शुक्रवार, 2 सितंबर 2011

निजी स्कूलों को अभयदान तो नहीं मिलेगा ?

जांजगीर-चांपा जिले में बीते कुछ बरसों के दौरान जिस तरह कुकुरमुत्ते की तरह निजी स्कूल खुले, उसके बाद यहां की शिक्षा व्यवस्था चरमरा गई। एक-एक, दो-दो कमरों में स्कूल खुलने के कारण पढ़ाई का बुरा हाल रहा और उल्टे गांव-गांव में शिक्षा की दुकान खुल गई। नतीजा यह हुआ कि निजी स्कूलों के खुलने से स्कूली शिक्षा के प्रसार होने के बजाय, उल्टे इसने दुकानदारी का रूप ले लिया। दो-चार किमी के क्षेत्र में निजी स्कूल इसलिए खोले जाने लगे, जिससे मोटी कमाई की जा सके। इस दिशा में सैकड़ों स्कूल संचालक कामयाब भी हो गए, एक ही प्रबंधन कई-कई स्कूल संचालित करते बैठा है। यह जिला, बीते कुछ बरसों तक छात्रों का चारागाह बन गया था, क्योंकि नकल की प्रवृत्ति काफी अधिक थी। सामूहिक नकल के प्रकरण भी जिले में सामने आते रहे हैं। लिहाजा यहां छग के सभी जिलों के हजारों छात्र पढ़ाई के लिए पहुंचते थे, मगर यह किसी से नहीं छिपी थी कि वे नकल का सहारा लेकर, आसानी से परीक्षा की वैतरणी पार होने की मंशा लेकर आते थे। इन्हीं कारणों से अक्सर कहा जाता रहा है कि जिले की शिक्षा व्यवस्था का भगवान ही मालिक है।
अभी हाल ही में सत्र की शुरूआत होने के बाद माध्यमिक शिक्षा मंडल द्वारा जिले के 8 निजी स्कूलों की मान्यता समाप्त कर दी गई। इनमें अकलतरा ब्लाक के 2 तथा बलौदा ब्लाक के 6 स्कूल शामिल हैं। अकलतरा ब्लाक के सिद्धांत हायर सेकेण्डरी स्कूल अकलतरा, गर्ल्स हायर सेकेण्डरी स्कूल तिलई एवं ब्लौदा ब्लाक के बाबा औघड़ हायर सेकेण्डरी स्कूल खिसोरा, मां सरस्वती स्कूल अंगारखार, स्वामी विवेकानंद नवगवां, जानकी देवी लेवई, दीप अजगम नवापारा तथा उदय स्मारक स्कूल चारपारा शामिल हैं। इसके अलावा अन्य 7 निजी स्कूलों को मान्यता ही नहीं दी गई, जिन्हें इस सत्र से शुरू करने आवेदन दिया गया था। इनमें नवागढ़ ब्लाक के ग्रामोदय हायर सेकेण्डरी सरखों, पामगढ़ ब्लाक के केसला हायर सेकेण्डरी स्कूल तथा बलौदा ब्लाक के एमएस भार्गव स्कूल लेवई, सत्य निकेतन देवरी, मां जयजननी बगडबरी, विद्या निकेतन खैजा तथा केपी हायर सेकेण्डरी बहेरापाली शामिल हैं, जो स्कूल अस्तित्व में नहीं सकेंगे।
वैसे देखा जाए तो जिले के बलौदा, अकलतरा, नवागढ़ ब्लाक के निजी स्कूलों में ज्यादा खामियां पाई गई हैं। हालांकि अधिकांश निजी स्कूल, मंडल के मापदंड पर खरे नहीं उतरते। मंडल की दरियादिली का सब कमाल है, नहीं तो ऐसे स्कूल कब के बंद हो गए होते, क्योंकि मापदंड के लिहाज से ज्यादातर स्कूल संचालन के योग्य ही जांच में नहीं पाए गए हैं। मंडल को इसकी जानकारी दी गई, किन्तु वह कार्रवाई करने मन बनाए, तब ना।
इधर जिले के 86 निजी स्कूल ऐसे थे, जिन्हें नोटिस जारी किया गया, जो मापदंड में खरे नहीं उतरे। सत्र की शुरूआत में जारी नोटिस में कहा गया था कि स्कूल प्रबंधन, अपना जवाब मंडल को 15 दिनों के भीतर तक दें। इस आशय की सूचना जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय को भेजी गई। इसके बाद जिन 86 स्कूलों को नोटिस जारी किया गया था, उन्हें पत्र भेजकर अवगत कराया गया।
शिक्षा मंडल द्वारा निजी स्कूल की कारस्तानियों पर लगाम लगाने की गई कार्रवाई को काफी सराहा गया, मगर अब जिस तरह मंडल के सुस्त रवैया सामने आ रहा है, उससे अफसरों की कार्यप्रणाली पर उंगली उठ रही है। कहीं ऐसा तो नहीं कि 86 निजी स्कूलों को अभयदान देने की तैयारी चल रही है, जांच में हो रही देरी से ऐसी ही चर्चा का बाजार अब गर्म होने लगा है, क्योंकि शिक्षा सत्र को तिमाही होने को है और शिक्षा मंडल ने क्या कार्रवाई की या फिर उन 86 निजी स्कूलों के नोटिस के, जवाब के बाद क्या संज्ञान लिया गया, इसका भी खुलासा नहीं किया जा रहा है ? इससे यह प्रश्नचिन्ह लग रहा है कि जिले में मंडल, शिक्षा की दुकान खोले रखने के मूड में तो नहीं है ?
इसे इस बात से समझा जा सकता है कि माध्यमिक शिक्षा मंडल, जब कोई निर्णय लेता है या फिर कार्रवाई करता है तो उसकी सूचना जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय को भेजी जाती है। पिछली बार जब 8 स्कूलों की मान्यता निरस्त की गई और 7 स्कूलों को मान्यता नहीं मिली, इसकी जानकारी डीईओ आफिस को भेजी गई थी। फिलहाल इसके बाद डीईओ आफिस में ऐसी कोई सूचना व आदेश नहीं आया है, जिसके चलते यह कयास लगाए जा रहे हैं कि शिक्षा मंडल द्वारा 86 निजी स्कूलों को महज खानापूर्ति के लिए नोटिस जारी किया गया था और जांच के नाम छलावा किया जा रहा है।
सवाल यहां यही है कि शिक्षा सत्र प्रारंभ होने के पहले किसी भी स्कूल की जांच होनी चाहिए और जो स्कूल मापदंड पर खरे नहीं उतरते, ऐसे स्कूलों का उसी समय पत्ता साफ कर देना चाहिए। इसमें जिले स्तर के अधिकारियों का अपना रोना होता है, वे कहते हैं कि शिक्षा मंडल को मान्यता देने तथा किसी स्कूल की मान्यता समाप्त करने का अधिकार है। दिलचस्प बात यह है कि शिक्षा मंडल के अधिकारियों को इस बात से कोई मतलब ही नहीं है, निजी स्कूलों में किस तरह बदहाली कायम है ? एक-एक, दो-दो कमरों में संचालित होने वाले निजी स्कूलों को आखिर कैसे मान्यता मिल जाती है ? यह कहना गलत नहीं होगा कि जब जेबें गर्म होती हैं, उसके बाद सभी नियम-कायदों को किनारे रखकर काम किया जाता है। शिक्षा विभाग के अधिकारियों की मानें तो सभी निजी स्कूलों के मापदंड व दस्तावेजों की जांच हर बरस की जाती है, लेकिन यह कोई नहीं देखता कि किसी स्कूलों के पास खेल मैदान, लैब तो दूर, बैठने के लिए बेहतर व्यवस्था है कि नहीं ? सोचने की बता है कि भला, कैसे चार-पांच कक्षाओं या उससे अधिक कक्षाओं में सैकड़ों की संख्या में पढ़ने वाले छात्रों को बिठाया जा सकता है ?
निजी स्कूलों में एक और मनमानी का खुलासा होते रहता है, वो है छात्रों की पढ़ाई का ठेका। दरअसल, दूसरे जिले या फिर इसी जिले का छात्र, जब उसे स्कूल पढ़ने नहीं आना होता है तो वह स्कूल प्रबंधन को मोटी रकम भेंट करता है। इसके बाद छात्र परीक्षा में पहंचते हैं। निजी स्कूलों में शिक्षकों की भर्ती में भारी मनमानी देखने को मिलती है। उसी स्कूल के ही कोई छात्र द्वारा, अन्य कक्षाओं के छात्रों को पढ़ाने की शिकायत मिलती रही हैं।
एक मामला जानकर आपको अजीब लगेगा कि सरकारी स्कूल के गेट पर, निजी स्कूल का प्रचार। ऐसा ही एक स्कूल है, नवागढ़ विकासखंड के ग्राम सलखन स्थित शासकी हायर सेकेण्डरी स्कूल। इस सरकारी स्कूल के गेट के ठीक बगल में एक निजी स्कूल का कई सालों से प्रचार लिखा गया है। यहां जांच में अब तक कई अधिकारी जा चुके हैं, मगर किसी का ध्यान नहीं गया, या कहें कि इसमें अपना माथे ठनकाने की किसी ने जहमत नहीं उठाई, इसी बात से जाना जा सकता है कि सरकारी स्कूल की शिक्षा के प्रति अधिकारियों में कैसी मानसिकता है ? नहीं तो, उस निजी स्कूल के प्रबंधन व सरकारी स्कूल के प्राचार्य पर कब की कार्रवाई हो गई रहती।
निजी स्कूलों में शिक्षा के मापदंड को बेहतर बताया जाता है, इसमें कोई शक नहीं है कि सरकारी स्कूलों में बरसों से छाई बदहाली व शिक्षकों की निरंकुशता के कारण निजी स्कूल, इसका लाभ उठाते आ रहे हैं और थोड़ी सी बेहतर शिक्षा के एवज में अभिभावकों से मनचाही फीस वसूल की जाती है। निजी स्कूलों में भी बेहतर शिक्षा का माहौल उस तरह से नहीं है, इसका खुलासा गांव-गांव में संचालित हो रहे दो-दो कमरों के निजी स्कूलों के हालात देखकर लगाया जा सकता है। हद तो तब हो जाती है, जब कोई निजी स्कूल, सरकारी स्कूल या अन्य बिल्डिंग में संचालित हो। जिले में ऐसे अनगिनत निजी स्कूल हैं, जिनके प्रबंधन ऐसे कारनामे कर रहे हैं। इसकी पूरी रिपोर्ट जिला प्रशासन तथा शिक्षा विभाग के अधिकारियों के पास भी है, मगर वे क्यों कार्रवाई करने में बेबस नजर आते हैं। यदि ऐसा नहीं होता तो कुकुरमुत्ते की तरह बिना मापदंड के संचालित हो रहे निजी स्कूलों में कब का ताला लग गया होता। अब देखना होगा कि बरसों से सोया हुआ शिक्षा मंडल, आखिर जागता कब है ?

वे 86 स्कूल, जिन पर लटकी तलवार
जिले के जिन 86 निजी स्कूलों के संचालकों को अंतिम अवसर देकर स्पष्टीकरण मांगा है। साथ ही उन्हें समय पर जवाब नहीं देने पर मान्यता समाप्त करने चेतावनी दी गई है, हालांकि महीने भर से ज्यादा समय गुजरने के बाद भी कुछ नहीं हो सका है। नोटिस जारी होने वाले स्कूलों में सक्ती ब्लाक के नवनीत स्कूल टेमर, डभरा ब्लाक के अशासकी स्कूल पेण्डरवा, मालखरौदा ब्लाक के डीएन सरस्वती छतौना, हरिगुजर सकर्रा, अकलतरा ब्लाक के युगधारा अर्जुनी, सुभिक्षा रसेड़ा, रेवाराम कश्यप पौना, भगवती बिरकोनी, मानस पकरिया, अशासकीय सांकर, बलौदा ब्लाक के गोस्वामी रामरतन कुरमा, विवेकानंद जाटा, मां सरस्वती पोंच, सिमना कण्डरा, राष्ट्रीय सेवा योजना बसंतपुर, लक्ष्मीबाई करमंदा, मां खंभदेश्वरी स्कूल बगडबरी, इंदिरा गांधी स्कूल बुड़गहन, सतगुरू स्कूल सतगवां शामिल हैं। इसी तरह पामगढ़ विकासखंड के मानस हायर सेकेण्डरी ससहा, ज्ञानोदय खोखरी, किसान कोसा, कमला देवी धरदेई, आरके साहू मुड़पार, विकास पचरी, ओम खोखरी, स्व. मुचरू सिंह स्कूल मुलमुला, आधारशिला पेण्डरी, ज्योतिर्मय सिंघलदीप, सरस्वती शिशु मंदिर खोखरी, मां सरस्वती तनौद, राकेश कुमार रसौटा, ज्योतिराव फूले स्कूल कोड़ाभाट, सरस्वती शिशु मंदिर चण्डीपारा, वीणावादिनी सिल्ली, मारूतिनंदन मेंहदी, सरस्वती शिशु मंदिर राहौद, अंकुर हायर सेकेण्डरी स्कूल पामगढ़, एसके रामलाल भैंसो, जयहिंगलाज माई कोसा, नवज्योति केसला, मौलीमाता भुईगांव, महानदी तनौद, सरस्वती हायर तनौद, आस्था चुरतेला, महामाया कमरीद शामिल हैं। इसके अलावा नवागढ़ ब्लाक में मिनीमाता कुथूर, बीडी महंत धनेली, भारतीय हायर तुस्मा, प्रकाश हायर चौराभाठा, आदर्श गौद, सिद्ध अमोरा, विद्या भारती पचेड़ा, बीके दिगस्कर पचेड़ा, विद्या भारती गौद, बाबा कलेश्वर नाथ पीथमपुर, आरके कश्यप चोरभट्ठी, ज्ञान सागर धाराशिव, महामाई सेमरा, अनुषा जोगी हायर नवागढ़, विद्या विनय विवेक अमोरा, ज्ञान कुंज अमोरा, विद्या निकेतन भड़ेसर, त्रिमूर्ति मेंहदा, सरस्वती शिशु मंदिर गोधना, शबरी दाई कटौद, मिनी माता खैरताल, विद्या विनय विवके मुड़पार शामिल हैं। इसी तरह जैजैपुर ब्लाक में अरूणोदय सिंदूरस, देवी चण्डी सलनी, श्रमिक कल्याण डेरागढ़, चंद्रा संस्कार दर्राभाठा, पीतांबर प्रसार मलदा तथा बम्हनीडीह ब्लाक के महात्मा गांधी हायर सेकेण्डरी स्कूल शामिल हैं।
फिलहाल इन स्कूलों में से कितने ने मंडल को जवाब भेजा है और उसके बाद शिक्षा मंडल ने क्या कार्रवाई की, यह स्पष्ट नहीं हो पाया है। मंडल ने जिस तरह इससे पहले कार्रवाई का खुलासा किया, वैसे ही इसकी जानकारी जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय को मिल गई। अभी तक पता नहीं चला है कि कितने स्कूल पर किस तरह की कार्रवाई हुई, कितने की मान्यता समाप्त की गई ? कितने को चेतावनी दी गई तथा बख्श दिया गया। मंडल की चुप्पी के कारण यह सभी बातें तो अभी समय के गर्त में हैं, मगर शिक्षा मंडल वास्वत में मापदंड पर खरे उतरने के तहत, स्कूलों को मान्यता की फेहरिस्त में रखे तो निश्चित ही इनमें से कुछ ही बच पाएंगे, क्योंकि मापदंड के स्तर को पाने, इनमें से अधिकांश स्कूल कोसों दूर है।

दो साल पहले हुई थी जांच
यहां यह बताना जरूरी है कि जांजगीर-चांपा जिले में निजी स्कूलों की मनमानी व भर्राशाही को देखते हुए दो बरस पहले जिला प्रशासन द्वारा तत्कालिन जिला पंचायत सीईओ ओमप्रकाश चौधरी के नेतृत्व में अधिकारियों की 26 टीमें बनाई गईं। इनके द्वारा करीब पखवाड़े भर में तिथि निर्धारित कर एक-एक निजी स्कूल के मापदंड व दस्तावेज की जांच गई। जिले में करीब 254 निजी स्कूलों की जांच की गई। बताया जाता है कि जांच में कई तरह की चौंकाने वाली बात सामने आई। कहने का मतलब, कई स्कूल महज कागजों में थे, कई स्कूल ऐसे थे, जहां बीते कई सालों छात्र परीक्षा में ही नहीं बैठे थे, मगर इसकी परवाह विभाग के किसी जिम्मेदार अधिकारी को नहीं थी। महज कागजों में दर्जन भर स्कूल चल रहे थे और हमारे नुमाइंदांे को भनक तक न लगी, इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है ? जांच में पता चला, कोई निजी स्कूल धर्मशाला में संचालित था तो कोई सामुदायिक भवन में। दर्जनों खामियों के बाद भी निजी स्कूल के संचालक किसी भी तरह से स्कूल संचालित कराने का दंभ मारते फिरते हैं तो निश्चित ही इसमें मंडल की कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिन्ह लगता है।
