सोमवार, 26 सितंबर 2011

टेढ़ी नजर

1. समारू - इलेक्ट्रॉनिक चैनलों में ब्रेकिंग की होड़ मची है।
पहारू - और जिंदा को, मुर्दा करार दे देते हैं।

2. समारू - प्रधानमंत्री जी के अमेरिका के बाद, अब ईरान जाने की खबर है।
पहारू - घर में आग लगी है और वे लौ बुझाने, जंगल की खाक छान रहे हैं।

3. समारू - प्रधानमंत्री अपने जन्म दिवस पर क्या कह सकते हैं।
पहारू - महंगाई का केक खाओ तथा भ्रष्टाचार का गुब्बारा फोड़ो।

4. समारू - प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह से मिलने प्रणव मुखर्जी पहुंचे।
पहारू - नाव में पानी भर गया है, कुछ काम बनने वाल नहीं है।

5. समारू - नवरात्रि में नेताओं का माथा टेकने का सिलसिला शुरू होगा।
पहारू - जनता रूपी भगवान के पास केवल पांच साल में एक बार ही माथा टेकने आते हैं।

रविवार, 25 सितंबर 2011

टेढ़ी नजर

1. समारू - एक सर्वे के अनुसार - छग में पीडब्ल्यू सबसे भ्रष्ट विभाग है।
पहारू - तभी तो एक सीरियल में एक पात्र कहता है - वे ऐसे-वैसे नहीं हैं, पीडब्ल्यूडी वाले हैं, पीडब्ल्यूडी...।

2. समारू - भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी दुर्ग में गरज कर गए।
पहारू - दिल्ली पहुंचते ही शांत तो हो जाते हैं...???

3. समारू - राजधानी रायपुर में उठाईगिरी बढ़ गई है।
पहारू - पुलिस उठकर जागे, तब रूके ना।

4. समारू - देश के अनेक मंत्री इन दिनों अमेरिका में हैं।
पहारू - मंत्री बनने के बाद ‘विदेशी जुगाली’ जिंदगी का हिस्सा बन जाती है।

5. समारू - उड़ीसा में एक विधायक की रैली के दौरान हत्या की खबर है।
पहारू - अब, आम जनता कैसे न सहमें...।

उसने मासूम बच्ची को जिंदा नदी में फेंक दिया

जांजगीर-चांपा जिले में जो मामला आया है, उसे सुनकर किसी का भी दिल दहल सकता है। किसी व्यक्ति की हैवानियत की फितरत कितनी बेदर्दी है, इसे यह घटना कहती है। अकलतरा क्षेत्र के गोपालनगर की लाफार्ज कालोनी निवासी रेलवे कर्मचारी प्रेमूराम ठाकुर की 5 साल की मासूम बच्ची मिताली ठाकुर को एक सिरफिरे युवक ने दर्रीघाट ( बिलासपुर ) के पास अरपा नदी में फेंक दिया। इस ह्दयविदारक घटना के बारे में जिसे भी पता चला, उसे निश्चय ही गहरा सदमा लगा। दूसरी ओर मिताली को नदी की तेज धार में फेंके जाने के हादसे के बाद उसके परिवार के लोगों के आंसू थमने के नाम नहीं ले रहा है। पूरी लाफार्ज कालोनी में मातम पसरा है, वहीं हर दिन उसकी खोजबीन की जा रही है, मगर अब तक उसका कोई सुराग नहीं लगा है। जब मासूम बच्ची को नदी में फेंका गया, उस दौरान लगातार हो रही बारिश के कारण, वैसे ही अरपा नदी समेत आगे में मिलने वाली महानदी भी उफन रही थी।
दरअसल, आरोपी प्रकाश भार्गव, लाफार्ज कालोनी के अपार्टमेंट में रहा था और उसका मिताली के परिवार से जान-पहचान थी। घटना के दिन वह मिताली को घुमाने के लिए लेकर आया और बाद में फिरौती की नीयत से उसका अपहरण कर लिया और बिलासपुर जा रहा था, मगर रास्ते में उसने घर के लोगों को फोन पर तीन लाख रूपये देने की मांग की। इसके बाद मिताली के परिवार के लोग सक्रिय हुए। बाद में जिस मोबाइल नंबर से फोन आया था, उसकी जांच की गई तो वह प्रकाश भार्गव का निकला। जब पुलिस ने पूछताछ की तो उसके बयान सुनकर सभी आसमान तले जमीं खिसक गई। आरोपी प्रकाश ने बताया कि वह 80 हजार रूपये कर्ज से लदा था और इस समस्या से निपटने के लिए उसने मिताली का अपहरण का फिरौती मांगने का प्लान बनाया। रास्ते में वह दर्रीघाट के पास रूका। पुलिस को उसने जो बयान दिया है, उसके मुताबिक पहले उसने मिताली के गले दबाकर मारने का मन बनाया, इस दौरान बच्ची ने मासूमियत से गले क्यों दबाने की बात कही। इसके बाद वह बच्ची को घर छोड़ने के मूड में आ गया। इसी बीच उसकी शैतानी खोपड़ी में यह बात आ गई कि उसके घरवालों को पता चलेगा कि मिताली को वही लेकर आया था, उसके बाद उसने पकड़े जाने के भय से बच्ची को उफनती नदी अरपा में फेंक दिया।
इधर जैसे ही परिवार को फोन से मिताली के अपहरण की सूचना मिली, उसके बाद पुलिस भी जांच में जुट गई। कुछ ही घंटों में आरोपी प्रकाश को पुलिस ने दबोच लिया।
फिलहाल आरोपी प्रकाश जेल में है, मगर मानवता के दृष्टिकोण से सवाल यही है कि क्या, मासमू मिताली को तेज धार बहती नदी में फेंकने के पहले उसका हाथ नहीं कांपा ? जिस तरह घटना को उसने अंजाम दिया, उसने पूरे मानवता को शर्मशार कर दिया।


गला क्यों दबा रहे हो भैया...
आरोपी प्रकाश, दर्रीघाट के पास मिताली का गला दबाने लगा। पुलिस जांच में यह बात आई है कि जब युवक प्रकाश, उसका गला दबाने लगा तो मासूम मिताली ने बड़ी मासूमियत से पूछा- गला क्यों दबा रहे हो भैया...। इसके बाद आरोपी ने उसे घर वापस लाने का मन बनाया, लेकिन अचानक वह अपहरण का राजफास होने के डर से मासूम को अरपा नदी की तेज बहती धार में फेंक दिया।


बीई का छात्र था आरोपी
आरोपी प्रकाश भार्गव, बिलासपुर के एक कॉलेज में बीई ( इंजीनियरिंग ) का छात्र था और गोपालनगर में अपने रिश्तेदार के घर रहने के कारण रेलवे कर्मचारी प्रेमूराम के घर आना-जाना था। यही कारण है कि बच्ची, आरोपी प्रकाश के साथ चली गई, मगर उसे कहां मालूम था, जिसे वह अपना समझ रही है, वही उसकी जिंदगी को मिटाने वाला साबित होगा।

‘अजायब घर नहीं है, भारत का संविधान’

छत्तीसगढ़ के जांजगीर में ‘बैरिस्टर ठाकुर छेदीलाल स्मृति समारोह’ के दौरान ‘संविधान में भ्रष्टाचार के उपचार’ विषय पर विचार गोष्ठी आयोजित की गई। कार्यक्रम में प्रमुख वक्ता छग उच्च न्यायालय बिलासपुर के वरिष्ठ अधिवक्ता कनक तिवारी थे। अध्यक्षता जिला सत्र न्यायाधीश गौतम चौरड़िया ने की। विशिष्ट अतिथि के रूप में राज्य विधिक परिषद के अध्यक्ष शैलेन्द्र दुबे उपस्थित थे।
विचार गोष्ठी के प्रमुख वक्ता अधिवक्ता कनक तिवारी ने कहा कि भारत का संविधान, अजायब घर नहीं है, बल्कि यह एक पोथी है। जिसे हर नागरिक को पढ़ने की जरूरत है। संविधान में भ्रष्टाचार को रोकने के उपाय बताए गए हैं, जिन अमल किया जाना जरूरी है। उन्होंने कहा कि देश में भ्रष्टाचार की जड़ें गहरी हैं, जिसे समूल नष्ट करने लंबी लड़ाई लड़ने की जरूरत है। श्री तिवारी ने कटाक्ष करते हुए कहा कि इस समय हालात यहां तक बन गए हैं कि आखिर किस पर भरोसा किया जाए। हर कहीं भ्रष्टाचार ने पांव जमा लिया है। चाहे वह नेता, न्यायालय, मीडिया हो, इनकी विश्वसनीयता पर उंगली उठी है। उन्होंने ने कहा कि संविधान को समझने की प्रवृत्ति ही गलत है, जो सेवक बनने का दावा करते हैं, वे ही चुनाव जीतने के बाद मालिक बन जाते हैं। संसद में पहुंचने के बाद खुद को उसकी खैरख्वाह समझने लगते हैं और वे यह कहते हैं कि जो वे कहेंगे, वहीं होगा। वे जो चाहेंगे, उस पर अमल करना होगा।
श्री तिवारी ने सीधे शब्दों में कहा कि बड़ी अदालतों में कैसे बड़बोले अधिवक्ता, पैसों के बल पर कमजोर तबके को दबाते हैं। अदालतों में कैसे गवाह तोड़े जाते हैं, यह जज भी समझते हैं, मगर वे संविधान से बंधे होते हैं। इसलिए कुछ नहीं कर सकते। यह भी हम भूल करते हैं कि रिश्वतखोरी को भ्रष्टाचार समझ लेते हैं, जबकि ऐसा नहीं है। यदि कोई बड़ा उद्योगपति, किसी नेता या अफसर को घूस देता है, इसे क्यों भ्रष्टाचार नहीं माना जाता ? केवल इसलिए कि यह जनता की आंखों के सामने नहीं होता।
उन्होंने कहा कि दुनिया में दूसरा महात्मागांधी नहीं बन सकता, अन्ना हजारे तो एक प्रतीक हैं। जन लोकपाल बिल पास भी हो जाएगा, इसके बाद भ्रष्टाचार खत्म होने किसी चमत्कार की उम्मीद करना बेकार है। इतना जरूर है कि इस आंदोलन से अवाम जागृत जरूर हुई है और भ्रष्टाचार मिटाने, किसी न किसी को मशाल हाथ में लेनी ही होगी। भ्रष्टाचार की बीमारी हर कहीं फैल गई है, इसे नष्ट करने जनता की भूमिका अहम होती है। इसके तहत जनता को ‘सूचना के अधिकार’ जैसे कानूनी हथियार मिला है। इससे भ्रष्टाचारियों की चूलें हिल गई हैं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे जिला सत्र न्यायाधीश गौतम चौरड़िया ने कहा कि संविधान का निर्माण जनता के लिए, जनता द्वारा, जनता से स्थापित है। जनता यदि अनुशासित व जागरूक है तो भ्रष्टाचार नहीं पनपेगा। उन्होंने कहा कि पीढ़ियों को बिगड़ने में कम समय लगता है, किन्तु सुधारने में संदियां लग जाती है। भ्रष्टाचार का यह भी एक कारण हो सकता है कि चुनाव निष्पक्ष नहीं होते। हर चुनकर आने वाले जनप्रतिनिधि अपने दिल पर हाथ रखकर बताए कि उन्होंने बिना किसी जोड़-तोड़ के चुनाव जीते। श्री चौरड़िया ने कहा कि भारत का संविधान महज एक किताब ही नहीं, मिशन है, सभी सभी के हितों का समावेश है। भ्रष्टाचार को रोकने के लिए संविधान में व्यवस्था है, इसी व्यवस्था के तहत न्यायपालिका, भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की कोशिश कर रही है। संविधान की शक्तियों के कारण ही कुछ लोग भ्रष्टाचार के आरोप में सींखचों के पीछे हैं।
विशिष्ट अतिथि राज्य विधिक परिषद के अध्यक्ष श्री दुबे ने कहा कि भ्रष्टाचार की उत्पत्ति, अंग्रेजों के समय नजराना प्रथा के रूप में हुई थी। यही नजराना प्रथा, अब भ्रष्टाचार बन चुकी है। भ्रष्टाचार ने सभी वर्गों को प्रभावित किया है। ऐसे में यह मुद्दा काफी अहम है, जिस पर हर किसी को विचार करने की जरूरत है।
विचार गोष्ठी के मौके पर विशिष्ट अतिथि जांजगीर के वरिष्ठ अधिवक्ता विजय दुबे समेत अनेक न्यायाधीश, अधिवक्ता तथा गणमान्य नागरिक बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।

हजारों हाथ बने बाघिन के हत्यारे ?

अक्ल के लिहाज से मनुष्य को सभी जीवों में श्रेष्ठ माना जाता है। इस बात को मनुष्य ने अपने विवेक के दम पर सिद्ध भी कर दिखाया है। यही कारण है कि आज हम चांद पर भी जीवन जीने की राह तलाश लिए हैं। यह भी कहा जाता है कि मनुष्य में ही अन्य जीवों की अपेक्षा, सोचने-समझने की अधिक शक्ति होती है और मार्मिक अहसास भी होता है, मगर जब आदमी, जानवर बन जाता है तो फिर मानव होने कीसंवेदनाकहीं दुबकी नजर आती है।
ऐसा ही कुछ हुआ, छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के छुरिया इलाके में। जहां इंसानों ने एक बाघिन को लाठी से पीट-पीटकर मौत के घाट उतार दिया और वन विभाग का अमला देखते ही रह गया। हजारों हाथों की वार से बाघिन कुछ मिनटों में ढेर हो गई। बताया जाता है कि यह बाघिन पिछले एक माह से क्षेत्र में दहशत फैला रखी थी और कइयों को घायल कर चुकी थी। कुछ जानवरों को अपना निवाला बना लिया था। आदमखोर बाघिन के चलते छुरिया इलाके के आधा दर्जन गांवों के हजारों लोगों का जीना मुहाल हो गया था। क्षेत्र के मोहगांव, आमगांव और बखरूटोला में बाघिन कारण कुछ दिनों में लोगों का काफी नुकसान हुआ, साथ ही ग्रामीणों की जान पर हर पल खतरा मंडराता रहता था। इस बात से वे हर पल सशंकित रहते थे।
वन विभाग को ग्रामीणों ने सूचना दी थी और अफसरों का कहना है कि अपनी ओर से कोशिश भी कर रहे थे, मगर बाघिन को पकड़ने में सफलता नहीं मिल रही थी। आखिरकार, महीने भर से दहशत के साये में जी रहे लोग आक्रोशित हो गए और आसपास गांवों के लोगों की सैकड़ों की संख्या में भीड़ जमा हो गई। लाठी, डंडे, जाल लेकर लोग बाघिन के पीछे पड़ गए। ग्रामीणों में जिस तरह की उग्रता दिखाई दी, उससे लगता है कि ग्रामीण, किसी भी तरह से बाघिन को पकड़ने के मूड में नहीं थे। सुबह से ही हालात बिगड़ने लगे थे, फिर भी वन विभाग के अफसरों ने न तो उग्र भीड़ को शांत करने की कोशिश की और न ही, बाघिन को पकड़ने की। स्थिति यहां तक आ गई कि ग्रामीणों की भीड़ के चंगुल में बाघिन फंस ही गई और हजारों हाथों ने उसकी जान लेकर ही दम लिया।
आदमघोर बाघिन के कारण इलाके में मौत मंडरा रहा था, उस लिहाज से ग्रामीणों की उग्रता समझ में आती है, लेकिन कहीं न कहीं ऐसा रास्ता निकाला जाना चाहिए था, जिससे बाघिन को मारने के बजाय, पकड़ा जा सकता। वन विभाग का पूरा अमला, इस कार्य में असफल रहा। समय रहते अफसर जरूरी कदम उठा लिए होते तो एक जानवर की जान, ऐसे ही नहीं जाती। निश्चित ही वह बाघिन लोगों की जान पर बन आई थी, लेकिन इस कदम की जरूरत नहीं थी।
लोगों को धैर्य का परिचय देना चाहिए था, साथ ही मनुष्य में जो संवेदना की बात होती है, उस पर भी गौर करना चाहिए। हालांकि, भीड़ की दिशा नहीं होती है और यही भीड़ की भेंट, वह बाघिन चढ़ गई। इस पूरे मामले में लोगों ने निर्दयता का परिचय दिया ही है, लेकिन इतना जरूर है कि वन विभाग की कार्यप्रणाली कहीं न कहीं सवालों के घेरे में है।

शुक्रवार, 23 सितंबर 2011

टेढ़ी नजर

1. समारू - कांग्रेस कह रही है - छह माह में उखड़ने वाली सड़क, छह दिन में उखड़ जा रही है।
पहारू - छग में विपक्ष है, कहां ???

2. समारू - पूर्व केन्द्रीय मंत्री मणिशंकर अय्यर ने संप्रग सरकार को आड़े हाथों लिया।
पहारू - एक यही तो हैं, जो सरकार को जुबानी खुराक देते हैं।

3. समारू - बिलासपुर में पेंशन के लिए युवती से बन गई बुढ़िया।
पहारू - जांजगीर में तो पति के जिंदा रहते, महिलाएं ‘विधवा पेंशन’ ले लेती हैं।

4. समारू - स्वास्थ्य मंत्री ने कहा - छग में पांच हजार आबादी वाले गांवों में अस्पताल खुलेगा।
पहारू - पहले से जो है, उसी की तबियत ठीक कर लें।

5. समारू - कोरबा पहुंची महिला हॉकी टीम की कप्तान सबा अंजुम नौकरी नहीं देने पर रो पड़ीं।
पहारू - छग में लाखों युवा डिग्रियां लेकर घूम रहे हैं, वे क्या करें ???

सोमवार, 19 सितंबर 2011

टेढ़ी नजर

1. समारू - ड्रीम गर्ल हेमामालिनी ने गुजरात पहुंचकर कहा - नरेन्द्र मोदी विकास के लिए जाने जाते हैं।
पहारू - और गोधरा कांड के लिए...

2. समारू - गृहमंत्री कहते हैं - छत्तीसगढ़ के एनजीओ नक्सलियों की मदद कर रहे हैं।
पहारू - ये तो वही हुआ, हमारी बिल्ली और हमहीं से म्याऊ ???

3.समारू - अमरकंटक स्थित सोनकुण्ड में एक साधु के समाधि लेने की खबर है।
पहारू - नित्यानंद के ‘नित्य-आनंद’ की खबर अब सुनने में नहीं आ रही है।

4. समारू - छग के आधे एनजीओ, नेताओं व अफसरों के हैं।
पहारू - हां, लूटने का अधिकार इन्हें ही तो मिला है।

5. समारू - भूकंप के झटके से लोग, घर से भाग खड़े हुए।
पहारू - जमीन के नीचे मौत की सुरंग खोदने का खामियाजा भुगतने के लिए आगे भी तैयार रहना पड़ेगा।

शनिवार, 17 सितंबर 2011

ये कैसी अंध भक्ति ?

हर बरस यह बात सामने आती है कि प्रतिमाओं के विसर्जन तथा श्रद्धा में लोग कहीं कहीं, अंध भक्ति में दिखाई देते हैं और अन्य लोगों को होने वाली दिक्कतों तथा प्रकृति को होने वाले नुकसान से उन्हें कोई लेना-देना नहीं होता। अभी कुछ दिनों पहले जब गणेश प्रतिमाएं विराजित हुईं, उसके बाद कान फोड़ू लाउडस्पीकरों ने लोगों को परेशान किया। प्रशासन की सख्त हिदायत के बावजूद फूहड़ गाने भी बजते रहे। श्रद्धा-भक्ति के नाम पर जिस तरह तेज आवाज में गानें दिन भर बजते रहे या कहें कि दिमाग के लिए सरदर्द बने ये भोंपू रात में भी बजते रहे। श्रद्धा-भक्ति की बात आती है तो आदेश-निर्देश जारी करने वाली पुलिस भी पीछे हट जाती है। कई बार यह भी कहा जाता है कि पुलिस को शिकायत नहीं मिली है। क्या किसी की शिकायत के बाद ही पुलिस कार्रवाई करेगी? यही पुलिस की जवाबदेही बनती है ? शांति व्यवस्था बनाने की जिम्मेदारी पुलिस की होती है। इसमें स्वस्फूर्त उनकी भूमिका दिखाई देनी चाहिए, जो हर बार की तरह इस बार भी दिखाई नहीं दी।
सवाल यही है कि क्या किसी को श्रद्धा-भक्ति के नाम पर परेशान करना उचित है ? स्कूल-कॉलेज में पढ़ने वाले छात्रों की पढ़ाई तो प्रभावित होती ही है, साथ ही उन लोगों की परेशानी भी बढ़ती है, जिन्हें तेज आवाज के कारण शारीरिक दिक्कतें होती हैं। श्रद्धा-भक्ति महज दिखावा नहीं होना चाहिए, मानवीय रूप से भी लोगों को दूसरों को होने वाली मुश्किलों को समझना चाहिए।
कानफोड़ू आवाज के बाद, लोग रास्तों के जाम होने के कारण परेशान होते हैं। यहां भी केवल अंध भक्ति ही दिखाई देती है। क्या, कोई रास्ता जाम करके या ऐसा कोई कार्यक्रम करके, जिससे पूरा मार्ग ही बंद हो जाए, ऐसा करके अपनी भक्ति भावना को बढ़ाया जा सकता है ? भक्ति भाव में यह होना चाहिए कि दूसरों को बिना दुख दिए तथा परेशानी में डाले पूजा होना चाहिए। न कि ऐसी किसी कृत्य की ओर उन्मुख होना चाहिए, जिससे लोगों को आवाजाही में परेशान होना पड़े।
तीसरी बात जिस तरह से नदी-नालों तथा तालाबों में प्रतिमाओं को श्रद्धा भाव से विसर्जन किया जाता है, वह क्या सही है ? पहले प्रतिमाओं का स्थापन भी कम होता था और तालाबों की संख्या अधिक हुआ करती थी। आज स्थिति यह है कि तालाबों की संख्या दिनों-दिन सिमट रही है और नदी-नालों में पानी का जल स्तर भी कम होता जा रहा है। ऐसी स्थिति में प्रतिमाओं को बिना किसी प्रकृति का ख्याल किए, विसर्जन की परिपाटी को बेहतर नहीं कहा जा सकता। एक अन्य पहलू के तहत देखें तो प्रतिमाओं में तरह-तरह के रंग तथा कई ऐसी सामग्रियों का इस्तेमाल होता है, जो सड़ता नहीं है। इससे निश्चित है, पानी का शोधन में रूकावट पैदा होगी, यह भी हमारे आने वाले दिनों के लिए ठीक नहीं है। बारिश के दिनों में पॉलीथीन के कारण भूमि में पानी का जमाव नहीं होता, उसी तरह से ऐसी सामग्रियों से प्रकृति को हम कहीं न कहीं नुकसान पहुंचा रहे हैं।
श्रद्धा भक्ति ऐसी होनी चाहिए, जिससे भगवान की आराधना भी हो जाए और प्रकृति को प्रभावित होने से भी बचाया जाए। इसी तरह की पहल की आवश्यकता है। इसमें हम सभी को आगे आना होगा। श्रद्धा को हम आत्मसात ऐसे करें, जिससे हमें अपनी प्रकृति का कोपभाजन न बनना पड़े। आज ऐसी ही तमाम गलतियों के कारण ही हमारी प्रकृति बिगड़ रही है और पर्यावरण प्रभावित हो रहा है। पर्यावरण के दूषित होने से कई तरह की बीमारियों होती हैं, यह भी हमारे शारीरिक जीवन से जुड़ा हुआ है।
अब बात करें, उस अंध भक्ति की, जिसके बाद श्रद्धा का भाव कहीं गुम होता नजर आता है। प्रतिमाओं के विसर्जन के लिए टोली निकलती है तो उस दौरान अधिकतर देखा जाता है कि अनेक लोग शराब के नशे में रहते हैं। ऐसे में हम किस तरह श्रद्धा-भक्ति को भगवान को अर्पित कर रहे हैं ? इस बात पर हमें विचार करने की जरूरत है। शराब पीने के बाद राहगीरों से हुज्जतबाजी तथा मार्ग को जाम कर नाचते-गाते विसर्जन के लिए जाने की सोच को, कहां तक सही कहा जा सकता है ? क्या शराब पीकर भगवान की सच्ची आराधना हो सकती है ?
गणेश विजर्सन के बाद भगवान विश्वकर्मा के विसर्जन के दौरान भी यही हालात नजर आए। अब कुछ दिनों बाद मां दुर्गा की पूजा-अर्चना होगी। इस दौरान भी प्रतिमाओं का स्थापन होगा, कानफोड़ू आवाज में लाउडस्पीकर फिर गूंजेंगे। उसके बाद प्रतिमाओं का विसर्जन होगा, इस समय भी प्रकृति के बिना परवाह किए एक बार फिर हम तालाबों-नदी नालों के पानी को दूषित करने की कोशिश करेंगे।
श्रद्धा-भक्ति की कोई थाह नहीं है और न ही किसी मापक से मापी जा सकती है। यह तो भगवान की सच्चे मन से की गई आराधना होती है। जिससे मन को शांति मिले और मन को तभी शांति मिलेगी, जब किसी राहगीर या आम लोगों का मन अशांत न हो। इसके लिए हर वर्ग के लोगों को सामने आकर जहां रास्ता जाम होने की स्थिति को लेकर जागरूकता लाने का प्रयास करना चाहिए और समितियों के पदाधिकारियों को पहल करनी चाहिए, वहीं कानफोड़ू आवाज से भी तौबा किया जाना चाहिए, जिससे किसी अन्य को होने वाली जबरन की परेशानी से निजात मिल सके। शराब की बढ़ती प्रवृत्ति भी अंध भक्ति का परिचायक साबित हो रही है, क्योंकि जब लोग शराब के नशे में मदहोश रहेंगे तो फिर कहां और कैसी भक्ति की बात हो सकती है ? शराब के नशे में धुत्त व्यक्ति की अंधश्रद्धा के कारण राहगीर को भी दिक्कतें होती हैं, इस दिशा में भी जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है। तब कहीं जाकर हम कह सकेंगे कि हमने अपने आराध्य के प्रति सच्ची भक्ति व श्रद्धा प्रकट किया, अन्यथा ऐसी ‘अंध-भक्ति’ केवल लोगों के लिए मुसीबत बनी रहेगी।

शुक्रवार, 2 सितंबर 2011

निजी स्कूलों को अभयदान तो नहीं मिलेगा ?

जांजगीर-चांपा जिले में बीते कुछ बरसों के दौरान जिस तरह कुकुरमुत्ते की तरह निजी स्कूल खुले, उसके बाद यहां की शिक्षा व्यवस्था चरमरा गई। एक-एक, दो-दो कमरों में स्कूल खुलने के कारण पढ़ाई का बुरा हाल रहा और उल्टे गांव-गांव में शिक्षा की दुकान खुल गई। नतीजा यह हुआ कि निजी स्कूलों के खुलने से स्कूली शिक्षा के प्रसार होने के बजाय, उल्टे इसने दुकानदारी का रूप ले लिया। दो-चार किमी के क्षेत्र में निजी स्कूल इसलिए खोले जाने लगे, जिससे मोटी कमाई की जा सके। इस दिशा में सैकड़ों स्कूल संचालक कामयाब भी हो गए, एक ही प्रबंधन कई-कई स्कूल संचालित करते बैठा है। यह जिला, बीते कुछ बरसों तक छात्रों का चारागाह बन गया था, क्योंकि नकल की प्रवृत्ति काफी अधिक थी। सामूहिक नकल के प्रकरण भी जिले में सामने आते रहे हैं। लिहाजा यहां छग के सभी जिलों के हजारों छात्र पढ़ाई के लिए पहुंचते थे, मगर यह किसी से नहीं छिपी थी कि वे नकल का सहारा लेकर, आसानी से परीक्षा की वैतरणी पार होने की मंशा लेकर आते थे। इन्हीं कारणों से अक्सर कहा जाता रहा है कि जिले की शिक्षा व्यवस्था का भगवान ही मालिक है।
अभी हाल ही में सत्र की शुरूआत होने के बाद माध्यमिक शिक्षा मंडल द्वारा जिले के 8 निजी स्कूलों की मान्यता समाप्त कर दी गई। इनमें अकलतरा ब्लाक के 2 तथा बलौदा ब्लाक के 6 स्कूल शामिल हैं। अकलतरा ब्लाक के सिद्धांत हायर सेकेण्डरी स्कूल अकलतरा, गर्ल्स हायर सेकेण्डरी स्कूल तिलई एवं ब्लौदा ब्लाक के बाबा औघड़ हायर सेकेण्डरी स्कूल खिसोरा, मां सरस्वती स्कूल अंगारखार, स्वामी विवेकानंद नवगवां, जानकी देवी लेवई, दीप अजगम नवापारा तथा उदय स्मारक स्कूल चारपारा शामिल हैं। इसके अलावा अन्य 7 निजी स्कूलों को मान्यता ही नहीं दी गई, जिन्हें इस सत्र से शुरू करने आवेदन दिया गया था। इनमें नवागढ़ ब्लाक के ग्रामोदय हायर सेकेण्डरी सरखों, पामगढ़ ब्लाक के केसला हायर सेकेण्डरी स्कूल तथा बलौदा ब्लाक के एमएस भार्गव स्कूल लेवई, सत्य निकेतन देवरी, मां जयजननी बगडबरी, विद्या निकेतन खैजा तथा केपी हायर सेकेण्डरी बहेरापाली शामिल हैं, जो स्कूल अस्तित्व में नहीं सकेंगे।
वैसे देखा जाए तो जिले के बलौदा, अकलतरा, नवागढ़ ब्लाक के निजी स्कूलों में ज्यादा खामियां पाई गई हैं। हालांकि अधिकांश निजी स्कूल, मंडल के मापदंड पर खरे नहीं उतरते। मंडल की दरियादिली का सब कमाल है, नहीं तो ऐसे स्कूल कब के बंद हो गए होते, क्योंकि मापदंड के लिहाज से ज्यादातर स्कूल संचालन के योग्य ही जांच में नहीं पाए गए हैं। मंडल को इसकी जानकारी दी गई, किन्तु वह कार्रवाई करने मन बनाए, तब ना।
इधर जिले के 86 निजी स्कूल ऐसे थे, जिन्हें नोटिस जारी किया गया, जो मापदंड में खरे नहीं उतरे। सत्र की शुरूआत में जारी नोटिस में कहा गया था कि स्कूल प्रबंधन, अपना जवाब मंडल को 15 दिनों के भीतर तक दें। इस आशय की सूचना जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय को भेजी गई। इसके बाद जिन 86 स्कूलों को नोटिस जारी किया गया था, उन्हें पत्र भेजकर अवगत कराया गया।
शिक्षा मंडल द्वारा निजी स्कूल की कारस्तानियों पर लगाम लगाने की गई कार्रवाई को काफी सराहा गया, मगर अब जिस तरह मंडल के सुस्त रवैया सामने आ रहा है, उससे अफसरों की कार्यप्रणाली पर उंगली उठ रही है। कहीं ऐसा तो नहीं कि 86 निजी स्कूलों को अभयदान देने की तैयारी चल रही है, जांच में हो रही देरी से ऐसी ही चर्चा का बाजार अब गर्म होने लगा है, क्योंकि शिक्षा सत्र को तिमाही होने को है और शिक्षा मंडल ने क्या कार्रवाई की या फिर उन 86 निजी स्कूलों के नोटिस के, जवाब के बाद क्या संज्ञान लिया गया, इसका भी खुलासा नहीं किया जा रहा है ? इससे यह प्रश्नचिन्ह लग रहा है कि जिले में मंडल, शिक्षा की दुकान खोले रखने के मूड में तो नहीं है ?
इसे इस बात से समझा जा सकता है कि माध्यमिक शिक्षा मंडल, जब कोई निर्णय लेता है या फिर कार्रवाई करता है तो उसकी सूचना जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय को भेजी जाती है। पिछली बार जब 8 स्कूलों की मान्यता निरस्त की गई और 7 स्कूलों को मान्यता नहीं मिली, इसकी जानकारी डीईओ आफिस को भेजी गई थी। फिलहाल इसके बाद डीईओ आफिस में ऐसी कोई सूचना व आदेश नहीं आया है, जिसके चलते यह कयास लगाए जा रहे हैं कि शिक्षा मंडल द्वारा 86 निजी स्कूलों को महज खानापूर्ति के लिए नोटिस जारी किया गया था और जांच के नाम छलावा किया जा रहा है।
सवाल यहां यही है कि शिक्षा सत्र प्रारंभ होने के पहले किसी भी स्कूल की जांच होनी चाहिए और जो स्कूल मापदंड पर खरे नहीं उतरते, ऐसे स्कूलों का उसी समय पत्ता साफ कर देना चाहिए। इसमें जिले स्तर के अधिकारियों का अपना रोना होता है, वे कहते हैं कि शिक्षा मंडल को मान्यता देने तथा किसी स्कूल की मान्यता समाप्त करने का अधिकार है। दिलचस्प बात यह है कि शिक्षा मंडल के अधिकारियों को इस बात से कोई मतलब ही नहीं है, निजी स्कूलों में किस तरह बदहाली कायम है ? एक-एक, दो-दो कमरों में संचालित होने वाले निजी स्कूलों को आखिर कैसे मान्यता मिल जाती है ? यह कहना गलत नहीं होगा कि जब जेबें गर्म होती हैं, उसके बाद सभी नियम-कायदों को किनारे रखकर काम किया जाता है। शिक्षा विभाग के अधिकारियों की मानें तो सभी निजी स्कूलों के मापदंड व दस्तावेजों की जांच हर बरस की जाती है, लेकिन यह कोई नहीं देखता कि किसी स्कूलों के पास खेल मैदान, लैब तो दूर, बैठने के लिए बेहतर व्यवस्था है कि नहीं ? सोचने की बता है कि भला, कैसे चार-पांच कक्षाओं या उससे अधिक कक्षाओं में सैकड़ों की संख्या में पढ़ने वाले छात्रों को बिठाया जा सकता है ?
निजी स्कूलों में एक और मनमानी का खुलासा होते रहता है, वो है छात्रों की पढ़ाई का ठेका। दरअसल, दूसरे जिले या फिर इसी जिले का छात्र, जब उसे स्कूल पढ़ने नहीं आना होता है तो वह स्कूल प्रबंधन को मोटी रकम भेंट करता है। इसके बाद छात्र परीक्षा में पहंचते हैं। निजी स्कूलों में शिक्षकों की भर्ती में भारी मनमानी देखने को मिलती है। उसी स्कूल के ही कोई छात्र द्वारा, अन्य कक्षाओं के छात्रों को पढ़ाने की शिकायत मिलती रही हैं।
एक मामला जानकर आपको अजीब लगेगा कि सरकारी स्कूल के गेट पर, निजी स्कूल का प्रचार। ऐसा ही एक स्कूल है, नवागढ़ विकासखंड के ग्राम सलखन स्थित शासकी हायर सेकेण्डरी स्कूल। इस सरकारी स्कूल के गेट के ठीक बगल में एक निजी स्कूल का कई सालों से प्रचार लिखा गया है। यहां जांच में अब तक कई अधिकारी जा चुके हैं, मगर किसी का ध्यान नहीं गया, या कहें कि इसमें अपना माथे ठनकाने की किसी ने जहमत नहीं उठाई, इसी बात से जाना जा सकता है कि सरकारी स्कूल की शिक्षा के प्रति अधिकारियों में कैसी मानसिकता है ? नहीं तो, उस निजी स्कूल के प्रबंधन व सरकारी स्कूल के प्राचार्य पर कब की कार्रवाई हो गई रहती।
निजी स्कूलों में शिक्षा के मापदंड को बेहतर बताया जाता है, इसमें कोई शक नहीं है कि सरकारी स्कूलों में बरसों से छाई बदहाली व शिक्षकों की निरंकुशता के कारण निजी स्कूल, इसका लाभ उठाते आ रहे हैं और थोड़ी सी बेहतर शिक्षा के एवज में अभिभावकों से मनचाही फीस वसूल की जाती है। निजी स्कूलों में भी बेहतर शिक्षा का माहौल उस तरह से नहीं है, इसका खुलासा गांव-गांव में संचालित हो रहे दो-दो कमरों के निजी स्कूलों के हालात देखकर लगाया जा सकता है। हद तो तब हो जाती है, जब कोई निजी स्कूल, सरकारी स्कूल या अन्य बिल्डिंग में संचालित हो। जिले में ऐसे अनगिनत निजी स्कूल हैं, जिनके प्रबंधन ऐसे कारनामे कर रहे हैं। इसकी पूरी रिपोर्ट जिला प्रशासन तथा शिक्षा विभाग के अधिकारियों के पास भी है, मगर वे क्यों कार्रवाई करने में बेबस नजर आते हैं। यदि ऐसा नहीं होता तो कुकुरमुत्ते की तरह बिना मापदंड के संचालित हो रहे निजी स्कूलों में कब का ताला लग गया होता। अब देखना होगा कि बरसों से सोया हुआ शिक्षा मंडल, आखिर जागता कब है ?

वे 86 स्कूल, जिन पर लटकी तलवार
जिले के जिन 86 निजी स्कूलों के संचालकों को अंतिम अवसर देकर स्पष्टीकरण मांगा है। साथ ही उन्हें समय पर जवाब नहीं देने पर मान्यता समाप्त करने चेतावनी दी गई है, हालांकि महीने भर से ज्यादा समय गुजरने के बाद भी कुछ नहीं हो सका है। नोटिस जारी होने वाले स्कूलों में सक्ती ब्लाक के नवनीत स्कूल टेमर, डभरा ब्लाक के अशासकी स्कूल पेण्डरवा, मालखरौदा ब्लाक के डीएन सरस्वती छतौना, हरिगुजर सकर्रा, अकलतरा ब्लाक के युगधारा अर्जुनी, सुभिक्षा रसेड़ा, रेवाराम कश्यप पौना, भगवती बिरकोनी, मानस पकरिया, अशासकीय सांकर, बलौदा ब्लाक के गोस्वामी रामरतन कुरमा, विवेकानंद जाटा, मां सरस्वती पोंच, सिमना कण्डरा, राष्ट्रीय सेवा योजना बसंतपुर, लक्ष्मीबाई करमंदा, मां खंभदेश्वरी स्कूल बगडबरी, इंदिरा गांधी स्कूल बुड़गहन, सतगुरू स्कूल सतगवां शामिल हैं। इसी तरह पामगढ़ विकासखंड के मानस हायर सेकेण्डरी ससहा, ज्ञानोदय खोखरी, किसान कोसा, कमला देवी धरदेई, आरके साहू मुड़पार, विकास पचरी, ओम खोखरी, स्व. मुचरू सिंह स्कूल मुलमुला, आधारशिला पेण्डरी, ज्योतिर्मय सिंघलदीप, सरस्वती शिशु मंदिर खोखरी, मां सरस्वती तनौद, राकेश कुमार रसौटा, ज्योतिराव फूले स्कूल कोड़ाभाट, सरस्वती शिशु मंदिर चण्डीपारा, वीणावादिनी सिल्ली, मारूतिनंदन मेंहदी, सरस्वती शिशु मंदिर राहौद, अंकुर हायर सेकेण्डरी स्कूल पामगढ़, एसके रामलाल भैंसो, जयहिंगलाज माई कोसा, नवज्योति केसला, मौलीमाता भुईगांव, महानदी तनौद, सरस्वती हायर तनौद, आस्था चुरतेला, महामाया कमरीद शामिल हैं। इसके अलावा नवागढ़ ब्लाक में मिनीमाता कुथूर, बीडी महंत धनेली, भारतीय हायर तुस्मा, प्रकाश हायर चौराभाठा, आदर्श गौद, सिद्ध अमोरा, विद्या भारती पचेड़ा, बीके दिगस्कर पचेड़ा, विद्या भारती गौद, बाबा कलेश्वर नाथ पीथमपुर, आरके कश्यप चोरभट्ठी, ज्ञान सागर धाराशिव, महामाई सेमरा, अनुषा जोगी हायर नवागढ़, विद्या विनय विवेक अमोरा, ज्ञान कुंज अमोरा, विद्या निकेतन भड़ेसर, त्रिमूर्ति मेंहदा, सरस्वती शिशु मंदिर गोधना, शबरी दाई कटौद, मिनी माता खैरताल, विद्या विनय विवके मुड़पार शामिल हैं। इसी तरह जैजैपुर ब्लाक में अरूणोदय सिंदूरस, देवी चण्डी सलनी, श्रमिक कल्याण डेरागढ़, चंद्रा संस्कार दर्राभाठा, पीतांबर प्रसार मलदा तथा बम्हनीडीह ब्लाक के महात्मा गांधी हायर सेकेण्डरी स्कूल शामिल हैं।
फिलहाल इन स्कूलों में से कितने ने मंडल को जवाब भेजा है और उसके बाद शिक्षा मंडल ने क्या कार्रवाई की, यह स्पष्ट नहीं हो पाया है। मंडल ने जिस तरह इससे पहले कार्रवाई का खुलासा किया, वैसे ही इसकी जानकारी जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय को मिल गई। अभी तक पता नहीं चला है कि कितने स्कूल पर किस तरह की कार्रवाई हुई, कितने की मान्यता समाप्त की गई ? कितने को चेतावनी दी गई तथा बख्श दिया गया। मंडल की चुप्पी के कारण यह सभी बातें तो अभी समय के गर्त में हैं, मगर शिक्षा मंडल वास्वत में मापदंड पर खरे उतरने के तहत, स्कूलों को मान्यता की फेहरिस्त में रखे तो निश्चित ही इनमें से कुछ ही बच पाएंगे, क्योंकि मापदंड के स्तर को पाने, इनमें से अधिकांश स्कूल कोसों दूर है।

दो साल पहले हुई थी जांच
यहां यह बताना जरूरी है कि जांजगीर-चांपा जिले में निजी स्कूलों की मनमानी व भर्राशाही को देखते हुए दो बरस पहले जिला प्रशासन द्वारा तत्कालिन जिला पंचायत सीईओ ओमप्रकाश चौधरी के नेतृत्व में अधिकारियों की 26 टीमें बनाई गईं। इनके द्वारा करीब पखवाड़े भर में तिथि निर्धारित कर एक-एक निजी स्कूल के मापदंड व दस्तावेज की जांच गई। जिले में करीब 254 निजी स्कूलों की जांच की गई। बताया जाता है कि जांच में कई तरह की चौंकाने वाली बात सामने आई। कहने का मतलब, कई स्कूल महज कागजों में थे, कई स्कूल ऐसे थे, जहां बीते कई सालों छात्र परीक्षा में ही नहीं बैठे थे, मगर इसकी परवाह विभाग के किसी जिम्मेदार अधिकारी को नहीं थी। महज कागजों में दर्जन भर स्कूल चल रहे थे और हमारे नुमाइंदांे को भनक तक न लगी, इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है ? जांच में पता चला, कोई निजी स्कूल धर्मशाला में संचालित था तो कोई सामुदायिक भवन में। दर्जनों खामियों के बाद भी निजी स्कूल के संचालक किसी भी तरह से स्कूल संचालित कराने का दंभ मारते फिरते हैं तो निश्चित ही इसमें मंडल की कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिन्ह लगता है।
जिस समय जिले के निजी स्कूलों की जांच हुई, उससे पहले हर बरस दर्जनों स्कूल खोलने के लिए मान्यता प्राप्त करने के आवेदन डीईओ आफिस को मिलते थे, मगर जैसे ही प्रशासन ने कड़ाई की और निजी स्कूलों की जांच कर सख्ती बरतना शुरू किया, उसके बाद ऐसे शिक्षा माफिया की घिघी बंध गई और देखते ही देखते, हालात यहां तक आ गए कि जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय में नए स्कूल खोलने के लिए आवेदनों की संख्या नगण्य ही रह गई। जिस साल जांच हुई, उस दौरान एक भी आवेदन नहीं मिले। शिक्षा माफिया हारे से नजर आए, उन्हें लगा होगा कि अब जिले में शिक्षा की दुकानदारी नहीं चलेगी, लेकिन जब शिक्षा मंडल अपने पर हो तथा शिक्षा की दुकान चलाने पर उतारू हो जाए और मापदंड पर खरे नहीं उतरने वाले निजी स्कूलों पर कारवाई करने के बजाय, सह दे तो उसके बाद शिक्षा की गिरती साख को कैसे बचाया जाए ? इस पर विचार करने की जरूरत महसूस होती है।
जिले में जब निजी स्कूलों की जांच हुई, उसमें जिला प्रशासन द्वारा कुछ प्रमुख को छोड़कर, शिक्षा विभाग के अधिकारियों को एक भी टीम नहीं शामिल किया गया, इससे ही समझा जा सकता है कि विभाग के अधिकारियों-कर्मचारियों की विश्वसनीयता कहां तक रह गई ? टीम में राजस्व अधिकारियों को जांच की कमान सौंपी गई और उसके बाद निजी स्कूल संचालकों में हड़कंप मच गया। इसके बाद जांच कर रिपोर्ट को शिक्षा मंडल को भेज दी गई और आधे से अधिक स्कूलों की मान्यता निरस्त करने की अनुशंसा किए जाने की चर्चा रही। हालांकि, जांच तो हुई, मीडिया में भी ये मुद्दे कुछ दिनों तक छाए रहे, उसके बाद कार्रवाई के नाम पर वही ढाक के तीन पात। रात गई, बात गई की तर्ज पर निजी स्कूलों की जांच की बातें अंधेरी कोठरी में दंभ भरती रह गई।
आखिरकार देर से ही सही, दो साल बाद शिक्षा मंडल जागा और 8 स्कूलों की मान्यता निरस्त कर दी और इस बार 7 स्कूलों को मान्यता देने से ही हाथ खिंच लिया। इससे लगा कि शिक्षा मंडल, व्यवस्था सुधारने संजीदा हो गया है, किन्तु जो ढर्रा बरसों से चल रहा है, उससे कहां मंडल उबर सकता है और जिन 86 निजी स्कूलों को नोटिस जारी किया गया है, उन पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। निजी स्कूल के संचालकों को 15 दिनों के भीतर जवाब देना था। ऐसे कई पखवाड़े गुजर गए, लेकिन निजी स्कूलों पर लगाम कसने कोई कवायद शुरू नहीं हो सकी है। इससे भी तमाम तरह के सवाल खडे़ हो रहे हैं और मंडल की कार्रवाई, कटघरे में खड़ी दिखाई दे रही है।

क्या कहते हैं अफसर
जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय में पदस्थ सहायक संचालिक पी.के. आदित्य का कहना है कि शिक्षा मंडल ने निजी स्कूल संचालकों से जवाब मांगा है, इसकी हमें केवल सूचना पत्र के माध्यम से मिली थी। अभी इस बात की कोई सूचना या जानकारी नहीं है कि शिक्षा मंडल को कितने निजी स्कूलों का जवाब मिला या फिर मंडल ने उस मामले में क्या कार्रवाई की। मंडल से जब कोई आदेश या सूचना मिलेगी, उसके बाद ही स्थिति स्पष्ट हो पाएगी, क्योंकि स्कूलों की मान्यता देने व समाप्त करने का अधिकार शिक्षा मंडल को है और अंतिम निर्णय उन्हीं को है। हमें जैसा आदेश मिलेगा, उसका क्रियान्वयन कराया जाएगा।

कहीं कंगाली की डगर पर तो नहीं, विद्युत मंडल ?

