मंगलवार, 24 जून 2014

बातों-बातों में...

बड़े साहब से कम नहीं ये...
जिले में बड़ा साहब कौन होता है, सभी को मालूम है, लेकिन उनके अधीनस्थ काम करने वाले वे दो महानुभाव भी ‘बड़े साहब’ से कम नहीं हैं। दरअसल, इन दोनों महानुभावों को बड़ा से बड़ा अफसर भी तवज्जों देने में कोई कमी नहीं करता। वजह साफ है कि बड़े साहब के ये सबसे नजदीक होते हैं। लिहाजा, सभी बड़े अधिकारी भी इन दोनों महानुभावों को बड़े अदब से बात करते हैं और बड़े साहब से मिलने के पहले इन्हीं महानुभावों की रहनुमाई जो होती है। वैसे, ये तो हैं अदने से कर्मचारी, मगर चलती इनकी है, अफसरों से ज्यादा। तभी तो मजाल है कि कोई बड़ा से बड़ा अफसर, इनके सुर में सुर न मिलाए ? ऐसा क्यों होता है, यह सीधे तौर पर समझ में आता है। खैर, कहने वाले तो यही कहते हैं कि ये दोनों महानुभाव ‘बड़े साहब’ से कम नहीं हैं ?

इनके तो बल्ले-बल्ले
कामधाम दिलाने वाले साहब इन दिनों चर्चा में है। वजह कई हैं। ऐसा लगता है, जैसे साहब का अपने विभाग में काम ही नहीं है। तभी वे दूसरे कार्यों में उलझे नजर आते हैं। हालांकि, यह कौन जाने कि इसी उलझन में उनकी ‘सुलझन’ है। चर्चा का बाजार जोरों पर गर्म है कि कुछ वक्त से साहब ‘मलाई’ खा रहे हैं ? कारण साफ है कि जिस विभाग की पूरी जिम्मेदारी संभालते आ रहे हैं, वहां इतनी ज्यादा ‘मलाई’ नहीं है। शायद, इसी के चलते वे कुछ और कार्यों में भी दिलचस्पी लेने लगे हैं और बड़े साहब के ‘खासमखास’ बन गए हैं। लोगों की जुबान पर यही चर्चा है कि बड़े साहब से ट्यूनिंग के कारण, उनसे कुछ अफसर भी अब कुछ कहने से झंकने लगे हैं, कहीं कुछ कह गए तो लेने के देने न पड़ जाए ? इतना जरूर है कि साहब के इस समय मजे हैं, क्योंकि वे जैसा चाहते थे, सब कुछ वैसा ही हो रहा है।

युवा टीम से लगी आस
जिले में ऐसा पहली बार है, जब तीन ऐसे बड़े अफसरों की एक साथ पोस्टिंग हुई है, जो युवा और ऊर्जावान हैं। अहम बात यह है कि तीनों अफसरों की अपनी कार्यषैली है। माना जाता है कि प्रमोटिव, बेहतर परफार्मेंस नहीं दे पाते हैं, लेकिन ये तीनों अफसर ‘प्रमोटिव’ नहीं है। लिहाजा, इन अफसरों से काफी आस बंध गई है कि वे जिले को विकास की नई ऊंचाईयों तक पहुंचाएंगे। इस युवा टीम में काम करने का वह जुनून भी नजर आ रहा है, जिसकी अपेक्षा लोगों को है। खास बात यह है कि जिले के बड़े साहब तो पहले ही इस जिले में काम कर चुके हैं, उन्हें यहां की तासीर का भी पता है। कौन, कैसे हैं... कहां, क्या होता है... कौन, कितने पानी में है ? निष्चित ही, उन्हें भान है कि विकास के लिए उन्हें क्या करने होंगे ?

वे कब बनेंगे ‘बड़े नेता’ ?
एक नेता की ‘बड़े नेता’ बनने की चाहत बरसों से अधूरी है। वे दो-ढाई दषक से इसी चाहत के साथ लगे हैं कि एक न एक दिन उनकी बारी जरूर आएगी। जब भी इस नेता की ‘बड़े नेता’ बनने की बारी आती है, तब-तब कोई न कोई अड़गा हो ही जाता है। इस नेता महानुभाव के हाथ से हर बार ‘अवसर’ फिसल जाता है और उनमें इसकी टीस भी कायम है। तभी तो उनकी दिल की कसक कहीं न कहीं जुबां पर आ ही जाती है और वे कहने से नहीं हिचकते कि कास, उन्हें मौका मिला होता ?, तो पार्टी की आज जो ‘गत’ बिगड़ी है, वैसी न होती। देखते हैं कि हमारे वे प्यारे नेता कब तक ‘बड़े नेता’ बन पाते हैं ? बताते हैं कि उनकी एक ही आदत उन्हें मार गई कि वे खुद को सभी पर भारी मान बैठते हैं और यही गलती, वे ‘बड़े नेताओं’ से कर बैठते हैं, जिसका खामियाजा वे अब तक भोग रहे हैं।

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