रविवार, 6 मार्च 2011

राजनीति का शिकार ‘शबरी महोत्सव’

टेम्पल सिटी शिवरीनारायण में हर बरस माघी पूर्णिमा से आयोजित होने वाले मेले की छत्तीसगढ़ ही नहीं, वरन् दूसरे राज्यों में भी पहचान है। छत्तीसगढ़ के इस सबसे पुराने व पुरातन मेले ने अपनी छाप छोड़ी है, मगर राज्य सरकार की उदासीनता के कारण शिवरीनारायण मेले की प्रसिद्धि पर असर पड़ रहा है। शासन के मनमाने रवैये के कारण शबरी महोत्सव का आयोजन पिछले तीन बरसों से नहीं हो पा रहा है। संस्कृति विभाग के छलावा से क्षेत्रवासी निराश हैं। शबरी महोत्सव की राशि कई वर्षों से नहीं मिलने के कारण आयोजन समिति ने अपना पल्ला झाड़ लिया है, यह स्वाभाविक भी है कि आखिर कब तक शासन के सहयोग बिना महोत्सव हो पाएगा। शबरी महोत्सव का आयोजन नहीं होने से मेले में फीकापन महसूस किया जा रहा है। शायद इस बात को संस्कृति विभाग के नुमाइंदे समझ नहीं पा रहे हैं। अंततः यही कहा जा सकता है कि शिवरीनारायण का शबरी महोत्सव राजनीति का शिकार हो गया है, यदि ऐसा नहीं होता तो सरकार महोत्सव से मुंह क्यों मोड़ लेती ?
गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद शिवरीनारायण को टेम्पल सिटी का दर्जा दिया गया और यहां करोड़ों रूपये के निर्माण कार्यों की स्वीकृति भी दी गई। उस दौरान यह भी निर्णय लिया गया कि शिवरीनारायण में माघी पूर्णिमा से प्रारंभ होने वाले मेले के साथ ही सात दिवसीय ‘शबरी महोत्सव’ का आयोजन किया जाए। उस दौरान यह परिपाटी शुरू हो गई और इस तरह करीब पांच-छह बरसों तक शबरी महोत्सव का आयोजन होता रहा।
पांच बरस पहले आयोजन समिति के सदस्यों ने किसी तरह शबरी महोत्सव का आयोजन कराया और संस्कृति विभाग द्वारा निर्धारित राशि देने की बात कही गई, लेकिन समिति को राशि नहीं मिल सकी। इस तरह पूरा साल बीत गया और एक बार फिर शबरी महोत्सव की तैयारी की जाने लगी। यहां दिलचस्प बात यह है कि आयोजन समिति को संस्कृति विभाग से तब महोत्सव के लिए राशि मिली, जब महज एक-दो दिन ही माघी पूर्णिमा को बचा था। अब यहां सवाल उठता है कि आखिर इतनी देर से राशि क्यों जारी की गई ? इस साल शबरी महोत्सव का आयोजन नहीं हो सका। इसके बाद जैसे यह परिपाटी ही आगे बढ़ गई और संस्कृति विभाग का नकारात्मक रवैया ही सामने आया।
शिवरीनारायण में पिछले तीन बरस से शबरी महोत्सव का आयोजन बंद है, इसका मूल कारण समय पर राशि का नहीं मिलना बताया जा रहा है, जिसके कारण समिति के सदस्यों का आयोजन से मोह भंग हो गया है। शबरी महोत्सव के माध्यम से स्थानीय लंोक कलाकारों को मंच मिलता था, वहीं छत्तीसगढ़ समेत अन्य जगहों के ख्यातिलब्ध कलाकारों की प्रस्तुति देखने को मिलती थी। शबरी महोत्सव की शुरूआत के बाद शिवरीनारायण की भव्यता बढ़ गई थी, लेकिन राज्य शासन व संस्कृति विभाग के मनमाने रवैये के कारण अब क्षेत्रवासी निराश हैं। शिवरीनारायण मेले की अनदेखी की बात भले ही संस्कृति विभाग के कर्ता-धर्ता न स्वीकारें, लेकिन धरातल में जाकर देखने से इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि किस तरह संस्कृति विभाग का रवैया, राशि जारी करने टाल-मटोल है।
शबरी महोत्सव के लिए राशि जारी नहीं करने को राजनीति के चस्में से भी देखा जा रहा है, क्योंकि महोत्सव की शुरूआत जब हुई थी, तब मुख्यमंत्री अजीत जोगी कांग्रेस के थे और उस दौरान शिवरीनारायण मठ के मठाधीश राजेश्री महंत रामसुंदर दास, पामगढ़ से विधायक थे। फिलहाल वे जैजैपुर से विधायक हैं। ऐसा नहीं है कि भाजपा की सत्ता में आने के बाद शबरी महोत्सव नहीं हुआ, लेकिन एक-दो साल। इसके बाद तो राज्य सरकार द्वारा शबरी महोत्सव के प्रति ध्यान नहीं दिया जा रहा है। यही कारण है कि क्षेत्र में चर्चा का विषय है कि शबरी महोत्सव, राजनीति का शिकार हो गया है और सरकार, महोत्सव तथा शिवरीनारायण मेले को आगे बढ़ाने में रूचि नहीं ले रही है।

सरकार की अनदेखी का परिणाम: राजेश्री
शिवरीनारायण के मठाधीश एवं जैजैपुर के कांग्रेसी विधायक राजेश्री महंत रामसुंदर दास ने बताया कि सरकार की अनदेखी के कारण शिवरीनारायण में शबरी महोत्सव पिछले तीन बरसों से नहीं हो पा रहा है। आयोजन के लिए राज्य शासन द्वारा राशि जारी नहीं की जा रही है। तीन साल पहले समिति के लोगों ने जैसे-तैसे आयोजन कराया, लेकिन संस्कृति विभाग से राशि नहीं मिली। उन्होंने बताया कि शबरी महोत्सव आयोजन समिति के अध्यक्ष के नाते, राज्य शासन को समस्या से अवगत कराया। साथ ही विधानसभा में भी इस मुद्दे को उठाया, तब सकारात्मक पहल की बात कही गई थी, लेकिन बाद में वहीं ढाक के तीन पात की स्थिति रही। राजेश्री ने कहा कि शबरी महोत्सव नहीं होने से क्षेत्रवासियों में निराशा है और कहीं न कहीं राज्य शासन द्वारा धार्मिक नगरी की महत्ता को दरकिनार किया जा रहा है।

विभाग भूला महोत्सव की परिपाटी
चार साल पहले ऐतिहासिक और धार्मिक नगरी की महत्ता को बताने तथा उसका प्रचार-प्रसार किए जाने को लेकर छत्तीसगढ़ के कई जिलों में महोत्सव की परिपाटी की शुरूआत की गई थी, जो महज एक बरस ही चल पाई, इसके बाद कई जगहों पर आयोजन राशि के अभाव में थम गया। संस्कृति विभाग द्वारा छत्तीसगढ़ की काशी के नाम से विख्यात लक्ष्मणेश्वर की नगरी में ‘लक्ष्मणेश्वर महोत्सव’ का आयोजन किया गया था। इस आयोजन से लोगों में खासा उत्साह था, लेकिन विभाग द्वारा महोत्सव की परिपाटी भूल जाने से, वह मंशा साकार नहीं हो सकी, जिसे लेकर महोत्सव जैसे आयोजन की शुरूआत की गई थी।

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