है समाज में नक़ल एक रोग की तरह फैल रही है उच्च शिक्षा में नक़ल की बढती प्रविती विकास समाज के लिए नुकसान देह हो सकता है इसलिए ज्ञान की ज्योति को अग्रसर करने विशेष पहल की जरुरत है अभिभावकों को मनन करने की जरुरत है की हम सातवें मंजिला भवन के किए कैसी बुनियाद तैयार कर रहें है क्या इससे हमारे समाज का भला हो सकता है यह सभी बुध जीवियों के सामने आज यक्ष प्रश्न बनकर खड़ा है जांजगीर चंपा जिले का रहने वाला हूँ इसलिए चिंता सता रही है ऐसा नहीं है की नक़ल की यह समस्या केवल जिले में है नक़ल की प्रविती पुरे प्रदेश में है अभिभावकों को सोंचना चाहिए वे कैसा नींव तैयार कर रहें हैं जिसकी जोड़ ही पहले से ही कमजोर हो साईं है है उच्च शिक्षा में बढ़ रही नक़ल की प्रविती को रोकने समय रहते पहल करने की जरुरत है इस दिशा में हम सब को मिलकर कार्य करना होगा यह किसी एक का दायित्व नहीं है समाज में व्याप्त इस नक़ल नम के रोग को जड़ से मिटने सामूहिक प्रयास करना होगा समाज को कुछ देने के लिए ही हमारा जन्म हुआ है ऐसे में हमें समाज में व्याप्त नक़ल नम के रोग को मिटाना होगा हम सभी को संकल्प लेना होगा शासन तंत्र को भी नक़ल को खत्म करने पहल करना चाहिए तभी हम स्वस्थ समाज व शिक्षित समाज की कल्पना कर सकते हैं नक़ल की बढती समाज के किए आज सबसे बड़ी चिंता का विषय है इस विचार करने की जरुरत है।