सोमवार, 23 जून 2014

टिप्पणी- बेदर्द पुलिस, बेबस जनता

समाज में पुलिस की महती भूमिका है, मगर समाज में पुलिस की कैसी छवि है, यह किसी से छिपी नहीं है। अधिकतर ऐसे मामले सामने आते रहते हैं, जिसमें वर्दी दागदार होती रही है। पुलिस की छवि बदलने और आम लोगों के प्रति पुलिस का व्यवहार बेहतर करने की कोषिषें की जाती हैं, ताकि पुलिस के प्रति लोगों में बनी धारणा दूर हो, किन्तु यह महज दिखावटी खानापूर्ति ही साबित होती है और कुछ ही दिनों में ही पुलिस के ‘हमदर्द’ बनने की छवि खत्म हो जाती है। इसकी वजह कुछ ऐसी घटनाएं होती हैं, जो समाज के सामने आती हैं और फिर पता चलता है कि पुलिस, कितनी बेदर्द है ?
जांजगीर-चांपा जिले में भी पुलिस के बेदर्दपन की घटनाएं उजागर होती रही हैं। वैसे, पुलिस द्वारा कार्रवाई नहीं करने और दबंगों को संरक्षण देने की षिकायत तो आम है, परंतु कई  गंभीर मसलों पर भी पुलिस की कार्यप्रणाली कटघरे में खड़ी होती हैं। करीब पखवाड़े भर पहले, बिर्रा थाने के एक आरक्षक ने चार बच्चों और महिलाओं की इसकदर पिटाई की कि एक बच्चे के पैर और पेट में गंभीर चोटें आईं। उस आरक्षक ने वर्दी का इतना रौब दिखाया कि पिटाई से वे बच्चे और महिलाएं,  आज भी सदमे में हैं। पुलिसिया रूतबा का दंष आज भी वह परिवार झेल रहा है, क्योंकि गरीब परिवार के होने से, खाकी के दंभ के आगे वे बेबस ही नजर आए। उस आरक्षक ने इन बच्चों और महिलाओं की बेधड़क पिटाई यह कहते हुए की थी कि उसकी कार का कांच इन लोगों ने तोड़ा है, जबकि बच्चों ने ऐसा नहीं करना, बड़ी मासूमियत से बता दिया था। बिर्रा थाने के आरक्षक की कारगुजारी के बारे में पुलिस विभाग के आला अफसरों को जानकारी मिली तो आनन-फानन में उस दंभी आरक्षक को लाइन अटैच किया गया, मगर महिलाओं और ग्रामीणों की अन्य षिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई।
खास बात यह है कि जिले का यह पहला मामला नहीं है, इससे पहले भी पुलिस का बेदर्द चेहरा, और भी कइयों ने देखा है। कुछ साल पहले जैजैपुर थाने में हत्या की छानबीन कर रही पुलिस की टीम ने हिरासत में लेकर एक व्यक्ति की बेदम पिटाई की थी, जिसकी षिकायत के बाद कई टीआई और एसआई समेत अन्य पुलिसकर्मियों के खिलाफ विभागीय जांच चल रही है। यह जांच कब पूरी होगी और उन खाकीवालों पर क्या कार्रवाई होगी, बड़ा सवाल है ? पुलिसिया दंष के कारण आज वह व्यक्ति पूरी तरह से लाचार हो गया है। जिला अस्पताल से लेकर सिम्स और संभवतः रायपुर के बड़े अस्पताल में उसका इलाज चला, लेकिन उसका वह ‘दर्द’ दूर नहीं हुआ, जिसे ‘खाकी’ ने उसे दिया है।
ताजा मामला तो किसी को भी हिलाकर रख दे, क्योंकि एक महिला ने मालखरौदा पुलिस पर गैंगरेप की रिपोर्ट नहीं लिखने का आरोप लगाया है। इतना ही नहीं, थाना प्रभारी पर गाली-गलौज से लेकर आरोपियों के हवाले करने की भी षिकायत, बिलासपुर आईजी से की है। महत्वपूर्ण बात यह है कि इस मामले में मालखरौदा थाना प्रभारी ने खुद ही महिला का कैरेक्टर तय किया और जिन आरोपियों का नाम महिला ने बताया है, उन आरोपियों को खुला छोड़ दिया है। फिलहाल, पुलिस विभाग के आला अफसरों ने एसडीओपी को जांच का जिम्मा दिया है। अब देखना होगा कि महिला की षिकायत पर जांच के बाद क्या कार्रवाई होती है ?
विचारणीय बात यह है कि गैंगरेप जैसे मामले में भी पुलिस, इतनी असंवेदनषील क्यों नजर आती है ?, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने भी महिलाओं की षिकायत पर तत्काल कार्रवाई करने का आदेष दिया है। बावजूद, जिले की पुलिस को कोर्ट के आदेष की भी परवाह नहीं है। यही रवैये के कारण ही आम लोगों में पुलिस की अच्छी छवि नहीं बन रही है। ऐसे में पुलिस महकमा को आम लोगों का विष्वास जीतने के लिए अपराध और अपराधी को संरक्षण देने के बजाय, इन पर सख्ती से से कार्रवाई करना चाहिए, तब कहीं जाकर ‘पुलिस मित्र’ की संकल्पना साकार हो सकेगी।

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