सोमवार, 27 दिसंबर 2010

महंगाई और दावे पर दावे

देश की सबसे बड़ी समस्या महंगाई ने बीते कुछ बरसों से इस कदर लोगों की फजीहत खड़ी की है, उससे घर का बजट ही बिगड़ गया है। हाल की महंगाई ने तो लोगों के कलेजे, चबड़े पर ला दिया है। जिस तरह देश में विकास का सूचकांक बढ़ने का दावा किया जा रहा है, उस लिहाज से महंगाई कई गुना ज्यादा बढ़ रही है और सरकार है कि दावे पर दावे किए जा रही है। एक बार फिर महंगाई के सुरसा ने मुंह फाड़ा तो जैसे-तैसे सरकार यह कह रही है कि मार्च तक महंगाई पर काबू पा लिया जाएगा, मगर यहां सवाल यही है कि इससे पहले सरकार ने कई बार जो दावे किए थे, उसका क्या हुआ ? फिलहाल महंगाई पूरे चरम पर है, किन्तु अभी जिस तरह से प्यास ने सूखी आंखों को भी रूला दिया है और टमाटर के लाल होते तेवर ने आम लोगों की मुश्किलों को बढ़ा दिया है, उससे भी सरकार गंभीर दिखाई नहीं दे रही है। आलम यह है कि चीजों के बढ़े हुए दाम इस सर्द मौसम में भी लोगांे के पसीने निकाल रहा है।
वैसे तो सरकार की नीतियों को ही अर्थशास्त्र के जानकार महंगाई के लिए जिम्मेदार मान रहे हैं। स्थिति को देखकर ऐसा लगता भी है, क्योंकि जब कभी महंगाई बढ़ती है, उससे पहले कृषिमंत्री शरद पवार के बेतुके बयान मीडिया में आते हैं। इसके बाद यूपीए-2 के मुखिया प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह की चुप्पी भी देखने लायक रहती है। ऐसे हालात में महंगाई की मार से केवल वह आम जनता ही पिसती है, जिसके नाम का नारा देकर यूपीए की यह सरकार सत्ता में दूसरी बार बैठी है, लेकिन सत्ता के मद में लगता है कि सरकार उन वादों को भूले नजर आ रही है। यदि ऐसा नहीं होता तो सरकार, महंगाई से निपटने कोई कारगर नीति जरूर बनाती और विशेषज्ञों की राय लेकर महंगाई से पार पाने की सार्थक कोशिश करती।
महंगाई की बयार में आम जनता आज से ही प्रभावित नहीं है। महंगाई की आग धीरे-धीरे देश की अर्थव्यवस्था को तहस-नहस करने में कई बरसों से लगी है। शुरूआती दौर में ही कोई प्रयास होता तो उस दौरान काफी हद देश की इस बड़ी समस्या से निपटने में आसानी होती। आज हालात बदले हुए हैं, ठीक है विकास तेज गति से हो रहा है, परंतु सरकार को यह भी समझने की जरूरत है कि विकास तो आम जनता तक नहीं पहुंच रहा है, कई योजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रही है, साथ ही देश में घोटाले पर घोटाले हो रहे हैं और आम जनता की गाढ़ी कमाई सफेदपोश चेहरों के घरों की तिजोरियों की शोभा बनती जा रही है और देश के उन आम लोगों को क्या मिल रहा है, केवल महंगाई। देश के करदाता तो वही आम लोग हैं, जिनके रहमो-करम पर सरकार चलती है और वही नीति-नियंता सत्ता पर काबिज हैं, जो इन्हीं आम लोगों पर महंगाई जैसा बोझ लादने में भी नहीं झिझक रहे हैं। महंगाई की मार यदि कोई झेल रहा है तो वह है, आम लोग, क्योंकि देश में विकास की जितनी भी बातें की जाएं, लेकिन यह भी सच है कि देश के एक बड़ी आबादी के रोजाना की आमदनी महज 20 रूपये है। ऐसे में महंगाई के कारण उन पर कैसी मुसीबत बीते कई बरसों से बनी हुई है, इसे सहज तौर पर समझा जा सकता है। सरकार केवल विकास का ढोल पिट रही है और यह कहते नहीं थक रही है कि उसका हाथ, उन अंतिम तबके के लोगों के साथ है, जो विकास से अछूते हैं या कहें कि जिनके तक योजनाओं की चमक नहीं पहुंच सकी है। क्या यह बात किसी से छिपी है कि योजनाओं की एक बड़ी राशि कहां चली जाती है और किसकी जेबें गरम होती हैं ? नेता और अफसर, योजनाओं के क्रियान्वयन में हस्तक्षेप कर इस तरह से राशि का बंदरबाट करते हैं कि जो पात्र लोग होते हैं, उन्हें योजना का कोई लाभ नहीं मिलता और ऐसे लोग योजना का लाभ उठाते हैं, जो योजना के कायदों के लिहाज से अपेक्षित नहीं होते। यहां यह कहना जरूरी है कि ऐसे लोगों की इतनी हिम्मत नहीं कि योजनाओं का गलत तरह से लाभ ले ? इन लोगों को सह दिया जाता है, उन नेताओं व अफसरों द्वारा, जो योजनाओं के क्रियान्वयन में किसी तरह से अड़ंगा लगाने से बाज नहीं आते।
महंगाई को लेकर सरकार कहां है, यह पता ही नहीं चलता, क्योंकि उनके बयान तो ऐसे आते हैं, जिससे लगता है कि वे आम जनता के साथ ही नहीं है ? उनके बयानों से ही लगता है कि जैसे आम लोग उनके सौतेले हैं। अभी जब प्याज की दर में करीब डेढ़ गुना वृद्धि होने के बाद जहां प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने यह कहा कि आगामी कुछ महीनों में महंगाई पर लगाम लगा ली जाएगी। हालांकि उनका यह वक्तव्य इसलिए लोगों के गले नहीं उतरा, क्योंकि इससे पहले भी कई दफे ऐसे मुगालते में वे आम लोगों को रख चुके हैं। देश में जब-जब महंगाई बढ़ती है, उसके बाद प्रधानमंत्री यह कहने से परे नहीं रहते कि महंगाई जल्द खत्म हो जाएगी, परंतु यहां प्रश्न यही उठता है कि आखिर हमारे अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री की कोई नीति क्यों काम नहीं रही है ? प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह, जब कांग्रेस की नरसिंह राव सरकार में वित्तमंत्री रहते कई तरह की आर्थिक नीतियों को बनाने में कामयाब रहे, लेकिन आज क्या हालात बन गए कि महंगाई से निपटने नीति बनाने में वे लगातार मात खा रहे हैं ?
एक बात और विपक्ष तथा अर्थशास्त्र के जानकारों का कहना है कि देश में जमाखोरों, घोटालों और मुनाफाखोरों पर बिना लगाम लगाए महंगाई पर काबू नहीं पाया जा सकता। यह एक तरह से सही भी लगता है कि क्योंकि सरकार जमाखोरों पर कार्रवाई करने के बजाय केवल इतना कहती है कि महंगाई की मार कुछ महीने और झेलनी पड़ेगी। जाहिर सी बात है कि मुनाफाखोरों को घर बैठे कमाई का नायाब तरीका मिल जाता है। इस मामले में देश के कृषिमंत्री शरद पवार खासे माहिर माने जाते हैं, क्योंकि उन्होंने बीते दो बरसों में जितनी बार अपने मुंह खोले, उतनी बार महंगाई ने उंची छलांग लगाई। एक समय चीनी की कमी की बात कही गई तो चीनी के दाम कई गुना बढ़ गए। फिर दाल की बारी आई और वह भी लोगों की थाली से ही दूर हो गई। आम जरूरत की हर चीजों की दर आसमान छू रही है और सरकार केवल बेबस नजर आ रही है। हालांकि जानकारों की मानें तो सरकार, बाजार से कम बेबस है, बल्कि उन जमाखोरों व मुनाफाखोरों के सामने ज्यादा बेबस नजर आ रही है। यदि ऐसा नहीं होता तो महंगाई रोकने सरकार कड़े कदम उठाती और देश भर में जमाखोरों के खिलाफ अभियान चलाकर कार्रवाई करती। यह बात अधिकतर तौर पर जब महंगाई बढ़ती है, तब कही जाती है कि जैसे ही किसी चीज का बाजार में आवक कम होता है, उसके बाद उसका दाम एकाएक बढ़ जाता है। महंगाई के कारण आम लोग ज्यादा पिस रहे हैं, क्योंकि जितने दाम में प्याज बिक रहा है, उतनी आमदनी उनकी दिन भर में नहीं होती। ऐसे में प्रश्न सरकार के समक्ष यही है कि आखिर क्यों उन्हें आम लोगों की थोड़ी भी फिक्र नहीं है ? सरकार केवल दावे पर दावे किए जा रही है और उन दावों के बाद जमाखोर ही मुनाफा कमा रहे हैं। इन परिस्थितियों में आम जनता तो बेचारी बनकर रह जा रही है। लगता है कि सरकार के कारिंदे भी उन आम लोगों से कोई सरोकार नहीं रखते, तभी तो सत्ता में काबिज होने के बाद वे ही जनता के हितों पर गुलाटी मारने से बाज नहीं आ रहे हैं।

1 टिप्पणी:

Ashish ने कहा…

महाराष्ट्र माझा नामक एक वेबसाईट पे Most Corrupt Indian -२०१० के लिए मतदान चल रहा है, उसमे शरद पवार साहब को सब से ज्यादा वोट्स मिल रहे है, देखते है अखिर मैं कोन जितता है, भ्रष्टाचारी तो सब है लेकिन उन सबके बाप का खिताब जनता किसे देती है येह देखना रोमांचकारी होगा.