रविवार, 25 सितंबर 2011

हजारों हाथ बने बाघिन के हत्यारे ?

अक्ल के लिहाज से मनुष्य को सभी जीवों में श्रेष्ठ माना जाता है। इस बात को मनुष्य ने अपने विवेक के दम पर सिद्ध भी कर दिखाया है। यही कारण है कि आज हम चांद पर भी जीवन जीने की राह तलाश लिए हैं। यह भी कहा जाता है कि मनुष्य में ही अन्य जीवों की अपेक्षा, सोचने-समझने की अधिक शक्ति होती है और मार्मिक अहसास भी होता है, मगर जब आदमी, जानवर बन जाता है तो फिर मानव होने कीसंवेदनाकहीं दुबकी नजर आती है।
ऐसा ही कुछ हुआ, छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के छुरिया इलाके में। जहां इंसानों ने एक बाघिन को लाठी से पीट-पीटकर मौत के घाट उतार दिया और वन विभाग का अमला देखते ही रह गया। हजारों हाथों की वार से बाघिन कुछ मिनटों में ढेर हो गई। बताया जाता है कि यह बाघिन पिछले एक माह से क्षेत्र में दहशत फैला रखी थी और कइयों को घायल कर चुकी थी। कुछ जानवरों को अपना निवाला बना लिया था। आदमखोर बाघिन के चलते छुरिया इलाके के आधा दर्जन गांवों के हजारों लोगों का जीना मुहाल हो गया था। क्षेत्र के मोहगांव, आमगांव और बखरूटोला में बाघिन कारण कुछ दिनों में लोगों का काफी नुकसान हुआ, साथ ही ग्रामीणों की जान पर हर पल खतरा मंडराता रहता था। इस बात से वे हर पल सशंकित रहते थे।
वन विभाग को ग्रामीणों ने सूचना दी थी और अफसरों का कहना है कि अपनी ओर से कोशिश भी कर रहे थे, मगर बाघिन को पकड़ने में सफलता नहीं मिल रही थी। आखिरकार, महीने भर से दहशत के साये में जी रहे लोग आक्रोशित हो गए और आसपास गांवों के लोगों की सैकड़ों की संख्या में भीड़ जमा हो गई। लाठी, डंडे, जाल लेकर लोग बाघिन के पीछे पड़ गए। ग्रामीणों में जिस तरह की उग्रता दिखाई दी, उससे लगता है कि ग्रामीण, किसी भी तरह से बाघिन को पकड़ने के मूड में नहीं थे। सुबह से ही हालात बिगड़ने लगे थे, फिर भी वन विभाग के अफसरों ने न तो उग्र भीड़ को शांत करने की कोशिश की और न ही, बाघिन को पकड़ने की। स्थिति यहां तक आ गई कि ग्रामीणों की भीड़ के चंगुल में बाघिन फंस ही गई और हजारों हाथों ने उसकी जान लेकर ही दम लिया।
आदमघोर बाघिन के कारण इलाके में मौत मंडरा रहा था, उस लिहाज से ग्रामीणों की उग्रता समझ में आती है, लेकिन कहीं न कहीं ऐसा रास्ता निकाला जाना चाहिए था, जिससे बाघिन को मारने के बजाय, पकड़ा जा सकता। वन विभाग का पूरा अमला, इस कार्य में असफल रहा। समय रहते अफसर जरूरी कदम उठा लिए होते तो एक जानवर की जान, ऐसे ही नहीं जाती। निश्चित ही वह बाघिन लोगों की जान पर बन आई थी, लेकिन इस कदम की जरूरत नहीं थी।
लोगों को धैर्य का परिचय देना चाहिए था, साथ ही मनुष्य में जो संवेदना की बात होती है, उस पर भी गौर करना चाहिए। हालांकि, भीड़ की दिशा नहीं होती है और यही भीड़ की भेंट, वह बाघिन चढ़ गई। इस पूरे मामले में लोगों ने निर्दयता का परिचय दिया ही है, लेकिन इतना जरूर है कि वन विभाग की कार्यप्रणाली कहीं न कहीं सवालों के घेरे में है।

कोई टिप्पणी नहीं: