शुक्रवार, 2 सितंबर 2011

कहीं कंगाली की डगर पर तो नहीं, विद्युत मंडल ?

इसमें कोई शक नहीं कि जब देश के कई राज्यों के शहरों गांवों में अंधेरा छाया रहता है, उस समय भी छत्तीसगढ़ के अधिकांश इलाकों में उजियारा रहता है। छग को सरप्लस बिजली वाले राज्य का तमगा मिला हुआ है और हमारे सत्ता के कर्णधार, पूरे गर्व से इस बात को देश भर में घूम-घूमकर कहते नहीं थकते कि प्रदेश में बिजली की कोई कमी नहीं है। निश्चित ही यह बात सही है, मगर विद्युत मंडल का आर्थिक ढांचा किस कदर बिगड़ रहा है, इसकी चिंता तो सरकार को है और ही विद्युत मंडल के अफसरों को। यदि ऐसा होता तो बिजली की जो लगातार लाइन-लॉस हो रही है, उसकी फिक्र की जाती और उसे रोकने के माकूल कदम उठाए जाते।
विद्युत मंडल द्वारा बिजली चोरी रोकने व लाइन-लॉस घटाने के लिए आंतरिक जांच व विजिलेंस की टीम बनाई गई है, जो छापामार कार्रवाई करती है। मंडल के अधिकारी बिजली चोरों के आगे पस्त नजर आ रहे हैं और उनकी तमाम तरकीबें भी धरी की धरी रह जा रही हैं। जिस तरह लाइन-लॉस की शिकायतें हैं, उससे यही कहा जा सकता है कि कहीं विद्युत मंडल, कंगाली की डगर पर तो नहीं जा रहा है ?, क्योंकि मंडल को हर महीने 40 फीसदी बिजली का नुकसान उठाना पड़ रहा है। यदि ऐसा ही चलता रहेगा तो आने वाले दिन, विद्युत मंडल के लिए घातक साबित होगा। अविभाजित मध्यप्रदेश के समय भी जैसे, राज्य परिवहन निगम अपने अधिकारियों व कर्मचारियों की नाकामबियों की वजह से डूब गया और उसके बाद उसका अस्तित्व ही खत्म हो गया। ऐसा ही कुछ विद्युत मंडल में रहा तो काला बादल यहां भी मंडराता दिख रहा है। वैसे अभी संभलने का पूरा मौका है, नहीं संभले तो नैया डूबेगी ही।
जी हां, ऐसा ही कुछ हाल है, जांजगीर-चांपा जिले के विद्युत विभाग का। जिले में 60 फीसदी से अधिक की लाइन-लॉस हो रही है और उपर से उपभोक्ताओं से बिजली बिल भी वसूलने में मंडल के अधिकारियों को एड़ी-चोटी एक करनी पड़ रही है, फिर भी बिलिंग के आंकड़ों के करीब भी नहीं पहुंच पा रहे हैं। दूसरी ओर बिजली चोरी की समस्या के कारण मंडल के अधिकारियों की नाक में दम, अलग है। बीते सवा साल के आंकड़ों पर गौर करें तो आंतरिक जांच तथा विजिलेंस की टीम ने बिजली चोरी के मामले में पांच करोड़ से अधिक की बिलिंग की है। हालांकि, इसमें पूरी बिलिंग की राशि वसूली नहीं की जा सकी है। हजारों कार्रवाई के बाद भी बिजली चोरों की पौ-बारह बनी हुई है।
मंडल के अधिकारियों का कहना है कि जिले में बीते कुछ बरसों में बिजली चोरी की समस्या व्यापक थी। इसे खत्म करने के लिए लगातार छापामार कार्रवाई की जा रही है। इसी का नतीजा है कि जहां लाइन-लॉस में कमी आ रही है, वहीं बिजली चोरों पर शिकंजा भी कसा गया है। उनकी मानें तो पहले लाइन-लॉस 70 से 75 फीसदी हुआ करती थी, जिसमें 10 से 15 फीसदी की कमी आई है। साथ ही बिजली चोरी के मामले को भी स्पेशल कोर्ट में भी दिया गया है, जिसके माध्यम से प्रकरणों की सुनवाई हो रही है। इसके अलावा कुछ प्रकरणों को पुलिस को भी सौंपा गया है और रिपोर्ट दर्ज कराई गई है।
विद्युत मंडल द्वारा बिजली चोरी रोकने के लिए हर धत-करम आजमाए जा रहे हैं। घर के बाहर मीटर लगाने, खंभों में मीटर लगाने से लेकर कम्प्यूटरीकृत सिस्टम के बाद भी विद्युत मंडल के अधिकारी, बिजली चोरी रोकने में सफल नहीं हुए हैं। अफसरों का कहना है कि व्यावसायिक उपयोग करने वाले बिजली उपभोक्ताओं द्वारा बिजली चोरी की शिकायतों पर लगाम लगा ली गई है। साथ ही कम्प्यूटरीकृत सिस्टम से उसकी मॉनिटरिंग भी हो रही है, लेकिन हकीकत कुछ और ही है। यह बात सही है कि व्यावसायिक उपयोग की बिजली की चोरी कर मनमाने खपत में कमी आई है, किन्तु उसमें पूरी तरह रोक नहीं लग सकी है। इसके चलते लाइन-लॉस की समस्या बनी हुई है।
