३१ मई को विश्व तम्बाकू निषेध दिवस मनाया गया। इस दौरान जगह जगह इसे लेकर तम्बाकू नहीं लोगों को जागरूक करने का प्रयास किया गया। साथ ही सरकार ने तम्बाकू से सम्बंधित उत्पादों के ४० प्रतिशत स्थानों में ख़राब फेफड़ा तथा बिच्छू के चित्र लगाने के निर्देश जारी किए गए हैं। यह सब तो ठीक है लेकिन समाज को नशा मुक्त करने सर्वप्रथम पहले हमें सुधारना होगा। क्योंकि जो संदेश देता है उन्हें इन्हें निषेध करना पड़ता है। आज पूरा समाज नशा के चंगुल में हैं सरकार को इससे राजस्व चाहिए और वह केवल तम्बाकू निषेध दिवस एक दिन मानाने रूचि दिखाती है। समाज को नशा के रोग से बचाना है तो सभी को मिलकर धरातल में कम करना होगा केवल एक दिन निषेध दिवस मानाने से समाज को नशा मुक्त नहीं किया जा सकता। पहले स्वयं को सुधरना होगा लोग तम्बाकू खाना छोड़ दे तो उत्पादक ख़ुद ही तम्बाकू के धंधे को छोड़ देंगे लेकिन ऐसा नहीं होता जो इस निषेध दिवस को लेकर लोगों जागरूक करने जाता है। वह ख़ुद नशे में धुत्त रहता है। सबसे बड़ी बात है की लोंगों को पता है की तम्बाकू उनके स्वास्थय के लिए जानलेवा है। फिर भी वे तम्बाकू के चंगुल में फंसे हुए हैं। दुःख तब लगता है जब देश के भविष्य कहे जाने वाले नौनिहाल ही नशे के गिरफ्त में देखे जाते हैं। एक आंकडे के अनुसार भारत में हर वर्ष तम्बाकू सेवन से लाखों लोग मरते हैं। बावजूद लोगों में यह समझ नहीं आई है की तम्बाकू उनके जान की दुश्मन है। तम्बाकू से कई गंभीर बीमारी भी होती है इसमें कैसर भी शामिल है। सरकार केवल साल भर में एक दिन निषेध दिवस को लेकर शोर मचाती है जबकि लोगों को जागरूक करने का सिलसिला हर दिन चलना चाहिए। स्वस्थ समाज के लिए नशा मुक्त समाज होना जरुरी है। नशा के कारन अपराध में भी वृद्धि हो रही है सरकार अपने istar से प्रयास तो कर रही है। ऐसे में लोंगों को ही ख़ुद सुधरना होगा कहा जाता है ख़ुद sudhro समाज sudhrega। समाज में जब तक नशा का रोग kayam रहेगा तब तक swasth समाज की kalpana नहीं किया जा सकता। लोंगों को ही sankalp लेना होगा की समाज को नशा मुक्त करना है। इससे अपराध को भी khatm करने में sahayak sidh होगा क्योंकि नशा भी अपराध बढ़ने में aham bhoomika निभा रही है।
रविवार, 31 मई 2009
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें