गुरुवार, 3 सितंबर 2009

मनमोहन की भलमनशाहत और भाजपा

भाजपा में आजकल जो कुछ हो रहा है, इससे देश की सबसे बड़ी दूसरी पार्टी एक बार फिर तितर बितर होती नजर आ रही है। पिछले एक माह में जिन्ना को लेकर पार्टी में कोहराम मचा है। इससे पार्टी पदाधिकारियों के विचार को विखण्डित करके रख दिया है। पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह के लिखी किताब, जिसमें भाजपा ने आपत्ति दर्ज की है। भाजपा नेताओं के अलग अलग बयान से भाजपा में बिखराव की स्थिति है।
इस बीच प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भाजपा को नसीहत दे डाली की देश की सबसे दूसरी पार्टी में इस तरह बिखराव देश के घातक है। ऐसे में मजबूत विपक्ष की भूमिका नहीं निभ सकती। इसे मनमोहन की भल मन शाहत ही कहें की उनहोंने मजबूत विपक्ष की चिंता की, लेकिन इसके लिए उन्हें भाजपा की और से खरी खोटी ही सुनने को मिली। भाजपा के प्रवक्ता प्रकास जावडेकर ने दो टूक शब्दों में कहा की मनमोहन जी को भाजपा की चिंता करने की कोई जरुरत नहीं है, वे देश की चिंता करें। देश में महंगाई, सूखा तथा फ्लू से लोग परेशान व दहशत गर्द हैं। ऐसे में भाजपा में जो कुछ हो रहा है, यह पार्टी का अंदरूनी मामला है, इसमें किसी की हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह निश्चित ही दिल से साफ व्यक्तित्व के धनि है और उनहोंने जो कुछ कहा, उसमें किसी तरह से भाजपा को ताना देने या फिर जले में नमक छिडकने का भावः नहीं था। ऐसे में भाजपा की और से जो बयान आया, इसे किसी भी सूरत में ठीक नहीं कहा जा सकता। इसे तो ऐसा हुआ जैसे आग भुझाने गया व्यक्ति ख़ुद ही जल जाए। दूसरी और कईयों ने तो प्रधानमंत्री के सलाह को पते में हाथ डालने कहने से परहेज नहीं किया।
इसके पहले समाजवादी के महासचिव अमर सिंह ने भी भाजपा में जिन्ना की पुस्तक के कारन आए बिखराव पर चिंता जाहिर की थी। इस पर भाजपा की और से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई थी। ऐसे में जब मनमोहन जी ने विपक्ष के टूटते तारों को जोड़ने की बात क्या कही, भाजपा में भूचाल आ गया।
वैसे भी जिन्ना का भूत भाजपा का साथ नहीं छोड़ रहा है। एक साल पहले भाजपा के वरिष्ट नेता लालकृष्ण आडवानी जब पाकिस्तान गए थे। इस दौरान वे जिन्ना के मजार में माथा टेकने गए थे। इसके बाद भाजपा में भूचाल मच गया, लेकिन उन पर गाज नहीं गिरी।
अब जब जसवंत सिंह ने अपनी किताब में जिन्ना को हीरो बनाया। तो भाजपा में आग लग गई। स्थिति यह रही की जसवंत सिंह को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। अभी भी जिन्ना के भूत ने भाजपा का साथ नहीं छोड़ा है। लिहाजा भाजपा में कलह जरी है और यह कलह थमता नजर नहीं आ रहा है।

शनिवार, 29 अगस्त 2009

कांग्रेस की युवा शक्ति को मिली संजीवनी

कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव राहुल गाँधी के पिछले दिनों हुए छत्तीसगढ़ दौरे कई लिहाज से काफी अहम् रहे। उनके लोकसभा चुनाव के बाद यह छत्तीसगढ़ का पहला दौरा था। इस बार वे किसी प्रचार में नहीं निकले थे, बल्कि प्रदेश के कांग्रेस युवा शक्ति को जोड़ने आए थे। उनके इस दौरे से बजन सी पड़ी कांग्रेस की युवा शक्ति में जान आ गई है। युवा संसद राहुल गाँधी के दौरे से छत्तीसगढ़ में कांग्रेस युवा शक्ति को जैसी संजीवनी मिल गई है।

राहुल बाबा के दौरे से युवक कांग्रेस व एन एस यु आई के कार्यकर्ताओं में उर्जा का संचार हो गया है। राहुल कार्यक्रम में जिस ढंग से युवाओं में उत्साह देखा गया। इसे कांग्रेश की युवा शक्ति की बढती ताकत ही कही जा सकती है।

विधानसभा चुनाव के पहले राहुल गाँधी का टैलेंट हंट चला था, जिसमें कुछ कर गुजरने वाले कार्यकर्ताओं को चुन्हंकित किया। इस बार के उनके यात्रा में वे युवा शक्ति को जोड़ने का प्रयास किया और उन्होंने इसके लिए यूनिवर्सिटी के कैम्पस को चुना। वे जानते हैं की उनके विचारों को कहाँ से नई उड़ान हासिल हो सकती है। राहुल गाँधी ने अपने दो दिवसीय कार्यक्रम में पूरी तरह युवा शक्ति को जागृत करने वाली बातों को फोकस किए।

इस बार उन्होंने प्रदेश प्रभारी होने के नाते एन एस यु आई में नए व उर्जावान चेहरों को सामने लाने नया प्रयोग शुरू किया है। इस बार चलाये जा रहे उनके सदस्यता अभियान में ऐसे युवाओं को ही सदस्यता दी जा रही है, जो कॉलेज में पढ़ते हैं। कुल-मिलाकर राहुल बाबा की सोच ऐसी युवा शक्ति का निर्माण करने का है, जो देश की खोखली हो राजनीती को अपनी ओजस्वी कार्यों से भर सके। उन्होंने यह बात भी कही है की युवा शक्ति ही देश में नया परिवर्तन ला सकता है।

राहुल गाँधी का छत्तीसगढ़ में बिताये दो दिन कांग्रेस की नींव कही जाने वाली एन एस यूं आई को नए सिरे से जीवित करने में अहम् भूमिका निभाई है। कल तक एक भी इनकी गधिविधि देखने को नहीं मिलती थी। अब ये राहुल बाबा के बातों को समझ गए हैं और लग गए हैं, युवाओं की नै ब्रिगेड बनाने।

भले ही राहुल गांघी का विधानसभा व लोकसभा के चुनाव में जादू न चला हो, लेकिन इस बार के उनकी छत्तीसगढ़ दौरे को कमतर नहीं आँका जा सकता। उन्होंने बातों-बातों में कांग्रेस की गुटबाजी को दोनों चुनाव में हार का कारन बताते हुए वरिष्ट नेताओं को एका करने की सम्झायिस भी दे दिए। प्रेस कांफ्रेंस में भी वे छत्तीसगढ़ में लगातार कांग्रेस की हार का ठीकरा वरिस्ट नेताओं के सर फोड़ा। इस बात को नेताओं ने स्वीकार भी। लेकिन क्या प्रदेश में सांप नेवले की तरह गुटबाजी की दुश्मनी रखने वाले कांग्रेसी, क्या रहू गाँधी की बातों पर सबक ले पाएंगे। यदि ऐसा होता है तो फिर राहुल का जादू ही कहा जा सकता है।

फिलहाल सामने में नगरीय चुनाव है। यहाँ भी कांग्रेस की गुटबाजी हावी रही तो समझ जाईये, इस पार्टी का कोई भला होने वाला नहीं है।

समय रहते कांग्रेसियों को संभलना होगा। नहीं तो जनता सब जानती व समझती है और फिर बाहर का रास्ता दिखा सकती है।

सोमवार, 24 अगस्त 2009

नहीं उतर रहा स्वाईन फ्लू का बुखार

दुनिया में इन दिनों जिस ढंग से लोंगों में स्वाईन फ्लू का बुखार चढा है। इसका प्रभाव भारत में भी देखने को मिल रहा है। देश में स्वाईन फ्लू से लोगों के मरने का आंकडा अब तक ५७ बताया जा रहा है। इस संक्रामक बीमारी को लेकर मीडिया ने जिस ढंग से हाय-तौबा मचाया है, इससे लोग और ज्यादा दहशत में हैं। ऐसा नहीं है की मीडिया की भूमिका लोगों को जागरूक करने में नहीं है, लेकिन स्वाईन फ्लू को लेकर जो बात परोसी जा रही है। इसे किसी भी सूरत में ठीक नहीं कहा जा सकता है।
विश्व स्वास्थय संगठन ने दुनिया के सभी देशों को आगाह किया है। किसी भी बीमारी को लेकर सरकार सतर्क रहनी चाहिए, किंतु ऐसा भी न हो की इसका नकारात्मक असर लोगों में हो। इन दिनों स्वाईन फ्लू को लेकर लोगों में कुछ ऐसी ही स्थिति है। बेवजह लोग डरे सहमें हैं और मुंह को इस ढंग से धक् कर रह रहें की उनके ख़ुद के घर वाले ही उन्हें पहचान नहीं पा रहे हैं।
स्वाईन फ्लू को लेकर यह बात भी विशेषज्ञों स्पष्ट किए हैं हैं की यह संक्रामक बीमारी तापमान कम होने की स्थिति में ज्यादा फैलता है। भारत में वैसे ही तेज तापमान होता है। यहाँ बहुत कम ही स्थान है, जहाँ तापमान कम है। लद्दाख जैसे स्थान में ही तापमान शुन्य से भी कम होता है। देश के अन्य स्थानों में बहुत ही कम देखने को मिलता है। तो ऐसे में गर्म जलवायु होने से देश में इस बीमारी के फैलने की संभावना ही कम नजर आती है। ऐसे में जिस ढंग से स्वाईं फ्लू को लेकर खलभली मची है और समाज का हर वो तबका परेशां है की आखिरकार इस बीमारी से कैसे बचा जा सकता है।
जहाँ देश में स्वाईं फ्लू से लोग अपने को बचने हर वो तरकीब खोज रहे हैं। ऐसे में कुछ लोग भी हैं, जिनकी मानवता मर गई है और इस संक्रामक बीमारी से निपटने में लोगों का हर सम्भव सहयोग करना चाहिए। इस बीच उन्हें अपनी दुकानदारी की फिक्र है और बीमारी से बचने चेहरे पर लगाने वाला मास्क को भी बाजार में नकली उतर दिए हैं। इस नकली मास्क से वे कमाई करने से नहीं चूक रहे हैं। उन्हें लोगों से कोई हमदर्दी नही हैं, उन्हें तो बस दुकानदारी की चिंता है।
बात यहाँ संक्रामक बीमारी स्वाईं फ्लू की है। देश हर दिन लोग दूसरी अन्य बिमारियों से रोज हजारों की संख्या में मर रहे है। इसकी फिक्र किसी को नही है। लोगों ने जो देखा उससे अमल करना शुरू कर दिया। गौर करने वाली बात है की स्वाईं फ्लू का लक्षण माने जाने वाला निमोनिया से देश में ही हर वर्ष बड़ी संख्या में लोग मर जाते हैं। इसके आलावा कई संक्रामक बीमारी से लोग असमय ही काल के गाल में समां जाते हैं। दूसरी ओर सड़क दुर्घटना में ही रोज सैकडों लोगों की मौत हो जाती है। यह सब होता है, लोगों के यातायात नियमों से अनजान होने से। ऐसे में लोगों को यातायात संबधी जागरूकता लाकर इन दुर्घटनाओं को कम किया जा सकता है। ठीक इसी प्रकार स्वाईं फ्लू बीमारी से लोगों में जागरूकता लाकर इससे बचा जा सकता है।
स्वाईं फ्लू से पुणे व मुंबई को ज्यादा प्रभावित बताया जा रहा है और वहां से आने वाले लोग पहले अस्पताल चेक एप के लिए पहुँच रहे हैं। यह भी देखने में आ रहा है की जो लोग पुणे व मुंबई क्षेत्र से आ रहे हैं, उनसे लोग दूर भाग रहे हैं। बीमारी से सुरक्षा जरुरी है, लेकिन किसी को स्वाईं फ्लू होने की पुस्ती नहीं हुई है तो लोगों का यह रवैया समझ से परे है।
देश भर में एक माह से स्वाईं फ्लू का बुखार चढा है। यह उतरने का नाम नहीं ले रहा है। आख़िर इससे पहले कभी ऐसा नहीं हुआ। लोगों में ऐसी परिस्थिति से लड़ने सरकार को प्रोत्साहित करना चाहिए।
भगवान् से हमारी कामना है की यह बीमारी को देश ही नहीं वरन दुनिया से खत्म कर दे और लोगों में इसकी व्याप्त दहशत खत्म हो।

गुरुवार, 6 अगस्त 2009

नक्सली बंद करे कायराना हरकत

छत्तीसगढ़ में नक्सलियों ने जिस ढंग से तांडव मचा रखा है। इससे सरकार भी बेबस नजर आ रही है। नक्सली बार-बार निर्दोष का खून बहाने से बाज नहीं आ रहे हैं। जिस ढंग से वे लगातार कायराना हरका कर रहे हैं। इसे मानवता की दृष्टी से कदापि ठीक नहीं कहा जा सकता। जून में नक्सलियों ने करतूत किया, वह मानवता को शर्मशार करने वाला रहा। प्रदेश के अब तक इतिहास में पहली बार नक्सलियों इतनी बड़ी घटना को अंजाम दिया, जिसमें पुलिस कप्तान भी शहीद हो गए। इस दौरान तीन दर्जन पुलिसकर्मियों ने अपनी प्राण की आहुति दे दी। इस घटना के बाद नक्सलियों का हौसला इतना बढ़ गया की वे बीते एक सप्ताह को शहीद सप्ताह घोषित कर दिए और शुरू कर दिए खून से होली खेलना। चार दिन पहले ही कई पुलिस कर्मियों को नक्सलियों ने मार दिया। बावजूद सरकार का रूख अब तक समझ नहीं आ सकी है। अभी मंत्री, नेता कुछ फिन जैसे विधानसभा सत्र में व्यस्त थे। इसके बाद वे माउन्ट आबू के भ्रमण में है। प्रदेश में नक्सली समस्या आग की तरह सुलग रही है और निर्दोष लोंगों की जान जा रही है। सरकार नक्सली समस्या को मिटाने के बजाय फोर्स की कमी बताकर अपनी ख़ुद की कमियों को उजागर कर रहे हैं। नक्सली समस्या से वह क्षेत्र और ज्यादा प्रभावित है, जहाँ विकास की किरने नहीं पहुँच सकी है। नक्सली समस्या आज प्रदेश की एक बड़ी समस्या है। जब कहीं हमला होता है, तो उस आग में पूरा प्रदेश दहलता है। नक्सली आख़िर कायराना हरकत कर जाताना क्या चाहते हैं, यह समझ से परे है। वे केवल आंतंक फैला कर लोंगों को भयभीत करना चाहते हैं। हालाँकि उन नक्सलियों को पता नहीं हैं की ऐसे जवानों के कंधे पर सुरक्षा का भर है, जो अपनी की बाजी लगा देते हैं और लोंगों की जान सुरक्षित रहती है। आख़िर नक्सलियों का यह आंतंक कब तक चलता रहेगा और बीहडों में रहने वाले लोंगों का क्या होगा। उनका विकास कैसे हिगा, यह सोचने वाला कोई नहीं है। इस बारे में चिंतन की जरुरत है।

बुधवार, 29 जुलाई 2009

...आख़िर किसकी मिलकियत

बदलते समय के साथ लोगों की मानसिकता में भी फर्क नजर आने लगी है। आज छोटी सी बात पर भी लोगों में जिस ढंग से उग्रता देखी जा रही है। इसे समाज हित में बेहतर नहीं मन जा सकता। अब लोग अपने अधिकारों को लाकर जिस रह को अपना रहे हैं, इससे समाज का भला होने वाला नहीं है। लोगों को इस बारे में मनन करने की जरुरत है, वहीं शासन के नुमयिन्दों को भी ऐसी स्थिति नहीं आनी नहीं देनी चाहिए।
पिछले दिनों उत्तरप्रदेश में एक ओछी बयान कांग्रेश की प्रदेशाध्यक्ष श्रीमती रिता बहुगुणा जोशी द्वारा प्रदेश की मुख्यमंत्री सुश्री मायावती के खिलाफ जरी किया था। इस बयान की तीखी प्रतिक्रिया हुई थी। लेकिन जिस ढंग से बाद में कार्यकर्ताओं ने हरकत की। इसे भी किसी स्तर से ठीक नहीं कहा जा सकता। क्योंकि श्रीमती जोशी के घर को आग लगाने के बाद उत्तरप्रदेश में उत्पात मचाना ग़लत है। इससे जनता ही तो परेशां हुई है, जिनकी सेवा की बात को लाकर लोग राजनीती में आते हैं, वे पद मिलते ही इन बातों से कोई मतलब नहीं रखता। कार्यकर्ताओं ने बयान के बाद खूब तोड़फोड़ की। आख़िर वह किसकी मिलकियत है।
यह कोई एक मामला नहीं है। ऐसे मामले आए दिन सामने आते रहते हैं। लोग सरकारी संपत्ति, हमारी संपत्ति के अर्थ को ग़लत तरीके से लेते हैं और यही कारन है की बिना सोचे समझे तोड़ फोड़ पर उतारू हो जाते हैं। उन्हें सोचना चाहिए की वे किसका नुकसान कर रहे हैं। देश के विकास में हम सब का भागीदारी होना चाहिए। इसके लिए हमें ऐसे कृत्यों से दूर रहना चाहिए।
कोई भी घटना घटने के बाद प्रभावित परिवार के प्रति सबकी संवेदना होती है, लेकिन क्या तोड़फोड़ करक्या यहाँ रास्ता बचता है।
यह एक यक्ष प्रश्न हम भारत के नागरिकों के समक्ष खड़ा है। इस पहलु को भूलकर हमें ग़लत राह में नहीं जन चाहिए।
देश के विकास में सहभागी बनें, न की बर्बादी में। is sabak ko yaad karna jaruri hai.

रविवार, 19 जुलाई 2009

नेताओं के कैसे-कैसे बेतुका बयान

ऐसा लगता है, जैसे नेताओं का जुबान फिसलने के लिए ही बनी है। चुनाव के दौरान आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता है। इस समय तो हर कोई एक दूसरे पर छींटा-कशी करने से नहीं चुकते, लेकिन ऐसे कोई नेता सुर्खियों में रहने के लिए बेतुका बयानबाजी करने से बाज नहीं आते। नेताओं द्वारा बेतुका बयां देने की बात कोई नई नहीं है।
एक बार फिर बेतुका बयान सामने आया है। जिसे सुनकर हर कोई अचरज में पड़ गया। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री गुलामनबी आजाद ने जनसँख्या नियंत्रण के लिए कुछ बेतुका बयान जरी किया है। उनका कहना था की बिजली रहेगी तो जनसँख्या पर नियंत्रण हो सकता है। लोग देर रत टीवी देखेंगे तो दे से सोयेंगे और लोंगों का यंहन खूब मनोरंजन हो जाएगा। ऐसे में वे जा कर सो जायेंगे और जनसँख्या पर नियंत्रण किया जा सकता है। नबी आजाद साहब को ऐसा कहते सोचना चाहिए था की कई राज्य हैं जन्हाँ बिजली की कमी है फिर भी जनसँख्या पर नियंत्रण कर लिए हैं। यह सब हुआ है, सिक्षा के प्रसार से, लोंगों में जागरूकता आने से।
नबी आजाद साहब क्या कभी छत्तीसगढ़ नहीं आए। प्रदेश में सर प्लस बिजली है, बावजूद जनसँख्या हर वर्ष हजारों में बढ़ ही रहा है। बिजली रहने से जनसँख्या पर नियंत्रण नहीं किया जा सकता, यह केवल शिक्षा के प्रसार तथा जनजागरूकता से ही सम्भव है। जनसँख्या पर रोक लगाने कई लोकलुभावन योजनायें चल रहीं हैं, बावजूद हर वर्ष देश में लाखों में जनसँख्या में वृद्धि हो रही है।
आजाद साहब जनसँख्या नियंत्रण के बारे में सोंच रहे हैं। यह अच्छी बात है, लेकिन केवल बयानों से इस दिशा में कुछ नही हो सकता। देश में पहले जनसँख्या बढ़ाने के लिए जद्दोजहद हुई, अब इस पर नियंत्रण के माथापच्ची हो रही है। यह सही बात है की बढती जनसँख्या देश के विकास के लिए चिंता की बात तो है। इस बारे में हम सब को सोचना चाहिए। यह केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं है।

...बच्चे पैदे करते हैं सरकार
छत्तीसगढ़ में एक वर्ष पहले तत्कालीन स्कूल शिक्षा मंत्री अजय चंद्राकर ने समारोह में बेतुका बयान दिया था जिसकी प्रदेश सहित देश के शिक्षा विदों ने भत्सर्ना की थी। यहाँ उनहोंने कहा था की सरकार बच्चे पैदा नहीं करती, की उनके लिए गुणात्मक शिक्षा की व्यवस्था कर सके। जब यह बयान मीडिया में आया तो, यहाँ उनको शिक्षा विडी ने अपने लेख के मध्यम से सीधे शब्दों में कहा- सरकार भले ही बच्चे पैदा न करे, लेकिन बच्चे जरुर सरकार पैदा करते हैं। कुल-मिलाकर आज राजनीती कितनी ओछी हो गई है, इससे ही पता चलता हैं। नेता कुछ भी बयान दे रहें है, वे समाज में इसका क्या संदेश जाएगा। इस बारे में नहीं सोचते।

उत्तरप्रदेश में आया भूचाल...
उत्तरप्रदेश की कांगेश अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी द्वारा जिस ढंग से मायावती पर बयानबाजी की गई। इससे भी वहां राजनितिक सरगर्मी बढ़ गई। बसपा के कार्यकर्ताओं ने बयानबाजी को लेकर बहुगुणा के घर पर आग लगा दी। साथ ही प्रदेश में खूब हंगामा किया। इसके बाद रही-सही कसर कांग्रेश के कार्यकर्ताओं ने पूरी कर दी। इस बिच किसी आम जनता के हितों का ख्याल न रहा। इस माहौल में जनता ने कितनी परेशानी झेली। इस बारे में में सोचने वाले कोई नहीं दिखे। क्या यही वह राजनीती है, जिसकी कल्पना देश के अमर सपूतों की थी।
बय्यांबजी का दौर राजनीती में आए दिन की बात है, लेकिन इससे किसी का व्यक्तिगत जिन्दगी पर छीटा कशी हो। इससे नेताओं को बचना चाहिए। बयानबाजी से देश का विकास नहीं हो सकता। इस बात को नेताओं को समझाना होगा। तभी देश में शान्ति स्थापित हो सकती है। नहीं तो यही चलता रहेगा और आम जनता इससे पिसती रहेगी।

सोमवार, 13 जुलाई 2009

आँध्रप्रदेश सरकार की पहल सराहनीय

आँध्रप्रदेश सरकार द्वारा शिक्षा पाठ्यक्रम में अन्धविश्वाश विरोधी पाठ शामिल कर इसे स्कूलों में पढाये जाने kअ सराहनीय निर्णय लिया गया है। छत्तीसगढ़ में अंधविश्वास को लेकर लोगों को ज्यादा जागरूक किए जाने की जरुरत है। ऐसे में आँध्रप्रदेश की तर्ज पर यहाँ भी कुछ इसी तरह के निर्णय लेने की आवश्यकता है।
छत्तीसगढ़ में अंधविश्वास की जड़ को खत्म करने कानून भी बना है। लेकिन यह कारगर साबित होता दिखाई नहीं दे रहा है। २००५ से टोनही प्रताड़ना कानून लागु किया गया है। इससे कुछ हद तक लोगों के सीधे प्रताड़ना पर विराम तो लगा, लेकिन जिस लिहाज से इस कानून से अंधविश्वास को खत्म करने शासन की मंशा थी, वह पूरी नहीं हो सकी है।
छत्तीसगढ़ में अंधविश्वास की जड़ें वर्षों से गहरी जमीं हैं। इसके चलते कई बार बड़ी वारदात भी सामने आती रहती हैं। कई बार निजी स्वार्थ के लिए बलि प्रथा भी सामने आ चुका है। लोग आधुनिक युग में जीने की बात करते हैं, लेकिन वे अंधविश्वास के साये से दूर नहीं हो पाए हैं। शहरी क्षेत्रो में स्थिति थोडी ठीक है, लेकिन गावों में अंधविश्वास की जड़ें गहरी हैं। ऐसा नहीं है की इसे दूर नहीं किया जा सकता। शिक्षा के विकास ने अंधविश्वास को दूर करने अहम् भूमिका निभाया है। बावजूद अंधविश्वास आज भी कायम है। इसके लिए लोंगों को जागरूक करना ज्यादा जरुरी है। केवल कानून बनाने से अंधविश्वास को ख़त्म नहीं किया जा सकता। इसके लिए सामूहिक प्रयास की जरूरत है।
आँध्रप्रदेश की सरकार ने शिक्षा पाठ्यक्रम में अंधविश्वास विरोधी पाठ शामिल करने का जो निर्णय लिया है, वह काबिले तारीफ है। शिक्षा से ही अंधविश्वास को खत्म किया जा सकता है। छत्तीसगढ़ सरकार को भी इस दिशा में पहल करनी चाहिए। प्रदेश में अंधविश्वास के मामले सामने आते रहते हैं। कुछ महीनों पहले रायपुर जिले के कसडोल ब्लाक के एक गाँव में सती होने का मामला सामने आया था। मीडिया ने इस बात को जिस ढंग से पेश किया, इससे अंधविश्वास को और बल मिला। सती हिने वाली महिला के परिवार के सदस्यों क्या कसूर, जो उन्हें इस मामले में घसीटा जा रहा है। गाँव में हुए इस घटना को अंधविश्वास के रंग देने वाले ग्रामीण सहित अन्य लोंगों पर कोई करवाई नहीं हुई। क्या ऐसे में ही अंधविश्वास को खत्म किया जा सकता है। छत्तीसगढ़ में यह कोई पहला मामला नहीं है, इससे पहले भी और प्रकरण सामने आ चुके हैं।
आख़िर ऐसे अंधविश्वास के मामलों को रोकने ठोस पहल क्यों नहीं करती। यह एक यक्ष प्रश्न बना हुआ है। आँध्रप्रदेश सरकार की तरह राज्य सरकार को भी सकात्मक सोंच लेकर कार्य करना होगा। तभी अंधविश्वास की बुनियाद मिटाई जा सकेगी।

रविवार, 12 जुलाई 2009

नक्सली हमला : अब हो आर - पार की लडाई

छत्तीसगढ़ के राजनांदग्राम में हुए नक्सली हमले ने एक बार फिर प्रदेश सहित देश वासियों को हिला कर रख दिया है। छत्तीसगढ़ में हुए अब तक का यह सबसे बड़ा नक्सली हमला है। अब तो हद ही हो है। अब वो समय आ गया है, की आर-पार की लडाई जरुरी हो गई है। क्षेत्र के मानपुर व सीता ग्राम में जिस ढंग से नक्सलियों ने कहर बरपाया है। इसने इंसानियत की सारी हदें पर कर दिया है।
१२ जुलाई को हुए नक्सली हमले में जिले का प्रमुख पुलिस अधिकारी एसपी सहित तीन दर्जन से अधिक लोग सहीद हो गए। दिन भर ज्यादा समय तक चले मुठभेड़ में जवानों ने धरती माँ का कर्ज चुका दिया। इस नक्सली हमले को छत्तीसगढ़ बनने के नौ वर्षों में सबसे बड़ी घटना मानी जा रही है। इस हमले ने प्रदेश ही नहीं पुरे देश वासियों को रुला दिया है। बीते इन नौ वर्षों में सैकडों जवानों ने अपनी प्राण न्योछावर की है। आख़िर कब तक नक्सलियों का यह खुनी खेल चलता रहेगा। प्रदेश में अब नक्सलियों से आर - पार की लडाई लड़ने का समय आ गया है। नक्सलियों के राज के तांडव पर अब विराम लगना जरुरी हो गया है। राज्य सरकार को नक्सलियों पर लगाम लगाने सख्त कदम उठाना होगा। छत्तीसगढ़ में नक्सलियों की हिंसक गतिविधियों पर रोक लगाने किसी प्रकार की राजनीती नहीं होना चाहिए। प्रदेश के सभी नेताओं व जनता को एक मंच पर आकर नक्सलियों के खिलाफ मोर्चा खोलना होगा। इसके लिए केन्द्र सरकार को भी पर्यत सुरक्षा बल भी देना चाहिए। नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ सहित कई राज्यों में तबाही मचा रखा है और रोज बेकसूरों की जान लेने से नहीं चूक रहे है। ऐसी गतिविधियों पर सभी को मिलकर लडाई लड़नी होगी। तभी प्रदेश ही नहीं, वरन देश के अन्य राज्यों से भी इस गंभीर बीमारी से निजात पाई जा सकती है। आज की स्थिति में नक्सली कैंसर की बीमारी से भी बड़ी समस्या बनकर प्रदेश व देश में बनकर उभरी है।
छत्तीसगढ़ में कुछ महीने पहले भी पुलिस के उच्च पदस्थ अधिकारी पर भी हमला नक्सलियों ने किया था। इस दौरान कई जवान शहीद भी हुए थे। घटना में वह अधिकारी गोली लगने के बाद कई महीनों तक मौत से लडाई करते रहे। इस घटना ने भी लोंगों झकझोर कर रख दिया था। इस समय राजनीती फिर खूब हुई, लेकिन नक्सलियों की सफाया को लेकर कुछ खास नीतियाँ नहीं बने जा सकी। एक के बाद एक हो रही नक्सली हमले के बाद भी कड़े कदम नहीं उठाया जाना, समझ से परे लगता है। समाज में नक्सली खुनी संघर्ष कर क्या संदेश देना चाहते हैं, समझ से परे लगता है। नक्सलियों की आख़िर यहीं मंशा है की वे बेकशुरों की जान लेते रहे।
इधर एक बार फिर नक्सलियों ने राज नांद गौण ग्राम में हमला कर साबित कर दिया की वे अमन व शान्ति नहीं चाहते। वे प्रदेश में आतंक तथा दहशत फैलाना चाहते हैं। लेकिन वे भूल गए हैं की भारत माता के ऐसे सपूत भी इस धरती पर जन्म लिए हैं, जो उनके मनसूबे को कभी पूरा होने नहीं देंगे। पुलिस के जिले का प्रमुख अधिकारी सहित तीन दर्जन से अधिक जवान शहीद हुयें हैं। उनका लहूँ बेकार नहीं जाएगा, इसके लिए नक्सलियों जैसा का तैसा जवाब देना होगा। अब वह समय आ गया है, की नक्सलियों के नामों निशान मिटाने व्यापक रणनीति के तहत काम हो। सरकार को भी अब नक्सलियों के खात्मे के लिए सरे अधिकार सेना के जवानों दे देना चाहिए। तभी यह हिंशा का दौर थम पायेगा।
हमले में शहीद एसपी व जवानों के बलिदान को छत्तीसगढ़ वासी कभी नहीं भूलेंगे, उनकी शहादत को प्रणाम.

शनिवार, 11 जुलाई 2009

शराबखोरी से मौत का खुला तांडव

गुजरात में जिस ढंग से जहरीली शराब से सौ से भी अधिक लोगों की मौत हो गई है और मौत का यह आंकडा कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है। महज चार दिनों में ही गुजरात में शराबखोरी से जो तांडव मचा है। इसने सरकार को भी हिला कर रख दिया है। कांग्रेसी विधायकों ने विधानसभा में इस मामले को लेकर सरकार को कटघरे में खड़ी कर दी है। गुजरात में जहरीली शराब ने कई परिवारों को तबाह कर दिया है। सरकार अपनी आय में वृद्धि को लेकर शराब बिक्री को बढ़ावा दिया है। इसका नतीजा इस ढंग से सामने आ रहा है। गुजरात में शराबखोरी की प्रवित्ति काफी बढ़ी है। इसके कहीं न कहीं सरकार की नीतियाँ दोषी है। राजस्व के लिए सरकार शराब की दुकानों में लगातार वृद्धि कर रही है। इस ह्रदय विदारक घटना ने हर किसी को हिला कर रख दिया है। शराबखोरी केवल गुजरात की ही समस्या नहीं है। छत्तीसगढ़ में भी जिस ढंग से शराब की दुकानों में हर वर्ष वृद्धि की जा रही है, इससे समाज में अशांति पैदा हो गई है। छग में भी शराबखोरी की प्रवित्ति में कई गुना वृद्धि हुई है। देश का भविष्य कहे जाने वाले युवा ही नहीं, हर तबका का व्यक्ति शराबखोरी में मस्त है। समय रहते छत्तीसगढ़ में भी सार्थक प्रयास नहीं किया गया तो गुजरात में पैदा हुई स्थिति प्रदेश में भी कभी भी बन सकती है। राज्य शासन को शराबखोरी से हो रहे नुकसान व युवाओं के नैतिक पतन के बारे में सोचना चाहिए, न की राजस्व की ही चिंता होना चाहिए। ऐसा नहीं है की छग में शराबखोरी से मौत नहीं हो रही है। प्रदेश में रोज कई लोंगों की जान शराबखोरी से जाती है, बावजूद इस दिशा में अब तक ठोस पहल नहीं हो सकी है। जबकि शासन स्तर पर यह बात किसी से छुपी नहीं है है। सभी को समझ है की शराबखोरी से समाज में शान्ति व्यवस्था तहस नहस हो रही है। अपराध में जीढंग से इजाफा हो रहा है, इसके लिए कहीं न कहीं लोंगों में शराबखोरी की प्रवित्ति को माना जा सकता है। गुजरात में जो तबाही का मंजर इन दिनों सामने आया है। इसने इस बात को और बल मिलता है। गुजरात में कुछ ही दिनों में सौ से ज्यादा लोग काल के गाल में समां गए। दूसरी और सैकडा भर से ज्यादा लोग प्रभावित हैं। जो रोज मौत से लडाई कर रहे हैं। ऐसी घटना फिर कभी न हो, इसके लिए बेहतर प्रयास की जरुरत है। तभी कुछ हो सकता है, अन्यथा ऐसे मामले सामने आते रहेंगे। हालाँकि मेरी कामना है की भगवन लोगों को हो सदबुध्धि दे की वे शराब से दूर हो जायें तो यह स्थिति ही निर्मित नहीं होगी।

सोमवार, 1 जून 2009

चरमरा गई शिक्षा व्यवस्था

छत्तीसगढ़ में वैसे तो किसी भी क्षेत्र में प्रतिभाओं की कमी नहीं है लेकिन प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था संक्रमण काल से गुजर रही है। यहाँ नक़ल की प्रवित्ति इतनी हावी हो गई है की इसका शिधा असर यहाँ के रिजल्ट पर दिखा। छत्तीसगढ़ में कुछ दिनों पहले हायर व हायर सेकेंडरी स्कूल की बोर्ड परीक्षा के परिणाम सामने आए। इस दौरान जिस तादाद में छात्र फेल हुए इसने प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था की पोल खोल दी। समय रहते गुणात्मक शिक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ करने प्रयास नहीं किया गया वह दिन दूर नहीं जब प्रदेश में प्रतिभाओं को बेहतर मंच मिलना मुस्किल हो जाएगा। स्कूल शिक्षा के साथ साथ उच्च शिक्षा में भी नक़ल का बोलबाला है इससे प्रतिभावान छात्रों को नुकसान हो रहा है। आज जिस दौर से शिक्षा व्यवस्था गुजर रही है तथा अव्यवस्था का आलम है। ऐसे में शिक्षा गुणात्मकता लाना जरुरी हो गया है। नक़ल के चलते इसका असर रिजल्ट पर भी पड़ रहा है। इस सत्र बोर्ड कक्षाओं का जो रिजल्ट रहा। इसने शिक्षाविदों को काफी निराश किया है। पिछले कुछ सालों से स्थिति बिगड़ी है। इसका असर रोजगार पर भी पड़ रहा है। सृजनशीलता की कमी के चलते उन्नति की रह में रोडे साबित होते हैं। माना जाता है की शिक्षा से समाज में सकारात्मक संदेश जाता है। इसलिए शिक्षा जरुरी माना जाता है। आदि मानव युग से आदमी ने शिक्षा के कारन ही छुटकारा पाया है। इस तरह चरमराई शिक्षा व्यवस्था को सुधारने सभी को आगे आकर पहल करनी होगी।

रविवार, 31 मई 2009

ख़ुद सुधरें, तब समाज होगा नशामुक्त

३१ मई को विश्व तम्बाकू निषेध दिवस मनाया गया। इस दौरान जगह जगह इसे लेकर तम्बाकू नहीं लोगों को जागरूक करने का प्रयास किया गया। साथ ही सरकार ने तम्बाकू से सम्बंधित उत्पादों के ४० प्रतिशत स्थानों में ख़राब फेफड़ा तथा बिच्छू के चित्र लगाने के निर्देश जारी किए गए हैं। यह सब तो ठीक है लेकिन समाज को नशा मुक्त करने सर्वप्रथम पहले हमें सुधारना होगा। क्योंकि जो संदेश देता है उन्हें इन्हें निषेध करना पड़ता है। आज पूरा समाज नशा के चंगुल में हैं सरकार को इससे राजस्व चाहिए और वह केवल तम्बाकू निषेध दिवस एक दिन मानाने रूचि दिखाती है। समाज को नशा के रोग से बचाना है तो सभी को मिलकर धरातल में कम करना होगा केवल एक दिन निषेध दिवस मानाने से समाज को नशा मुक्त नहीं किया जा सकता। पहले स्वयं को सुधरना होगा लोग तम्बाकू खाना छोड़ दे तो उत्पादक ख़ुद ही तम्बाकू के धंधे को छोड़ देंगे लेकिन ऐसा नहीं होता जो इस निषेध दिवस को लेकर लोगों जागरूक करने जाता है। वह ख़ुद नशे में धुत्त रहता है। सबसे बड़ी बात है की लोंगों को पता है की तम्बाकू उनके स्वास्थय के लिए जानलेवा है। फिर भी वे तम्बाकू के चंगुल में फंसे हुए हैं। दुःख तब लगता है जब देश के भविष्य कहे जाने वाले नौनिहाल ही नशे के गिरफ्त में देखे जाते हैं। एक आंकडे के अनुसार भारत में हर वर्ष तम्बाकू सेवन से लाखों लोग मरते हैं। बावजूद लोगों में यह समझ नहीं आई है की तम्बाकू उनके जान की दुश्मन है। तम्बाकू से कई गंभीर बीमारी भी होती है इसमें कैसर भी शामिल है। सरकार केवल साल भर में एक दिन निषेध दिवस को लेकर शोर मचाती है जबकि लोगों को जागरूक करने का सिलसिला हर दिन चलना चाहिए। स्वस्थ समाज के लिए नशा मुक्त समाज होना जरुरी है। नशा के कारन अपराध में भी वृद्धि हो रही है सरकार अपने istar से प्रयास तो कर रही है। ऐसे में लोंगों को ही ख़ुद सुधरना होगा कहा जाता है ख़ुद sudhro समाज sudhrega। समाज में जब तक नशा का रोग kayam रहेगा तब तक swasth समाज की kalpana नहीं किया जा सकता। लोंगों को ही sankalp लेना होगा की समाज को नशा मुक्त करना है। इससे अपराध को भी khatm करने में sahayak sidh होगा क्योंकि नशा भी अपराध बढ़ने में aham bhoomika निभा रही है।

शुक्रवार, 29 मई 2009

छत्तीसगढ़ की ये कैसी उपेक्षा

छत्तीसगढ़ की उपेक्षा से जनता हतप्रद हैं। प्रदेश में यूपीए गठबंधन को महज एक सिट मिलने का सिला दिया जा रहा हैं। २००४ के चुनाव में भी छत्तीसगढ़ से यूपीए को एक सिट ही .मिली थी। इस बार के भी पंद्रहवीं लोकसभा चुनाव में कांग्रेश को केवल कोरबा की एक सिट मिली है। पिछली सरकार में भी छत्तीसगढ़ से एक भी मंत्री शामिल नहीं किए गए थे। इस बार भी कुछ इसी तरह का हाल है। जनता ने प्रदेश में भाजपा सरकार के कार्यों को पसंद किया और उन्हें पिछली बार की तरह ११ सीटों में जीत दिला दी। प्रदेश की जनता को समझ में नहीं आ रही है की आख़िर छत्तीसगढ़ की इतनी उपेक्षा क्यों। देश के कई राज्यों से आधा दर्जन मंत्री सरकार में बनाये गए हैं। कई राज्यों से एक ही संसद होने के बाद भी उन्हें मंत्रिमंडल में स्थान दिया दिया गया है। ऐसे में छत्तीसगढ़ की यह कैसी उपेक्षा यह बात लोंगों के गला नहीं उतर रहा है। आख़िर क्यों छत्तीसगढ़ को केन्द्र सरकार के यूपीए गठबंधन के मंत्रिमंडल में स्थान नहीं मिल रहा है। पिछली बार भी कुछ इसी तरह की हालत थी। 14 लोकसभा के चुनाव में महासमुंद से केवल अजीत जोगी जीते थे। इस दौरान भी जनता में आस जगी थी की प्रदेश से मंत्री बनाये जायेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ जबकि भाजपा की जब केन्द्र में एनडीए गठबंधन की सरकार थी तो उस दौरान प्रदेश से दो राज्य मंत्री बनाये गए थे। इसमें दिलीप सिंह व रमेश बीस शामिल थे। छत्तीसगढ़ की जनता इसी बात को देख रही है की कांग्रेश की यूपीए सरकार द्वारा प्रदेश के प्रति कितनी बेरुखी पण अपना रही है। जनता चाहती है सरकार किसी की बने विकास हो। शायद इस बात को कांगेश नहीं समझ रही है और यही उपेक्षा के चलते पिछले कई चुनाव में मुंह की खानी पड़ी है। बावजूद कांग्रेश के केंद्रीय नेतृत्व को समझ नही आ रहा है। लगातार हार से सबक लेने की जरुरत है।

गुरुवार, 28 मई 2009

राजनीती में फैली परिवारवाद की जड़

भारत में लोकतंत्र चलता है और जनता अपनी मत का प्रयोग कर जनप्रतिनिधि चुनती है लेकिन राजनीती में परिवार वाद की जड़ें मजबूत हैं। आजादी के बाद से राजनीती में इसी का बोलबाला है। परिवार में जैसे किसी ने अपना स्थान बनाया इसके बाद शुरू हो जाता है सिलसिला परिवार वाद का। एक नेता बना और रिटायर्ड के पहले परिवार का कोई सदस्य पैर जमा लेता है। भारत में लोकतंत्र का इन्हीं के द्वारा इस्तेमाल किया जाता है। भोली भली जनता भी इनकी बैटन में सालों फँसी रहती है। देश में पुरी तरह परिवार वाद की राजनीती हावी है। सामान्य कार्यकर्ता बचपन से लेकर जवानी व इसके बाद भुधापा आने तक लगा रहता है लेकिन उसे कभी मौका नहीं मिलता किंतु जैसे ही कोई बड़े परिवार का व्यक्ति राजनीती में आता तो उसको जैसे सीर आंखों कें बिठाया जाता है। भले ही उस व्यक्ति के पास कोई राजनितिक क्षमता न हो उसके पास परिवार वाद का जो सहारा है। ऐसे में उसकी जड़ें बुत ही कम समय में गहरी हो जाती हैं। यह स्थिति अभी की नहीं है कई दशको से का यही हाल है परिवार वाद के सहारे राजनीती में पैर पसारने वाले बहुत कम ही ऐसे मिलता हैं जो जनता की सुख दुःख की चिंता करे उन्हें तो बस चिंता होती है तो केवल कुर्सी की। इधर पंद्रहवीं लोकसभा की जीत के बाद जैसे ही केन्द्र में यूपीए की सरकार बनी और मंत्रिमंडल गठन की बात आई तो यहाँ फिर न तो जनता की फिक्र रही और न ही पार्टी की उन्हें तो केवल कुर्सी की चिंता रही। यह हालत देश में वर्षों से चली आ रही है यह बड़ी चिंता का विषय है। जनता को भी जागरूक होना होगा तभी ऐसे कुरसी को लेकर राजनीती करने वाले नेता को सबक सिखाया जा सकता है। लोकतंत्र में जनता को सबसे बड़ी सकती मत की मिली है इसका प्रयोग देश की हित में हो तो देश का विकाश होगा। जनता इस बात को समझेगी इसके बाद ही राजनीती में परिवार वाद की जड़ को ख़त्म किया जा सकताहै। ऐसा होने से राजनीती में नए व्यक्तित्व का प्रवेश होगा देश में केवल कुर्सी की लडाई हो रही है वह भी परिवार के लिए नेता समझाते हैं की परिवार वाद की जड़ें मजबूत रहने से उनकी भी जड़ें राजनीती में जमीं रहेंगी।

बुधवार, 27 मई 2009

कैसी कैसी आईपीएल की परिभाषा

आईपीएल की तरह तरह की परिभाषा इजात हो गए हैं इसके कारन भी कई हैं। पहले आईपीएल को इंडियन पब्लिक लीग कहा गया। इसके बाद जैसे जैसे विवाद बढ़ा यह इंडियन पॉलिटिकल लीग हो गया। आईपीएल को लेकर देश में खूब हाय तौबा मचा। आईपीएल ने कई लोंगों को तो इंडिया में पैसा वाला लखपति बना दिया। इधर बाद में फिर शुरू हुआ आईपीएल में पैसे ka खेल। आईपीएल का गठन क्रिक्केट के लिए हुआ था लेकिन यह पुरी तरह राजनितिक अखाडा बन गया था। कुछ देर से आईपीएल क्रिकेट को भारत में कराने के बजाय साउथ आफ्रिका में सुरक्षा कारणों से करना पड़ा। यहाँ आईपीएल इंडियन पब्लिक लीग न होकर पूरी तरह इंडियन पैसा लीग हो गया। साऊथ आफ्रिका में जिस ढंग से क्रिकेट के नाम पर पैसा nikaala गया यह किसी से छिपी नहीं है। खिलाड़ियों को तो पूरी तरह विज्ञापन का maadhyam बनाया गया था। उनके जर्सी में जैसे दुनिया भर के विज्ञापन देखने को मिले और हो भी क्यों न। जिन्होंने खिलाड़ियों को ख़रीदा है उन्हें भी तो कमाना है भले ही खिलाड़ियों के जर्सी में पचास तरह के विज्ञापन लगाने पड़े। इसमें खिलाड़ियों को भी कोई ऐतराज नहीं है क्यों हो। उन्हें भी तो ख़ुद को बेचने पर लाखों करोड़ों रूपये मिले हैं। आम लोगो को क्या मिला केवल चालीस दिनों का मनोरंजन। वैसे भी आजकल पैसे लूटाने पर मनोरंजन के कई साधन मिल जायेंगे लेकिन लोंगों केवल क्रिकेट का ही मनोरंजन चाहिए। भले इसके लिए उन्हें हजारों खर्च क्यों न करना पड़े। इसी बात का कुछ लोंगों आईपीएल के नाम पर खूब लाभ उठाया है और देखते ही देखते इंडिया में पैसा कमाओ के फन्द्धा से वाकफ हो गए और हो गए मालामाल।

गुरुवार, 21 मई 2009

चल पड़ी जूता मारने की परम्परा

पंद्रहवी लोकसभा चुनाव कई मायनों में यादगार रहेगा क्योंकि प्रचार के दौरान जो स्थिति बनी वह देश व समाज के लिए चिंता का विषय है। प्रचार के दौरान एक के बाद एक जूते मारने की जैसी परमपरा चल पड़ी। अभी भी यह सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। हद तो तब हो जाती है जब नेताओं को जूता मारने के आंकडे बताने के लिए वेब साईट तक शुरू हो गया है। इस वेब साईट में अब तक जनता ने कई नेताओं को जमकर जूता मारा है। इसके आंकडे वेब साईट में बताये जा रहे है। जूते मारने की परम्परा लगातार बढती जा रही यह स्वस्थ समाज व देश के अच्छी बात नहीं है। यह प्रवित्ति समाज के घातक साबित हो सकती है। आजादी के पहले व बाद में भी नेताओं की छवि इतनी ख़राब नहीं हुई थी और देश की जनता आज भी अनेक नेताओं को पूजते हैं। उनहोंने देश ही में जो कार्य किए उसे लोग आज भी याद करते हैं। ऐसे में अभी ऐसी क्या हो गया जिससे जनता नेताओं के खिलाफ हो गई है। वैसे भी कहा जाता है की दुष्टों की अन्तिम शरण स्थली राजनीती है। आजादी के बाद तो यह बात खोखली नजर आती थी लेकिन आज जिस ढंग से राजनीती का अपराधीकरण हुआ है। इससे जनता परेशान है। जनता ने कुछ अपराधिक प्रविती के नेताओं को चुनाव में संसद तक नहीं जाने देने खिलाफ में मताधिकार का प्रयोग किया हलाँकि बहुत ऐसे नेता चुनाव जितने में कामयाब रहे जो अपराध के आरोप में हैं लेकिन इससे यह नहीं कहा जा सकता की जनता उन्हें सबक नहीं सिखाएगी। जनता जरूर कुछ नहीं बोलती नहीं है लेकिन समय आने पर ऐसे नातों को धूल चटाने से पीछे नहीं रहते। इसी का परिणाम है जनता के मन में लबे समय से चल रहा ज्वार ने उबाल मारा है और नेताओं पर जूते बरसने लगे हैं। जनता ने अपना विरोध जूते मारकर प्रकट किया है। हांलांकि यह प्रविती समाज हित के ठीक नहीं है क्योंकि नेताओं पर विरोध जताने के भी और कई रास्ते हैं। बावजूद लोगों में सस्ती लोकप्रियता पाने ऐसे किए जाने की बात सामने आई ऐसे नहीं है की नेताओं द्वारा जनता के हित कुछ अच्छा किया जा रहा हो। यही कारन जनता इन नेताओं पर जूता मारकर गुस्सा उतार रहे हैं । अब जूते मारने की परम्परा चल पड़ी है लोकसभा चुनाव के दौरान एक के बाद एक जूता मरने की घटना ने नेताओं के चेहरे से मुस्कान गायब हो गई है। जूता फेंकने की परिपाटी को समाज हीत में किसी भी तरह अच्छा नहीं कहा जा सकता। पिछले कुछ वर्षों में नेताओं की जनता के बीच साख कमजोर हुई है इसके कई कारन है इसे नेता भी अच्छी जानते हैं तो फिर वे इस परिपाटी को बंद कराने पहल क्यों नहीं करते । नेता लगातार जूते खा रहें हैं लेकिन इससे बचने कोई सकारात्मक पहल क्यों नहीं कर रहे हैं। नेता प्रचार के दौरान भले ही मंच के सामने जाली लगा सकते हैं लेकिन जनता के मन में उनके खिलाफ जो उबाल है उसे दूर नहीं करते। जनता भी परेशान है और कुछ नहीं सूझता तो फिर उछल देते हैं जूता।

