अब मुद्दे की बात करें तो बेहतर होगा। अभी पिछले छह-सात दिनों से मीडिया में, देश में योगदक्षी बाबा रामदेव तथा समाजसेवी अन्ना हजारे के द्वारा काला धन और भ्रष्टाचार के खिलाफ किए जा रहे आंदोलन छाए हुए हैं। देश की हर जुबान पर इन्हीं मुद्दों की चर्चा है और मीडिया में हर आंखें इन्हीं खबरों को ढूंढ रही हैं। मीडिया भी दर्शकों के मर्म को पूरी तरह समझता है, तभी तो पिछले पांच दिनों तक न जाने कितनी बार ‘बाबा लाइव तथा अन्ना लाइव’ के अलावा ‘सरकारी हुक्मरानों का लाइव’ छाया रहा। इस बीच जिस तरह बाबा लाइव व अन्ना लाइव को जनता ने सिर-आंखों पर लिया, उस तरह देश की अवाम ने सरकार के मंत्रियों की बेतुकी सफाई को कितने हल्के में लिए, यह इस बात से समझा जा सकता है कि 8 जून को अन्ना द्वारा राजघाट किए गए अनशन में हजारों लोगों की स्वस्फूर्त उपस्थिति रही। यहां गौर करने वाली बात यह रही है कि किसी राजनीतिक पार्टी की रैली या सभा की तरह ‘बाबा या अन्ना’ के सत्याग्रह-अनशन में भीड़ जुटाए नहीं गए थे, बल्कि वे एक ऐसे मुद्दे के समर्थन में जुटे थे, जिससे भारत का हर अवाम त्रस्त है। महत्वपूर्ण बात यह भी है कि दिल्ली में जारी आंदोलन को देश भर में समर्थन तो मिल ही रहा है, साथ ही दिल्ली में दूसरे राज्यों से भी लोग आंदोलन में शामिल हो रहे हैं। इसी को बाबा रामदेव व अन्ना हजारे अपनी सबसे बड़ी जीत मान रहे हैं और लगातार काला धन व भ्रष्टाचार के खिलाफ हर स्तर पर लड़ने दंभ भर रहे हैं।
निश्चित ही बाबा रामदेव और अन्ना हजारे के आंदोलन की आग में घी डालने का काम किया है, इलेक्ट्रानिक मीडिया का व्यापक कव्हरेज ने। जिस तरह लगातार कई दिनों से बाबा रामदेव तथा अन्ना हजारे मीडिया की टीआरपी का आधार स्तंभ बने हुए हैं। साथ ही मीडिया भी ‘बाबा लाइव तथा अन्ना लाइव‘ से अटा पड़ा दिखाई देता है। मीडिया में अनुमान से ज्यादा कव्हरेज दिखाने से केन्द्र सरकार की मुश्किलें और बढ़ी हैं, क्योंकि एक अरसे में अब तक ऐसे हालात कभी बने भी नहीं है। लिहाजा इसी का परिणाम रहा है कि इलेक्ट्रानिक चैनलों को सरकार की ओर से पत्र जारी किया गया, जिसमें कहा गया है कि बाबा रामदेव तथा अन्ना हजारे के आंदोलन का ‘लाइव कव्हरेज’ न करें। इसके अलावा इनके आंदोलन से जुड़े कुछ ऐसे मुद्दे को न दिखाएं, जिससे देश में स्थिति बिगड़े। यहां पर सवाल यही है कि क्या बाबा रामदेव की मांग जायज नहीं है ? क्या देश में काला धन वापस आना नहीं चाहिए ? क्या देश से भ्रष्टाचार खत्म नहीं होना चाहिए ? ऐसे तमाम तरह के सवाल कई बरसों से खड़े हैं, जिनके जवाब पाने आम जनता भी बेचैन है, परंतु केन्द्र सरकार द्वारा इन मुद्दों पर हाथ ही खींचा जा रहा है। अब, जब काला धन तथा भ्रष्टाचार का मुद्दे को लेकर वृहद स्तर पर आंदोलन शुरू हुआ है तो उसे सरकार द्वारा किसी न किसी तरह कुचलने की कोशिश की जा रही है। इससे सरकार की छवि भी धूमिल होती जा रही है। इस बात को सरकार के मुखिया प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह तथा यूपीए अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी को समझने की जरूरत है, मगर अफसोस, इनकी ओर से जैसा जवाब आना चाहिए, वह नहीं आ सका।
सरकार ने 4-5 जून की दरमियानी रात रामलीला मैदान में जिस तरह दबंगई दिखाते हुए रात में ही हजारों लोगों को पुलिसिया हाथों से खदेड़ा। उसके बाद तो सरकार की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह लगना स्वाभाविक था, क्योंकि केन्द्र की यही सरकार है, जो यह कहती है कि उसका हाथ, हर आम आदमी के साथ है। जब इस सरकार का हाथ आम आदमी के साथ है, तो फिर क्यों जनताहित के मुद्दों को दरकिनार किया जा रहा है। सरकार काला धन को वापस लाने तथा उन सफेदपोश चेहरों के नाम उजागर करने क्यों पीछे हट रही है ? यह बात भी जगजाहिर है कि अब तक केन्द्र में जितनी भी सरकार रही हैं, उनके कार्यकाल के मुकाबले इस यूपीए सरकार के दामन में भ्रष्टाचार के ज्यादा धब्बे लगे हैं। भ्रष्टाचार के कारण यूपीए की सरकार, जनता की अदालत में पूरी तरह कटघरे में खड़ी है। बावजूद, खुद को पाक-साफ बताने के साथ भ्रष्टाचारियों का बचाव करने, यह सरकार कोई गुरेज नहीं कर रही है। ऐसी सरकार को आने वाले चुनाव में जनता का करारा जवाब जरूर मिलेगा, क्योंकि मीडिया भी आम जनता के दर्द को सामने लाता है, उस पर भी सरकार, दंभी चाबुक चलाने हिचक नहीं रही है।
निश्चित ही बाबा रामदेव और अन्ना हजारे के आंदोलन की आग में घी डालने का काम किया है, इलेक्ट्रानिक मीडिया का व्यापक कव्हरेज ने। जिस तरह लगातार कई दिनों से बाबा रामदेव तथा अन्ना हजारे मीडिया की टीआरपी का आधार स्तंभ बने हुए हैं। साथ ही मीडिया भी ‘बाबा लाइव तथा अन्ना लाइव‘ से अटा पड़ा दिखाई देता है। मीडिया में अनुमान से ज्यादा कव्हरेज दिखाने से केन्द्र सरकार की मुश्किलें और बढ़ी हैं, क्योंकि एक अरसे में अब तक ऐसे हालात कभी बने भी नहीं है। लिहाजा इसी का परिणाम रहा है कि इलेक्ट्रानिक चैनलों को सरकार की ओर से पत्र जारी किया गया, जिसमें कहा गया है कि बाबा रामदेव तथा अन्ना हजारे के आंदोलन का ‘लाइव कव्हरेज’ न करें। इसके अलावा इनके आंदोलन से जुड़े कुछ ऐसे मुद्दे को न दिखाएं, जिससे देश में स्थिति बिगड़े। यहां पर सवाल यही है कि क्या बाबा रामदेव की मांग जायज नहीं है ? क्या देश में काला धन वापस आना नहीं चाहिए ? क्या देश से भ्रष्टाचार खत्म नहीं होना चाहिए ? ऐसे तमाम तरह के सवाल कई बरसों से खड़े हैं, जिनके जवाब पाने आम जनता भी बेचैन है, परंतु केन्द्र सरकार द्वारा इन मुद्दों पर हाथ ही खींचा जा रहा है। अब, जब काला धन तथा भ्रष्टाचार का मुद्दे को लेकर वृहद स्तर पर आंदोलन शुरू हुआ है तो उसे सरकार द्वारा किसी न किसी तरह कुचलने की कोशिश की जा रही है। इससे सरकार की छवि भी धूमिल होती जा रही है। इस बात को सरकार के मुखिया प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह तथा यूपीए अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी को समझने की जरूरत है, मगर अफसोस, इनकी ओर से जैसा जवाब आना चाहिए, वह नहीं आ सका।
सरकार ने 4-5 जून की दरमियानी रात रामलीला मैदान में जिस तरह दबंगई दिखाते हुए रात में ही हजारों लोगों को पुलिसिया हाथों से खदेड़ा। उसके बाद तो सरकार की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह लगना स्वाभाविक था, क्योंकि केन्द्र की यही सरकार है, जो यह कहती है कि उसका हाथ, हर आम आदमी के साथ है। जब इस सरकार का हाथ आम आदमी के साथ है, तो फिर क्यों जनताहित के मुद्दों को दरकिनार किया जा रहा है। सरकार काला धन को वापस लाने तथा उन सफेदपोश चेहरों के नाम उजागर करने क्यों पीछे हट रही है ? यह बात भी जगजाहिर है कि अब तक केन्द्र में जितनी भी सरकार रही हैं, उनके कार्यकाल के मुकाबले इस यूपीए सरकार के दामन में भ्रष्टाचार के ज्यादा धब्बे लगे हैं। भ्रष्टाचार के कारण यूपीए की सरकार, जनता की अदालत में पूरी तरह कटघरे में खड़ी है। बावजूद, खुद को पाक-साफ बताने के साथ भ्रष्टाचारियों का बचाव करने, यह सरकार कोई गुरेज नहीं कर रही है। ऐसी सरकार को आने वाले चुनाव में जनता का करारा जवाब जरूर मिलेगा, क्योंकि मीडिया भी आम जनता के दर्द को सामने लाता है, उस पर भी सरकार, दंभी चाबुक चलाने हिचक नहीं रही है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें