सोमवार, 21 जनवरी 2013

बातों-बातों में...

किसे लगे झटके
हाल में कांग्रेस व भाजपा की राजनीति गरमा गई। यू-टर्न ने ऐसा रूख बदला, तब कहीं जाकर राजनीति में आया उबाल शांत हुआ। बाद में सियासत में किसे झटके लगे, इस पर बहस शुरू हो गई। कमल फूल वाले कहने लगे कि पंजे के खेवनहार को झटके लगे, दूसरी ओर पंजे वाले तर्क देने में पीछे नहीं रहे कि हमने खिलते हुए फूल को, खिलने के पहले ही मसल दिया। किनकी बातों में कितना दम है, ये तो वही जानें, लेकिन इतना जरूर है कि झटके तो लगे हैं, लेकिन किसे...? ये भी किसी से छिपा नहीं है।

चक्कर पर चक्कर
एक नेता की साढ़ेसाती चरम पर है, तभी तो एक बार अभयदान मिलने के बाद भी सबक नहीं सीख पाया। आलम यह है कि अब उसे चक्कर पर चक्कर काटना पड़ रहा है। कभी वहां, कभी यहां। चक्कर काटने के फिराक में कहीं बन न जाएं..., इसकी भी चर्चा जोरों पर है। बड़े साहब से खासी जान-पहचान का हवाला देकर चक्कर चलाने में भी माहिर है, लेकिन दूसरी बार अपनों ने उन्हें सीतम देने की ठानी है, उसके बाद ये चक्कर कितने काम आएंगे, यह तो कुछ दिनों में ही पता चल जाएगा। सत्ता के रसूख के आगे पिछली बार हवा का रूख मुड़ गया था, लेकिन इस बार तो उनके सामने आंधी है। कहने वाले कह रहे रहे हैं कि ज्यादा मलाई खाएंगे तो हश्र, ऐसा ही होगा ?

ये सुधरने वाले कहां...
जो लगातार सिमटती जा रही है, उसकी चिंता तो जरूरी है। देर से ही सही, जागरण काल तो आया है। साहब ने जब से फरमान जारी किया है, उसके बाद धंधे में जुड़े लोगांे की नींद हराम हैं। बाजार में इस बीमारी की दवा भी नहीं मिल रही है। नींद की दवा भी काम नहीं आ रही है। स्थिति फिर भी नहीं सुधर रही है, जानकर भी अंधे कुंए में कूदने की कोशिशंे जारी है, वह भी दोनों ओर से। लाइलाज हो चुकी बीमारी की इलाज ढूंढने तो निकले हैं, लेकिन ये ऐसी बीमारी है, जो पूरे शहर को आगोश में ले रखी है, उससे तो बीमारी संक्रामक होगी है, चाहे ट्रीटमंेट कुछ भी हो। इसीलिए तो कहा जा रहा है कि लाख कोशिश कर लो, ये सुधरने वाले कहां...?

मान गए साहब आपको
सुरक्षा की दुहाई की जवाबदेही रखने वाले विभाग में कुछ अच्छा नहीं चल रहा है। लगता है, यहां भी ग्रह-नक्षत्र सही नहीं है। जैसा मंत्री कहते हैं, यहां भी हवन-पूजन की जरूरत तो नहीं है ? एक तो अमला नहीं है, जो हैं, वह भी अपनी करतूत से ‘ऑफ-लाइन’ में हैं। स्थिति यह है कि जिन्हें चौकी न मिले, वह थाने का दरोगा बन बैठा है। इतना ही नहीं, साहब की कृपा इतनी कि एक्स्ट्रा प्लेयर की तरह बैठाए गए को भी, कुछ ही दिन में बड़ी जिम्मेदारी दे दी, वह भी रेंज के बड़े साहब के हुक्म को दरकिनार कर। यही वजह है कि कहना पड़ रहा है, मान गए, साहब आपको। इतनी दरियादिली की क्या कहें...।

कोई टिप्पणी नहीं: