रविवार, 5 दिसंबर 2010

मुलायम और अमर की नूराकुस्ती

अक्सर कहा जाता है कि राजनीति में कभी भी अपने बेगाने हो जाते हैं और बेगाने, कभी भी अपने हो जाते हैं। ऐसा ही कुछ देखने को मिला, उत्तरप्रदेश की राजनीति में। कल तक आजम खान की पार्टी से जो गांठ टूट गई थी, वह अब जुड़ गई है। हालांकि सपा प्रमुख मुलायम सिंह और महासचिव रहे अमर सिंह एक-दूसरे पर जुबानी प्रहार लगातार किए जा रहे हैं। पार्टी की बिगड़ती स्थिति को शायद मुलायम सिंह ने भांपा होगा, तभी तो वे आजम खान को पार्टी में वापिस बुलाए हैं, जाहिर सी बात है कि इससे आजम खान का कद, पार्टी में पहले से बढ़ गया है, किन्तु एक सवाल है कि क्या आजम खान की तर्ज पर अमर सिंह की भी वापसी हो जाएगी ? क्या मुलायम सिंह, कभी पार्टी के लिए गठजोड़ की भूमिका निभाने वाले अमर सिंह को मनाएंगे ? ऐसा यदि होता है तो क्या अमर सिंह, बड़े भाई मुलायम सिंह का कहना मानेंगे ? इस तरह कई सवाल इन समय समाजवादी पार्टी को लेकर खड़े हो रहे हैं। साथ ही दोनों नेताओं के बीच महीनों से जारी जुबानी नूराकुस्ती से भी कई तरह के प्रश्न उठ रहे हैं। देश के सबसे बड़े राज्य में वैसे तो समाजवादी पार्टी का काफी वजूद है और यही कारण है कि सपा, राज्य की सत्ता पर भी काबिज हो चुकी है, लेकिन मायावती की सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले ने सपा को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया। उत्तरप्रदेश में सपा के हाथ से सत्ता क्या गई, पार्टी के नेताओं में आपसी घमासान मच गया और कुछ ही महीनों में पार्टी में जैसे विवादों का दौर शुरू हो गया। इन विवादों का ही परिणाम रहा कि समाजवादी पार्टी, उत्तरप्रदेश की विधानसभा में एक सशक्त विपक्ष की भूमिका भी नहीं निभा सकी।
पार्टी के भीतर अंदरूनी कलह के कारण महासचिव रहे अमर सिंह और आजम खान के बीच तनातनी शुरू हो गई और हालात यहां तक बन गए कि सपा के मुखिया मुलायम सिंह को आजम खान को पार्टी से निष्कासित करना पड़ा। बाद में अमर सिंह का भी नाता सपा से टूट गया और उनके साथ सपा कुनबे के कई नेता भी साथ हो लिए। आलम यह रहा कि सिने अभिनेत्री रही और सांसद जयाप्रदा, अभिनेता संजय दत्त, भोजपुरी अभिनेता मनोज तिवारी समेत कई विधायकों ने भी पार्टी से अलविदा कह दिया। इस तरह समाजपार्टी के हालात दूबर बर दू आषाढ़ की तरह हो गए और फिर शुरू हुआ मुलायम तथा अमर के बीच वाक्युद्ध का दौर। एक-दूसरे पर कई तरह के आक्षेप इन नेताओं द्वारा लगाया गया। हालांकि राजनीतिक गलियारे में कमोबेश यही चर्चा रही कि मुलायम से अमर का साथ नहीं छूट सकता और सपा में चल रहा ड्रामा कुछ समय बाद खत्म हो जाएगा, मगर हुआ यह है कि दोनों सपा नेताओं के बीच उल्टे रिश्ते बिगड़ गए और काफी नोंक-झोंक के बाद आखिरकार अमर ने समाजवादी पार्टी से संबंध तोड़ ही लिए। वैसे समाजवादी पार्टी में अमर सिंह की छवि, एक कार्पोरेट जगत के व्यक्ति रही है, जो फण्ड जुटाने में माहिर माने जाते रहे, क्योंकि उनकी ऐसी कई हस्तियों से बेहतर ताल्लुकात हैं, जिसका फायदा भी सपा मिलता रहा। अमर ने जब पार्टी छोड़ी तो कहा जाने लगा कि आखिर अब सपा की वित्तीय नाव राजनीति की वैतरणी कैसे पार लगेगी ?
आज के हालात में देखें तो समाजवादी पार्टी में कभी वरिष्ठ नेता रहकर अलविदा कह गए, आजम खान की वापसी हो गई है। मुलायम सिंह ने खुद ही आजम खान को पार्टी में आने की पेशकश की, इससे तो समझा जा सकता है कि अमर की दूरी बनाने के बाद, पार्टी की स्थिति ठीक नहीं है। इसी के चलते मुलायम को अपने पुराने साथी आजम खान की याद ही गई। हालांकि मुलायम ने जब आजम को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया था, उस दौरान उनके मुंह से आजम खान के लिए आग निकली, लेकिन आज माहौल कुछ बदला-बदला सा है। आज वे दोनों राम-सुग्रीव की तरह नजर आ रहे हैं। जब आजम खान पार्टी के मंच पर आकर सपा में शामिल हुए, उसके बाद यह देखकर हर कोई हैरत में पड़ गया कि दोनों की आंखों से आंसू बह रहे हैं। सपा के इतिहास में शायद ही ऐसा, राम-सुग्रीव मिलाप हुए होंगे, लेकिन सवाल यही है कि क्या ये आगे भी राम-सुग्रीव जैसी मित्रता के धर्म को निभा पाएंगे ? क्योंकि आजम खान जिस तरह अपने ही कूचे से बेगाने कर निकाले गए थे, शायद ही वह जख्म उनके दिल से निकल पाया होगा ?
अब बात करें सपा में महासचिव रहे अमर सिंह सिंह की, तो पार्टी से अलग होने के बाद मुलायम और अमर में जो वाक्युद्ध शुरू हुआ, वह अब भी जारी हैं। एक तरफ अमर सिंह, मुलायम सिंह को अपना बड़ा भाई होने की बात कहते हैं और दूसरे क्षण ही उन्हें अपना सबसे बड़ा विरोधी करार देते हैं, यह तो आम जनता के पल्ले पड़ता नहीं है। जब अमर ने पार्टी छोड़ी तो सबकी जुबान पर था कि मुलायम, उन्हें मनाएंगे, लेकिन मान-मनौव्वल कुछ नहीं हुआ और अमर सिंह ने पार्टी छोड़ने का कारण सपा प्रमुख मुलायम के भाई को बताया। इन हालातों के बाद से पार्टी के लिए अमर सिंह, इस तरह बेगाने हो गए कि अब केवल बातों का जहर एक-दूसरे पर उगलने का सिवाय कुछ नहीं हो रहा है। जब भी इन नेताओं को मौका मिलता है, तो किसी तरह कटाक्ष किए बगैर नहीं रहते। यह बात तो सही है कि अमर सिंह की पार्टी छोड़कर जाने के बाद सपा को कई तरह से नुकसान हुआ है, भले ही इस बात को मुलायम सिंह सीधे तौर पर न स्वीकारें, लेकिन वे जरूर समझते हैं कि अमर सिंह ने किस तरह पार्टी को कार्पोरेट जगत से लाभ पहुंचाया है और ऐसे चेहरों को पार्टी से जोड़ने का काम किया, जिनके बदौलत पार्टी को वोट बटोरने में सहूलियतें हुईं।
फिलहाल समाजवादी पार्टी में आजम खान की वापसी होने के बाद एक फिर मुलायम सिंह और अमर सिंह के बीच तकरार शुरू हो सकते हैं, क्योंकि आने वाले महीनों में उत्तरप्रदेश में विधानसभा चुनाव हैं। इस तरह एक-दूसरे की कमियों को गिनाने से भला राजनेता कैसे चूक कर सकते हैं। वैसे भी सपा की टिकट से सांसद बनीं जयाप्रदा ने यह कहकर कुछ नेताओं को जरूर चौंका दिया है कि जब वे मुंह खोलेंगी तो कईयों का पासा ही पलट जाएगा और पोल खुल जाएगी। एक बात और है कि अमर सिंह ने खुद भी एक नई पार्टी बनाने की बात कही है, हालांकि इस दिशा में कोई गतिविधि नजर नहीं आ रही है, ऐसे में आने वाले दिनों में उनकी भी वापसी हो जाने का कयास लगाना, गलत नहीं होगा। मुलायम सिंह इतना तो जान गए होंगे कि पार्टी की कोई शाखा टूटती है, तो किस तरह नुकसान होता है। इसके इतर, उनकी कांग्रेस में भी शामिल होने की चर्चा खूब रही, हालांकि अमर सिंह ने इस बात पर सीधे तौर पर कहा कि वे कांग्रेस में शामिल नहीं होंगे। जो भी हो, मुलायम और अमर के बीच आरोप-प्रत्यारोप के साथ देश की जनता यह भी देख रही है कि इन दोनों नेताओं के मध्य कैसी नूराकुस्ती चल रही है।
यहां हमारा यही कहना है कि समाजवादी पार्टी से अमर सिंह के गुडबाय कहने से निश्चित ही पार्टी समेत मुलायम सिंह यादव को काफी नुकसान हुआ है, इसके अलावा खुद, अमर सिंह भी कोई खास नफे में नहीं हैं, क्योंकि सपा से अलग होने के बाद वे भी न यहां के रहे और न वहां के। मीडिया में छाए रहने वाला अमर सिंह का वह चेहरा पूरी तरह गायब हो गया है, हालांकि वे मीडिया में बने रहने कुछ न कुछ बयान दे जाते हैं, जिससे कुछ सुर्खियां बटोरी जा सके। इस तरह कहा जा सकता है कि मुलायम सिंह और अमर सिंह की नूराकुस्ती से केवल सत्ता में बैठी मायावती लाभ उठा रही है, ठीक उसी तरह, जैसे छत्तीसगढ़ में कांग्रेस नेताओं की आपसी लड़ाई का फायदा भाजपा सरकार उठा रही है। इतना तो है कि इन नेताओं की नूराकुस्ती से मीडिया को कुछ मसाला तो मिल ही जाता है और जनता को चर्चा के लिए कुछ चटपटे बयान।

1 टिप्पणी:

........ ने कहा…

अमर सिह जी और मुलायम जी की ये लडाइ पता नही क्यु है?पर राज्नीति का व्यक्ति वादी स्वरूप जिस ने सभीवादो का सच साम्ने रख दिया है......