अधिकतर यह बातें सामने आती रहती हैं कि भारत में पाश्चात्य संस्कृति हावी होती जा रही है और हम पश्चिमी देशों की संस्कृति को आधुनिकता के नाम पर अपना रहे हैं। साथ ही यह भी कहा जात है कि युुवा पीढ़ी में विदेशी संस्कृति का इस कदर बुखार चढ़ रहा है और वे धीरे-धीरे भारत की पुरातन संस्कृति को भूलती जा रही है। स्थिति यह बन रही है कि हमारी युवा पीढ़ी में भटकाव के हालात निर्मित हो रहे हैं। यह बातें भी अक्सर कही जाती हैं कि स्वस्थ तथा सशक्त समाज के निर्माण में युवा पीढ़ी का अहम योगदान होता है। ऐसे में जब हमारी नई पीढ़ी की पौध को नशाखोरी व धूम्रपान की लत, दीमक की तरह चाटने लगे तो फिर सरकार के साथ हम सब को जागने की जरूरत है और एक ऐसी जागरूकता का माहौल बनाया जाना चाहिए, जिससे नई पीढ़ी को नशाखोरी की गहरी खाई में गिरने से बचाया जा सके। एक बात और है कि हम आधुनिकता के नाम पर पाश्चात्य देशों की संस्कृति को अपनाने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं, ऐसे हालात में हमें उनसे भी कुछ सीखने व सबक लेने की जरूरत है।
हाल ही में दो महत्वपूर्ण बातें सामने आई है, जिसमें एक अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओसामा का धूम्रपान से तौबा करने की है तो दूसरी स्पेन की है। वैसे भी अमेरिका को दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्ति माना जाता है और यदि वहां के राष्ट्रपति कुछ ऐसा निर्णय ले, जिससे दुनिया के समाज में सकारात्मक संदेश जाए तो हमारा मानना है कि उससे आत्मसात करने व अपनाने में किसी तरह का गुरेज नहीं करना चाहिए। मीडिया में जिस तरह की बातों का खुलासा हुआ है, उसमें यह बताया गया है कि जब अमेरिका के राष्टपति पद का चुनाव हो रहा था, उस दौरान बराक ओबामा की पत्नी मिशेल ओबामा ने यह कहकर चुनाव प्रचार में भागीदारी निभाने की बात कही थी कि वे इसके बाद से धूम्रपान नहीं करेंगे। इस तरह बाद में चुनावी नतीजे बराक ओबामा के पक्ष में आए और वे चुनाव जीतकर दुनिया के शक्तिशाली देश के राष्ट्रपति बन गए और एक महाशक्ति के रूप में दुनिया के समक्ष उभरकर आए। उस दौरान ओबाम के धूम्रपान से तौबा करने संबंधी किसी तरह की कोई बातें या फिर रिपोर्ट मीडिया में नहीं आई, मगर कुछ ही दिनों पहले यह खुलासा किया गया कि बराक ओबामा धूम्रपान नहीं कर रहे हैं और मिशेल ओबामा से वायदे के बारे मंे बताया गया। निश्चित ही हमारी नजर में यह बहुत बड़ी बात है, क्योंकि दुनिया के नक्शे तथा कार्पोरेट जगत में बराक ओबामा एक ऐसा नाम है, जिसके आगे फिलहाल कोई ठहरता नहीं है। यहां यह भी बताना जरूरी है कि युवा पीढ़ी भी उनसे काफी कुछ सीखने की कोशिश करती है और दुनिया मे युवा पीढ़ी का एक बड़ा वर्ग बराक ओबामा के नक्शे कदम पर चलने की चाहत रखता है। पिछले माह जब अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा, भारत दौरे पर आए तो यहां उन्हें सुनने व उनके विचारों को जानने, युवा पीढ़ियों का हुजूम उमड़ पड़ा था। ऐसे में बराक ओबामा जैसा शख्स धूम्रपान से छुटकारा पा ले तो इस बात से हमारी युवा पीढ़ी को भी सीख लेनी चाहिए। यह बात सही है कि किसी उंचे ओहदे में बैठे व्यक्ति के कहे को हर वर्ग के लोग अधिकतर तौर पर स्वीकार करते हैं और उनके जैसे बनने की चाहत रखते हैं तो, क्यों न हम बराक ओबामा के उन गुणों से भी सीख लें, जिससे हमारा स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा और भारत भी सशक्त बनेगा, क्योंकि युवा ही नव भारत का रीढ़ है। इन बातों पर हमें गौर करने की जरूरत है।
दूसरी महत्वपूर्ण बात विदेशी धरती स्पेन से जुड़ी हुई है। स्पेन में धूम्रपान को लेकर एक कानून बना है, जिसके तहत यदि कोई व्यक्ति वहां सार्वजनिक स्थान पर धूम्रपान करता है तो इस अपराध के कारण उस व्यक्ति पर छह लाख यूरो अर्थात् साढ़े तीन करोड़ रूपये का जुर्माना किया जाता है। स्पेन के इस सख्त कानून से भी हमें सीख लेने की जरूरत है, क्योंकि भारत में कानून तो है, लेकिन उसके पालन करने लोगों में ही जागरूकता दिखाई नहीं देती है। एक बात तो सच है कि धूम्रपान कहीं भी किया जाए, वह स्वास्थ्य के लिए खतरनाक ही है। कई रिपोर्टों में भी इस बात की जानकारी सामने आ चुकी है। भारत में सार्वजनिक जगहों पर धूम्रपान करना मनाही है और इसके अपराध में कुछ जुर्माना भी तय है, लेकिन यहां सवाल यही है कि आखिर इस कानून के अनुपालन कराने सख्ती क्यों नहीं बरती जाती ? अक्सर देखने में आता है कि जहां धूम्रपान प्रतिबंध है, वहीं कुछ क्रुद्ध प्रवृत्ति के लोग उसी स्थान पर बड़े चाव से धूम्रपान तथा नशाखोरी करते हैं। यहां जिसका जब मन चाहे, जहां चाहे, धूम्रपान कर सकता है। कानून तो है, किन्तु इसका पालन कौन करे और कौन कराए ? बरसों से यह सवाल सरकार तथा समाज के समक्ष खड़ा है। भारत में सार्वजनिक जगहों पर धूम्रपान पर जुर्माना महज कुछ रूपये ही हैं, इसका नतीजा यह होता है कि कोई भी मनमानी करने लगता है, वैसे तो बहुत ही कम मामले जुर्माने के सामने आते हैं, यदि कोई पकड़ा गया तो उसके लिए भी जुर्माना की राशि चुकाना बहुत आसान होता है। ऐसी परिस्थिति से निपटने भारत सरकार को जहां सख्त कानून बनाना चाहिए, वहीं उसके पालन के लिए जरूरी नीतियां तय की जानी चाहिए।
यह बात सरकार तथा समाज के प्रबुद्ध वर्ग के लोगों को समझने की है कि किस तरह हमारी नई पीढ़ी नशाखोरी की गर्त में जाती जा रही है। एक वाक्या का यहां जिक्र करना चाहूंगा, क्योंकि इस मुद्दे के लिहाज से मुझे यह जरूरी लग रहा है। कुछ माह पहले मैं जांजगीर से रायपुर, टेªन से अपने निजी कार्य से जा रहा था। जिस सीट पर मैं बैठा था, ठीक उसके सामने करीब दस साल का एक बालक भी बैठा था। वह गुमशुम सा था और अपने में मस्त था। पहले मुझे लगा कि वह रात में पूरी नींद नहीं ले पाया होगा, इसलिए ऐसे हालात में है। बाद में उस बालक ने अपनी जेब में हाथ डाला और उसमें से कुछ चीजें निकालने लगा, मुझे लगा कि उसे भूख लगी होगी और वह कुछ खाने की वस्तु निकाल रहा है। यहां मैं यह देखकर दंग रह गया कि वह अपनी जेब से गुटखे की कुछ पाउच निकाला और मुंह में रखकर उसे चबाने लगा। मैंने उसे कहा कि गुटखे खाने से सेहत पर प्रभाव पड़ेगा, इस पर उसने कहा कि अब आदत बन गई है तो क्या करें ? इसके बाद तो मैं निरूत्तर रह गया, लेकिन हमारे सामने उस बालक ने कई सवाल छोड़ दिया, जिस पर हमें मनन करने की आवश्यकता है। यह बातें कही जाती है कि विदेशों में टैफिक सेंस भी बेहतर माना जाता है और इस मामले में भी सख्ती बरती जाती है। टैªफिक के लिहाज से भी भारत में न तो कोई जागरूकता है और न ही कानून में सख्ती है। यही कारण है कि सड़क दुर्घटनाओं में कई गुना वृद्धि होती जा रही है। दुर्घटनाओं को लेकर नशाखोरी व शराबखोरी एक बड़ा कारण बनकर सामने आ रहा है। इससे भी निपटने की ठोस नीति बनाने के साथ ही, जागरूकता बढ़ाए जाने का प्रयास किया जाना चाहिए।
इन हालातों में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के धूम्रपान नहीं करने के निर्णय तथा स्पेन की सार्वजनिक जगहों पर धूम्रपान करने वालों पर सख्ती बरते जाने के प्रयास को बेहतर ही कहा जा सकता है। भारत की नई पीढ़ी को इन बातों से सीख लेनी चाहिए, क्योंकि जब हम उनसे या उनकी संस्कृतियों को काफी हद तक आत्मसात किए हुए हैं तो उनके सकारात्मक प्रयासों को अपनाने के साथ, उसकी तारीफ भी होनी चाहिए। अंत में यही कहा जा सकता है कि उनसे हम ये भी सीखें।
रविवार, 9 जनवरी 2011
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