कांग्रेस महासचिव और पार्टी के युवराज माने जाने वाले राहुल गांधी का जादू बिहार विधानसभा में कहीं नहीं चला। इसे इस बात से ही समझा जा सकता है कि प्रचार में दिन-रात एक करने के बाद भी कांग्रेस की सीटें, बढ़ने के बजाय और उल्टे घट गई। राहुल गांधी के चुनावी प्रचार का जादू 14 वीं लोकसभा चुनाव में सर-चढ़कर बोला था और इसके बाद देश के राजनीतिक गलियारे में यह चर्चा छिड़ गई कि अब अगले प्रधानमंत्री राहुल गांधी हो सकते हैं ? इस तरह कई राज्यों में राहुल गांधी ने युवाओं को पार्टी के प्रति आकर्षित करने नई तरकीब निकाली और जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं को जोड़ने टैलेंट हंट कार्यक्रम चलाया। साथ ही युवा कांग्रेस पदाधिकारियों के चुनाव में पारदर्शिता लाने प्रयास किए गए। बीते साल तक लग रहा था कि राहुल गांधी, आने वाले दिनों में कांग्रेस के नए सितारे होंगे, लेकिन बिहार चुनाव के नतीजों ने कांग्रेस के मुगालते को खत्म कर दिया कि राहुल गांधी का जादू हर जगह चल सकता है ?
बिहार के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपने दम पर चुनाव लड़े और सभी 243 सीटों पर उम्मीद्वार खड़े किए गए। कांग्रेस आलाकमान तथा यूपीए प्रमुख श्रीमती सोनिया गांधी का कहना था कि बिहार में पार्टी, नए सिरे से अपना जनाधार बनाएगी। इसी के साथ खुद सोनिया गांधी ने चुनाव की कई सभाएं लीं। साथ ही कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी और प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने भी दर्जनों सभाएं लीं, लेकिन कांग्रेस के हितों की दृश्टि से देखें तो इन सभाओं में पहुंची हजारों की भीड़, वोटों में नहीं बदलीं। नतीजा यह रहा कि बिहार चुनाव में कांग्रेस दूर-दूर तक नहीं ठहरी। पिछले चुनाव में कांग्रेस को 9 सीटें हासिल हुई थीं, लेकिन इस चुनाव में तो कांग्रेस प्रत्याशी हाथ मलते रह गए और पार्टी के खाते में केवल चार सीटें ही आ सकीं। यहां गौर करने वाली बात यह है कि बिहार चुनाव के प्रचार शुरू होने के पहले कांग्रेस यह कह रही थी कि प्रदेश में विकास नहीं हुए और जो हुए, वह केन्द्र सरकार की योजना की राशि से हुए। इन बातों के भावार्थ समझें तो यही कहा जा सकता है कि किसी तरह विपक्षी पार्टी, विकास होने की बात तो मान रही है। बिहार की जनता की सोच तो तरक्की की है और उन्हें उन बातों से क्या लेना-देना, कि किस सरकार के फण्ड से विकास के कार्य हो रहे हैं। इसके इतर जनता को केवल विकास होते दिखना चाहिए।
बिहार चुनाव के परिणाम के अलावा कांग्रेस के हालात का जायजा लें तो कांग्रेस, राज्य में जदयू-भाजपा गठबंधन के आगे कहीं नहीं ठहरी। चुनावी नतीजे आते ही वैसे भी यूपीए प्रमुख श्रीमती सोनिया गांधी ने यह कहा कि हम शून्य से शुरूआत करेंगे, लेकिन यहां एक बात सोचने पर विवश करती है कि पिछले बरस कांग्रेस की चुनावी जीत जारी रही और कई राज्यों मंे कांग्रेस की सरकार बनीं, लेकिन यहां सवाल यही है कि आखिर इतनी माथा-पच्ची चुनाव में करने के बाद भी क्यों कांग्रेस की सीटों में इजाफा नहीं हुआ ? ऐसे नतीजे की उम्मीद शायद सोनिया गांधी, राहुल गांधी तथा डा. मनमोहन सिंह को नहीं रही होगी, क्योंकि यह तो कांग्रेस के चुनावी इतिहास में इसे अब तक की सबसे बड़ी बदहाली कही जा सकती है, क्योंकि जो सीटें मिली हुई थीं, उसे भी कांग्रेस नहीं बचा सकीं।
बिहार चुनाव के परिणाम के बाद राहुल गांधी के नाम पर सिर चढ़कर बोलने वाले जादू की चर्चा राजनीति जानकारों के बीच खूब हो रही है, क्योंकि आने वाले साल में आधा दर्जन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इसमें सबसे अहम है, उत्तरप्रदेश का चुनाव। भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश पर पार्टी की निगाहें इसलिए ज्यादा टिकी हुई हैं, क्योंकि बरसों से यहां कांग्रेस सत्ता में नहीं लौट सकी है। यही कारण है कि कांग्रेस की चिंता ज्यादा नजर आ रही है। उत्तरप्रदेश के रायबरेली और अमेठी से श्रीमती सोनिया गांधी तथा राहुल गांधी सांसद हैं। यहां कांग्रेस के कुछ बड़े नेता चुनाव जरूर जीत रहे हैं, मगर इससे कांग्रेस की हालत में कोई सुधार नहीं हो रहा है। आगामी कुछ महीनों में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर राहुल गांधी, लगातार उत्तरप्रदेश के दौरे कर रहे हैं और दलितों के घरों में जाकर खाना खा रहे हैं। इस तरह लगता है, राहुल गांधी की कोशिश सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला आजमाने की भी है, जिसमें वे कुछ हद तक सफल भी हुए हैं, लेकिन क्या यह सब प्रयास वोट में बदल पाएंगे, क्योंकि बिहार विधानसभा के नतीजे ने कांग्रेस को फंूक-फूंककर कदम रखने पर मजबूर कर दिया है।
यह बात तो सही है कि कांग्रेस के पास फिलहाल सोनिया गांधी और राहुल गांधी के सिवाय कोई और चेहरे नहीं है, जिसके नाम पर जनता से वोट मांगे जा सकें, किन्तु सवाल यहां यही है कि कांग्रेस की चुनावी वैतरणी पार इन चेहरों के सहारे नहीं हो रही है तो आने वाले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस कौन सी रणनीति अपनाएगी, यह देखने वाली बात होगी। कांग्रेस ने राहुल गांधी की छवि को भुनाने की कोशिश लगातार बीते साल हुए चुनावों में की, लेकिन आखिर उनका जादू अब क्यों नहीं चल रहा है ? हालांकि कई जानकार यह भी कह रहे हैं कि बिहार के राजनीतिक हालात अलग थे, जिसके कारण कांग्रेस का प्रदर्शन ठीक नहीं रहा, लेकिन प्रश्न यहां भी वही है कि ऐसे में उत्तरप्रदेश में देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी, कैसे अपना परचम फहरा पाएगी, क्योंकि बिहार जैसे हालात उत्तरप्रदेश में भी कांग्रेस के हैं।
उत्तरप्रदेश की सत्ता से कांग्रेस लंबे अरसे से दूर है, यही कारण है कि कांग्रेस धीरे-धीरे कमजोर होती चली गई। साथ ही कांग्रेस नेताओं में बिखराव का भी आलम है। कांग्रेस का प्रयास होगा कि आने वाले चुनावों में बिहार जैसा दोहराव न हो, जिससे पार्टी की फिर किरकिरी हो, क्योंकि केवल एक ही नतीजे के बाद जनता के मन में कांग्रेस की साख पर असर पड़ने संबंधी तमाम तरह की बातें चर्चा का विषय बना हुआ है। हालांकि यहां यह भी विचार करने की जरूरत है कि किस तरह केन्द्र में सुप्तप्राय हो गई कांग्रेस को सोनिया गांधी ने उबारा और लगातार दो बार यूपीए गठबंधन की सरकार बनाने में सफल रहीं। लोकसभा चुनावों में राहुल गांधी के प्रचार तथा युवाओं को जोड़ने का लाभ भी कांग्रेस को मिला था। ऐसे में यह भी कयास लगाना गलत नहीं है कि कांग्रेस की सत्ता में लौटने की पूर्ण क्षमता है, भले ही वह मुश्किल हो, लेकिन नामुमकिन नहीं हो सकती। इसी आस को लेकर शायद, कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी लगातार दौरे कर रहे हैं और युवा कार्यकर्ताओं समेत सभी वर्ग के लोगांे से मिलकर भांप रहे हैं कि किस तरह कांग्रेस को सशक्त बनाया जाए और आने वाले विधानसभा चुनावों में जीत हासिल कर कांग्रेस की सरकार बनाई जाए।
बिहार के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपने दम पर चुनाव लड़े और सभी 243 सीटों पर उम्मीद्वार खड़े किए गए। कांग्रेस आलाकमान तथा यूपीए प्रमुख श्रीमती सोनिया गांधी का कहना था कि बिहार में पार्टी, नए सिरे से अपना जनाधार बनाएगी। इसी के साथ खुद सोनिया गांधी ने चुनाव की कई सभाएं लीं। साथ ही कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी और प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने भी दर्जनों सभाएं लीं, लेकिन कांग्रेस के हितों की दृश्टि से देखें तो इन सभाओं में पहुंची हजारों की भीड़, वोटों में नहीं बदलीं। नतीजा यह रहा कि बिहार चुनाव में कांग्रेस दूर-दूर तक नहीं ठहरी। पिछले चुनाव में कांग्रेस को 9 सीटें हासिल हुई थीं, लेकिन इस चुनाव में तो कांग्रेस प्रत्याशी हाथ मलते रह गए और पार्टी के खाते में केवल चार सीटें ही आ सकीं। यहां गौर करने वाली बात यह है कि बिहार चुनाव के प्रचार शुरू होने के पहले कांग्रेस यह कह रही थी कि प्रदेश में विकास नहीं हुए और जो हुए, वह केन्द्र सरकार की योजना की राशि से हुए। इन बातों के भावार्थ समझें तो यही कहा जा सकता है कि किसी तरह विपक्षी पार्टी, विकास होने की बात तो मान रही है। बिहार की जनता की सोच तो तरक्की की है और उन्हें उन बातों से क्या लेना-देना, कि किस सरकार के फण्ड से विकास के कार्य हो रहे हैं। इसके इतर जनता को केवल विकास होते दिखना चाहिए।
बिहार चुनाव के परिणाम के अलावा कांग्रेस के हालात का जायजा लें तो कांग्रेस, राज्य में जदयू-भाजपा गठबंधन के आगे कहीं नहीं ठहरी। चुनावी नतीजे आते ही वैसे भी यूपीए प्रमुख श्रीमती सोनिया गांधी ने यह कहा कि हम शून्य से शुरूआत करेंगे, लेकिन यहां एक बात सोचने पर विवश करती है कि पिछले बरस कांग्रेस की चुनावी जीत जारी रही और कई राज्यों मंे कांग्रेस की सरकार बनीं, लेकिन यहां सवाल यही है कि आखिर इतनी माथा-पच्ची चुनाव में करने के बाद भी क्यों कांग्रेस की सीटों में इजाफा नहीं हुआ ? ऐसे नतीजे की उम्मीद शायद सोनिया गांधी, राहुल गांधी तथा डा. मनमोहन सिंह को नहीं रही होगी, क्योंकि यह तो कांग्रेस के चुनावी इतिहास में इसे अब तक की सबसे बड़ी बदहाली कही जा सकती है, क्योंकि जो सीटें मिली हुई थीं, उसे भी कांग्रेस नहीं बचा सकीं।