दूसरा एक और कारण है, ग्रामीण इलाकों में बिजली रोकने के लिए कर्मचारियों की कमी का हवाला दिया जाता है, लेकिन यह बात भी कोरी लगती है, क्योंकि गांवों के उपभोक्ताओं की संख्या के हिसाब से लाइनमेन पदस्थ हैं, जिन पर दायित्व होता है कि वह बिजली व्यवस्था देखे व चोरी रोकने के प्रयास करे। यहां कहा जाता है कि गांवों में बिजली चोरी करने वाले लोग मारपीट पर उतारू हो जाते हैं और पुलिस नहीं होने से मुश्किलें बढ़ जाती हैं। सवाल यह है कि यदि मंडल के अधिकारी पूरे मनोयोग से यह ठान लें कि किसी भी तरह से लाइन-लॉस रोकने के प्रयास किए जाएंगे, बिजली चोरी रोकने हर कदम उठाए जाएंगे, उसके बाद स्थिति पर जरूर काबू पा ली जाएगी, मगर मंडल के अधिकारियों में विद्युत मंडल के बढ़ते घाटे से उबारने की रूचि कहीं दिखाई नहीं देती ?
मंडल के अधिकारियों की मानें तो हर साल हजारों कनेक्शनों की जांच की जाती है, उनमें से अधिकतर में मीटर पर छेड़छाड़ व ओव्हर लोड की शिकायतें मिलती हैं। कुछ जगहों में डायरेक्ट हुकिंग की भी शिकायतें मिलती हैं। जांच में जिस तरह के प्रकरण सामने आते हैं, उसी तरह बिलिंग की जाती है। साथ ही बिजली चोरी करते पकड़े गए व्यक्ति को बिल पटाने के लिए समय दे दिया जाता है। इस दौरान बिल नहीं पटाने पर प्रकरण स्पेशल कोर्ट भेज दिए जाते हैं या फिर थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई जाती है।
बिजली चोरी व लाइन-लॉस के बाद एक दूसरा पहलू सामने आता है। उपभोक्ताओं के मन में यह बात होती है कि लाइन-लॉस का खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ता है, क्योंकि अनाप-शनाप बिल, मंडल द्वारा थमा दिया जाता है, मगर इस बारे में अधिकारियों का कुछ अलग ही कहना है। वे कहते हैं कि मडल को लाइन-लॉस की समस्या है, उसे उपभोक्ताओं की खपत बिजली की बिलिंग से कोई लेना-देना नहीं है। मीटर में जितने यूनिट बिजली की खपत होती है, उसी अनुरूप बिल दिया जाता है। हालांकि, व्यापक पैमाने पर हो रही लाइन-लॉस को मंडल के अधिकारी भी बड़ी समस्या मानते हैं और हर महीने विद्युत मंडल को अरबों-खरबों रूपये की चपत से भी वे अनजान नहीं है। बिजली चोरी रोकने के लिए विजिलेंस टीम भी बनाई गई। जिले में करीब 10 टीम हैं, जो गांव तथा नगरों में जांच करती है और हर कार्रवाई में दर्जनों प्रकरण भी सामने आते हैं। बावजूद, बिजली चोरी में कमी नहीं हो रही है। लाइन-लॉस में पहले से भले ही कमी हो गई हो, मगर इसे विद्युत मंडल के अफसरों की सफलता नहीं कही जा सकती, क्योंकि आधे से अधिक बिजली, यदि लॉस हो और उसका मंडल को घाटा हो, फिर इसे क्या कहा जा सकता है ?
अब तो आने वाला समय ही बताएगा कि विद्युत मंडल ऐसे ही घाटा सहता रहेगा या फिर बिजली चोरों पर पूरी तरह नकेल कसी जाएगी। 60 फीसदी से अधिक की लाइन-लॉस होने के बाद भी मंडल द्वारा अब तक व्यापक तरीके से कोई रणनीति नहीं बनाया जाना, निश्चित ही मंडल के अफसरों में ‘आर्थिक नाव’ को डूबोने, खुली मानसिकता की तैयारी ही कही जा सकती है। अब देखना होगा कि मंडल के अधिकारी जागते हैं या फिर इसी तरह ‘घाटे के सौदा’ का दौर जारी रहेगा और बिजली चोरों का मौज बना रहेगा।


