रविवार, 20 फ़रवरी 2011

टेढ़ी नजर

(1) समारू - छत्तीसगढ़ सरकार ने 250 शराब दुकानें बंद करने का निर्णय लिया है ।
पहारू - क्या फर्क पड़ता है, गांवों की गलियों में अवैध शराब दुकानें तो हैं।

2. समारू - केन्द्र की यूपीए सरकार जेपीसी गठन को तैयार हो गई है।
पहारू - सरकार को शीतकालीन सत्र में सद ्बुद्धि क्यों नहीं आई।

3. समारू - छत्तीसगढ़ सरकार ने मार्च से गरीबों को 5 रूपये किलो में देशी चना देने का निर्णय लिया है।
पहारू - शराब तो है, चलो घर बैठे ‘चखना’ की व्यवस्था हो जाएगी।

4। समारू - भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने अपने बयान पर, कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी से माफी मांगी है।
पहारू - जब लालकृष्ण आडवाणी, जिन्ना के मकबरे में जा सकते हैं तो सोनिया से माफी मांगना, कौन सी बड़ी बात हैं।

5. समारू - छग की भाजपा सरकार ने महंगाई के खिलाफ बूथ स्तर तक प्रदर्शन करने का निर्णय लिया है।
पहारू - महंगाई भले ही कम न हो, लेकिन राजनीतिक रोटी तो जरूर सेंक जाएगी।

6. समारू - कृषि प्रधान देश में किसान आत्महत्या कर रहे हैं।
पहारू - क्या करें, माटीपुत्र हैं, सरकार की अनदेखी से माटी में मिल रहे हैं।

गुरुवार, 17 फ़रवरी 2011

टेढ़ी नजर

(1) समारू - न्यायालय ने ए. राजा को घर की दवा तथा खाना खाने की अनुमति दी है।
पहारू - ए। राजा के पास खाने के लिए नोटों की गड्डी है, ना।

(2) समारू - असम में मुख्मंत्री व मंत्रियों से अधिक संपत्ति उनकी पत्नियों के पास है।
पहारू - मंत्रियों की कमाई पर पहला अधिकार तो उन्हीं का है।

(3) समारू - प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि मैं मजबूर हूं, मेरा कोई नहीं सुनता।
पहारू - हम जैसे गरीबों का भी कौन सुनता है ????

(4) समारू - छग सरकार कह रही है, प्रदेश में विकास तेजी हो रहा है।
पहारू - विपक्ष कह रहा है, राज्य में अपराध तेजी से बढ़ रहे हैं।

(5) समारू - गठबंधन की मजबूरी, क्या पहले की एलायंस सरकार में नहीं रही है ?
पहारू - गठबंधन सरकार, मजबूरी का ही परिणाम होता है।

(6) समारू - पिछले दिनों अगवा जवानों को छुड़ाने गए स्वामी अग्निवेश, जंगल में रास्ता भटक गए थे।
पहारू - छग के जंगलों में ना जाने कितने लोग भटके हुए हैं।

टेढ़ी नजर (6)

(1) समारू - छत्तीसगढ़ सरकार शराब की दर बढ़ा रही है ?
पहारू - दो रूपये किलो में चावल है, न !!!!!!

(2) समारू - प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने कहा है - मजबूर हूं ।
पहारू - भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवानी ने कहा है - कमजोर हैं।

(3) समारू - संजारी बालोद उपचुनाव में कौन जीतेगा ?
पहारू - कोई भी जीते, लेकिन कांग्रेस का एक धड़ा हारेगा, जरूर।

(4) समारू - बालोद क्षेत्र में शराब की बिक्री बढ़ गई ?
पहारू - फोकट में मिलेंगे, तो पीएंगे ही।

(5) समारू - संजारी बालोद उपचुनाव में प्रचार के दौरान कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा सो गए थे ?
पहारू - उम्र का तकाजा है !!!

(6) समारू - संजारी बालोद में भाजपा प्रत्याशी श्रीमती कुमारी बाई साहू को जीत दिलाकर प्रदेश के दबंक नेता बृजमोहन अग्रवाल की छवि उपचुनाव जीताउ बन गई है।
पहारू - कमल विहार योजना की सियासी जग में तो मात खा गए, न।

बुधवार, 16 फ़रवरी 2011

महान देश के मजबूर प्रधानमंत्री

दो बरस पहले जब यूपीए-2 गठबंधन की सरकार बनी तो यही कयास लगाया जाने लगा था कि पहली बार की तरह सरकार के लिए यह साल ठीक रहेगा और चुनाव के पहले, जो दावे कांग्रेस ने किए थे, उस पर अमल किया जाएगा। यहां दिलचस्प पहलू यही रहा कि महंगाई जैसी गंभीर समस्या से आम लोगों को निजात देने की बात कहने वाली सरकार, लगातार बयानबाजी में ही उलझी हुई नजर आई। महंगाई से निपटने अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री से लेकर सरकार के मंत्री तक असहाय नजर आए। कभी किसी ने यह कहकर अपने दायित्वों से मुंह मोड़ लिया कि महंगाई तो ग्लोबल वार्मिंग का परिणाम है। जब आम लोगों की प्रतिक्रिया आई और विपक्ष हंगामा मचाने लगा, तब उसी मंत्री को जवाब देते नहीं बना। हद तो तब हो गई, जब वही कृषि मंत्री शरद पवार ने यह कहा कि वे कोई ज्योतिषी नहीं है, जो यह बता सकें, महंगाई कब कम होगी। सबसे बड़ा सवाल यहां यही है कि सत्ता के ओहदेदार कुर्सी पर बैठने के बाद यदि कोई अपनी जिम्मेदारी से बचना चाहे तो इसे क्या कहा जा सकता है ? जब सरकार ही समस्या से निपटने बचेगी, ऐसे हालात में आखिर बेबस जनता किसे अपना दुखड़ा सुनाए ?
महंगाई के मुद्दे पर बयानबाजी का दौर यहीं नहीं थमा। हाल ही में वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने यह कहा कि उनके हाथ में अलादीन का चिराग नहीं है, जो वे कुछ मिनटों में ही महंगाई जैसी गंभीर समस्या को खत्म कर दे। यहां बात वही है कि क्या सरकार को जनता ने पर्याप्त समय नहीं दिया ? पिछले साल भर से महंगाई ने आम लोगों की कमर तोड़कर रख दी है, तब इस तरह बयान देने वाले नुमाइंदे कहां बैठे थे ? महंगाई से निपटने किसी तरह नीति क्यों नहीं बनाई गई ? अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री को भी वित्तीय मामलों की व्यापक समझ है, ऐसे में जब महंगाई पर वे भी चुप्पी साध लंे या फिर यह कहें कि जनता को अभी और इंतजार करना पड़ेगा। इस हालात में समझा जा सकता है कि आम जनता के हितों के लिए सरकार कितनी कटिबद्ध है ? विपक्षी पार्टियां भी महंगाई, भ्रष्टाचार समेत कई मुद्दों को लेकर सरकार को महीनों से घेर रही है और प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह को अब तक का सबसे कमजोर बताया जा रहा है। फिर भी यूपीए-2 सरकार जागती नजर नहीं आ रही है।
महंगाई के बाद अब भ्रष्टाचार के कारण सरकार का सिर दर्द शुरू हो गया है। टू-जी स्पेक्ट्रम, आदर्श सोसायटी घोटाला, कामनवेल्थ गेम्स, इसरो मामले जैसे घोटाले के मामले सामने आने के बाद सरकार की खूब किरकिरी हो रही है। आलम यह रहा है कि संसद का पूरा शीतकालीन सत्र ठप रहा है और कभी इतिहास में इतने दिनों तक संसद में कामकाज ठप नहीं रहा। जेपीसी गठन की मांग अब भी अटका हुआ है, यदि सरकार कोई निर्णय नहीं लेती तो नहीं लगता कि इस बार का बजट सत्र भी ठीक-ठाक चल पाएगा ? वैसे जेपीसी गठन की सहमति की सुगबुगाहट शुरू होने की खबर है, हालांकि अभी इस तरह का कोई निर्णय सरकार ने नहीं लिया है, लेकिन यही कहा जा रहा है कि आने वाले कुछ दिनों में सरकार कोई कदम उठा लेगी।
अब बात मुख्य मुद्दा, प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह की टीवी चैनलों के संपादकों के साथ हुई प्रेसवार्ता की। यहां प्रधानमंत्री ने सीधे तौर पर कहा कि वे गठबंधन राजनीति के कारण मजबूर हैं और उन्हें सरकार चलाने में दिक्कतें आती हैं। यहां एक सवाल यह है कि कुछ दिनों पहले कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने भी गठबंधन राजनीति की बात कही थी। इस समय कांग्रेस राहुल गांधी का बचाव करती क्यों नजर आई ? और प्रधानमंत्री ने आखिर उसी बात को बाद में क्यों दोहराया ? भ्रष्टाचार के मुद्दे पर प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने इतना ही कहा कि जो भी दोषी करार दिए जाएंगे, उन्हें सजा दी जाएगी। दूसरी ओर प्रधानमंत्री के बयान को विपक्षी पार्टी भाजपा ने जनता को बरगलाने वाला करार दिया है और भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने एक बार फिर दोहराया कि सरकार, भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घिरी हुई और अपनी स्पष्ट नीति तय नहीं कर रही है। प्रेसवार्ता में प्रधानमंत्री डा. सिंह ने महंगाई के मुद्दे पर एक बार फिर मियाद बढ़ाते हुए इतना कहा कि महंगाई दर कम कर ली जाएगी। साथ ही यह भी कहा कि वे देश के हित में सोचते हैं और गठबंधन राजनीति के कारण जरूर उनकी कुछ मजबूरियां हैं। यहां बात यही है कि क्या सत्ता की खातिर सरकार चुप्पी साधे बैठी रहे और देश में भ्रष्टाचार पर भ्रष्टाचार होते रहे।
भारत में अब तक ऐसे हालात कभी पैदा नहीं हुए हैं, जब महंगाई इस कदर बढ़े और भ्रष्टाचार के मामले सामने आए तथा सरकार की इस तरह किचकिच हुई हो। टू-जी स्पेक्ट्रम में 1 लाख 76 हजार करोड़ के घोटाला अब तक का सबसे बड़ा घोटाला है। इसरो घोटाला का भी खुलासा हुआ है। महंगाई तथा भ्रष्टाचार के मुद्दे पर प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह, पूरी तरह बेबस आ रहे हैं और खुद को असहाय जताते हुए यह भी कह रहे हैं कि वे मजबूर हैं। एक बात और है, वे खुद को 10 में से 7 अंक देने के साथ देश को आर्थिक मंदी के प्रभाव में आने से बचाने को अपनी बड़ी उपलब्धि मान रहे हैं, लेकिन उन्हें यह भी समझना चाहिए कि यूपीए-2 सरकार के कार्यकाल में ही देश में अब तक का सबसे बड़े घोटाले हुए हैं और जनता की गाढ़ी कमाई धनपशुओं की तिजोरियों में भर रही हैं। आखिर इसके लिए कौन जिम्मेदार है और कौन जवाबदेही लेगा ? केवल मजबूरी की बात कहकर कैसे कोई जनता का अहित करने का अधिकार रख सकता है ? ऐसे में देश की जनता महान देश के इस मजबूर प्रधानमंत्री से क्या उम्मीद रख सकती है ?

मंगलवार, 15 फ़रवरी 2011

‘शराब दुकान हटाओ, छत्तीसगढ़ बचाओ’

‘शीशी-बोतल तोड़ दो, दारू पीना छोड़ दो’, ‘शराब दुकान हटाओ, छत्तीसगढ़ बचाओ’, ‘सरकार को जगाना है, नशामुक्त समाज बनाना है’ जैसे कई नारे लगाते हुए नवागढ़ की सैकड़ों महिलाएं शराब दुकान बंद कराने सड़क पर उतर आईं। महिलाआंे ने कचहरी चौक जांजगीर से रैली की शुरूआत की, जो विवेकानंद मार्ग होते हुए बीटीआई चौक पहुंची और फिर कलेक्टोरेट पहुंची। यहां कलेक्टर को महिलाओं ने एक ज्ञापन सौंपा और शराब दुकान को अगले वित्तीय वर्ष से बंद कराने की मांग की। यहां कलेक्टर ब्रजेश चंद्र मिश्र ने मामले में राज्य षासन को अवगत कराने की बात कही।
जिला मुख्यालय से 20 किमी दूर नगर पंचायत नवागढ़ में पिछले बरसों से लाइसेंसी शराब दुकान संचालित है। शराब दुकान के अलावा गलियों में भी शराब की अवैध बिक्री के कारण महिलाओं को जीना दूभर हो गया है। शराबखोरी के कारण घर में अशांति की स्थिति भी बन रही है तो पुरूष वर्ग के लोग अपनी गाढ़ी कमाई शराब के प्याले में लुटा रहे हैं। इसके अलावा कम उम्र के बच्चों को भी शराब की लत लग रही है, जिससे बच्चों का नैतिक पतन हो रहा है और अपराध में भी बढ़ोतरी हो रही है।
इसी बात को लेकर नवागढ़ की सैकड़ों महिलाओं ने शराब दुकान बंद करने की ठान ली और फिर जांजगीर में विरोध प्रदर्शन कर अफसरों को समस्याओं से अवगत कराने का मन बनाया। मंगलवार की दोपहर नवागढ़ की सैकड़ों महिलाएं जांजगीर के कचहरी चौक पर जुटीं, उसके साथ ही सैकड़ों भी थे, जो उनका मनोबल बढ़ाने का काम कर रहे थे। महिलाएं अपने हाथों में तख्ती थामीं जोरदार शराब विरोधी नारे लगाते हुए आगे बढ़ीं। नषामुक्ति महाभियान के तहत महिलाओं ने ‘शराब दुकान हटाओ, छत्तीसगढ़ बचाओ’ जैसे कई शराब बंदी नारे लगाते हुए कलेक्टोरेट की ओर आगे बढ़ीं, महिलाओं की शराब विरोधी रैली विवेकानंद मार्ग होते हुए बीटीआई चौक और फिर कलेक्टोरेट पहुंची। यहां कलेक्टोरेट के गेट बंद होने के कारण महिलाएं सड़क पर बैठकर नारा लगाने लगीं और शासन की शराब नीति को लेकर सरकार को खरी-खोटी सुनाई। इसके बाद महिलाओं के प्रतिनिधि मंडल ने कलेक्टर ब्रजेश चंद्र मिश्र को ज्ञापन सौंपा और नवागढ़ में शराब दुकान बंद कराने की मांग की। यहां कलेक्टर ने राज्य शासन को अवगत कराने की बात कही गई, लेकिन महिलाओं का कहना था कि उनकी मांग नहीं मानी गई तो वे नवागढ़ में शराब दुकान संचालित होने नहीं देंगी।

...तो होगी आर-पार की लड़ाई
महिलाओं की शराब विरोधी रैली की अगुवाई करने वाली नगर पंचायत नवागढ़ की अध्यक्ष श्रीमती कीर्ति केशरवानी ने बातचीत में सीधे तौर पर कहा कि अभी वे अपनी मांग प्रषासन तथा सरकार के समक्ष रखने आई हैं, यदि उनकी मांगों पर गौर नहीं किया गया तथा अगले वित्तीय वर्ष से नवागढ़ में शराब दुकान संचालित की जाती है तो हम महिलाएं शराब दुकान संचालित होने नहीं देंगी, भले ही इसके लिए उन्हें आर-पार की लड़ाई लड़नी पड़े। उन्होंने कहा कि उनके अभियान का यह पहला दौर है और रैली में सैकड़ों महिलाएं षामिल होकर इस बात को बल दिया है कि वे किस तरह से शराब के कारण मानसिक रूप से परेषान होती हैं। श्रीमती केषरवानी ने कहा कि वे एक महिला जनप्रतिनिधि हैं और कई पार्षद समेत लोग अक्सर शराब पीकर नगर पंचायत चले आते हैं, ऐसी स्थिति में कई तरह की दिक्कतें होती हैं। उनका कहना है कि शराब की लत के कारण बच्चे बिगड़ रहे हैं और अपराध भी बढ़ रहे हैं।


चल पड़ा शराब विरोधी रेला
छत्तीसगढ़ सरकार ने प्रदेष की 250 षराब दुकानों को आगामी वित्तीय वर्ष से बंद करने का फरमान जारी किया है। इसमें उन गांवों को षामिल किया गया है, जिनकी जनसंख्या दो हजार से कम है। दिलचस्प बात यह है कि हाल में जैसे लग रहा है कि षराब विरोधी रेला चल पड़ा रहा है। यही कारण है कि जांजगीर-चांपा जिले के कई गांवों के लोग शराब की अवैध बिक्री से परेषान होकर हर दिन कलेक्टोरेट पहुंचकर अफसरों को समस्याओं से अवगत करा रहे हैं। हालांकि, इन मामलों में किसी तरह की कार्रवाई नहीं होती, यदि ऐसा होता तो गांव-गांव की गलियों में शराब की अवैध मयखानों की संख्या नहीं बढ़ती। पुलिस व आबकारी विभाग के अधिकारी कुछ एक कार्रवाई कर खुद को किनारा कर लेते हैं। इसी के चलते अवैध शराब की बिक्री बढ़ती जा रही है।

सोमवार, 14 फ़रवरी 2011

हर चेहरा लगता है पत्रकार !

यह बात सही है कि आज मीडिया का हर क्षेत्र में दखल है और शहर से लेकर गांवों तक मीडिया ने पहुंच बना ली है। इस तरह कहा जा सकता है कि मीडिया का भी समय के साथ विकेन्द्रीकरण हुआ है। पहले पिं्रट व इलेक्ट्रानिक मीडिया का संपर्क महानगरों के पाठकों व दर्शकों तक होता था, मगर आज हालात काफी बदल गए हैं। मीडिया का चाहे वह पिं्रट माध्यम हो या फिर इलेक्ट्रानिक मीडिया, किसी न किसी तरह से प्रत्येक घरों तक अपनी पैठ जमा ली है। जाहिर सी बात है कि जब मीडिया का प्रसार होगा तो रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे, ऐसा हुआ भी है और मीडिया, रोजगार का एक बड़ा सेक्टर बन गया है।
मीडिया के प्रसार से लोगों में जागरूकता तो आई है, इस बात को स्वीकार करने में कोई गुरेज नहीं है, किन्तु यहां एक दूसरा पहलू भी है, जिसके चलते मीडिया या फिर पत्रकारिता का मूल ध्येय पूरा होता नजर नहीं आ रहा है, वह है-बिना योग्यता व अनुभव के गली-गली पैदा हो रहे पत्रकार ? आरएनआई ने मीडिया माध्यम को बढ़ावा देने अखबार तथा चैनल के पंजीयन में शिथीलता क्या बरती, उसके बाद देश में अखबारों तथा चैनलों की संख्या बढ़ती जा रही है। यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि अखबारों तथा चैनलों की स्वीकृति के लिए कोई विशेश मापदंड नहीं अपनाया जा रहा है ? इसका एक बड़ा उदाहरण - गली-गली खुल रहे अखबार और बिना कोई अनुभव व योग्यता के संपादकों की बाढ़ आ गई है, सामान्य पत्रकारों की बात ही अलग है। यहां हमारा अखबारों तथा चैनलों की बढ़ती संख्या से कोई मतलब नहीं है, बल्कि मुद्दा यह है कि क्या कोई बिना अनुभव व योग्यता के पत्रकारिता जैसे महत्वपूर्ण दायित्व निभा सकता है ?
पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है, इस लिहाज से जो व्यक्ति, पत्रकार जैसे महत्वपूर्ण दायित्व का निर्वहन करता है, तो उसकी जिम्मेदारी कई गुनी बढ़ जाती है। बड़ा सवाल यह है कि क्या यह जरूरी नहीं रह गया है, आज हम इस बात पर मनन करें कि पत्रकारिता जैसे पेशे में ऐसे ही कतिपय लोगों ने अपनी घुसपैठ बना ली है। एक बात भी सही है कि बेहतर पत्रकारिता के लिए व्यक्तिगत क्षमता व ज्ञान का काफी महत्व होता है, लेकिन जब कोई बिना अनुभव तथा योग्यता के पत्रकार कहलाएगा और पत्रकारिता पेशे की गरिमा पर कुठाराघात करेगा तो फिर ऐसी स्थिति के लिए किसे जिम्मेदार माना जा सकता है ?
देश में लगभग 70 हजार पिं्रट माध्यम के अखबार तथा पत्रिकाओं की संख्या है, वहीं करीब 5 सौ चैनलों की संख्या है। ऐसे में समझा जा सकता है कि मीडिया आज कितना बड़ा संचार माध्यम का शक्ति बन गया है। ऐसा नहीं है कि मीडिया क्षेत्र में अच्छी पत्रकारिता नहीं हो रही है, कई अखबार और चैनल देश में हैं, जिनके पेशे के प्रति समर्पण की मिसाल दी जाती है, लेकिन यहां प्रश्न इस बात का भी है कि बहुत से अखबार तथा चैनल हैं, जहां अनुभव तथा योग्यता का कोई मापदंड नहीं है और इन बातों को पूरी तरह दरकिनार किया जाता है। यही कारण है कि गली-कूचों में पत्रकारों की संख्या बढ़ती जा रही है। हमारा यही कहना है कि जब कोई पत्रकारिता पेशे से जुड़ता है और सीखने की ललक रखकर कार्य करता है तो यहां किसी तरह के हालात नहीं बिगड़ते, लेकिन जब कोई केवल कार्ड पकड़कर ही पत्रकार बनकर रहना चाहता है तो फिर उन जैसों की मंशा का अंदाजा सीधे तौर पर लगाया जा सकता है ?
एक कार्ड पकड़कर कोई भी यह कहने लग जाता है कि वह पत्रकार है ? अखबार की संख्या बढ़ने का ही परिणाम है कि मीडिया क्षेत्र में प्रशिक्षित पेशेवरों की कमी हो गई है और ऐसी स्थिति में जब कोई अखबार या चैनल शुरू होता है, तो कुछ ऐसे लोग भी पत्रकार बना दिए जाते हैं, जो बरसों तक दूसरे क्षेत्रों से जुड़े रहे और जब वहां सफल नहीं हुए तो, आ गए पत्रकार बनकर पत्रकारिता में हाथ आजमाने। यहां एक और महत्वपूर्ण मुद्दा यह भी है कि आखिर कौन वरिष्ठ होता है ? वरिष्ठ जैसे शब्द को लेकर अधिकतर विवाद होता रहता है और वर्चस्व की बात भी देखी जाती है। यहां हमारा यही कहना है कि वरिष्ठ वह हो सकता है, जिसके पास कार्यानुभव है और योग्यता है, न कि केवल पत्रकारिता क्षेत्र में गुजारे गए साल दर साल। साल तो गुजारे गए हों और साथ में कोई उपलब्धियां जुड़ी हुई हैं, तब ऐसे हालात नहीं बनते।
वैसे यह कहा जाता है कि जब किसी में योग्यता है तो उसे निखरने कोई रोड़ा बाधा नहीं बनता। ऐसी स्थिति में जब पत्रकारों की बाढ़ आती है तो वहां वरिष्ठ का विवाद गहरा जाता है और फिर होती है, वर्चस्व का विवाद। इस तरह के हालात पत्रकारिता क्षेत्र में महानगरों से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में साधारणतः देखा जाता है। अंत में बात एक बार वही है कि जिस तरह की परिस्थितियां निर्मित हो रही हैं, उसमें हर चेहरा पत्रकार लगता है ! ठीक है मीडिया, एक बड़ा माध्यम है, लेकिन पत्रकारिता क्षेत्र में सुधार व बेहतरी के लिए कुछ तो मापदंड तय होना चाहिए।

वीडियोकॉन पर मेहरबान बाबा रामदेव

योगगुरू बाबा रामदेव लोगों को योग की शिक्षा देने के साथ-साथ वीडियोकान कंपनी का प्रचार भी कर गए। कार्यक्रम के शुरूआत से लेकर कई बार उन्होंने कंपनी की तारीफें की तथा कंपनी के डायरेक्टर को इस आयोजन के लिए बधाई भी दी, जबकि बाबा रामदेव के मुख्य उद्देश्यों में कृषि को बढ़ावा देना शामिल है। बावजूद इसके वे जिले में पावर प्लांट स्थापित करने जा रही वीडियोकान कंपनी के पक्ष में बोलते नजर आए, जबकि जांजगीर-चांपा जिला एक कृशि प्रधान जिला है। प्रदेष में सबसे अधिक सिंचित क्षेत्र होने के बाद भी बाबा रामदेव द्वारा पावर प्लांट कंपनी के कार्यों का लगातार दुहाई दिया जाना, किसी के गले नहीं उतर रहा है। विदित हो कि भारत स्वाभिमान मंच एवं पतंजलि योग समिति के तत्वाधान में आयोजित योग शिविर का मुख्य प्रायोजक वीडियोकान इंडस्ट्रीज एंड पावर वेंचर थे। वीडियोकान द्वारा जिले के नवागढ़ विकासखंड अंतर्गत धुरकोट, भादा, केवा गांव में पावर प्लांट स्थापित किया जा रहा है। इसके प्रचार प्रसार के लिए कंपनी ने तमाम हथकंडे कंपनी आजमा रही है। इसी के तहत् राज्योत्सव के दौरान रायपुर में कंपनी ने सलमान खान का कार्यक्रम भी रखा था। जिसमें काफी विवाद उठा था। उसके बाद जांजगीर में वीडियोकान के बैनर तले योग शिविर आयोजित किया गया। भारत स्वाभिमान मंच का मूल ध्येय लोगों के स्वाभिमान को जगाना है, जिसके लिए योगगुरू बाबा रामदेव देश भर में स्वाभिमान यात्रा निकालकर जमाखोरों व पूंजीपतियों के खिलाफ विरोध का शंखनाद कर चुके हैं। साथ ही विदेशों में जमा काला धन को वापस लाने का डंका पीट रहे हैं। जबकि दूसरी ओर योग शिविर के माध्यम से पूंजीपतियों को बढ़ावा देने का काम भी कर रहे हैं। पावर प्लांट को जमीन दिए जाने से जिले की कृषि भूमि लगातार कम हो रही है। वहीं बाबा रामदेव कृषि भूमि को बढ़ाने के बात कहते हैं। लेकिन पावर प्लांट का समर्थन किए जाने से कई सवाल उठने लगे हैं।

सवालों से घिरे बाबा रामदेव
शिविर के बाद प्रेसवार्ता में बाबा रामदेव कुछ सवालों का ठीक से जवाब नहीं दे सके और झेंपते नजर आए। बाबा ने कहा कि वीडियोकान कंपनी इस जिले में पावर प्लांट लगा रही है, इसकी जानकारी हमें नहीं है। लेकिन इस शिविर को आयोजित कराकर कंपनी के कर्ता धर्ता संदीप कंवर ने समाज के लोगों के लिए एक अच्छा काम किया है। दानी कई कई प्रकार के होते हैं, सभी की जात, धर्म देखना ठीक नहीं है। कुछेक लोग ही गलत होते हैं। जिसकी सजा पूरे समाज को भुगतनी पड़ती है। बाबा रामदेव ने कहा कि अब आगामी शिविरों में वे पावर व बड़ी कंपनियों से दूर ही रहेंगे। वे लोगों में स्वाभिमान जगाने के लिए काम कर रहे हैं। उन्हें राजनीति से कोई सरोकार नहीं है, लेकिन वे गलत लोगों से सत्ता छीनने के लिए यह कदम उठा रहे हैं ताकि कोई स्वच्छ छवि का व्यक्ति प्रतिनिधित्व करे।
बाबा रामदेव ने एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि रिजर्व बैंक से मुद्रा का प्रकाशन करना जितना जरूरी नहीं है, उससे ज्यादा जरूरी अपने देश के रिश्वतखोर व पूंजीपतियों के घर जमा बड़े नोटों को बाहर निकालना है। इसके लिए केन्द्र सरकार को पांच सौ व एक हजार के नोट का प्रचलन बंद कर देना चाहिए। इसके लिए हमने हस्ताक्षर अभियान चलाया है। जिसे प्रधानमंत्री को सौंपकर बड़े नोटों को बंद करने के लिए आग्रह किया जाएगा।
उन्होंने साफ तौर पर कहा वे न तो चुनाव लड़ने की इच्छा रखते हैं और न ही प्रधानमंत्री की कुर्सी से उन्हें कोई सरोकार है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में पावर प्लांट लगने से कृषि कार्य पर असर पड़ेगा, इस संबंध में वे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से चर्चा करेंगे। योगगुरू ने आगे कहा कि पावर प्लांट या कोई उद्योग लगना गलत नहीं है लेकिन पूरे देश व प्रदेश का औद्योगिकरण किया जाना जनजीवन के लिए खतरनाक हो सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि भले ही उनके कुछेक कार्यकर्ता व पदाधिकारी गलत हो सकते हैं लेकिन योगगुरू रामदेव अपने लक्ष्य पर चलकर देश से बुराई को मिटाने में जुटे हुए हैं, जिन्हें भौतिक सुख सुविधाओं से कोई सरोकार नहीं है।


बाबा को नहीं चाहिए कोई पद
बाबा रामदेव का कहना है कि उन्हें राजनीति में व्याप्त अपराधीकरण की लड़ाई लड़नी है और वे इसी उद्देष्य को लेकर राजनीति के मैदान में उतरने को तैयार हैं। बाबा रामदेव ने सीधे कह दिया है कि वे साल के अंत तक अपनी पार्टी बना लेंगे और कोई पद नहीं लेंगे। वे छत्तीसगढ़ के कई षहरों में जाकर लगातार इस बात को दोहरा रहे हैं कि देष से भ्रश्टाचार को खत्म करना है और विदेषों में जमा काले धन को वापस लाना है। बाबा यही कहते हैं कि सन्यासी हैं, उन्हें किसी तरह का कोई सिंहासन नहीं चाहिए, बस वे इतना चाहते हैं कि देष के राजनीतिक हालात बदल जाएं और देष में भ्रश्टाचार खत्म हो जाएं। बाबा रामदेव अपनी ध्येय को लेकर आगे निकल तो पडे हैं, लेकिन वे कितना अपने मकसद में सफल हो पाते हैं, यह आने वाला वक्त ही बताएगा।

शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2011

चैनलों में श्रेय लेने की होड़

छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले के धौड़ाई के पास माहराबेड़ा से यात्री बस को रोककर गणतंत्र दिवस के ठीक, एक दिन पहले 25 जनवरी को 5 जवानों तथा एक स्थानीय युवक को मुखबिरी के शक में नक्सली अगवा कर ले गए थे। बाद में युवक को नक्सलियों ने छोड़ दिया। इसके बाद अगवा किए गए जवानों के परिजन, नक्सलियों से लगातार गुहार लगा रहे थे, लेकिन नक्सली अपनी कुछ मांगों पर अड़े रहे। इस बीच मीडिया द्वारा मामले को कव्हरेज दिया जाता रहा। यहां बताना यह आवश्यक है कि जब से जवान अगवा किए गए थे, उसके बाद विपक्ष भी सरकार पर दबाव बनाया हुआ था कि किसी भी तरह से जवानों को छुड़ाया जाए। साथ ही परिजन भी सरकार के समक्ष गुहार लगा रहे थे।
अभी तीन दिनों पूर्व 8 फरवरी को छग के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह की सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश से चर्चा हुई, क्योंकि नक्सलियों ने सरकार के समक्ष उनके माध्यम से ही मध्यस्थता कराने अपनी बात पहुंचाई थी। एक बात और है कि स्वामी अग्निवेश ने नक्सली तथा सरकार के बीच, एक सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर पहले भी मध्यस्थता की बात कहते रहे हैं। सरकार के चर्चा के बाद स्वामी अग्निवेश, अपने अन्य पांच सदस्यों के साथ 10 फरवरी को सुबह रायपुर पहुंचे और इसके बाद जगदलपुर पहुंचकर मीडिया से चर्चा की। इस तरह पहला दिन बीत गया। दूसरा दिन अर्थात 11 फरवरी की तड़के स्वामी अग्निवेश, दल के साथ निकले और सुबह से शाम तक नारायणपुर क्षेत्र के अबूझमाड़ के जंगल का खाक छानते रहे। इस बीच कई चैनलों से जुड़े पत्रकार भी साथ थे। पहले यह माना जा रहा था कि दोपहर तक अगवा सभी 5 जवान रिहा हो जाएंगे, लेकिन देर शाम तक यह संभव हो पाया और अबूझमाड़ के जंगल में नक्सलियों द्वारा जनअदालत लगाई गई और रिहाई, इस शर्त पर की गई कि जवानों को नौकरी छोड़नी पड़ेगी। इस बीच जवानों से मिलकर उनके परिजनों के आंसू थम नहीं रहे थे और उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था।
यहां एक बात और है कि जवानों को नक्सलियों द्वारा रिहा किए जाने से मानवता की लाज बच गई, क्योंकि नक्सली अपनी हिंसक वारदातों से लगातार खूनी खेल, खेल रहे हैं। ऐसे में अगुवा किए गए जवानों को रिहा करने से जहां परिजनों में खुशी है, वहीं सरकार ने भी राहत की सांस ली है। प्रदेश के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह का कहना है कि वे नक्सलियों से पहले भी बातचीत करने की बात कह चुके हैं और वे आगे भी इसके लिए तैयार हैं, बशर्ते नक्सली बात करने राजी तो हों। इधर यहां महत्वपूर्ण मुद्दा यह भी है कि अगवा जवानों के रिहा के मामले में छग के स्थानीय चैनलों में इस बात की होड़ मची रही कि किसके प्रयास कारगर साबित हुआ है और किसकी मुहिम कामयाब हुई है। प्रादेशिक चैनलों में प्रसारण के दौरान लगातार इस बात का जिक्र किया जाता रहा कि पहली तस्वीर हमारे चैनल पर दिखाए जा रहे हैं और इस तरह पहला श्रेय लेने की कोशिश पूरे समय जारी रही। यह बात भी सामने आई है कि स्वामी अग्निवेश के साथ मीडिया के होने के कारण नक्सली लगातार अपनी जगह बदल रहे थे और यही कारण रहा कि दोपहर में हो जाने वाली रिहाई, देर शाम तक हो पाई। चैनलों द्वारा इस बात की भी दुहाई, खबर देते समय दी जाती रही कि सबसे पहले स्वामी अग्निवेश ने उनसे पहले बात की और अगवा जवानों को छुड़ाने संबंधी खुलासा किया गया।
सवाल यहां यही है कि मीडिया के लिए कव्हरेज तो जरूरी है, लेकिन उन बातों का ख्याल होना भी आवश्यक है, ऐसे नाजुक हालात में श्रेय लेने की होड़ नहीं होनी चाहिए। जवानों के रिहा होने से परिजनों की आंखों से आंसू टपकते रहे और इधर चैनल अपनी मुहिम और प्रयास को कामयाब बताते रहे। इस तरह पहली तस्वीर दिखाने के जद्दोजहद के साथ चैनलों में छाई टीआरपी वार, एक बार फिर छत्तीसगढ़ में देखने को मिला। छग की जनता किसे श्रेय दे, सरकार, पुलिस, चैनलों या फिर नक्सलियों में अचानक जाग आई मानवता को ?