कामनवेल्थ गेम्स से जैसे विवादों और भ्रस्टाचारका नाता पूरी तरह से जुड़ गया है। आयोजन के कर्ताधर्ता सुरेश कलमाड़ी चौतरफा घिरे है। बावजूद उनके द्वारा जिस तरह के बयान दिए जा रहे है, उसे उनकी गैर जवाबदेही ही करार दी जा सकती है। कामनवेल्थ गेम्स के आयोजन को महज एक दिन ही बचे हैं और खेलगांव में जिस तरह अव्यवस्था की बात सामने आ रही है, वह खिलाडियों के हित में कदापि नहीं है। खेलगांव में साँपों ने भी सिरदर्दी बाधा दी है, क्योंकि ऐसा शायद ही कोई दी गुजर रहा है, जब वहां सांप न निकल रहे हों। सुरेश कलमाड़ी पर अब तक चौतरफा आरोप ला चुके हैं। पूर्व खेल मंत्री मणिशंकर अय्यर ने जैसा आरोप खेल की व्यवस्थाओं तथा गड़बड़ियों को लेकार गलाया है, उस पर ना तो केंद्र सरकार ने संज्ञान लिया और ना ही दिल्ली की शिला दीक्षित सरकार ने। कुल -मिलकर कलमाड़ी का बल्ले है। देश की कमान संभल रहे प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह जैसे साफ छवि के व्यक्ति ने भी भ्रस्टाचार की शिकायत के बाद भी कोई हस्तक्षेप नहीं किया, ऐसे में केंद्र सरकार की भूमिका पर भी सवाल खड़े होते हैं। देश के खेलमंत्री श्री गिल ने भी चुप्पी साध रखी है। साथ ही कई बड़े नेता भी क्यों इन भ्रस्टाचार के खुलासे के बाद भी मुंह नहीं खोल रहे हैं, इसे समझा जा सकता है।
कामनवेल्थ गेम्स में तमाम भ्रस्टाचार के आरोप के बाद भी कलमाड़ी का यह कहना की खेल के समापन के बाद हालत सुधर जायेंगे और उनके कार्य को समझ लिया जायेगा। भला इतने आरोप और घटिया निर्माण की पोल खुलने के बाद भी आखिर कलमानी ने इतनी आश किसके शाह पर राखी है। जनता के पैसे को इस तरह पानी की तरह बहाया जा रहा है और जनता है की महंगाई के कारन परेशां है। खिलाडियों के विकास के कामनवेल्थ गेम्स का आयोजन करने की बात सरकार और उसके नुमैन्दे करते आ रहे हैं, ऐसे सवाल यही है की इतने भ्रस्टाचार के बाद भी क्या लगता है की खेलों का विकास होगा और खिलाडियों इस आयोजन से लाभ होगा। हमारा तो मन्ना है की इस आयोजन से केवल सुरेश कलमानी तथा उसके जैसे अजगर का ही पेट भर सकता है। ऐसा नहीं होता तो वे भारत के गौरव के लिए आयोजित किये जा रहे कामनवेल्थ गेम्स जैसे आयोजन में जनता के पैसे का बंदरबाट नहीं होता।
भले ही प्रधानमंत्री चुप हों। लेकिन उसी सरकार के मंत्री और आई सी सी अध्यक्ष शरद पवार ने भी सुरेश कलमानी की कार्यप्रणाली को आड़े हाथों लिया है और भार्स्ताचार पर रिक लगाने की बात कही है। मीडिया में भी रोज कामनवेल्थ गेम्स को लेकार कई रिपोर्ट आ रही है। बावजूद सरकार इन कमियों को दूर करने कोई कदम उठते नहीं दिख रही है। ऐसे में सरकार पर ही ऊँगली ना उठे तो कैसे।
अभी टी ऐसा लगता है, जैसे कामनवेल्थ गेम्स के नाम पर विवादों की यह तो एक शुरुआत भर लगता है, क्योंकि जब खेल ख़त्म हो जायेगा तो एक फिर कामनवेल्थ के नाम पर हुए भ्रस्टाचार का विवाद एक बार फिर गहराने के आसार हैं।
शनिवार, 2 अक्तूबर 2010
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