यह बात सही है कि आज मीडिया का हर क्षेत्र में दखल है और शहर से लेकर गांवों तक मीडिया ने पहुंच बना ली है। इस तरह कहा जा सकता है कि मीडिया का भी समय के साथ विकेन्द्रीकरण हुआ है। पहले पिं्रट व इलेक्ट्रानिक मीडिया का संपर्क महानगरों के पाठकों व दर्शकों तक होता था, मगर आज हालात काफी बदल गए हैं। मीडिया का चाहे वह पिं्रट माध्यम हो या फिर इलेक्ट्रानिक मीडिया, किसी न किसी तरह से प्रत्येक घरों तक अपनी पैठ जमा ली है। जाहिर सी बात है कि जब मीडिया का प्रसार होगा तो रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे, ऐसा हुआ भी है और मीडिया, रोजगार का एक बड़ा सेक्टर बन गया है।
मीडिया के प्रसार से लोगों में जागरूकता तो आई है, इस बात को स्वीकार करने में कोई गुरेज नहीं है, किन्तु यहां एक दूसरा पहलू भी है, जिसके चलते मीडिया या फिर पत्रकारिता का मूल ध्येय पूरा होता नजर नहीं आ रहा है, वह है-बिना योग्यता व अनुभव के गली-गली पैदा हो रहे पत्रकार ? आरएनआई ने मीडिया माध्यम को बढ़ावा देने अखबार तथा चैनल के पंजीयन में शिथीलता क्या बरती, उसके बाद देश में अखबारों तथा चैनलों की संख्या बढ़ती जा रही है। यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि अखबारों तथा चैनलों की स्वीकृति के लिए कोई विशेश मापदंड नहीं अपनाया जा रहा है ? इसका एक बड़ा उदाहरण - गली-गली खुल रहे अखबार और बिना कोई अनुभव व योग्यता के संपादकों की बाढ़ आ गई है, सामान्य पत्रकारों की बात ही अलग है। यहां हमारा अखबारों तथा चैनलों की बढ़ती संख्या से कोई मतलब नहीं है, बल्कि मुद्दा यह है कि क्या कोई बिना अनुभव व योग्यता के पत्रकारिता जैसे महत्वपूर्ण दायित्व निभा सकता है ?
पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है, इस लिहाज से जो व्यक्ति, पत्रकार जैसे महत्वपूर्ण दायित्व का निर्वहन करता है, तो उसकी जिम्मेदारी कई गुनी बढ़ जाती है। बड़ा सवाल यह है कि क्या यह जरूरी नहीं रह गया है, आज हम इस बात पर मनन करें कि पत्रकारिता जैसे पेशे में ऐसे ही कतिपय लोगों ने अपनी घुसपैठ बना ली है। एक बात भी सही है कि बेहतर पत्रकारिता के लिए व्यक्तिगत क्षमता व ज्ञान का काफी महत्व होता है, लेकिन जब कोई बिना अनुभव तथा योग्यता के पत्रकार कहलाएगा और पत्रकारिता पेशे की गरिमा पर कुठाराघात करेगा तो फिर ऐसी स्थिति के लिए किसे जिम्मेदार माना जा सकता है ?
देश में लगभग 70 हजार पिं्रट माध्यम के अखबार तथा पत्रिकाओं की संख्या है, वहीं करीब 5 सौ चैनलों की संख्या है। ऐसे में समझा जा सकता है कि मीडिया आज कितना बड़ा संचार माध्यम का शक्ति बन गया है। ऐसा नहीं है कि मीडिया क्षेत्र में अच्छी पत्रकारिता नहीं हो रही है, कई अखबार और चैनल देश में हैं, जिनके पेशे के प्रति समर्पण की मिसाल दी जाती है, लेकिन यहां प्रश्न इस बात का भी है कि बहुत से अखबार तथा चैनल हैं, जहां अनुभव तथा योग्यता का कोई मापदंड नहीं है और इन बातों को पूरी तरह दरकिनार किया जाता है। यही कारण है कि गली-कूचों में पत्रकारों की संख्या बढ़ती जा रही है। हमारा यही कहना है कि जब कोई पत्रकारिता पेशे से जुड़ता है और सीखने की ललक रखकर कार्य करता है तो यहां किसी तरह के हालात नहीं बिगड़ते, लेकिन जब कोई केवल कार्ड पकड़कर ही पत्रकार बनकर रहना चाहता है तो फिर उन जैसों की मंशा का अंदाजा सीधे तौर पर लगाया जा सकता है ?
एक कार्ड पकड़कर कोई भी यह कहने लग जाता है कि वह पत्रकार है ? अखबार की संख्या बढ़ने का ही परिणाम है कि मीडिया क्षेत्र में प्रशिक्षित पेशेवरों की कमी हो गई है और ऐसी स्थिति में जब कोई अखबार या चैनल शुरू होता है, तो कुछ ऐसे लोग भी पत्रकार बना दिए जाते हैं, जो बरसों तक दूसरे क्षेत्रों से जुड़े रहे और जब वहां सफल नहीं हुए तो, आ गए पत्रकार बनकर पत्रकारिता में हाथ आजमाने। यहां एक और महत्वपूर्ण मुद्दा यह भी है कि आखिर कौन वरिष्ठ होता है ? वरिष्ठ जैसे शब्द को लेकर अधिकतर विवाद होता रहता है और वर्चस्व की बात भी देखी जाती है। यहां हमारा यही कहना है कि वरिष्ठ वह हो सकता है, जिसके पास कार्यानुभव है और योग्यता है, न कि केवल पत्रकारिता क्षेत्र में गुजारे गए साल दर साल। साल तो गुजारे गए हों और साथ में कोई उपलब्धियां जुड़ी हुई हैं, तब ऐसे हालात नहीं बनते।
वैसे यह कहा जाता है कि जब किसी में योग्यता है तो उसे निखरने कोई रोड़ा बाधा नहीं बनता। ऐसी स्थिति में जब पत्रकारों की बाढ़ आती है तो वहां वरिष्ठ का विवाद गहरा जाता है और फिर होती है, वर्चस्व का विवाद। इस तरह के हालात पत्रकारिता क्षेत्र में महानगरों से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में साधारणतः देखा जाता है। अंत में बात एक बार वही है कि जिस तरह की परिस्थितियां निर्मित हो रही हैं, उसमें हर चेहरा पत्रकार लगता है ! ठीक है मीडिया, एक बड़ा माध्यम है, लेकिन पत्रकारिता क्षेत्र में सुधार व बेहतरी के लिए कुछ तो मापदंड तय होना चाहिए।
सोमवार, 14 फ़रवरी 2011
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1 टिप्पणी:
बिल्कुल सही मुददे को उठाया आपने। इस विषय पर चिंतन की आवश्यकता है और रोक लगनी चाहिए पत्रकारों की बढती संख्या पर(रोक उन पर जो सिर्फ नाम के हैं, काम करने वालों पर नहीं।)
अच्छी पोस्ट। बधाई हो।
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