शुक्रवार, 8 जुलाई 2011

हारा रसूखदार फरेबी, जीते आदिवासी किसान

छत्तीसगढ़, राज्य वैसे तो सरप्लस बिजली के लिए पूरे देश में जाना जाता है। बावजूद प्रदेश की रमन सरकार पॉवर प्लांट लगाने के लिए एमओयू पर एमओयू करती जा रही है। खासकर, कृषि प्रधान जांजगीर-चांपा जिले के लिए सरकार का यह निर्णय विनाशकारी साबित हो रहा है, क्योंकि अकेले इसी जिले में सरकार ने 34 पॉवर प्लांट कंपनियों को निवेश का न्यौता दिया है। ऐसे में जांजगीर-चांपा जिले में प्रदूषण की समस्या कितनी भयावह हो सकती है, इसे सोचकर ही यहां के रहवासी सिहर उठते हैं। यही कारण है कि जिले में कई जगहों में लगने वाले पॉवर प्लांटों के लिए विरोध का स्वर मुखर हैं, फिर भी सरकार की मंशा किसानों के हितों के खिलाफ ही नजर आती है। जिले में अभी तक कई पॉवर प्लांटों की जनसुनवाई हो चुकी है, उसी दौरान से ही किसान विरोध करते आ रहे हैं, लेकिन इन बातों से सरकार को कहां परवाह हो सकती है ? इसी के चलते पॉवर प्लांट प्रबंधन, मनमानी पर उतर आए हैं।
पॉवर प्लांट लगाने के नाम पर घपलेबाजी की एक बानगी कुछ दिनों पहले सामने आई है। दरअसल, विडियोकॉन कंपनी द्वारा नवागढ़ विकासखंड के आधा दर्जन गांवों गाड़ापाली, अकलतरी, भादा, केवा तथा गौद में 12 सौ मेगावाट का पॉवर प्लांट लगाने जा रही है, इसके लिए जमीन की खरीदी की जा रही है। पॉवर प्लांट के लिए 960 एकड़ जमीन की जरूरत है, इसमें कंपनी, करीब आधे से अधिक भूमि की खरीदी कर चुकी है। इसी बीच गृहमंत्री ननकीराम कंवर के बेटे संदीप कंवर द्वारा विडियोकॉन कंपनी को भूमि हस्तांक्षरित करने की नीयत से आदिवासियों की 13.65 एकड़ जमीन बहुत ही कम दर पर छल करते हुए खरीदी की गई थी। महत्वपूर्ण बात यह है कि गृहमंत्री का बेटा संदीप, विडियोकॉन कंपनी में बतौर जनसंपर्क अधिकारी काम करता है। कंपनी प्रबंधन के अफसरों ने शातिराना दिमाग दौड़ाते हुए संदीप के नाम पर आदिवासी किसानों की जमीन खरीदने की जुगाड़ जमाई और इसमें वे सफल भी हो गए और नवागढ़ विकासखंड के ग्राम गाड़ापाली, गौद तथा भादा आदि गांवों के आदिवासी किसानों से 13.65 एकड़ जमीन खरीदी की गई थी। संदीप कंवर ने शासन के एक नियम का फायदा उठाते हुए यहां ऐसा किया था, जिसके तहत कोई आदिवासी ही किसी आदिवासी की जमीन खरीद सकता है। आदिवासी किसानों की कीमती जमीन को औने-पौने दाम पर छलकर खरीदे जाने की चर्चा, महीनों पहले से थी, मगर इस बात का किसी तरह खुलासा नहीं हो पा रहा था। आखिरकार देर से ही सही, इस कारनामे का खुलासा हो ही गया।
बताया तो यहां तक जाता है कि संदीप कंवर को उनके पिता के ओहदे के चलते, कुछ जिले के अफसर सहयोग भी कर रहे थे, हालांकि इस बात का खुलासा नहीं हुआ है, मगर इतना जरूर है कि जैसे ही संदीप द्वारा आदिवासी किसानों की जमीन विडियोकॉन कंपनी के लिए गलत तरीके से खरीदे जाने का मीडिया में खुलासा हुआ, उसके बाद फिर वे अपना हाथ खींचते नजर आए। खुद, गृहमंत्री ननकीराम कंवर ने मीडिया को अपने बयान में कहा कि उनका बेटा संदीप, लंबे अरसे से उनसे अलग रह रहा है और वह जिस कंपनी में कार्य करता है, उसके नाते जमीन खरीदी होगी। साथ ही उन्होंने उनके नाम घसीटे जाने पर कहा कि विपक्ष द्वारा उन्हें बदनाम किया जा रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि आदिवासी की जमीन आदिवासी खरीद सकता है और जब किसी को आपत्ति है या फिर कोई बात हो तो सक्षम अधिकारी को इसकी शिकायत की जा सकती है, फिर वे ही तय करेंगे कि गलत क्या है ?
मगर सवाल यहां यह है कि क्या, किसानों की जमीन को हड़पने की तर्ज पर कम दाम पर खरीदने की हिम्मत, कोई बिना रसूख या उंची पहुंच के जुटा सकता है ? भले ही कोई कितनी भी सफाई दे दे, किन्तु विडियोकॉन कंपनी प्रबंधन ने अपने स्वार्थ के लिए और उनके बड़े नाम को देखते हुए, संदीप को आदिवासी की जमीन खरीदने की जिम्मेदारी दी। दिलचस्प बात यह भी सामने आ रही है कि आदिवासियों की जो जमीन खरीदी की गई थी, उसका भुगतान चेक से विडियोकॉन कंपनी द्वारा किया गया है। ऐसे में यह तो तय हो गया कि संदीप कंवर के नाम पर विडियोकॉन कंपनी, आदिवासियों की जमीन खरीद रही थी।
इधर जून के अंत में जैसे ही गृहमंत्री के बेटे संदीप कंवर द्वारा आदिवासियों से छल कर पॉवर प्लांट के लिए जमीन खरीदने की बात उजागर हुई, उसके बाद राजनीतिक हल्कों में खलबली मच गई और फिर सरकार तक को जवाब देना पड़ गया। इस मामले को लेकर विपक्षी पार्टी कांग्रेस के नेताओं ने भी सरकार व गृहमंत्री के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और गृहमंत्री को बर्खास्त करने की मांग करते हुए राजधानी रायपुर में पैदल मार्च भी किया। इसके बाद कांग्रेस नेताओं ने राज्यपाल को ज्ञापन भी सौंपा, जिसमें आदिवासी किसानों पर हो रहे अन्याय के खिलाफ आवाज तो बुलंद की गई, साथ ही आदिवासी हितों को ध्यान में रखते हुए मामले में उचित कार्रवाई की मांग की गई।
दूसरी ओर मामले को बढ़ते देख मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने मीडिया के माध्यम से कहा कि किसानों का कहीं कोई अहित नहीं होने दिया जाएगा और प्रदेश में जहां भी ऐसी शिकायतें मिलेंगी, वहां किसानों को जमीन वापस लौटाने की पहल की जाएगी। मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद जिले के कलेक्टर ब्रजेश चंद्र मिश्र ने तत्काल कार्रवाई करते हुए सभी पक्षों को नोटिस जारी किया और जवाब देने के निर्देश दिए। इसके बाद संबंधित आदिवासी किसानों के बयान के बाद कलेक्टर ने छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता की धारा 165 (6) के तहत आदेश पारित किया कि जिन आदिवासियों की जमीन, संदीप कंवर द्वारा खरीदी की गई है, उन्हें वापस लौटाया जाए। इस तरह एक रसूखदार फरेबी की हार हुई और आखिरकार आदिवासी किसान जीत ही गए। हालांकि, अब देखना होगा कि आगे भी उन्हें जमीन का वाजिब दाम मिल पाता है कि नहीं ?
अब, जब कलेक्टर की कार्रवाई के बाद यह बात प्रमाणित हो गया है कि गृहमंत्री के बेटे संदीप कंवर द्वारा गलत तरीके से आदिवासियों की जमीन खरीदी की गई थी, उसके बाद तो फिर कांग्रेस का हल्लाबोल होना ही था। कांग्रेसी भी हाथ आए मुद्दे को भुनाने से कैसे चुक सकते थे, लिहाजा प्रदेश कांग्रेस नेताओं का दल प्रभावित गांवों गाड़ापाली, गौद तथा भादा तक आदिवासी किसानों की समस्या से रूबरू होने पहुंच गया। दल में कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष नंदकुमार पटेल, नेता प्रतिपक्ष रवीन्द्र चौबे समेत अन्य नेता शामिल थे। कांग्रेस नेताओं सेे आदिवासियों किसानों ने उनसे छलकर जमीन खरीदे जाने की बात कही और बताया कि उन्हें किस तरह आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा है।

आदिवासी हुए थे छलकपट के शिकार : सरपंच
ग्राम अकलतरी के सरंपच अश्विनी कश्यप ने बताया कि ग्राम गाड़ापाली, उनकी पंचायत का आश्रित ग्राम है। यहां के आदिवासी किसानों को बहला-फुसलाकर महज दो, चार तथा छह लाख रूपये प्रति एकड़ में जमीन खरीदी की गई थी। आदिवासी किसानों को नियम कायदों की जानकारी थी नहीं, इसी का फायदा दलालों द्वारा उठाया गया है और फिर औने-पौने दाम पर आदिवासी अपनी जमीन बेच दिए। हालांकि, आदिवासी किसानों को प्रशासन ने जमीन लौटाने के आदेश देकर उनके हितों की रक्षा की है और उन्हें अब आर्थिक नुकसान नहीं होगा, क्योंकि शासन की दर काफी अधिक है।

...तो पुनर्वास नीति का लाभ नहीं मिलता ?
संदीप कंवर द्वारा जमीन खरीदे जाने की बात सामने आने के बाद चर्चा रही कि ऐसी स्थिति में आदिवासी किसान क्या करते ? एक तो उन्हें आर्थिक नुकसान तो होता, वो अलग है। इसके अलावा पुनर्वास नीति के तहत जमीन के बदले उनके परिवार के एक व्यक्ति को पॉवर प्लांट कंपनी में नौकरी मिलती, वह उनके हाथ से चली जाती। ऐन वक्त पर मीडिया में संदीप कंवर की करतूत उजागर होने के कारण अब आदिवासी किसानों को पुनर्वास नीति का भी लाभ मिल सकेगा।

यह भी है पेंच...
विडियोकॉन कंपनी के लिए संदीप कंवर द्वारा खरीदी की गई जमीन को कलेक्टर ने आदिवासी किसानों को लौटाने का आदेश तो कर दिया है, मगर इसमें एक पेंच कायम रह गया है। विधि के जानकारों का कहना है कि कलेक्टर को ऐसा आदेश देने का कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि जमीन रजिस्ट्री निरस्त करने का अधिकार सिविल कोर्ट के अलावा किसी को नहीं है। इसलिए कलेक्टर के आदेश पर सवाल खड़े हो गए हैं। भू-राजस्व संहिता की धारा 170 बी के तहत एसडीओ स्तर का अधिकारी, ऐसे प्रकरणों की जांच कर कार्रवाई कर सकता है। इसके बाद कलेक्टर के माध्यम से जांच रिपोर्ट राज्य शासन को भेजी जाती, उसके बाद शासन मामले को सिविल कोर्ट में दायर कर सकता है। दूसरी ओर भू-राजस्व संहिता की धारा 165 ( 6 ) के तहत आदिवासियों की जमीन, आदिवासी ही खरीद सकता है, इसके लिए उसे शासन से अनुमति देने की जरूरत नहीं पड़ती। आदिवासी की जमीन यदि कोई गैर आदिवासी खरीदना चाहता है तो नियम के मुताबिक उसे कलेक्टर से अनुमति लेनी पड़ती है। विडियोकॉन कंपनी प्रबंधन ने संदीप कंवर के नाम पर जमीन खरीदी करा ली और उसका भुगतान कंपनी के चेक से कर दिया गया। ऐसे में यह भी कहा जा रहा है कि कंपनी की मंशा, जमीन को लीज पर लेने की रही होगी, हालांकि उससे पहले गड़बड़झाले का खुलासा हो गया। संहिता की धारा 170 बी के तहत क्रेता व विक्रेता, दोनों को कोर्ट जाने का अधिकार है, मगर अब तक ऐसी कोई बात सामने नहीं आई है कि संदीप कंवर, कोर्ट जाने का विचार कर रहा हो ? इसका खुलासा नहीं हो पाया है, हालांकि यह भी कहा जा रहा है कि सरकार से खिलाफत कर शायद ही संदीप कंवर, कोर्ट जाएगा। फिलहाल, कलेक्टर के आदेश के बाद राजनीतिक सरगर्मियां जरूर बढ़ गई हैं और विपक्षी पार्टी पूरे दमखम के साथ इस मुद्दे पर सरकार को बैकफुट पर लाने उर्जा लगा रही है।