ओव्हरलोड बना मुसीबत
बिजली चोरी के कारण ओव्हरलोड की समस्या हमेशा बनी रहती है। आए दिन ट्रांसफार्मर के फेल होने की शिकायतें आती रहती हैं। गर्मी के दिनों में स्थिति और बिगड़ जाती है, क्योंकि सैकड़ों ट्रांसफार्मर, ओव्हरलोड के कारण ही खराब हो जाते हैं। लिहाजा, शहरों में जैसे-तैसे बिजली बहाली हो जाती है, लेकिन गांवों में कई दिनों तक बिजली दर्शन तक नहीं देती। ऐसे में सरप्लस बिजली का लाभ, ग्रामीण उपभोक्ताओं को कहीं मिलता दिखाई नहीं देता। ट्रांसफार्मर के फेल होने का सबसे बड़ा कारण यह माना जाता है कि बिजली चोरी के लिए हुकिंग की जाती है, जिसके बाद ट्रांसफार्मर शॉर्ट हो जाता है और फिर उसमें खराबी आ जाती है। कुल-मिलाकर बिजली चोरों की कारस्तानियों का खामियाजा आम उपभोक्ताओं को भुगतना पड़ता है।


लइन-लॉस में आ रही कमी - ईई
विद्युत मंडल के अधीक्षण अभियंता राजेन्द्र प्रसाद ने बताया कि पिछले साल 70-75 फीसदी लाइन-लॉस की समस्या थी। आंतरिक जांच तथा विजिलेंस की टीम द्वारा छापामार कार्रवाई के बाद बिजली चोरी पर लगाम लगी है और लाइन-लॉस में कमी आई है और यह करीब 60 फीसदी तक आ गई है। मंडल द्वारा इसे और कम करने का लक्ष्य दिया गया है। जिस पर 10 टीमें बनाकर कार्रवाई की जा रही है। उन्होंने बताया कि बिजली चोरी की समस्या गांवों में ज्यादा है और वहां कर्मचारियों की कमी के कारण नियमित जांच नहीं हो पाती। हालांकि, जांच टीमों की कार्रवाइ जारी है और आने वाले दिनों में निश्चित ही लाइन-लॉस में कमी आएगी।

कोई टिप्पणी नहीं: