कांग्रेस की दोमुही नीति के कारण स्थिति और विकट होती जा रही है, एक तरफ सरकार कहती है कि देश में विकास दर बढ़ रही है और लोगों के जीवन स्तर में सुधार हो रहा है, मगर सवाल यही है कि जब महंगाई, बीते कुछ सालों में सुरसा की तरह बढ़ी है, ऐसे में भला कैसे व किस तरह जनता का आर्थिक स्तर सुधर सकता है ? देश में गरीबी रेखा के नीचे जीवन बिताने वाले लोगों की तादाद बढ़ाने में महंगाई और ज्यादा भूमिका निभा रही है। इसका कारण है कि आम जरूरत की चीजों की दर में एक गुना नहीं, बल्कि अलग-अलग सामग्रियों के लिहाज से कमर तोड़ वृद्धि हुई है।
2004 के पहले कांग्रेस सत्ता से दूर थी और उस दौरान एनडीए गठबंधन की सरकार थी, उस दौरान कांग्रेस यही प्रचारित करती रही है कि यह गरीबों की हितचिंतक सरकार नहीं है, बल्कि यह धनाड्य लोगों की सरकार है ? बाद में जब 2004 में 14 वीं लोकसभा के चुनाव हुए और इस दौरान कांग्रेस ने वही नारा दिया तथा फिर राग अलापा कि ‘कांग्रेस का हाथ-आम आदमी का साथ’। कांग्रेस द्वारा अपने इस चुनाव जीताउ सूत्रवाक्य के साथ कांग्रेस की अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी समेत सभी उन कांग्रेस नेताओं की तस्वीरों को तरजीह दी गई, जिन्होंने इससे पहले कांग्रेस की चुनावी नैया पार लगाई थी या कहें कि केन्द्र की सत्ता संभाली थीं। 2004 के लोकसभा चुनाव में गरीबों के हितैषी बन, कई ढकोसले गढ़ने वाले नारे के सहारे कांग्रेस सत्ता पर काबिज हो गई और इसके बाद तो जैसे उस आदमी को कांग्रेस भूली नजर आई, जिसके सहारे वह एक अरसे बाद सत्ता में काबिज हुई थी। इस चुनाव में कई वादे कांग्रेस ने जनता से की थी, वह कहीं दूर होती नजर अब तक नहीं आई है, जबकि कांग्रेस के यूपीए गठबंधन वाली सरकार अपनी दूसरी पारी खेल रही है और जनता की आशाओं को भी तार-तार कर रही है।
देश में बेरोजगारी, भुखमरी तो कायम है ही, उपर से केन्द्र की यूपीए सरकार जनता को महंगाई की मार झेलने मजबूर कर रही है। लगता है, सरकार, जरूरी चीजों के दाम बढ़ाते थोड़ी भी उन स्थितियों के बारे में नहीं सोचती, तभी तो महंगाई चरम पर है और इस साल में ऐसा कोई माह नहीं गया, जब सरकार किसी न किसी आवश्वक वस्तुओं की दर न बढ़ाई हो। ऐसे में वह आम आदमी करे तो क्या करे, जिसका नाम लेकर केन्द्र की सरकार, सत्तामद में मस्त है और महंगाई की मार से जनता पस्त है। सरकार द्वारा तर्क यह दिया जाता है कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में डीजल या फिर पेट्रोल के दाम बढ़े हैं, ऐसे में कीमत नहीं बढ़ाए गए तो सरकार का आर्थिक ढांचा बिगड़ेगा, किन्तु सरकार को देश के उन करोड़ों लोगों की भी चिंता करने की जरूरत है, जिनकी आमदनी प्रति दिन महज 20 रूपये है।
गरीबी के कारण देश में कुपोषण की समस्या बढ़ रही है, साथ ही कर्ज में लदे किसान आत्महत्या कर रहे हैं। सरकार, बेरोजगारी तथा भुखमरी को लेकर बेपरवाह नजर आती है, यदि ऐसा नहीं होता तो सरकार, महंगाई से निपटने तो कारगर नीति बनाती ही, जिससे जनता को राहत मिलती, मगर ऐसा कहां होने वाला है। केन्द्र की यूपीए सरकार ने जैसे ठान रखी है, कोई कुछ भी कर ले, वह जब चाहेगी, तब आवश्वक वस्तुओं के दाम बढ़ाएगी ? किसी के विरोध का भी ऐसी सरकार को भला क्या फर्क पड़ सकता है, जो दंभी रूख अपनाया हुआ है ? इन्हीं कारणों से जब-जब महंगाई बढ़ती है, तब-तब अर्थशास्त्री माने जाने वाले प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह की सरकार कटघरे में खड़ी नजर आती है। ठीक है, अभी देश की जनता कुछ नहीं कर पा रही है, मगर ऐसी सरकार के खिलाफ जनता को सड़क पर उतरकर लड़ाई लड़नी चाहिए। हालांकि, जनता के पास वोट का वह हथियार है, जिसके आगे कोई भी सरकार घुटने टेकने मजबूर हो जाती है और जिस भी सरकार ने जनता की अनदेखी की है, इतिहास गवाह है, वैसी सरकार को मुंह की खानी पड़ी है और सत्ता के गलियारे दूर होना पड़ा है।