नहीं होगी आदिवासी हितों की अनदेखी : कलेक्टर
इस मामले में कलेक्टर ब्रजेश चंद्र मिश्र ने कहा कि आदिवासियों की जमीन, कोई दूसरा आदिवासी खरीद सकता है, मगर संदीप कंवर द्वारा विडियोकॉन कंपनी के लिए जमीन खरीदी किए जाने की बात जांच में सामने आई है। इसके चलते आदिवासी किसानों की जमीन लौटाने के आदेश दिए गए हैं। उन्होंने कहा कि आदिवासी हितों की अनदेखी नहीं होगी, आगे भी यदि अन्य पॉवर प्लांटांे द्वारा आदिवासियों की जमीन खरीदे जाने की शिकायत मिलती है तो उस पर भी कार्रवाई की जाएगी। कलेक्टर श्री मिश्र ने कहा कि पॉवर प्लांटों में जिनकी जमीन अधिग्रहित की जा रही है, उन्हें यदि पुनर्वास नीति के तहत लाभ नहीं दिया जा रहा है, इसकी भी शिकायत मिलेगी तो कार्रवाई तत्काल की जाएगी।

इन किसानों का क्या होगा ?
विडियोकॉन कंपनी के नाम पर आदिवासियों की जमीन खरीदने के मामले उजागर होने के बाद एक बात भी सामने आ रही है कि विडियोकॉन कंपनी द्वारा कई अन्य किसानों से उनकी जमीन, शासन की नीति के तहत नहीं खरीदी है। इसके चलते कई किसानों को लाखों रूपये का नुकसान हो रहा है। ऐसे प्रभावित किसान भी अफसरों से शिकायत कर उचित पहल करने की मांग कर सकते हैं, हालांकि फिलहाल वे अपने हक के लिए मुखर नहीं हुए हैं, मगर वे कभी भी कंपनी के खिलाफ खड़े हो सकते हैं। ऐसे प्रकरणों को गंभीरता से लिया जाए तो किसानों की जमीन अनाप-शनाप दर पर खरीदने के और भी मामलों का भंडाफोड़ हो सकता है।

जनसुनवाई के पहले जमीन खरीदी !
जांजगीर-चांपा जिले में ऐसा लगता है, जैसे पॉवर प्लांट प्रबंधन अपनी पूरी मनमानी पर उतर आए हैं। नियम के मुताबिक जब तक किसी पॉवर प्लांट की जनसुनवाई नहीं हुई है, तब तक वे जमीन खरीदी नहीं कर सकते, मगर जब उन्हें सरकार का शह है तो फिर वे कहां मानने वाले हैं। पिछले इसी बात को लेकर अकलतरा के बसपा विधायक सौरभ सिंह ने शिकायत दर्ज कराई थी कि कई पॉवर प्लांट हैं, जो बिना जनसुनवाई के लिए जमीन खरीद रहे हैं। इस पर रोक लगाई जानी चाहिए, मगर अफसोस अब तक इस मामले में न तो जिला प्रशासन ने पहल किया है और न ही राज्य शासन ने । इन हालातों में समझा जा सकता है कि जो किसान अपनी जमीन बेचना नहीं चाहते, उन पर किस तरह दबाव बनाया जाता होगा ?

‘मर जाएंगे, नहीं देंगे पुरखौती जमीन’
राज्य सरकार भले ही पूरे मूड में लग रहे हों कि जांजगीर-चांपा जिले को कृषि प्रधान के बजाय राख व प्रदूषण प्रधान जिले के रूप में पहचाना जाए, मगर यहां के किसान भी कम उग्र नहीं है। सरकार की नीति के खिलाफ कई इलाकों में किसानों की मोर्चाबंदी जारी है। कई पॉवर प्लांट पहले से ही विवादों से घिरे हुए हैं, साथ ही कानून व्यवस्था भी कई बार बिगड़ चुकी है, ऐसे में सरकार का पॉवर प्रबंधन को दिया जा रहा शह, निश्चित ही किसी अनहोनी का सूचक है। इसका प्रमाण बम्हनीडीह विकासखंड अंतर्गत ग्राम सिलादेही व गतवा में लगाए जा रहे ‘मोजर बियर’ पॉवर प्लांट का विरोध है। सिलादेही के किसान राजधानी रायपुर तक का चक्कर लगा चुके हैं और मुख्यमंत्री को अपनी समस्या से अवगत करा चुके हैं। बावजूद, इसके मामले में सरकार का दंभी रूख कायम है। इसके चलते किसानों में आक्रोश बढ़ता जा रहा है और वे जहां भी अफसरों के पास अपनी समस्या लेकर जाते हैं, वे कहते हैं कि ‘हम मर जाएंगे, मगर अपनी पुरखौती जमीन नहीं देंगे।’ ऐसे में बिगड़ते हालात को देखते हुए सरकार को पहल करनी चाहिए।

