रविवार, 31 मई 2009

ख़ुद सुधरें, तब समाज होगा नशामुक्त

३१ मई को विश्व तम्बाकू निषेध दिवस मनाया गया। इस दौरान जगह जगह इसे लेकर तम्बाकू नहीं लोगों को जागरूक करने का प्रयास किया गया। साथ ही सरकार ने तम्बाकू से सम्बंधित उत्पादों के ४० प्रतिशत स्थानों में ख़राब फेफड़ा तथा बिच्छू के चित्र लगाने के निर्देश जारी किए गए हैं। यह सब तो ठीक है लेकिन समाज को नशा मुक्त करने सर्वप्रथम पहले हमें सुधारना होगा। क्योंकि जो संदेश देता है उन्हें इन्हें निषेध करना पड़ता है। आज पूरा समाज नशा के चंगुल में हैं सरकार को इससे राजस्व चाहिए और वह केवल तम्बाकू निषेध दिवस एक दिन मानाने रूचि दिखाती है। समाज को नशा के रोग से बचाना है तो सभी को मिलकर धरातल में कम करना होगा केवल एक दिन निषेध दिवस मानाने से समाज को नशा मुक्त नहीं किया जा सकता। पहले स्वयं को सुधरना होगा लोग तम्बाकू खाना छोड़ दे तो उत्पादक ख़ुद ही तम्बाकू के धंधे को छोड़ देंगे लेकिन ऐसा नहीं होता जो इस निषेध दिवस को लेकर लोगों जागरूक करने जाता है। वह ख़ुद नशे में धुत्त रहता है। सबसे बड़ी बात है की लोंगों को पता है की तम्बाकू उनके स्वास्थय के लिए जानलेवा है। फिर भी वे तम्बाकू के चंगुल में फंसे हुए हैं। दुःख तब लगता है जब देश के भविष्य कहे जाने वाले नौनिहाल ही नशे के गिरफ्त में देखे जाते हैं। एक आंकडे के अनुसार भारत में हर वर्ष तम्बाकू सेवन से लाखों लोग मरते हैं। बावजूद लोगों में यह समझ नहीं आई है की तम्बाकू उनके जान की दुश्मन है। तम्बाकू से कई गंभीर बीमारी भी होती है इसमें कैसर भी शामिल है। सरकार केवल साल भर में एक दिन निषेध दिवस को लेकर शोर मचाती है जबकि लोगों को जागरूक करने का सिलसिला हर दिन चलना चाहिए। स्वस्थ समाज के लिए नशा मुक्त समाज होना जरुरी है। नशा के कारन अपराध में भी वृद्धि हो रही है सरकार अपने istar से प्रयास तो कर रही है। ऐसे में लोंगों को ही ख़ुद सुधरना होगा कहा जाता है ख़ुद sudhro समाज sudhrega। समाज में जब तक नशा का रोग kayam रहेगा तब तक swasth समाज की kalpana नहीं किया जा सकता। लोंगों को ही sankalp लेना होगा की समाज को नशा मुक्त करना है। इससे अपराध को भी khatm करने में sahayak sidh होगा क्योंकि नशा भी अपराध बढ़ने में aham bhoomika निभा रही है।

