रविवार, 25 सितंबर 2011

‘अजायब घर नहीं है, भारत का संविधान’

छत्तीसगढ़ के जांजगीर में ‘बैरिस्टर ठाकुर छेदीलाल स्मृति समारोह’ के दौरान ‘संविधान में भ्रष्टाचार के उपचार’ विषय पर विचार गोष्ठी आयोजित की गई। कार्यक्रम में प्रमुख वक्ता छग उच्च न्यायालय बिलासपुर के वरिष्ठ अधिवक्ता कनक तिवारी थे। अध्यक्षता जिला सत्र न्यायाधीश गौतम चौरड़िया ने की। विशिष्ट अतिथि के रूप में राज्य विधिक परिषद के अध्यक्ष शैलेन्द्र दुबे उपस्थित थे।
विचार गोष्ठी के प्रमुख वक्ता अधिवक्ता कनक तिवारी ने कहा कि भारत का संविधान, अजायब घर नहीं है, बल्कि यह एक पोथी है। जिसे हर नागरिक को पढ़ने की जरूरत है। संविधान में भ्रष्टाचार को रोकने के उपाय बताए गए हैं, जिन अमल किया जाना जरूरी है। उन्होंने कहा कि देश में भ्रष्टाचार की जड़ें गहरी हैं, जिसे समूल नष्ट करने लंबी लड़ाई लड़ने की जरूरत है। श्री तिवारी ने कटाक्ष करते हुए कहा कि इस समय हालात यहां तक बन गए हैं कि आखिर किस पर भरोसा किया जाए। हर कहीं भ्रष्टाचार ने पांव जमा लिया है। चाहे वह नेता, न्यायालय, मीडिया हो, इनकी विश्वसनीयता पर उंगली उठी है। उन्होंने ने कहा कि संविधान को समझने की प्रवृत्ति ही गलत है, जो सेवक बनने का दावा करते हैं, वे ही चुनाव जीतने के बाद मालिक बन जाते हैं। संसद में पहुंचने के बाद खुद को उसकी खैरख्वाह समझने लगते हैं और वे यह कहते हैं कि जो वे कहेंगे, वहीं होगा। वे जो चाहेंगे, उस पर अमल करना होगा।
श्री तिवारी ने सीधे शब्दों में कहा कि बड़ी अदालतों में कैसे बड़बोले अधिवक्ता, पैसों के बल पर कमजोर तबके को दबाते हैं। अदालतों में कैसे गवाह तोड़े जाते हैं, यह जज भी समझते हैं, मगर वे संविधान से बंधे होते हैं। इसलिए कुछ नहीं कर सकते। यह भी हम भूल करते हैं कि रिश्वतखोरी को भ्रष्टाचार समझ लेते हैं, जबकि ऐसा नहीं है। यदि कोई बड़ा उद्योगपति, किसी नेता या अफसर को घूस देता है, इसे क्यों भ्रष्टाचार नहीं माना जाता ? केवल इसलिए कि यह जनता की आंखों के सामने नहीं होता।
उन्होंने कहा कि दुनिया में दूसरा महात्मागांधी नहीं बन सकता, अन्ना हजारे तो एक प्रतीक हैं। जन लोकपाल बिल पास भी हो जाएगा, इसके बाद भ्रष्टाचार खत्म होने किसी चमत्कार की उम्मीद करना बेकार है। इतना जरूर है कि इस आंदोलन से अवाम जागृत जरूर हुई है और भ्रष्टाचार मिटाने, किसी न किसी को मशाल हाथ में लेनी ही होगी। भ्रष्टाचार की बीमारी हर कहीं फैल गई है, इसे नष्ट करने जनता की भूमिका अहम होती है। इसके तहत जनता को ‘सूचना के अधिकार’ जैसे कानूनी हथियार मिला है। इससे भ्रष्टाचारियों की चूलें हिल गई हैं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे जिला सत्र न्यायाधीश गौतम चौरड़िया ने कहा कि संविधान का निर्माण जनता के लिए, जनता द्वारा, जनता से स्थापित है। जनता यदि अनुशासित व जागरूक है तो भ्रष्टाचार नहीं पनपेगा। उन्होंने कहा कि पीढ़ियों को बिगड़ने में कम समय लगता है, किन्तु सुधारने में संदियां लग जाती है। भ्रष्टाचार का यह भी एक कारण हो सकता है कि चुनाव निष्पक्ष नहीं होते। हर चुनकर आने वाले जनप्रतिनिधि अपने दिल पर हाथ रखकर बताए कि उन्होंने बिना किसी जोड़-तोड़ के चुनाव जीते। श्री चौरड़िया ने कहा कि भारत का संविधान महज एक किताब ही नहीं, मिशन है, सभी सभी के हितों का समावेश है। भ्रष्टाचार को रोकने के लिए संविधान में व्यवस्था है, इसी व्यवस्था के तहत न्यायपालिका, भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की कोशिश कर रही है। संविधान की शक्तियों के कारण ही कुछ लोग भ्रष्टाचार के आरोप में सींखचों के पीछे हैं।
विशिष्ट अतिथि राज्य विधिक परिषद के अध्यक्ष श्री दुबे ने कहा कि भ्रष्टाचार की उत्पत्ति, अंग्रेजों के समय नजराना प्रथा के रूप में हुई थी। यही नजराना प्रथा, अब भ्रष्टाचार बन चुकी है। भ्रष्टाचार ने सभी वर्गों को प्रभावित किया है। ऐसे में यह मुद्दा काफी अहम है, जिस पर हर किसी को विचार करने की जरूरत है।
विचार गोष्ठी के मौके पर विशिष्ट अतिथि जांजगीर के वरिष्ठ अधिवक्ता विजय दुबे समेत अनेक न्यायाधीश, अधिवक्ता तथा गणमान्य नागरिक बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।

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