सोमवार, 28 जनवरी 2013

बातों-बातों में...

ये ‘आस’ है बड़ी
शिक्षा महकमा से जुड़े एक अफसर को राजनीति का बड़ा ही चस्का चढ़ा है। वे हर बार टिकट की कतार में खुद को पाते हैं और हर बार उन्हें ‘सांत्वना पुरस्कार’ ही मिलता है। उन्हें पंजे से खासी आस है, तभी तो गाहे-बगाहे राजनीतिक गलियारे में नजरें इनायतें करते दिख जाते हैं। कहते हैं, जब तक सांस है, तब तक आस है, शायद इसी सूत्रवाक्य को लेकर वे टिकट की दौड़ में होते हैं। कतार में हमेशा नीचे के पायदान में होते हैं, बड़े नेताओं को वे नजर ही नहीं आते। वे कहते नहीं थकते कि बड़े नेताओं से खासी पहचान है। हो सकता है, वे नेताओं को जानते होंगे, मगर नेता उन्हें नहीं...। टिकट की दौड़ फिर शुरू हो गई है, उनकी आस कायम है, देखते हैं कि क्या होता है ?

याद आ गए वो दिन...
कमल फूल वाले एक नेता हैं, जिनकी ठाठ देखते बनती थी। जहां जाते पूरे लाव-लश्कर के साथ जाते। कहीं भी जाते, प्रथम पंक्ति में कुर्सी तय रहती थी और उनकी रामकथा का भी लोग आनंद लेते। आज परिस्थितियां कुछ बदली हुई नजर आ रही है। मंचों में इतने बड़े जाने-पहचाने चेहरे भी बेगाने हो जाते हैं। जो टूटपुंजिए उनके पगचाप को प्रणाम करते थे, वही पहली पंक्ति में सवार होते हैं। उनकी ऐसी हालत देखकर उनकी ठाठ-बाट के दिन याद आ गए। वो दिन भी, क्या दिन थे। कोई भी सुबह, कहीं भी जाना हो, बस एक आवाज दो और हर मुराद पूरी हो जाती थी।

पनिशमेंट या गिफ्ट
एक साहब हाल में ‘काली छाया’ की वजह से लुप लाइन में आ गए थे, लेकिन कुछ ही दिनों बाद ही उनकी पनिशमेंट, गिफ्ट में बदल गई। ये माजरा किसी को समझ में नहीं आ रहा है। कहने वाले, कह रहें कि साहब की ‘वहां’ बड़ी पहुंच है, जिसके कारण बड़े साहब को भी पछताना पड़ा होगा। इनके जैसे और भी कई हैं, जिन पर उनकी मेहरबानी नहीं दिखी है। जरूर, दाल में कुछ तो काला है। इसे समझने के लिए पतले नहीं, मोटे दिमाग की जरूरत हो सकती है, क्योंकि चक्कर कहीं, ‘मोटा माल’ का तो नहीं...।

तेल का महाखेल
रेत से तेल निकालने की कहावत बड़ी कठिन लगती हो, लेकिन सेहत बनाने के बड़े-बड़े दावे करने वाले विभाग के नुमाइंदों को ‘तेल के महाखेल’ में महारत हासिल है। वे तो उसे भी तेल पिला दे, जो चल भी न सकता हो। जो चले, उसकी तो बात ही अलग है। उसके पेट में तेल भरने के भले ही उतनी जगह न हो, जितना वो ‘तेल का खेल’ खेलना चाहते हैं, किन्तु इतना सब जानते हैं कि कागजों की बाजीगरी में सब संभव है। न जाने, ये खेल कब तक चलेगा, कोई ब्रेक लगाने वाला भी नहीं है। सभी ब्रेक फेल ‘जुगाड़ की गाड़ी’ में रफ्तार से दौड़ रहे हैं।      

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