‘सरकार के लिए शर्म की बात’
प्रभावित गांवों के किसानों से मिलने के बाद जांजगीर में पत्रकारों से चर्चा करते हुए कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष नंदकुमार पटेल ने कहा कि गृहमंत्री ननकी राम कंवर के बेटे द्वारा आदिवासियों की जमीन गलत तरीके से खरीदे जाने की बात सही पाई गई और किसानों ने अपना दर्द कांग्रेस नेताओं के दल को बताया। कलेक्टर ने भी आदिवासी किसानों को उनकी जमीन वापस करने के आदेश देकर भी इस बात को सही प्रमाणित किया है कि गृहमंत्री पिता के रसूख का लाभ उठाकर संदीप कंवर ने आदिवासी होकर आदिवासियों से छल किया है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने महामहिम राज्यपाल से भंेटकर गृहमंत्री को बर्खास्त करने की मांग की है और आगे भी ध्यान रखा जाएगा कि किसानों का अहित न हो। साथ ही श्री पटेल ने कहा कि गृहमंत्री के बेटे पर एफआईआर किए जाने की मांग कांग्रेस करेगी, ताकि कोई दूसरा, आदिवासियों हितों पर कुठाराघात न कर सके। आवश्यकता पड़ी तो न्यायालय भी जाएंगे। आदिवासियों का अहित होना, सरकार के लिए शर्म की बात है।
नेता प्रतिपक्ष रवीन्द्र चौबे ने पत्रकारों से चर्चा करते हुए कहा कि कांग्रेस दल ने तीन गांवों का दौरा किया और यहां आदिवासी किसानों से मुलाकात कर गृहमंत्री के बेटे द्वारा गलत तरीके से जमीन खरीदे जाने की जानकारी ली गई। मौके पर किसानों ने खुद को छले जाने के बाद आर्थिक नुकसान का रोना रोया।
इधर श्री चौबे ने प्रदेश में परीक्षा व्यवस्था में गड़बड़ी व फर्जीवाड़े को लेकर राज्य भाजपा सरकार को आड़े हाथों लिया और कहा कि पीएससी जैसी महत्वपूर्ण परीक्षा में फर्जीवाड़ा तथा बारहवीं-दसवीं की बोर्ड परीक्षा की मेरिट सूची में गफलत के मामले में सरकार पहले से ही कटघरे में खड़ी है। इस कालिख को सरकार धो नहीं पाई है, अब पीएमटी की परीक्षा में उजागर हुए फर्जीवाड़े से सरकार तथा परीक्षा संस्थानों की साख पर सवाल खड़े हो गए हैं। पीएमटी परीक्षा के मामले में परत दर परत गड़बड़ियां उजागर हो रही हैं, इसमें कई रसूखदारों के बेटे-बेटियों के नाम आ रहे हैं। देखना है, सरकार का रूख इस फर्जीवाड़े पर क्या रहता है, हालांकि कांग्रेस ने सरकार के खिलाफ हर तरह से मोर्चेबंदी में कोई कमी नहीं रखी है। इन्हीं कुछ मुद्दों को लेकर कांग्रेस नेताओं ने राजधानी में पैदल मार्च करते हुए राज्यपाल से मुलाकात की थी और सरकार की विफलता की जानकारी दी गई है। साथ ही भाजपा सरकार को घेरने के लिए घोटालों, गड़बड़ियों तथा फर्जीवाड़े के मामले में आने वाले दिनों में राष्ट्रपति से भी कांग्रेस का प्रतिनिधि मंडल भेंट करेगा।
इस अवसर पर कांग्रेस नेता सत्यनारायण शर्मा, भूपेश बघेल, जैजैपुर विधायक राजेश्री महंत रामसुंदर दास, पूर्व विधायक मोती लाल देवांगन समेत अन्य नेतागण उपस्थित थे।

मीडिया को देते रहे श्रेय
पत्रकार वार्ता में कांग्रेस नेतागण, राज्य में हो रहे फर्जीवाड़े, गड़बड़ियों के उजागर करने का श्रेय मीडिया को देते रहे। कांग्रेस नेताओं ने कहा कि पीएससी से लेकर पीएमटी में हुए फर्जीवाड़े का खुलासा मीडिया ने ही किया है, इससे सरकार की बदहाल नीति की पोल भी खुली है। मीडिया ने ही गृहमंत्री के बेटे द्वारा आदिवासियों की जमीन खरीदे जाने का भंडाफोड़ किया है, इसके बाद सरकार को जवाब देते नहीं बन रहा है। मीडिया का दबाव ही है कि कलेक्टर को, आदिवासियों की जमीन वापस लौटाने के आदेश देने पड़े।

कांग्रेसी आर-पार की लड़ाई के मूड में
आदिवासियों की जमीन खरीदी का मामला केवल जांजगीर-चांपा जिले की ही बात नहीं है। अब तो बस्तर समेत कई जिलों में आदिवासियों की जमीन कौड़ी के दाम खरीदने की बात उजागर हो रही हैं। ऐसे में कांग्रेसी इसे प्रमुख मुद्दा बनाते हुए राज्य की भाजपा सरकार को घेरने कोई कोर-कसर बाकी रखना नहीं चाहते। यही कारण है कि कांग्रेस नेताओं का दल जांजगीर से दौरा करने के बाद, बस्तर के दौरे पर गए और वहां के आदिवासी किसानों से मिले। बताया जाता है कि बस्तर जिले के बड़ी संख्या में आदिवासी, दलालों के चंगुल में फंसकर अपनी जमीन गंवा बैठे हैं। उनकी जमीन को दलाल सस्ते दाम पर खरीदकर मालामाल हो गए है और आदिवासी पूर्वजों की जमीन गंवाकर भी कंगाल नजर आ रहे हैं।

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