गुरुवार, 3 जुलाई 2014

टिप्प्णी- छवि सुधारने की फिक्र, किसे ?

निःसंदेह, पुलिस का नाम सुनते ही सामान्य लोगों के पसीने छूट जाते हैं, परंतु यह भी कटु सत्य है कि समाज के विकास में बाधक बने बदमाषों को पुलिस से नहीं डर लगता। समय-समय पर ऐसी बातें उजागर होती रहती हैं। कई बार थानों में बादमाषों की आवभगत भी होती है। बड़े से बड़े अपराधों में लिप्त बदमाषों को पुलिस, पूरी सुविधा देती है, मगर एक सामान्य व्यक्ति कभी भूल से कोई गलती कर बैठता तो, पुलिस उन जैसों से अपराधियों जैसा बर्ताव करने से पीछे नहीं हटती।
पुलिस की छवि सुधरने के बजाय, उल्टे दिनों-दिन बिगड़ती जा रही है। मानवाधिकार आयोग में भी पुलिसिया कहर के कई मामले पहुंचते हैं, फिर भी पुलिस के बर्ताव पर कोई फर्क नहीं पड़ता। आलम यह है कि पुलिसिया कार्यप्रणाली पर आए दिन सवाल खड़े होते रहते हैं।
जांजगीर-चांपा जिले में भी पुलिसिया जांच और कार्रवाई पर ऊंगली उठती रही है। हाल में जिले की पुलिस ने एक बड़ी चोरी का खुलासा किया। मामले में पुलिस ने चोरी के 5 आरोपी और 1 व्यक्ति को खरीददार बताकर गिरफ्तार किया। ये सभी आरोपी देवार जाति के थे। पुलिस ने 15 चोरियों के खुलासे को अंतर्राज्यीय करार दिया, जबकि ये आरोपी बलौदाबाजार जिले के रहने वाले हैं ? पुलिस की जांच में षिवरीनारायण के एक व्यापारी का नाम आया था, जिसके द्वारा चोरी के सामान की खरीददारी की चर्चा रही। पुलिस ने उस व्यापारी से पूछताछ भी की और बाद में उसे छोड़ दिया। अहम बात यह है कि जिस देवार को खरीददार बताकर पुलिस ने आरोपी बनाया है, वह गरीब है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि वह हजारों-लाखों के जेवरात या अन्य सामग्रियों की खरीददारी, कैसे कर सकता है ? मीडिया ने इस पर सवाल भी उठाया, लेकिन पुलिस महकमा के अफसरों ने इसकी परवाह नहीं की। ऐसा लगता है कि पुलिस की बिगड़ती छवि से उन्हें कोई सरोकार ही नहीं है ? खास बात यही रही कि इस पूरी कार्रवाई में पुलिस विभाग के अफसरों के बयान भी अलग-अलग रहे और सभी एक-दूसरे पर जवाबदेही थोपते नजर आए। बड़े अफसरों ने जहां अपने मातहतों पर कार्रवाई की जिम्मेदारी थोपी तो मातहतों ने यह कहा कि उन्होंने वैसी ही कार्रवाई की, जैसा उन्हें बड़े अफसरों ने कहा।
दूसरी ओर पुलिस, जब भी जुआ के अड्डे पर धावा बोलती है और कार्रवाई करती है, उसमें रकम और सामग्री की बरामदगी पर सवाल जरूर खड़े होते हैं ? जहां लाखों रूपये का जुआ खेला जाता है, वहां पुलिस जब्ती महज कुछ हजार ही बताती है। साथ ही जुआरियों से सामग्री भी उस लिहाज से जब्त नहीं बताती है, जिसका सहज अनुमान लगाया जाता है। ऐसी कार्रवाई पुलिस जब भी करती है, मोबाइल या गाड़ियों की संख्या कम बतायी जाती है, जो किसी के गले नहीं उतरता। आज के समय में हर हाथ में एक नहीं, दो-तीन मोबाइल है, वैसी स्थिति में पुलिस मोबाइल की जब्ती, जुआरियों की संख्या से बहुत कम बताती है। आंकड़ों की इस कलाबाजी में पुलिस की कार्रवाई पर ऊंगली उठनी स्वाभाविक है ?
दो दिन पहले ही पुलिस ने जुआरियों पर कार्रवाई की। यहां थाना क्षेत्र विवाद के साथ ही, पुलिस में श्रेय लेने की होड़ भी मची रही। चर्चा यह रही कि जुआरी, मड़वा रोड में जुआ खेल रहे थे और पुलिस ने हनुमानधारा का क्षेत्र बताया। इतना ही नहीं, जुआ के अड्डे से नकद राषि की जो बरामदगी बतायी गई, उसके बारे में भी लोगों में चर्चा होती रही। लोगों के जेहन में यह सवाल बार-बार उठा कि लाखों के जुए के फड़ में आखिर कैसे महज 60 हजार बरामद हुए होंगे ? खैर, चर्चा को पुलिस पुख्ता नहीं मानती और पुलिस अपने हिसाब से कार्रवाई करती है, चाहे लोगों में जैसी भी प्रतिक्रिया हो ?
इधर, जिले की यातायात व्यवस्था का भगवान ही मालिक है। तीन दिन पहले ही चांपा इलाके में सड़क किनारे खड़े ट्रक से बाइक के टकराने से दो अभागे काल के गाल में अकाल समा गए। निष्चित ही इसके लिए यातायात दुरूस्त करने वाली पुलिस को ही जिम्मेदार मानी जा सकती है ? ऐसा नहीं है, सड़क किनारे किसी वाहन से टकाकर ऐसा हादसा पहली बार हुआ है। जिले में इससे पहले भीऐसे हादसों में कई लोग मौत के मुंह में जा चुके हैं, फिर भी यातायात की फिक्र करने की फुर्सत, पुलिस को नहीं है ? यातायात दुरूस्त करने पुलिस को चाहिए कि वह वाहन के चालकों को सख्त हिदायत दे कि वे किसी भी सूरत में सड़क किनारे गाड़ी खड़ी न करे। गाड़ी बिगड़ जाए तो रात्रि में रिफलेक्टर है या अन्य चमकीली वस्तुओं को गाड़ी के आगे-पीछे लगाएं, ताकि दुर्घटना के पहले, सामने से आ रहा व्यक्ति संभल जाए, लेकिन ऐसा नहीं होता। इस तरह की व्यवस्था बनाने पुलिस, घटनाओं के दो-चार दिन ही रूचि दिखाती है, उसके बाद वे अपने में ही मषगूल हो जाते हैं।
यातायात पुलिस की तो छवि इसकदर बिगड़ी है कि चौक-चौराहों में भी लेन-देन करने से बाज नहीं आती। यही वजह है कि कई पुलिसकर्मियों पर गाज भी गिरी है, मगर इन मामूली कार्रवाई से न तो व्यवस्था सुधरने वाली है और न ही पुलिस की छवि ? बिगड़ती छवि के लिए कई कड़े फैसले लेने के साथ ही, लोगों के विष्वास जितने के लिए भी पुलिस को अपनी कार्यप्रणाली में सुधार लाना होगा। इसके बाद ही लोगों में पुलिस के प्रति वह विष्वास कायम हो पाएगा, जिसकी कल्पना कर समाज में पुलिस को सुरक्षा की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई है। यह विडंबना ही है कि जिस पुलिस के कंधे पर ‘अवाम’ की सुरक्षा का दारोमदार है, उसी ‘अवाम’ को पुलिस से डर लगता है ?

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