बुधवार, 20 मई 2009

पलायन की पीडा

छत्तीसगढ़ में पलायन की पीडा लोग वर्षों से भोग रहे हैं। राज्य के जिन क्षेत्रो में सिंचाई सुविधा नहीं है वहां की स्थिति ज्यादा ख़राब है। यहाँ से हर वर्ष सैकडों की संख्या में लोग दूसरे राज्यों में रोजी रोटी की तलाश में निकलते हैं। पहले पलायन की स्थिति और ज्यादा ख़राब थी लेकिन कुछ योजनाओं के लाभ मिलने के बाद इस कुछ हद तक लगाम लगा है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है की पलायन की लोगों की पीडा कम हो गई। आज भी गांवों से बड़ी संख्या में लोगों का पलायन होता। इसका एक कारन यह है की गाँव में ही उन्हें रोजगार नहीं मिलता साथ ही गाँव में सिंचाई सुविधा का आभाव है। ग्राम में ही किसी प्रकार के काम पेट भरने के लिए नहीं मिलता और फिर लोगों के समक्ष पलायन के सिवाय कोई चारा नहीं बचता। छत्तीसगढ़ के कई जिले ऐसे हैं जहाँ हर वर्ष बारिश कम होती है और इन्हें सुखा जिला भी घोषित किया जाता है तथा लोगों को कुछ राशि देकर शासन के आला अधिकारी इस ओर से मुंह मोड़ लेते हैं फिर लोगों के सामने पलायन के सिवाय कोई चारा नहीं बचता । छत्तीसगढ़ में वैसे तो वन सम्पदा की कमी नहीं है ऐसे में लोगों को पलायन करना पड़े इससे बड़ी विडम्बना और क्या हो सकती है। प्रदेश में रोजगार के अवसर उपलब्ध हो जाए तो किसी को पलायन की जरुरत नहीं पड़ेगी रोजगार की समस्या बड़ी समस्या बनकर उभरी है। यहाँ लोग पलायन की विभीषिका को लंबे समय से झेल रहें हैं पलायन के दौरान लोंगों को कई प्रकार की दिक्कात्ते होती हैं खानपान में सुधार नहीं होने से वे स्वास्थ्य ख़राब होने की समस्या से परेशां रहते हैं। छत्तीसगढ़ में शायद ही ऐसा गाँव होगा जहाँ से लोग पलायन न करते हों पलायन को रोकना है तो रोजगार के अवसर बढ़ाने होंगे तभी कुछ हो सकता है। पलायन समाज विकास में एक बड़ी बाधा है इसके लोंगों को जागरूक होने की आवश्यकता है और यह शिक्षा से ही सम्भव हो सकता है। अधिकतर देखने में आता है कम पढ़े लिखे और अनपढ़ लोग ज्यादा पलायन करते हैं क्योंकि उन्हें काम का तलाश होता है इसके चलते वे अपने बच्चों को पढ़ा नहीं पाते इसका असर उनकी भावी पीढी पर भी पड़ता है। ऐसे में शिक्षा की पलायन को रोकने अहम् भूमिका निभा सकती है। लोगों को इस और सोचना होगा तभी कुछ भला हो सकता है।

मंगलवार, 19 मई 2009

कैसे वापस आए विदेशों में जमा काला धन

भारत देश को कभी सोने की चिडिया कहा जाता था आज नेताओं की ओछी राजनीति से भारत विकसित राष्ट्र अब तक नहीं बन सका है। भारत को विकाशशील देश का दर्जा दिया जाता है जबकि भारत में हर वो काबलियत है। जिससे भारत विश्व गुरु कहलाता है। भारत ने शून्य की खोज की जिससे सभी की गणित चल रही ही भारत को विकाशशील राष्ट्र की श्रेणी में रखा गया है इसका एक यह है की यहाँ की जमा पूँजी को सफेद पाशों ने विदेशों की बैंकों के लाकर में रखे हैं। ऐसे में भारत विकास कैसे हो यह समझा जा सकता है क्योंकि भारत की समृधि तो विदेशों में फल फूल रहा है। विदेशी बैंकों में जमा कला धान वापस आ जाए तो देखा जा सकता है की देश का विकास को पर लग जायेंगे लेकिन ऐसा हो कैसे। यह
एक यक्ष प्रश्न बना हुआ है देश की जनता को ही विदेशों में जमा कला धन को वापस लाने एकजुट होना होगा। तभी इस दिशा में कुछ हो सकता है
एक तरफ भारत के नेताओं द्वारा यहाँ के पैसे को विदेशों में चोरी छुपे रखा जाता है और आपात स्थिति में भारत को ही विदेशों से उधर लेना पड़ता है इससे बड़ी विडम्बना और क्या हो सकती है देश में जमे ऐसे सफेदपोशों की पहचान जरुरी है। साथ ही विदेशों में जमा काला धन को भी वापस लाना । । देश की गरीब जनता के पेट की रोटी छिनकर विदेशों में पैसे जमा करने वाले ऐसे लोगों की आत्मा क्या मर गई है। देश में एक बड़ी आबादी को दोनों समय रोटी पाने एडी चोटी एक करनी पड़ती है क्या सफेद पाशों को इस बात फिक्र नहीं है। गरीबों के हक़ पर वे अपना हक़ जमा ले रहे हैं विदेशों में काला धन होने दे इसका असर भारतीय अर्थ व्यवथा पर पड़ रहा है अभी संपन्न हुए चुनाव में काला धन वापस लेन को लेकर काफी राजनीती हुई हलाँकि जनता इस बात को समझ रही है इक्किश्वी सदी में लोगों में काफी जागरूकता आई है। भले ही इसका प्रतिक्रिया तत्काल न मिले लेकिन जनता चुप बैठकर भी सब कह व कर जाती है विदेशों में जमा काला धन के मामले में जनता को ही आगे आना होगा क्योंकि नेता तो अपनी ढपली अपना राग अलापेंगे ऐसे में मुख्या दायित्व जनता का ही बनता है की वे ऐसे ग़लत कार्यों पर अंकुश लगाने तत्पर हो।

सोमवार, 18 मई 2009

स्वार्थी नेताओं को वोट का मुक्का

पंद्रहवीं लोकसभा चुनाव के नतीजे सामने आने के बाद कई स्वार्थी नेताओं को जनता ने अपने वोट के मुक्के से धो डाला है। जो नतीजे सामने आए हैं इसने कई पार्टियों के कद्दावर नेताओं के होश उड़ गए हैं। जनता अब स्वार्थी नेताओं को समझ गई है और यही कारन है की इस चुनाव में बड़े नेताओं को भी धुल की खानी पड़ी है। केन्द्र में बनने वाली सरकार स्थायी हो इसी उद्देश्य से जनता ने अपना मत दिया है जनता ने स्वार्थी राजनीती करने वाले नेताओं को खूब मजा छकाया है। पिछले डेढ़ दशक से जनता देख रही है किस तरह नेता अपनी फायदे के लिए कार्य कर रहे हैं देश में स्थायी सरकार नहीं होने से विकास प्रभावित हो रहा । जनता देख रही थी किस तरह नेता कुर्सी पाने राजनीती कर रहे हैं। नेताओं का ध्यान विकास में कम कुर्सी पाने व सरकार गिराने धमकी देने में रहता था यही कारन है की जनता ने इस बार अपनी अमूल्य मत का प्रयोग स्थायी सरकार बनने के लिए किया है देश में स्थायी सरकार होने से सरकार पर किसी भी का दबाव नहीं होगा और वे बेहतर tarike से कम कर सकेंगे स्थायी सरकार के बनने से निश्चित रूप से विकास होगा। जनता ने पंद्रहवीं लोकसभा चुनाव में जो वोट का उन नेताओं पर जमकर दे मारा है जो जिनके लिए कुर्सी ही सर्वोपरि थी ऐसे में जनता ने वोट की ताकत दिखा दिया की उन्हें विकास चाहिए और विकास स्थायी सरकार होने पर ही हो सकती है। जनता वैसे तो चुनाव के पहले कुछ नहीं बोल रही थी और चुपके से स्वार्थी नेताओं के खिलाफ जनादेश दे दिया यह चुनाव कई मायनों में अविस्मरनीय रहेगा क्योंकि देश में एक लंबे अरसे बाद स्थायी सरकारबन रही । साथ ही कई छद्म नेताओं के लिए यह चुनाव किसी सदमा से कम नहीं क्योंकि उनहोंने कभी नहीं सोचा था उनके बगैर भी केन्द्र में स्थायी व स्वतंत्र सरकार बन जायेगी उन्हें अफसोस रहेगा की जनता जनार्दन से अलग होने से उन्हें इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ा है। ऐसे नेताओं पर जोरदार मुक्का चलाया है जिसे वे शायद ही कभी भूल पाएंगे इस चुनाव में जनता ने अनेक युवा चेहरों पर भरोषा किया है उन्हें सरकार में भी स्थान मिलने की बात कही जा रही है। ऐसे में सरकार व युवा नेताओं को जनता के विश्वास पर खरा उतरना होगा नहीं तो जनता अब जग गई है और अपने matadhikar के mahatva को samajhne लगी है। जनता दे दूर होने का खामियाजा kahin उन्हें khal न जाए कुल milaakar जनता के विश्वास की kasouti पर सरकार को आने पर ही भविष्य में उन्हें जनता का samrthan मिल payegi

रविवार, 17 मई 2009

नक्सली हमले से दहलता छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ राज्य बनने के पहले यहाँ नक्सली समस्या नहीं थी लेकिन जैसे ही नया राज्य बना। वैसे ही प्रदेश के वनांचल क्षेत्रों में नक्सली समस्या छत्तीसगढ़ में सबसे बड़ी समस्या के रूप में उभरी। छत्तीगढ़ राज्य को बने दस वर्ष होने को है प्रदेश में जिस तेज गति से विकास हुआ है इसी तेज गति से छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के तांडव में वृद्धि हुई है आज नक्सली हमले से छत्तीसगढ़ रोज दहल रहा है प्रदेश में सबसे बड़ी कोई समस्या है तो वह है नक्सली यहाँ इन दिनों ऐसा कोई दिन नहीं गुजर रहा है की नक्सली हमले की आहत न सुने दे प्रदेश में सबसे ज्यादा वनांचल क्षेत्र प्रभावित है सरगुजा व बस्तर क्षेत्र के निद्रोश लोगों की जन नक्सली ले रहे हैं जो ग़लत है नक्सली कहते हैं की वे समाज में किसी प्रकार का हिंसा फैलाना नहीं चाहते अब यहाँ गौर करने वाली बात है की वे निहाथ्थों की जन लेकर क्या जाताना चाह रहे नक्सली किसी प्रकार की समाज हित की बात नहीं सोचते यदि ऐसा कोई मंशा होती तो वे ऐसा मानवता के विपरीत कार्य नहीं करते इधर नक्सली मामले को लेकर राजनितिक रोटी सेंकने वालों की भी कमी नहीं है प्रदेश में नक्सली समस्या के विरोध में सलवा जुडूम अभियान चलाया जा रहा है इसमें भी बेकसूर ग्रामीण मारे जा रहे छत्तीसगढ़ के विकास में रोड़ा अटका रहे हैं क्योंकि वे कहते है की उन्हें विकास को रोकना नहीं है तो वे ग्रामीण क्षेत्रो में बन रहे सड़कों को क्यों तोड़ रहे हैं क्यों बिजली सप्लाई को बंद करा देते हैं ऐसे में वे किसके हित चिन्तक बनना चाहते हैं यह उनके सामने सबसे बड़ा प्रश्न है नक्सली हमले पर रोक लगाने सरकार ने नक्सलियों से बात करने की कोशिश की है लेकिन इतने से कुछ होने वाला नहीं है प्रदेश में नक्सली समस्या मिटाने उनके पुनर्वास की व्यवथा करना होगा छत्तीसगढ़ में जिस ढंग से नक्सली गतिविधियों में इजाफा हुआ हैं इससे राज्य पुलिस के नाक पर दम कर दिया है नक्सली बेकसूरों के आलावा पुलिस कर्मियों को भी मौत के घाट उतर दे रहे हैं और पुलिस के हाथ कुछ नक्सलियों के कुछ नहीं आ रहा है राज्य सरकार पिछले दस सालों से नक्सली समस्या से नहीं निपट सकी है और अभी प्रदेश के गृह मंत्री ननकी राम कंवर यह कह रहें हैं की साल भर के भीतर सरकार नक्सली समस्या खत्म कर देगी वैसे तो यह बयान जल्दबाजी में लिया गया निर्णय लगता है हालां की यदि नक्सली समस्या चात्तिसगढ़ से खत्म हो जाए इससे बड़ी और क्या बात हो सकती है फिलहाल प्रदेश की नक्सली समस्या को लेकर राजनीती हो रही है यह अच्छा संकेत नहीं है प्रदेश में नक्सली समस्या से निपटने अब तक विशेष रणनीति नहीं बनी है जो सबसे बड़ी चिंता का विषय है नक्सली रोज हमला कर निद्रोशों की जान ले रहे हैं इस दिशा में बड़ी कारवाई जरुरी है नक्सलियों पर लगाम लगाना जरुरी है नक्सली समस्या छत्तीसगढ़ के किडी कोढ़ की बीमारी से कम नहीं है इसे खत्म कर देने में ही समाज की भलाई है नहीं तो ये धीरे धीरे पुरे छत्तीसगढ़ को चपेट में ले लेंगे.

शनिवार, 16 मई 2009

हैवानियत की पराकाष्ठा

उस समय मेरा दिल दहल गया जब मुझे पता चला की एक व्यक्ति ने हैवानियत की had ही पार कर दी है। उस व्यक्ति ने महज छः साल की बच्ची से दुराचार किया बलात्कार क्या होता है। उस मासूम को क्या पता उस व्यक्ति की हैवानियत ने मानवीयता को शर्मशार कर दिया janjgir champa jile के सकती क्षेत्र में एक ऐसा ही mamla samne आया जिसे सुनकर हर किसी का दिल दहल गया। आज लोगों में दुश्प्रवित्ति इतनी बढ़ गई है की जो करने उसकी आत्मा भी गवाही न दे उस कार्य को कर जा रहे हैं । लोग कहते हैं की वे आधुनिक युग में जी रहें हैं लेकिन वे क्या भूल जाते हैं की भारत एक संस्कारित देश है यहाँ की mati में janma हो jana ही हमारे लिए garva की बात है। इस mati ने कई mahapurushon को janma दिया है। jinhon समाज sudhar में yogdan दिया उस समाज में mahilaon व बच्चों के utthan के कई कार्य । आज yuvaon में जिस dhang से naitik पतन हो रहा है वह समाज के लिए chinta की बात है। हैवानियत की पराकाष्ठा की जो बातें samne aai है वह किसी भी स्थिति में समाज के लिए hitkar नहीं है prachin समय से ही समाज में uchcha sthan प्राप्त है उसे नहीं bhulna चाहिए। जिस तरह अभी mahilayon पर अत्याचार हो रहे रहे हैं यह समाज को ग़लत disha में ले जा रहा है पिछले कुछ समय से दुराचार की gathnaon में vridhi हुई है जिस पर समाज sudharkon को dhayan दिए jane की जरुरत है ऐसा लगता जैसे longon में हैवानियत jag उठी है यही karan है की अब उनकी नजर mamumon पर टिक गई है यदि यही hal रहा to स्थिति bigdati देर नहीं lagegi। संस्कारित shiksha दिए jane की जरुरत है। तभी कुछ bhala हो सकता है.

शुक्रवार, 15 मई 2009

नक़ल पर खड़ी हो रही नयी बुनियाद

स्कूल शिक्षा में नक़ल की प्रवित्ति चरम पर है। अब उच्च शिक्षा में नक़ल ने पैर पसार लिया है। ऐसे में लगता है की समाज में नई बुनियाद नक़ल पर खड़ी हो रही है इसके चलते सृजनशील क्षमता प्रभावित हो रही है समाज में नक़ल एक रोग की तरह फैल रही है उच्च शिक्षा में नक़ल की बढती प्रविती विकास समाज के लिए नुकसान देह हो सकता है इसलिए ज्ञान की ज्योति को अग्रसर करने विशेष पहल की जरुरत है अभिभावकों को मनन करने की जरुरत है की हम सातवें मंजिला भवन के किए कैसी बुनियाद तैयार कर रहें है क्या इससे हमारे समाज का भला हो सकता है यह सभी बुध जीवियों के सामने आज यक्ष प्रश्न बनकर खड़ा है जांजगीर चंपा जिले का रहने वाला हूँ इसलिए चिंता सता रही है ऐसा नहीं है की नक़ल की यह समस्या केवल जिले में है नक़ल की प्रविती पुरे प्रदेश में है अभिभावकों को सोंचना चाहिए वे कैसा नींव तैयार कर रहें हैं जिसकी जोड़ ही पहले से ही कमजोर हो साईं है है उच्च शिक्षा में बढ़ रही नक़ल की प्रविती को रोकने समय रहते पहल करने की जरुरत है इस दिशा में हम सब को मिलकर कार्य करना होगा यह किसी एक का दायित्व नहीं है समाज में व्याप्त इस नक़ल नम के रोग को जड़ से मिटने सामूहिक प्रयास करना होगा समाज को कुछ देने के लिए ही हमारा जन्म हुआ है ऐसे में हमें समाज में व्याप्त नक़ल नम के रोग को मिटाना होगा हम सभी को संकल्प लेना होगा शासन तंत्र को भी नक़ल को खत्म करने पहल करना चाहिए तभी हम स्वस्थ समाज व शिक्षित समाज की कल्पना कर सकते हैं नक़ल की बढती समाज के किए आज सबसे बड़ी चिंता का विषय है इस विचार करने की जरुरत है।