गुरुवार, 28 मई 2009
राजनीती में फैली परिवारवाद की जड़
भारत में लोकतंत्र चलता है और जनता अपनी मत का प्रयोग कर जनप्रतिनिधि चुनती है लेकिन राजनीती में परिवार वाद की जड़ें मजबूत हैं। आजादी के बाद से राजनीती में इसी का बोलबाला है। परिवार में जैसे किसी ने अपना स्थान बनाया इसके बाद शुरू हो जाता है सिलसिला परिवार वाद का। एक नेता बना और रिटायर्ड के पहले परिवार का कोई सदस्य पैर जमा लेता है। भारत में लोकतंत्र का इन्हीं के द्वारा इस्तेमाल किया जाता है। भोली भली जनता भी इनकी बैटन में सालों फँसी रहती है। देश में पुरी तरह परिवार वाद की राजनीती हावी है। सामान्य कार्यकर्ता बचपन से लेकर जवानी व इसके बाद भुधापा आने तक लगा रहता है लेकिन उसे कभी मौका नहीं मिलता किंतु जैसे ही कोई बड़े परिवार का व्यक्ति राजनीती में आता तो उसको जैसे सीर आंखों कें बिठाया जाता है। भले ही उस व्यक्ति के पास कोई राजनितिक क्षमता न हो उसके पास परिवार वाद का जो सहारा है। ऐसे में उसकी जड़ें बुत ही कम समय में गहरी हो जाती हैं। यह स्थिति अभी की नहीं है कई दशको से का यही हाल है परिवार वाद के सहारे राजनीती में पैर पसारने वाले बहुत कम ही ऐसे मिलता हैं जो जनता की सुख दुःख की चिंता करे उन्हें तो बस चिंता होती है तो केवल कुर्सी की। इधर पंद्रहवीं लोकसभा की जीत के बाद जैसे ही केन्द्र में यूपीए की सरकार बनी और मंत्रिमंडल गठन की बात आई तो यहाँ फिर न तो जनता की फिक्र रही और न ही पार्टी की उन्हें तो केवल कुर्सी की चिंता रही। यह हालत देश में वर्षों से चली आ रही है यह बड़ी चिंता का विषय है। जनता को भी जागरूक होना होगा तभी ऐसे कुरसी को लेकर राजनीती करने वाले नेता को सबक सिखाया जा सकता है। लोकतंत्र में जनता को सबसे बड़ी सकती मत की मिली है इसका प्रयोग देश की हित में हो तो देश का विकाश होगा। जनता इस बात को समझेगी इसके बाद ही राजनीती में परिवार वाद की जड़ को ख़त्म किया जा सकताहै। ऐसा होने से राजनीती में नए व्यक्तित्व का प्रवेश होगा देश में केवल कुर्सी की लडाई हो रही है वह भी परिवार के लिए नेता समझाते हैं की परिवार वाद की जड़ें मजबूत रहने से उनकी भी जड़ें राजनीती में जमीं रहेंगी।
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