शुक्रवार, 29 मई 2009

छत्तीसगढ़ की ये कैसी उपेक्षा

छत्तीसगढ़ की उपेक्षा से जनता हतप्रद हैं। प्रदेश में यूपीए गठबंधन को महज एक सिट मिलने का सिला दिया जा रहा हैं। २००४ के चुनाव में भी छत्तीसगढ़ से यूपीए को एक सिट ही .मिली थी। इस बार के भी पंद्रहवीं लोकसभा चुनाव में कांग्रेश को केवल कोरबा की एक सिट मिली है। पिछली सरकार में भी छत्तीसगढ़ से एक भी मंत्री शामिल नहीं किए गए थे। इस बार भी कुछ इसी तरह का हाल है। जनता ने प्रदेश में भाजपा सरकार के कार्यों को पसंद किया और उन्हें पिछली बार की तरह ११ सीटों में जीत दिला दी। प्रदेश की जनता को समझ में नहीं आ रही है की आख़िर छत्तीसगढ़ की इतनी उपेक्षा क्यों। देश के कई राज्यों से आधा दर्जन मंत्री सरकार में बनाये गए हैं। कई राज्यों से एक ही संसद होने के बाद भी उन्हें मंत्रिमंडल में स्थान दिया दिया गया है। ऐसे में छत्तीसगढ़ की यह कैसी उपेक्षा यह बात लोंगों के गला नहीं उतर रहा है। आख़िर क्यों छत्तीसगढ़ को केन्द्र सरकार के यूपीए गठबंधन के मंत्रिमंडल में स्थान नहीं मिल रहा है। पिछली बार भी कुछ इसी तरह की हालत थी। 14 लोकसभा के चुनाव में महासमुंद से केवल अजीत जोगी जीते थे। इस दौरान भी जनता में आस जगी थी की प्रदेश से मंत्री बनाये जायेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ जबकि भाजपा की जब केन्द्र में एनडीए गठबंधन की सरकार थी तो उस दौरान प्रदेश से दो राज्य मंत्री बनाये गए थे। इसमें दिलीप सिंह व रमेश बीस शामिल थे। छत्तीसगढ़ की जनता इसी बात को देख रही है की कांग्रेश की यूपीए सरकार द्वारा प्रदेश के प्रति कितनी बेरुखी पण अपना रही है। जनता चाहती है सरकार किसी की बने विकास हो। शायद इस बात को कांगेश नहीं समझ रही है और यही उपेक्षा के चलते पिछले कई चुनाव में मुंह की खानी पड़ी है। बावजूद कांग्रेश के केंद्रीय नेतृत्व को समझ नही आ रहा है। लगातार हार से सबक लेने की जरुरत है।

गुरुवार, 28 मई 2009

राजनीती में फैली परिवारवाद की जड़

भारत में लोकतंत्र चलता है और जनता अपनी मत का प्रयोग कर जनप्रतिनिधि चुनती है लेकिन राजनीती में परिवार वाद की जड़ें मजबूत हैं। आजादी के बाद से राजनीती में इसी का बोलबाला है। परिवार में जैसे किसी ने अपना स्थान बनाया इसके बाद शुरू हो जाता है सिलसिला परिवार वाद का। एक नेता बना और रिटायर्ड के पहले परिवार का कोई सदस्य पैर जमा लेता है। भारत में लोकतंत्र का इन्हीं के द्वारा इस्तेमाल किया जाता है। भोली भली जनता भी इनकी बैटन में सालों फँसी रहती है। देश में पुरी तरह परिवार वाद की राजनीती हावी है। सामान्य कार्यकर्ता बचपन से लेकर जवानी व इसके बाद भुधापा आने तक लगा रहता है लेकिन उसे कभी मौका नहीं मिलता किंतु जैसे ही कोई बड़े परिवार का व्यक्ति राजनीती में आता तो उसको जैसे सीर आंखों कें बिठाया जाता है। भले ही उस व्यक्ति के पास कोई राजनितिक क्षमता न हो उसके पास परिवार वाद का जो सहारा है। ऐसे में उसकी जड़ें बुत ही कम समय में गहरी हो जाती हैं। यह स्थिति अभी की नहीं है कई दशको से का यही हाल है परिवार वाद के सहारे राजनीती में पैर पसारने वाले बहुत कम ही ऐसे मिलता हैं जो जनता की सुख दुःख की चिंता करे उन्हें तो बस चिंता होती है तो केवल कुर्सी की। इधर पंद्रहवीं लोकसभा की जीत के बाद जैसे ही केन्द्र में यूपीए की सरकार बनी और मंत्रिमंडल गठन की बात आई तो यहाँ फिर न तो जनता की फिक्र रही और न ही पार्टी की उन्हें तो केवल कुर्सी की चिंता रही। यह हालत देश में वर्षों से चली आ रही है यह बड़ी चिंता का विषय है। जनता को भी जागरूक होना होगा तभी ऐसे कुरसी को लेकर राजनीती करने वाले नेता को सबक सिखाया जा सकता है। लोकतंत्र में जनता को सबसे बड़ी सकती मत की मिली है इसका प्रयोग देश की हित में हो तो देश का विकाश होगा। जनता इस बात को समझेगी इसके बाद ही राजनीती में परिवार वाद की जड़ को ख़त्म किया जा सकताहै। ऐसा होने से राजनीती में नए व्यक्तित्व का प्रवेश होगा देश में केवल कुर्सी की लडाई हो रही है वह भी परिवार के लिए नेता समझाते हैं की परिवार वाद की जड़ें मजबूत रहने से उनकी भी जड़ें राजनीती में जमीं रहेंगी।

बुधवार, 27 मई 2009

कैसी कैसी आईपीएल की परिभाषा

आईपीएल की तरह तरह की परिभाषा इजात हो गए हैं इसके कारन भी कई हैं। पहले आईपीएल को इंडियन पब्लिक लीग कहा गया। इसके बाद जैसे जैसे विवाद बढ़ा यह इंडियन पॉलिटिकल लीग हो गया। आईपीएल को लेकर देश में खूब हाय तौबा मचा। आईपीएल ने कई लोंगों को तो इंडिया में पैसा वाला लखपति बना दिया। इधर बाद में फिर शुरू हुआ आईपीएल में पैसे ka खेल। आईपीएल का गठन क्रिक्केट के लिए हुआ था लेकिन यह पुरी तरह राजनितिक अखाडा बन गया था। कुछ देर से आईपीएल क्रिकेट को भारत में कराने के बजाय साउथ आफ्रिका में सुरक्षा कारणों से करना पड़ा। यहाँ आईपीएल इंडियन पब्लिक लीग न होकर पूरी तरह इंडियन पैसा लीग हो गया। साऊथ आफ्रिका में जिस ढंग से क्रिकेट के नाम पर पैसा nikaala गया यह किसी से छिपी नहीं है। खिलाड़ियों को तो पूरी तरह विज्ञापन का maadhyam बनाया गया था। उनके जर्सी में जैसे दुनिया भर के विज्ञापन देखने को मिले और हो भी क्यों न। जिन्होंने खिलाड़ियों को ख़रीदा है उन्हें भी तो कमाना है भले ही खिलाड़ियों के जर्सी में पचास तरह के विज्ञापन लगाने पड़े। इसमें खिलाड़ियों को भी कोई ऐतराज नहीं है क्यों हो। उन्हें भी तो ख़ुद को बेचने पर लाखों करोड़ों रूपये मिले हैं। आम लोगो को क्या मिला केवल चालीस दिनों का मनोरंजन। वैसे भी आजकल पैसे लूटाने पर मनोरंजन के कई साधन मिल जायेंगे लेकिन लोंगों केवल क्रिकेट का ही मनोरंजन चाहिए। भले इसके लिए उन्हें हजारों खर्च क्यों न करना पड़े। इसी बात का कुछ लोंगों आईपीएल के नाम पर खूब लाभ उठाया है और देखते ही देखते इंडिया में पैसा कमाओ के फन्द्धा से वाकफ हो गए और हो गए मालामाल।

गुरुवार, 21 मई 2009

चल पड़ी जूता मारने की परम्परा

पंद्रहवी लोकसभा चुनाव कई मायनों में यादगार रहेगा क्योंकि प्रचार के दौरान जो स्थिति बनी वह देश व समाज के लिए चिंता का विषय है। प्रचार के दौरान एक के बाद एक जूते मारने की जैसी परमपरा चल पड़ी। अभी भी यह सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। हद तो तब हो जाती है जब नेताओं को जूता मारने के आंकडे बताने के लिए वेब साईट तक शुरू हो गया है। इस वेब साईट में अब तक जनता ने कई नेताओं को जमकर जूता मारा है। इसके आंकडे वेब साईट में बताये जा रहे है। जूते मारने की परम्परा लगातार बढती जा रही यह स्वस्थ समाज व देश के अच्छी बात नहीं है। यह प्रवित्ति समाज के घातक साबित हो सकती है। आजादी के पहले व बाद में भी नेताओं की छवि इतनी ख़राब नहीं हुई थी और देश की जनता आज भी अनेक नेताओं को पूजते हैं। उनहोंने देश ही में जो कार्य किए उसे लोग आज भी याद करते हैं। ऐसे में अभी ऐसी क्या हो गया जिससे जनता नेताओं के खिलाफ हो गई है। वैसे भी कहा जाता है की दुष्टों की अन्तिम शरण स्थली राजनीती है। आजादी के बाद तो यह बात खोखली नजर आती थी लेकिन आज जिस ढंग से राजनीती का अपराधीकरण हुआ है। इससे जनता परेशान है। जनता ने कुछ अपराधिक प्रविती के नेताओं को चुनाव में संसद तक नहीं जाने देने खिलाफ में मताधिकार का प्रयोग किया हलाँकि बहुत ऐसे नेता चुनाव जितने में कामयाब रहे जो अपराध के आरोप में हैं लेकिन इससे यह नहीं कहा जा सकता की जनता उन्हें सबक नहीं सिखाएगी। जनता जरूर कुछ नहीं बोलती नहीं है लेकिन समय आने पर ऐसे नातों को धूल चटाने से पीछे नहीं रहते। इसी का परिणाम है जनता के मन में लबे समय से चल रहा ज्वार ने उबाल मारा है और नेताओं पर जूते बरसने लगे हैं। जनता ने अपना विरोध जूते मारकर प्रकट किया है। हांलांकि यह प्रविती समाज हित के ठीक नहीं है क्योंकि नेताओं पर विरोध जताने के भी और कई रास्ते हैं। बावजूद लोगों में सस्ती लोकप्रियता पाने ऐसे किए जाने की बात सामने आई ऐसे नहीं है की नेताओं द्वारा जनता के हित कुछ अच्छा किया जा रहा हो। यही कारन जनता इन नेताओं पर जूता मारकर गुस्सा उतार रहे हैं । अब जूते मारने की परम्परा चल पड़ी है लोकसभा चुनाव के दौरान एक के बाद एक जूता मरने की घटना ने नेताओं के चेहरे से मुस्कान गायब हो गई है। जूता फेंकने की परिपाटी को समाज हीत में किसी भी तरह अच्छा नहीं कहा जा सकता। पिछले कुछ वर्षों में नेताओं की जनता के बीच साख कमजोर हुई है इसके कई कारन है इसे नेता भी अच्छी जानते हैं तो फिर वे इस परिपाटी को बंद कराने पहल क्यों नहीं करते । नेता लगातार जूते खा रहें हैं लेकिन इससे बचने कोई सकारात्मक पहल क्यों नहीं कर रहे हैं। नेता प्रचार के दौरान भले ही मंच के सामने जाली लगा सकते हैं लेकिन जनता के मन में उनके खिलाफ जो उबाल है उसे दूर नहीं करते। जनता भी परेशान है और कुछ नहीं सूझता तो फिर उछल देते हैं जूता।

बुधवार, 20 मई 2009

पलायन की पीडा

छत्तीसगढ़ में पलायन की पीडा लोग वर्षों से भोग रहे हैं। राज्य के जिन क्षेत्रो में सिंचाई सुविधा नहीं है वहां की स्थिति ज्यादा ख़राब है। यहाँ से हर वर्ष सैकडों की संख्या में लोग दूसरे राज्यों में रोजी रोटी की तलाश में निकलते हैं। पहले पलायन की स्थिति और ज्यादा ख़राब थी लेकिन कुछ योजनाओं के लाभ मिलने के बाद इस कुछ हद तक लगाम लगा है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है की पलायन की लोगों की पीडा कम हो गई। आज भी गांवों से बड़ी संख्या में लोगों का पलायन होता। इसका एक कारन यह है की गाँव में ही उन्हें रोजगार नहीं मिलता साथ ही गाँव में सिंचाई सुविधा का आभाव है। ग्राम में ही किसी प्रकार के काम पेट भरने के लिए नहीं मिलता और फिर लोगों के समक्ष पलायन के सिवाय कोई चारा नहीं बचता। छत्तीसगढ़ के कई जिले ऐसे हैं जहाँ हर वर्ष बारिश कम होती है और इन्हें सुखा जिला भी घोषित किया जाता है तथा लोगों को कुछ राशि देकर शासन के आला अधिकारी इस ओर से मुंह मोड़ लेते हैं फिर लोगों के सामने पलायन के सिवाय कोई चारा नहीं बचता । छत्तीसगढ़ में वैसे तो वन सम्पदा की कमी नहीं है ऐसे में लोगों को पलायन करना पड़े इससे बड़ी विडम्बना और क्या हो सकती है। प्रदेश में रोजगार के अवसर उपलब्ध हो जाए तो किसी को पलायन की जरुरत नहीं पड़ेगी रोजगार की समस्या बड़ी समस्या बनकर उभरी है। यहाँ लोग पलायन की विभीषिका को लंबे समय से झेल रहें हैं पलायन के दौरान लोंगों को कई प्रकार की दिक्कात्ते होती हैं खानपान में सुधार नहीं होने से वे स्वास्थ्य ख़राब होने की समस्या से परेशां रहते हैं। छत्तीसगढ़ में शायद ही ऐसा गाँव होगा जहाँ से लोग पलायन न करते हों पलायन को रोकना है तो रोजगार के अवसर बढ़ाने होंगे तभी कुछ हो सकता है। पलायन समाज विकास में एक बड़ी बाधा है इसके लोंगों को जागरूक होने की आवश्यकता है और यह शिक्षा से ही सम्भव हो सकता है। अधिकतर देखने में आता है कम पढ़े लिखे और अनपढ़ लोग ज्यादा पलायन करते हैं क्योंकि उन्हें काम का तलाश होता है इसके चलते वे अपने बच्चों को पढ़ा नहीं पाते इसका असर उनकी भावी पीढी पर भी पड़ता है। ऐसे में शिक्षा की पलायन को रोकने अहम् भूमिका निभा सकती है। लोगों को इस और सोचना होगा तभी कुछ भला हो सकता है।

मंगलवार, 19 मई 2009

कैसे वापस आए विदेशों में जमा काला धन

भारत देश को कभी सोने की चिडिया कहा जाता था आज नेताओं की ओछी राजनीति से भारत विकसित राष्ट्र अब तक नहीं बन सका है। भारत को विकाशशील देश का दर्जा दिया जाता है जबकि भारत में हर वो काबलियत है। जिससे भारत विश्व गुरु कहलाता है। भारत ने शून्य की खोज की जिससे सभी की गणित चल रही ही भारत को विकाशशील राष्ट्र की श्रेणी में रखा गया है इसका एक यह है की यहाँ की जमा पूँजी को सफेद पाशों ने विदेशों की बैंकों के लाकर में रखे हैं। ऐसे में भारत विकास कैसे हो यह समझा जा सकता है क्योंकि भारत की समृधि तो विदेशों में फल फूल रहा है। विदेशी बैंकों में जमा कला धान वापस आ जाए तो देखा जा सकता है की देश का विकास को पर लग जायेंगे लेकिन ऐसा हो कैसे। यह
एक यक्ष प्रश्न बना हुआ है देश की जनता को ही विदेशों में जमा कला धन को वापस लाने एकजुट होना होगा। तभी इस दिशा में कुछ हो सकता है
एक तरफ भारत के नेताओं द्वारा यहाँ के पैसे को विदेशों में चोरी छुपे रखा जाता है और आपात स्थिति में भारत को ही विदेशों से उधर लेना पड़ता है इससे बड़ी विडम्बना और क्या हो सकती है देश में जमे ऐसे सफेदपोशों की पहचान जरुरी है। साथ ही विदेशों में जमा काला धन को भी वापस लाना । । देश की गरीब जनता के पेट की रोटी छिनकर विदेशों में पैसे जमा करने वाले ऐसे लोगों की आत्मा क्या मर गई है। देश में एक बड़ी आबादी को दोनों समय रोटी पाने एडी चोटी एक करनी पड़ती है क्या सफेद पाशों को इस बात फिक्र नहीं है। गरीबों के हक़ पर वे अपना हक़ जमा ले रहे हैं विदेशों में काला धन होने दे इसका असर भारतीय अर्थ व्यवथा पर पड़ रहा है अभी संपन्न हुए चुनाव में काला धन वापस लेन को लेकर काफी राजनीती हुई हलाँकि जनता इस बात को समझ रही है इक्किश्वी सदी में लोगों में काफी जागरूकता आई है। भले ही इसका प्रतिक्रिया तत्काल न मिले लेकिन जनता चुप बैठकर भी सब कह व कर जाती है विदेशों में जमा काला धन के मामले में जनता को ही आगे आना होगा क्योंकि नेता तो अपनी ढपली अपना राग अलापेंगे ऐसे में मुख्या दायित्व जनता का ही बनता है की वे ऐसे ग़लत कार्यों पर अंकुश लगाने तत्पर हो।

सोमवार, 18 मई 2009

स्वार्थी नेताओं को वोट का मुक्का

पंद्रहवीं लोकसभा चुनाव के नतीजे सामने आने के बाद कई स्वार्थी नेताओं को जनता ने अपने वोट के मुक्के से धो डाला है। जो नतीजे सामने आए हैं इसने कई पार्टियों के कद्दावर नेताओं के होश उड़ गए हैं। जनता अब स्वार्थी नेताओं को समझ गई है और यही कारन है की इस चुनाव में बड़े नेताओं को भी धुल की खानी पड़ी है। केन्द्र में बनने वाली सरकार स्थायी हो इसी उद्देश्य से जनता ने अपना मत दिया है जनता ने स्वार्थी राजनीती करने वाले नेताओं को खूब मजा छकाया है। पिछले डेढ़ दशक से जनता देख रही है किस तरह नेता अपनी फायदे के लिए कार्य कर रहे हैं देश में स्थायी सरकार नहीं होने से विकास प्रभावित हो रहा । जनता देख रही थी किस तरह नेता कुर्सी पाने राजनीती कर रहे हैं। नेताओं का ध्यान विकास में कम कुर्सी पाने व सरकार गिराने धमकी देने में रहता था यही कारन है की जनता ने इस बार अपनी अमूल्य मत का प्रयोग स्थायी सरकार बनने के लिए किया है देश में स्थायी सरकार होने से सरकार पर किसी भी का दबाव नहीं होगा और वे बेहतर tarike से कम कर सकेंगे स्थायी सरकार के बनने से निश्चित रूप से विकास होगा। जनता ने पंद्रहवीं लोकसभा चुनाव में जो वोट का उन नेताओं पर जमकर दे मारा है जो जिनके लिए कुर्सी ही सर्वोपरि थी ऐसे में जनता ने वोट की ताकत दिखा दिया की उन्हें विकास चाहिए और विकास स्थायी सरकार होने पर ही हो सकती है। जनता वैसे तो चुनाव के पहले कुछ नहीं बोल रही थी और चुपके से स्वार्थी नेताओं के खिलाफ जनादेश दे दिया यह चुनाव कई मायनों में अविस्मरनीय रहेगा क्योंकि देश में एक लंबे अरसे बाद स्थायी सरकारबन रही । साथ ही कई छद्म नेताओं के लिए यह चुनाव किसी सदमा से कम नहीं क्योंकि उनहोंने कभी नहीं सोचा था उनके बगैर भी केन्द्र में स्थायी व स्वतंत्र सरकार बन जायेगी उन्हें अफसोस रहेगा की जनता जनार्दन से अलग होने से उन्हें इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ा है। ऐसे नेताओं पर जोरदार मुक्का चलाया है जिसे वे शायद ही कभी भूल पाएंगे इस चुनाव में जनता ने अनेक युवा चेहरों पर भरोषा किया है उन्हें सरकार में भी स्थान मिलने की बात कही जा रही है। ऐसे में सरकार व युवा नेताओं को जनता के विश्वास पर खरा उतरना होगा नहीं तो जनता अब जग गई है और अपने matadhikar के mahatva को samajhne लगी है। जनता दे दूर होने का खामियाजा kahin उन्हें khal न जाए कुल milaakar जनता के विश्वास की kasouti पर सरकार को आने पर ही भविष्य में उन्हें जनता का samrthan मिल payegi

