बुधवार, 20 मई 2009
पलायन की पीडा
छत्तीसगढ़ में पलायन की पीडा लोग वर्षों से भोग रहे हैं। राज्य के जिन क्षेत्रो में सिंचाई सुविधा नहीं है वहां की स्थिति ज्यादा ख़राब है। यहाँ से हर वर्ष सैकडों की संख्या में लोग दूसरे राज्यों में रोजी रोटी की तलाश में निकलते हैं। पहले पलायन की स्थिति और ज्यादा ख़राब थी लेकिन कुछ योजनाओं के लाभ मिलने के बाद इस कुछ हद तक लगाम लगा है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है की पलायन की लोगों की पीडा कम हो गई। आज भी गांवों से बड़ी संख्या में लोगों का पलायन होता। इसका एक कारन यह है की गाँव में ही उन्हें रोजगार नहीं मिलता साथ ही गाँव में सिंचाई सुविधा का आभाव है। ग्राम में ही किसी प्रकार के काम पेट भरने के लिए नहीं मिलता और फिर लोगों के समक्ष पलायन के सिवाय कोई चारा नहीं बचता। छत्तीसगढ़ के कई जिले ऐसे हैं जहाँ हर वर्ष बारिश कम होती है और इन्हें सुखा जिला भी घोषित किया जाता है तथा लोगों को कुछ राशि देकर शासन के आला अधिकारी इस ओर से मुंह मोड़ लेते हैं फिर लोगों के सामने पलायन के सिवाय कोई चारा नहीं बचता । छत्तीसगढ़ में वैसे तो वन सम्पदा की कमी नहीं है ऐसे में लोगों को पलायन करना पड़े इससे बड़ी विडम्बना और क्या हो सकती है। प्रदेश में रोजगार के अवसर उपलब्ध हो जाए तो किसी को पलायन की जरुरत नहीं पड़ेगी रोजगार की समस्या बड़ी समस्या बनकर उभरी है। यहाँ लोग पलायन की विभीषिका को लंबे समय से झेल रहें हैं पलायन के दौरान लोंगों को कई प्रकार की दिक्कात्ते होती हैं खानपान में सुधार नहीं होने से वे स्वास्थ्य ख़राब होने की समस्या से परेशां रहते हैं। छत्तीसगढ़ में शायद ही ऐसा गाँव होगा जहाँ से लोग पलायन न करते हों पलायन को रोकना है तो रोजगार के अवसर बढ़ाने होंगे तभी कुछ हो सकता है। पलायन समाज विकास में एक बड़ी बाधा है इसके लोंगों को जागरूक होने की आवश्यकता है और यह शिक्षा से ही सम्भव हो सकता है। अधिकतर देखने में आता है कम पढ़े लिखे और अनपढ़ लोग ज्यादा पलायन करते हैं क्योंकि उन्हें काम का तलाश होता है इसके चलते वे अपने बच्चों को पढ़ा नहीं पाते इसका असर उनकी भावी पीढी पर भी पड़ता है। ऐसे में शिक्षा की पलायन को रोकने अहम् भूमिका निभा सकती है। लोगों को इस और सोचना होगा तभी कुछ भला हो सकता है।
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