जिस समय जिले के निजी स्कूलों की जांच हुई, उससे पहले हर बरस दर्जनों स्कूल खोलने के लिए मान्यता प्राप्त करने के आवेदन डीईओ आफिस को मिलते थे, मगर जैसे ही प्रशासन ने कड़ाई की और निजी स्कूलों की जांच कर सख्ती बरतना शुरू किया, उसके बाद ऐसे शिक्षा माफिया की घिघी बंध गई और देखते ही देखते, हालात यहां तक आ गए कि जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय में नए स्कूल खोलने के लिए आवेदनों की संख्या नगण्य ही रह गई। जिस साल जांच हुई, उस दौरान एक भी आवेदन नहीं मिले। शिक्षा माफिया हारे से नजर आए, उन्हें लगा होगा कि अब जिले में शिक्षा की दुकानदारी नहीं चलेगी, लेकिन जब शिक्षा मंडल अपने पर हो तथा शिक्षा की दुकान चलाने पर उतारू हो जाए और मापदंड पर खरे नहीं उतरने वाले निजी स्कूलों पर कारवाई करने के बजाय, सह दे तो उसके बाद शिक्षा की गिरती साख को कैसे बचाया जाए ? इस पर विचार करने की जरूरत महसूस होती है।
जिले में जब निजी स्कूलों की जांच हुई, उसमें जिला प्रशासन द्वारा कुछ प्रमुख को छोड़कर, शिक्षा विभाग के अधिकारियों को एक भी टीम नहीं शामिल किया गया, इससे ही समझा जा सकता है कि विभाग के अधिकारियों-कर्मचारियों की विश्वसनीयता कहां तक रह गई ? टीम में राजस्व अधिकारियों को जांच की कमान सौंपी गई और उसके बाद निजी स्कूल संचालकों में हड़कंप मच गया। इसके बाद जांच कर रिपोर्ट को शिक्षा मंडल को भेज दी गई और आधे से अधिक स्कूलों की मान्यता निरस्त करने की अनुशंसा किए जाने की चर्चा रही। हालांकि, जांच तो हुई, मीडिया में भी ये मुद्दे कुछ दिनों तक छाए रहे, उसके बाद कार्रवाई के नाम पर वही ढाक के तीन पात। रात गई, बात गई की तर्ज पर निजी स्कूलों की जांच की बातें अंधेरी कोठरी में दंभ भरती रह गई।
आखिरकार देर से ही सही, दो साल बाद शिक्षा मंडल जागा और 8 स्कूलों की मान्यता निरस्त कर दी और इस बार 7 स्कूलों को मान्यता देने से ही हाथ खिंच लिया। इससे लगा कि शिक्षा मंडल, व्यवस्था सुधारने संजीदा हो गया है, किन्तु जो ढर्रा बरसों से चल रहा है, उससे कहां मंडल उबर सकता है और जिन 86 निजी स्कूलों को नोटिस जारी किया गया है, उन पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। निजी स्कूल के संचालकों को 15 दिनों के भीतर जवाब देना था। ऐसे कई पखवाड़े गुजर गए, लेकिन निजी स्कूलों पर लगाम कसने कोई कवायद शुरू नहीं हो सकी है। इससे भी तमाम तरह के सवाल खडे़ हो रहे हैं और मंडल की कार्रवाई, कटघरे में खड़ी दिखाई दे रही है।

क्या कहते हैं अफसर
जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय में पदस्थ सहायक संचालिक पी.के. आदित्य का कहना है कि शिक्षा मंडल ने निजी स्कूल संचालकों से जवाब मांगा है, इसकी हमें केवल सूचना पत्र के माध्यम से मिली थी। अभी इस बात की कोई सूचना या जानकारी नहीं है कि शिक्षा मंडल को कितने निजी स्कूलों का जवाब मिला या फिर मंडल ने उस मामले में क्या कार्रवाई की। मंडल से जब कोई आदेश या सूचना मिलेगी, उसके बाद ही स्थिति स्पष्ट हो पाएगी, क्योंकि स्कूलों की मान्यता देने व समाप्त करने का अधिकार शिक्षा मंडल को है और अंतिम निर्णय उन्हीं को है। हमें जैसा आदेश मिलेगा, उसका क्रियान्वयन कराया जाएगा।

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