रविवार, 17 मई 2009

नक्सली हमले से दहलता छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ राज्य बनने के पहले यहाँ नक्सली समस्या नहीं थी लेकिन जैसे ही नया राज्य बना। वैसे ही प्रदेश के वनांचल क्षेत्रों में नक्सली समस्या छत्तीसगढ़ में सबसे बड़ी समस्या के रूप में उभरी। छत्तीगढ़ राज्य को बने दस वर्ष होने को है प्रदेश में जिस तेज गति से विकास हुआ है इसी तेज गति से छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के तांडव में वृद्धि हुई है आज नक्सली हमले से छत्तीसगढ़ रोज दहल रहा है प्रदेश में सबसे बड़ी कोई समस्या है तो वह है नक्सली यहाँ इन दिनों ऐसा कोई दिन नहीं गुजर रहा है की नक्सली हमले की आहत न सुने दे प्रदेश में सबसे ज्यादा वनांचल क्षेत्र प्रभावित है सरगुजा व बस्तर क्षेत्र के निद्रोश लोगों की जन नक्सली ले रहे हैं जो ग़लत है नक्सली कहते हैं की वे समाज में किसी प्रकार का हिंसा फैलाना नहीं चाहते अब यहाँ गौर करने वाली बात है की वे निहाथ्थों की जन लेकर क्या जाताना चाह रहे नक्सली किसी प्रकार की समाज हित की बात नहीं सोचते यदि ऐसा कोई मंशा होती तो वे ऐसा मानवता के विपरीत कार्य नहीं करते इधर नक्सली मामले को लेकर राजनितिक रोटी सेंकने वालों की भी कमी नहीं है प्रदेश में नक्सली समस्या के विरोध में सलवा जुडूम अभियान चलाया जा रहा है इसमें भी बेकसूर ग्रामीण मारे जा रहे छत्तीसगढ़ के विकास में रोड़ा अटका रहे हैं क्योंकि वे कहते है की उन्हें विकास को रोकना नहीं है तो वे ग्रामीण क्षेत्रो में बन रहे सड़कों को क्यों तोड़ रहे हैं क्यों बिजली सप्लाई को बंद करा देते हैं ऐसे में वे किसके हित चिन्तक बनना चाहते हैं यह उनके सामने सबसे बड़ा प्रश्न है नक्सली हमले पर रोक लगाने सरकार ने नक्सलियों से बात करने की कोशिश की है लेकिन इतने से कुछ होने वाला नहीं है प्रदेश में नक्सली समस्या मिटाने उनके पुनर्वास की व्यवथा करना होगा छत्तीसगढ़ में जिस ढंग से नक्सली गतिविधियों में इजाफा हुआ हैं इससे राज्य पुलिस के नाक पर दम कर दिया है नक्सली बेकसूरों के आलावा पुलिस कर्मियों को भी मौत के घाट उतर दे रहे हैं और पुलिस के हाथ कुछ नक्सलियों के कुछ नहीं आ रहा है राज्य सरकार पिछले दस सालों से नक्सली समस्या से नहीं निपट सकी है और अभी प्रदेश के गृह मंत्री ननकी राम कंवर यह कह रहें हैं की साल भर के भीतर सरकार नक्सली समस्या खत्म कर देगी वैसे तो यह बयान जल्दबाजी में लिया गया निर्णय लगता है हालां की यदि नक्सली समस्या चात्तिसगढ़ से खत्म हो जाए इससे बड़ी और क्या बात हो सकती है फिलहाल प्रदेश की नक्सली समस्या को लेकर राजनीती हो रही है यह अच्छा संकेत नहीं है प्रदेश में नक्सली समस्या से निपटने अब तक विशेष रणनीति नहीं बनी है जो सबसे बड़ी चिंता का विषय है नक्सली रोज हमला कर निद्रोशों की जान ले रहे हैं इस दिशा में बड़ी कारवाई जरुरी है नक्सलियों पर लगाम लगाना जरुरी है नक्सली समस्या छत्तीसगढ़ के किडी कोढ़ की बीमारी से कम नहीं है इसे खत्म कर देने में ही समाज की भलाई है नहीं तो ये धीरे धीरे पुरे छत्तीसगढ़ को चपेट में ले लेंगे.

शनिवार, 16 मई 2009

हैवानियत की पराकाष्ठा

उस समय मेरा दिल दहल गया जब मुझे पता चला की एक व्यक्ति ने हैवानियत की had ही पार कर दी है। उस व्यक्ति ने महज छः साल की बच्ची से दुराचार किया बलात्कार क्या होता है। उस मासूम को क्या पता उस व्यक्ति की हैवानियत ने मानवीयता को शर्मशार कर दिया janjgir champa jile के सकती क्षेत्र में एक ऐसा ही mamla samne आया जिसे सुनकर हर किसी का दिल दहल गया। आज लोगों में दुश्प्रवित्ति इतनी बढ़ गई है की जो करने उसकी आत्मा भी गवाही न दे उस कार्य को कर जा रहे हैं । लोग कहते हैं की वे आधुनिक युग में जी रहें हैं लेकिन वे क्या भूल जाते हैं की भारत एक संस्कारित देश है यहाँ की mati में janma हो jana ही हमारे लिए garva की बात है। इस mati ने कई mahapurushon को janma दिया है। jinhon समाज sudhar में yogdan दिया उस समाज में mahilaon व बच्चों के utthan के कई कार्य । आज yuvaon में जिस dhang से naitik पतन हो रहा है वह समाज के लिए chinta की बात है। हैवानियत की पराकाष्ठा की जो बातें samne aai है वह किसी भी स्थिति में समाज के लिए hitkar नहीं है prachin समय से ही समाज में uchcha sthan प्राप्त है उसे नहीं bhulna चाहिए। जिस तरह अभी mahilayon पर अत्याचार हो रहे रहे हैं यह समाज को ग़लत disha में ले जा रहा है पिछले कुछ समय से दुराचार की gathnaon में vridhi हुई है जिस पर समाज sudharkon को dhayan दिए jane की जरुरत है ऐसा लगता जैसे longon में हैवानियत jag उठी है यही karan है की अब उनकी नजर mamumon पर टिक गई है यदि यही hal रहा to स्थिति bigdati देर नहीं lagegi। संस्कारित shiksha दिए jane की जरुरत है। तभी कुछ bhala हो सकता है.

शुक्रवार, 15 मई 2009

नक़ल पर खड़ी हो रही नयी बुनियाद

स्कूल शिक्षा में नक़ल की प्रवित्ति चरम पर है। अब उच्च शिक्षा में नक़ल ने पैर पसार लिया है। ऐसे में लगता है की समाज में नई बुनियाद नक़ल पर खड़ी हो रही है इसके चलते सृजनशील क्षमता प्रभावित हो रही है समाज में नक़ल एक रोग की तरह फैल रही है उच्च शिक्षा में नक़ल की बढती प्रविती विकास समाज के लिए नुकसान देह हो सकता है इसलिए ज्ञान की ज्योति को अग्रसर करने विशेष पहल की जरुरत है अभिभावकों को मनन करने की जरुरत है की हम सातवें मंजिला भवन के किए कैसी बुनियाद तैयार कर रहें है क्या इससे हमारे समाज का भला हो सकता है यह सभी बुध जीवियों के सामने आज यक्ष प्रश्न बनकर खड़ा है जांजगीर चंपा जिले का रहने वाला हूँ इसलिए चिंता सता रही है ऐसा नहीं है की नक़ल की यह समस्या केवल जिले में है नक़ल की प्रविती पुरे प्रदेश में है अभिभावकों को सोंचना चाहिए वे कैसा नींव तैयार कर रहें हैं जिसकी जोड़ ही पहले से ही कमजोर हो साईं है है उच्च शिक्षा में बढ़ रही नक़ल की प्रविती को रोकने समय रहते पहल करने की जरुरत है इस दिशा में हम सब को मिलकर कार्य करना होगा यह किसी एक का दायित्व नहीं है समाज में व्याप्त इस नक़ल नम के रोग को जड़ से मिटने सामूहिक प्रयास करना होगा समाज को कुछ देने के लिए ही हमारा जन्म हुआ है ऐसे में हमें समाज में व्याप्त नक़ल नम के रोग को मिटाना होगा हम सभी को संकल्प लेना होगा शासन तंत्र को भी नक़ल को खत्म करने पहल करना चाहिए तभी हम स्वस्थ समाज व शिक्षित समाज की कल्पना कर सकते हैं नक़ल की बढती समाज के किए आज सबसे बड़ी चिंता का विषय है इस विचार करने की जरुरत है।