बिहार चुनाव के परिणाम के बाद राहुल गांधी के नाम पर सिर चढ़कर बोलने वाले जादू की चर्चा राजनीति जानकारों के बीच खूब हो रही है, क्योंकि आने वाले साल में आधा दर्जन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इसमें सबसे अहम है, उत्तरप्रदेश का चुनाव। भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश पर पार्टी की निगाहें इसलिए ज्यादा टिकी हुई हैं, क्योंकि बरसों से यहां कांग्रेस सत्ता में नहीं लौट सकी है। यही कारण है कि कांग्रेस की चिंता ज्यादा नजर आ रही है। उत्तरप्रदेश के रायबरेली और अमेठी से श्रीमती सोनिया गांधी तथा राहुल गांधी सांसद हैं। यहां कांग्रेस के कुछ बड़े नेता चुनाव जरूर जीत रहे हैं, मगर इससे कांग्रेस की हालत में कोई सुधार नहीं हो रहा है। आगामी कुछ महीनों में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर राहुल गांधी, लगातार उत्तरप्रदेश के दौरे कर रहे हैं और दलितों के घरों में जाकर खाना खा रहे हैं। इस तरह लगता है, राहुल गांधी की कोशिश सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला आजमाने की भी है, जिसमें वे कुछ हद तक सफल भी हुए हैं, लेकिन क्या यह सब प्रयास वोट में बदल पाएंगे, क्योंकि बिहार विधानसभा के नतीजे ने कांग्रेस को फंूक-फूंककर कदम रखने पर मजबूर कर दिया है।
यह बात तो सही है कि कांग्रेस के पास फिलहाल सोनिया गांधी और राहुल गांधी के सिवाय कोई और चेहरे नहीं है, जिसके नाम पर जनता से वोट मांगे जा सकें, किन्तु सवाल यहां यही है कि कांग्रेस की चुनावी वैतरणी पार इन चेहरों के सहारे नहीं हो रही है तो आने वाले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस कौन सी रणनीति अपनाएगी, यह देखने वाली बात होगी। कांग्रेस ने राहुल गांधी की छवि को भुनाने की कोशिश लगातार बीते साल हुए चुनावों में की, लेकिन आखिर उनका जादू अब क्यों नहीं चल रहा है ? हालांकि कई जानकार यह भी कह रहे हैं कि बिहार के राजनीतिक हालात अलग थे, जिसके कारण कांग्रेस का प्रदर्शन ठीक नहीं रहा, लेकिन प्रश्न यहां भी वही है कि ऐसे में उत्तरप्रदेश में देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी, कैसे अपना परचम फहरा पाएगी, क्योंकि बिहार जैसे हालात उत्तरप्रदेश में भी कांग्रेस के हैं।
उत्तरप्रदेश की सत्ता से कांग्रेस लंबे अरसे से दूर है, यही कारण है कि कांग्रेस धीरे-धीरे कमजोर होती चली गई। साथ ही कांग्रेस नेताओं में बिखराव का भी आलम है। कांग्रेस का प्रयास होगा कि आने वाले चुनावों में बिहार जैसा दोहराव न हो, जिससे पार्टी की फिर किरकिरी हो, क्योंकि केवल एक ही नतीजे के बाद जनता के मन में कांग्रेस की साख पर असर पड़ने संबंधी तमाम तरह की बातें चर्चा का विषय बना हुआ है। हालांकि यहां यह भी विचार करने की जरूरत है कि किस तरह केन्द्र में सुप्तप्राय हो गई कांग्रेस को सोनिया गांधी ने उबारा और लगातार दो बार यूपीए गठबंधन की सरकार बनाने में सफल रहीं। लोकसभा चुनावों में राहुल गांधी के प्रचार तथा युवाओं को जोड़ने का लाभ भी कांग्रेस को मिला था। ऐसे में यह भी कयास लगाना गलत नहीं है कि कांग्रेस की सत्ता में लौटने की पूर्ण क्षमता है, भले ही वह मुश्किल हो, लेकिन नामुमकिन नहीं हो सकती। इसी आस को लेकर शायद, कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी लगातार दौरे कर रहे हैं और युवा कार्यकर्ताओं समेत सभी वर्ग के लोगांे से मिलकर भांप रहे हैं कि किस तरह कांग्रेस को सशक्त बनाया जाए और आने वाले विधानसभा चुनावों में जीत हासिल कर कांग्रेस की सरकार बनाई जाए।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें