मंगलवार, 29 जनवरी 2013

‘घर को आग लगी, घर के चिराग से’

बदलते समय के साथ पारिवारिक रिश्तों में जिस तरह की खाइयां उत्पन्न हो रही है, उसे सशक्त समाज के निर्माण के लिए ठीक नहीं कहा जा सकता। रिश्तों को तार-तार करने की घटनाएं, जब-जब समाज के सामने आती हैं, उसके बाद समाज में यह मंथन भी शुरू हो जाता है कि आखिर, हम और हमारा समाज किस दिशा में जा रहे हैं ? बीते कुछ दशकों के दौरान जिस तरह की नैतिक गिरावट देखी जा रही है, उसी का नतीजा समाज पर भी दिख रहा है, क्योंकि जो घटेगा, उसका असर जरूर समाज पर पड़ता है। मानवीय सोच में भी भारी बदलाव देखा जा रहा है, जिसके कारण ऐसी घटनाएं होती हैं, जिससे पूरा समाज सन्न रह जाता है और फिर सामाजिक व्यवस्था को आघात लगता है।
जांजगीर-चांपा जिले के सिवनी ( चांपा ) में जो हृदय विदारक घटना सामने आई है, उसने सभी को हिलाकर रख दिया है। जिसने भी वारदात के बारे में सुना, उनकी तीखी प्रतिक्रिया रही। एक चचेरे भाई ने 5 साल की मासूम बच्ची को गला दबाकर मौत के घाट उतार दिया, जबकि वह मासूम उसे ‘चहेता’ भैया मानती थी। शराबखोरी ने एक बार फिर मासूम को अपने आगोश में ले लिया और एक घर का चिराग बुझ गई। उस चिराग को बुझाने का कुकृत्य कार्य किया है, उसी घर के और एक चिराग नहीं। इसी को कहा जाता है कि ‘घर को आग लगी, घर के चिराग से’।
इस घटना ने एक बार फिर लोगों को विचार करने पर मजबूर कर दिया है कि आखिर मानवीय गिरावट क्यों हो रही है, इसकी वजह क्या है ? कैसे कोई रिश्तों को खून के दाग से सन लेता है, जिस दाग को कभी धोया नहीं जा सकता। ऐसी क्या परिस्थितियां निर्मित होती हैं, जब कोई शैतान बन बैठता है ?
समाज में बिगड़ती इस तरह की स्थिति को लेकर समाजशास्त्री भी मानते हैं कि आधुनिक जीवनशैली के साथ नशाखोरी की प्रवृत्ति से ऐसी घटनाओं को बढ़ावा मिल रहा है। कई बार अंधविश्वास की वजह से समाज में कई बार कुरूप चेहरा भी नजर आता है, जिसे मानसिक असंतुलन के तौर पर देखा जाता है। शिक्षा के प्रसार से समाज में सकारात्मक बदलाव भी आया है, लेकिन ऐसे हालात भी बने हैं, जिसके कारण युवा वर्ग अपराध की ओर मूड़ रहे हैं। जिस पर चिंतन आवश्यक है, क्योंकि यही युवा वर्ग हैं, जो समाज व देश के विकास के वाहक माने जाते हैं, जब यही नशाखोरी के चलते गलत दिशा में जाएंगे, तो फिर समाज किस दिशा में जाएगा या फिर कहें समाज का क्या होगा ?
एक समय था, जब संयुक्त परिवार की परिपाटी थी, आज वह कहीं गुम हो गया है। इसके लिए बदलते परिवेश के साथ अन्य कारणों को जिम्मेदार माना जाता है। निश्चित ही संयुक्त परिवार से सामाजिक सुरक्षा की भावना बलवति होती है और उसके बेहतर नतीजे भी रहे हैं, किन्तु ऐसी घटनाएं अब होने लगी हैं, जिसके बाद रिश्ते हर तरह से तार-तार हो रही है। समाज में घटित हो रही घटनाओं के बाद समझा जा सकता है कि रिश्तों की अहमियत को दरकिनार संगीन कृत्यों को अंजाम दिया जाता है, जिसके बाद समाज व परिवार में बिखराव नजर आता है।
रिश्तों को सहेजने और उसे बचाने के लिए नैतिक और सद्विचारों को बढ़ाना देना जरूरी है। साथ ही समाज में आपसी वैमन्स्यता जो बढ़ रही है, उसे दूर कर एक ऐसे समाज का निर्माण करने की जरूरत है, जिसे आने वाली पीढ़ी अपनाए और गर्व की अनुभूति करे। समाज में जो कुछ घट रहा है, कहीं और बढ़ता है तो फिर हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए वह ठीक नहीं होगा। कहीं ऐसा न हो जाए कि भावी पीढ़ी धिक्कारने पर मजबूर हों।

कोई टिप्पणी नहीं: