रविवार, 26 सितंबर 2010
सुलगता काश्मीर और सरकार
भारत का स्वर्ग कहा जाने वाला प्रदेश काश्मीर पिछले कुछ माह से सुलग रहा है। काश्मीर में छाई अलगाववादी ताकतों के कारण वहां के बाशिंदों का जीना दूभर हो गया है। ऐसी घिनौनी ताकतों को न कश्मीर की सरकार रोक पा रही है और ना ही केंद्र में बैठी मनमोहन की सरकार। जम्मू काश्मीर के मुख्यमंत्री श्री अब्दुल्ला भी इन अलगाववादियों पर लगाम नहीं लगा पा रहा है। यह एक अफसोसजनक पहलू है। प्रदेश में युवा मुख्यमंत्री के कुर्सी सँभालने के बाद जम्मू-काश्मीर के लोगों को लगा था क़ि राज्य में अलगाववादियों पर बंदिश लगेगी, लेकिन उनकी सोच पर तब आघात लगी, जब वे अभी प्रदेश में हालात बिगड़ने के बाद एक कमजोर मुख्यमंत्री साबित हुए हैं। प्रदेश में पहले उनके पिता भी मुख्यमंत्री रह चुके हैं, ऐसे में माना जा रहा था क़ि वे किसी तरह राज्य क़ि स्थिति पर नियंत्रण कर लेंगे। पर ऐसा हुआ नहीं, उलटे जिस तरह से दिनों-दिन काश्मीर में हालात बिगड़ रहें हैं, उससे सरकार क़ि क्षमता पर कई सवाल खड़े हो गए हैं। केंद्र में बैठे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी काश्मीर क़ि स्थिति सुधारने में कामयाब नहीं हो सके हैं। उनहोंने शान्ति बहाली की अपील की हैं, वही एक उपलब्धि नजर आती है। अभी हाल में केंद्र सरकार द्वारा छात्रों क़ि रिहाई का महत्वपूर्ण फैश्ला किया है। जिसका विपक्ष भाजपा ने भी स्वागत किया है। जो भी हो, काश्मीर के हालात में सुधार के लिए सभी को मिलकर प्रयास करना चाहिए।
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