केन्द्र की यही यूपीए सरकार है, जिसके कृषिमंत्री शरद पवार, महंगाई के लिए ग्लोबल वार्मिंग को जिम्मेदार ठहरा चुके हैं और यही मंत्री हैं, जो अनाज सड़ाने को तैयार हैं, मगर गरीबों को नहीं बांट सकते। मुनाफाखोरों को लाभ देने के लिए कृषि मंत्री के बयान हमेशा विवादों में रहे और उन्होंने जब-जब मुंह खोला, तब-तब महंगाई बढ़ी। साथ ही मुनाफाखोरों को इसलिए लाभ मिलता रहा, क्योंकि जिन सामग्रियों के दाम बढ़ने की बात होती थी, उसे जमाखोर, स्टॉक कर रख लेते थे। इस तरह भी देश की जनता को महंगाई की मार झेलनी पड़ रही है तथा जमाखोरों की तिजोरी भरने में सरकार का कृषिमंत्री सहयोग देते नजर आते रहे हैं।
जितनी बार महंगाई बढ़ती है, उसका असर सीधे तौर पर मध्यमवर्गीय परिवारों के घर के बजट पर पड़ता है और वे महंगाई की मार से कराहने से नहीं बचते। अभी डीजल, रसोई गैस तथा केरासिन के दाम कई गुना बढ़ा दिए गए। डीजल के कारण परिवहन क्षेत्र प्रभावित होगा, इससे हर सामग्रियों की कीमत प्रभावित होगी, क्योंकि माल भाड़ा का भुगतान, उन्हीं उपभोक्ताओं से वसूले जाएंगे, जिन्हें महंगाई की समस्या से दो-चार होना पड़ रहा है। ऐसे में यही कहा जा सकता है, जब देश की जनता महंगाई से तंग है और कराह रही है। इन स्थितियों में कांग्रेस के उस दावे की पोल जरूर खुल रही है, जिसमें अक्सर कहा जाता है कि ‘कांग्रेस का हाथ-आम आदमी का साथ’। जब महंगाई दसियों गुना बढ़ी है और जनता इससे सीधे तौर पर प्रभावित हो रही है तो भला ऐसे में कैसे कहा जा सकता है कि कांग्रेस का हाथ, आम आदमी के साथ है ? इस तरह देश, कांग्रेस से सवाल पूछ रहा है कि कांग्रेस का हाथ, आखिर किसके साथ है ?
2004 के पहले कांग्रेस सत्ता से दूर थी और उस दौरान एनडीए गठबंधन की सरकार थी, उस दौरान कांग्रेस यही प्रचारित करती रही है कि यह गरीबों की हितचिंतक सरकार नहीं है, बल्कि यह धनाड्य लोगों की सरकार है ? बाद में जब 2004 में 14 वीं लोकसभा के चुनाव हुए और इस दौरान कांग्रेस ने वही नारा दिया तथा फिर राग अलापा कि ‘कांग्रेस का हाथ-आम आदमी का साथ’। कांग्रेस द्वारा अपने इस चुनाव जीताउ सूत्रवाक्य के साथ कांग्रेस की अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी समेत सभी उन कांग्रेस नेताओं की तस्वीरों को तरजीह दी गई, जिन्होंने इससे पहले कांग्रेस की चुनावी नैया पार लगाई थी या कहें कि केन्द्र की सत्ता संभाली थीं। 2004 के लोकसभा चुनाव में गरीबों के हितैषी बन, कई ढकोसले गढ़ने वाले नारे के सहारे कांग्रेस सत्ता पर काबिज हो गई और इसके बाद तो जैसे उस आदमी को कांग्रेस भूली नजर आई, जिसके सहारे वह एक अरसे बाद सत्ता में काबिज हुई थी। इस चुनाव में कई वादे कांग्रेस ने जनता से की थी, वह कहीं दूर होती नजर अब तक नहीं आई है, जबकि कांग्रेस के यूपीए गठबंधन वाली सरकार अपनी दूसरी पारी खेल रही है और जनता की आशाओं को भी तार-तार कर रही है।
देश में बेरोजगारी, भुखमरी तो कायम है ही, उपर से केन्द्र की यूपीए सरकार जनता को महंगाई की मार झेलने मजबूर कर रही है। लगता है, सरकार, जरूरी चीजों के दाम बढ़ाते थोड़ी भी उन स्थितियों के बारे में नहीं सोचती, तभी तो महंगाई चरम पर है और इस साल में ऐसा कोई माह नहीं गया, जब सरकार किसी न किसी आवश्वक वस्तुओं की दर न बढ़ाई हो। ऐसे में वह आम आदमी करे तो क्या करे, जिसका नाम लेकर केन्द्र की सरकार, सत्तामद में मस्त है और महंगाई की मार से जनता पस्त है। सरकार द्वारा तर्क यह दिया जाता है कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में डीजल या फिर पेट्रोल के दाम बढ़े हैं, ऐसे में कीमत नहीं बढ़ाए गए तो सरकार का आर्थिक ढांचा बिगड़ेगा, किन्तु सरकार को देश के उन करोड़ों लोगों की भी चिंता करने की जरूरत है, जिनकी आमदनी प्रति दिन महज 20 रूपये है।
गरीबी के कारण देश में कुपोषण की समस्या बढ़ रही है, साथ ही कर्ज में लदे किसान आत्महत्या कर रहे हैं। सरकार, बेरोजगारी तथा भुखमरी को लेकर बेपरवाह नजर आती है, यदि ऐसा नहीं होता तो सरकार, महंगाई से निपटने तो कारगर नीति बनाती ही, जिससे जनता को राहत मिलती, मगर ऐसा कहां होने वाला है। केन्द्र की यूपीए सरकार ने जैसे ठान रखी है, कोई कुछ भी कर ले, वह जब चाहेगी, तब आवश्वक वस्तुओं के दाम बढ़ाएगी ? किसी के विरोध का भी ऐसी सरकार को भला क्या फर्क पड़ सकता है, जो दंभी रूख अपनाया हुआ है ? इन्हीं कारणों से जब-जब महंगाई बढ़ती है, तब-तब अर्थशास्त्री माने जाने वाले प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह की सरकार कटघरे में खड़ी नजर आती है। ठीक है, अभी देश की जनता कुछ नहीं कर पा रही है, मगर ऐसी सरकार के खिलाफ जनता को सड़क पर उतरकर लड़ाई लड़नी चाहिए। हालांकि, जनता के पास वोट का वह हथियार है, जिसके आगे कोई भी सरकार घुटने टेकने मजबूर हो जाती है और जिस भी सरकार ने जनता की अनदेखी की है, इतिहास गवाह है, वैसी सरकार को मुंह की खानी पड़ी है और सत्ता के गलियारे दूर होना पड़ा है।
केन्द्र की यही यूपीए सरकार है, जिसके कृषिमंत्री शरद पवार, महंगाई के लिए ग्लोबल वार्मिंग को जिम्मेदार ठहरा चुके हैं और यही मंत्री हैं, जो अनाज सड़ाने को तैयार हैं, मगर गरीबों को नहीं बांट सकते। मुनाफाखोरों को लाभ देने के लिए कृषि मंत्री के बयान हमेशा विवादों में रहे और उन्होंने जब-जब मुंह खोला, तब-तब महंगाई बढ़ी। साथ ही मुनाफाखोरों को इसलिए लाभ मिलता रहा, क्योंकि जिन सामग्रियों के दाम बढ़ने की बात होती थी, उसे जमाखोर, स्टॉक कर रख लेते थे। इस तरह भी देश की जनता को महंगाई की मार झेलनी पड़ रही है तथा जमाखोरों की तिजोरी भरने में सरकार का कृषिमंत्री सहयोग देते नजर आते रहे हैं।
जितनी बार महंगाई बढ़ती है, उसका असर सीधे तौर पर मध्यमवर्गीय परिवारों के घर के बजट पर पड़ता है और वे महंगाई की मार से कराहने से नहीं बचते। अभी डीजल, रसोई गैस तथा केरासिन के दाम कई गुना बढ़ा दिए गए। डीजल के कारण परिवहन क्षेत्र प्रभावित होगा, इससे हर सामग्रियों की कीमत प्रभावित होगी, क्योंकि माल भाड़ा का भुगतान, उन्हीं उपभोक्ताओं से वसूले जाएंगे, जिन्हें महंगाई की समस्या से दो-चार होना पड़ रहा है। ऐसे में यही कहा जा सकता है, जब देश की जनता महंगाई से तंग है और कराह रही है। इन स्थितियों में कांग्रेस के उस दावे की पोल जरूर खुल रही है, जिसमें अक्सर कहा जाता है कि ‘कांग्रेस का हाथ-आम आदमी का साथ’। जब महंगाई दसियों गुना बढ़ी है और जनता इससे सीधे तौर पर प्रभावित हो रही है तो भला ऐसे में कैसे कहा जा सकता है कि कांग्रेस का हाथ, आम आदमी के साथ है ? इस तरह देश, कांग्रेस से सवाल पूछ रहा है कि कांग्रेस का हाथ, आखिर किसके साथ है ?
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