इसमें कोई शक नहीं कि जब देश के कई राज्यों के शहरों गांवों में अंधेरा छाया रहता है, उस समय भी छत्तीसगढ़ के अधिकांश इलाकों में उजियारा रहता है। छग को सरप्लस बिजली वाले राज्य का तमगा मिला हुआ है और हमारे सत्ता के कर्णधार, पूरे गर्व से इस बात को देश भर में घूम-घूमकर कहते नहीं थकते कि प्रदेश में बिजली की कोई कमी नहीं है। निश्चित ही यह बात सही है, मगर विद्युत मंडल का आर्थिक ढांचा किस कदर बिगड़ रहा है, इसकी चिंता तो सरकार को है और ही विद्युत मंडल के अफसरों को। यदि ऐसा होता तो बिजली की जो लगातार लाइन-लॉस हो रही है, उसकी फिक्र की जाती और उसे रोकने के माकूल कदम उठाए जाते।
विद्युत मंडल द्वारा बिजली चोरी रोकने व लाइन-लॉस घटाने के लिए आंतरिक जांच व विजिलेंस की टीम बनाई गई है, जो छापामार कार्रवाई करती है। मंडल के अधिकारी बिजली चोरों के आगे पस्त नजर आ रहे हैं और उनकी तमाम तरकीबें भी धरी की धरी रह जा रही हैं। जिस तरह लाइन-लॉस की शिकायतें हैं, उससे यही कहा जा सकता है कि कहीं विद्युत मंडल, कंगाली की डगर पर तो नहीं जा रहा है ?, क्योंकि मंडल को हर महीने 40 फीसदी बिजली का नुकसान उठाना पड़ रहा है। यदि ऐसा ही चलता रहेगा तो आने वाले दिन, विद्युत मंडल के लिए घातक साबित होगा। अविभाजित मध्यप्रदेश के समय भी जैसे, राज्य परिवहन निगम अपने अधिकारियों व कर्मचारियों की नाकामबियों की वजह से डूब गया और उसके बाद उसका अस्तित्व ही खत्म हो गया। ऐसा ही कुछ विद्युत मंडल में रहा तो काला बादल यहां भी मंडराता दिख रहा है। वैसे अभी संभलने का पूरा मौका है, नहीं संभले तो नैया डूबेगी ही।
जी हां, ऐसा ही कुछ हाल है, जांजगीर-चांपा जिले के विद्युत विभाग का। जिले में 60 फीसदी से अधिक की लाइन-लॉस हो रही है और उपर से उपभोक्ताओं से बिजली बिल भी वसूलने में मंडल के अधिकारियों को एड़ी-चोटी एक करनी पड़ रही है, फिर भी बिलिंग के आंकड़ों के करीब भी नहीं पहुंच पा रहे हैं। दूसरी ओर बिजली चोरी की समस्या के कारण मंडल के अधिकारियों की नाक में दम, अलग है। बीते सवा साल के आंकड़ों पर गौर करें तो आंतरिक जांच तथा विजिलेंस की टीम ने बिजली चोरी के मामले में पांच करोड़ से अधिक की बिलिंग की है। हालांकि, इसमें पूरी बिलिंग की राशि वसूली नहीं की जा सकी है। हजारों कार्रवाई के बाद भी बिजली चोरों की पौ-बारह बनी हुई है।
मंडल के अधिकारियों का कहना है कि जिले में बीते कुछ बरसों में बिजली चोरी की समस्या व्यापक थी। इसे खत्म करने के लिए लगातार छापामार कार्रवाई की जा रही है। इसी का नतीजा है कि जहां लाइन-लॉस में कमी आ रही है, वहीं बिजली चोरों पर शिकंजा भी कसा गया है। उनकी मानें तो पहले लाइन-लॉस 70 से 75 फीसदी हुआ करती थी, जिसमें 10 से 15 फीसदी की कमी आई है। साथ ही बिजली चोरी के मामले को भी स्पेशल कोर्ट में भी दिया गया है, जिसके माध्यम से प्रकरणों की सुनवाई हो रही है। इसके अलावा कुछ प्रकरणों को पुलिस को भी सौंपा गया है और रिपोर्ट दर्ज कराई गई है।
विद्युत मंडल द्वारा बिजली चोरी रोकने के लिए हर धत-करम आजमाए जा रहे हैं। घर के बाहर मीटर लगाने, खंभों में मीटर लगाने से लेकर कम्प्यूटरीकृत सिस्टम के बाद भी विद्युत मंडल के अधिकारी, बिजली चोरी रोकने में सफल नहीं हुए हैं। अफसरों का कहना है कि व्यावसायिक उपयोग करने वाले बिजली उपभोक्ताओं द्वारा बिजली चोरी की शिकायतों पर लगाम लगा ली गई है। साथ ही कम्प्यूटरीकृत सिस्टम से उसकी मॉनिटरिंग भी हो रही है, लेकिन हकीकत कुछ और ही है। यह बात सही है कि व्यावसायिक उपयोग की बिजली की चोरी कर मनमाने खपत में कमी आई है, किन्तु उसमें पूरी तरह रोक नहीं लग सकी है। इसके चलते लाइन-लॉस की समस्या बनी हुई है।
दूसरा एक और कारण है, ग्रामीण इलाकों में बिजली रोकने के लिए कर्मचारियों की कमी का हवाला दिया जाता है, लेकिन यह बात भी कोरी लगती है, क्योंकि गांवों के उपभोक्ताओं की संख्या के हिसाब से लाइनमेन पदस्थ हैं, जिन पर दायित्व होता है कि वह बिजली व्यवस्था देखे व चोरी रोकने के प्रयास करे। यहां कहा जाता है कि गांवों में बिजली चोरी करने वाले लोग मारपीट पर उतारू हो जाते हैं और पुलिस नहीं होने से मुश्किलें बढ़ जाती हैं। सवाल यह है कि यदि मंडल के अधिकारी पूरे मनोयोग से यह ठान लें कि किसी भी तरह से लाइन-लॉस रोकने के प्रयास किए जाएंगे, बिजली चोरी रोकने हर कदम उठाए जाएंगे, उसके बाद स्थिति पर जरूर काबू पा ली जाएगी, मगर मंडल के अधिकारियों में विद्युत मंडल के बढ़ते घाटे से उबारने की रूचि कहीं दिखाई नहीं देती ?
मंडल के अधिकारियों की मानें तो हर साल हजारों कनेक्शनों की जांच की जाती है, उनमें से अधिकतर में मीटर पर छेड़छाड़ व ओव्हर लोड की शिकायतें मिलती हैं। कुछ जगहों में डायरेक्ट हुकिंग की भी शिकायतें मिलती हैं। जांच में जिस तरह के प्रकरण सामने आते हैं, उसी तरह बिलिंग की जाती है। साथ ही बिजली चोरी करते पकड़े गए व्यक्ति को बिल पटाने के लिए समय दे दिया जाता है। इस दौरान बिल नहीं पटाने पर प्रकरण स्पेशल कोर्ट भेज दिए जाते हैं या फिर थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई जाती है।
बिजली चोरी व लाइन-लॉस के बाद एक दूसरा पहलू सामने आता है। उपभोक्ताओं के मन में यह बात होती है कि लाइन-लॉस का खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ता है, क्योंकि अनाप-शनाप बिल, मंडल द्वारा थमा दिया जाता है, मगर इस बारे में अधिकारियों का कुछ अलग ही कहना है। वे कहते हैं कि मडल को लाइन-लॉस की समस्या है, उसे उपभोक्ताओं की खपत बिजली की बिलिंग से कोई लेना-देना नहीं है। मीटर में जितने यूनिट बिजली की खपत होती है, उसी अनुरूप बिल दिया जाता है। हालांकि, व्यापक पैमाने पर हो रही लाइन-लॉस को मंडल के अधिकारी भी बड़ी समस्या मानते हैं और हर महीने विद्युत मंडल को अरबों-खरबों रूपये की चपत से भी वे अनजान नहीं है। बिजली चोरी रोकने के लिए विजिलेंस टीम भी बनाई गई। जिले में करीब 10 टीम हैं, जो गांव तथा नगरों में जांच करती है और हर कार्रवाई में दर्जनों प्रकरण भी सामने आते हैं। बावजूद, बिजली चोरी में कमी नहीं हो रही है। लाइन-लॉस में पहले से भले ही कमी हो गई हो, मगर इसे विद्युत मंडल के अफसरों की सफलता नहीं कही जा सकती, क्योंकि आधे से अधिक बिजली, यदि लॉस हो और उसका मंडल को घाटा हो, फिर इसे क्या कहा जा सकता है ?
अब तो आने वाला समय ही बताएगा कि विद्युत मंडल ऐसे ही घाटा सहता रहेगा या फिर बिजली चोरों पर पूरी तरह नकेल कसी जाएगी। 60 फीसदी से अधिक की लाइन-लॉस होने के बाद भी मंडल द्वारा अब तक व्यापक तरीके से कोई रणनीति नहीं बनाया जाना, निश्चित ही मंडल के अफसरों में ‘आर्थिक नाव’ को डूबोने, खुली मानसिकता की तैयारी ही कही जा सकती है। अब देखना होगा कि मंडल के अधिकारी जागते हैं या फिर इसी तरह ‘घाटे के सौदा’ का दौर जारी रहेगा और बिजली चोरों का मौज बना रहेगा।


ओव्हरलोड बना मुसीबत
बिजली चोरी के कारण ओव्हरलोड की समस्या हमेशा बनी रहती है। आए दिन ट्रांसफार्मर के फेल होने की शिकायतें आती रहती हैं। गर्मी के दिनों में स्थिति और बिगड़ जाती है, क्योंकि सैकड़ों ट्रांसफार्मर, ओव्हरलोड के कारण ही खराब हो जाते हैं। लिहाजा, शहरों में जैसे-तैसे बिजली बहाली हो जाती है, लेकिन गांवों में कई दिनों तक बिजली दर्शन तक नहीं देती। ऐसे में सरप्लस बिजली का लाभ, ग्रामीण उपभोक्ताओं को कहीं मिलता दिखाई नहीं देता। ट्रांसफार्मर के फेल होने का सबसे बड़ा कारण यह माना जाता है कि बिजली चोरी के लिए हुकिंग की जाती है, जिसके बाद ट्रांसफार्मर शॉर्ट हो जाता है और फिर उसमें खराबी आ जाती है। कुल-मिलाकर बिजली चोरों की कारस्तानियों का खामियाजा आम उपभोक्ताओं को भुगतना पड़ता है।


लइन-लॉस में आ रही कमी - ईई
विद्युत मंडल के अधीक्षण अभियंता राजेन्द्र प्रसाद ने बताया कि पिछले साल 70-75 फीसदी लाइन-लॉस की समस्या थी। आंतरिक जांच तथा विजिलेंस की टीम द्वारा छापामार कार्रवाई के बाद बिजली चोरी पर लगाम लगी है और लाइन-लॉस में कमी आई है और यह करीब 60 फीसदी तक आ गई है। मंडल द्वारा इसे और कम करने का लक्ष्य दिया गया है। जिस पर 10 टीमें बनाकर कार्रवाई की जा रही है। उन्होंने बताया कि बिजली चोरी की समस्या गांवों में ज्यादा है और वहां कर्मचारियों की कमी के कारण नियमित जांच नहीं हो पाती। हालांकि, जांच टीमों की कार्रवाइ जारी है और आने वाले दिनों में निश्चित ही लाइन-लॉस में कमी आएगी।

टेढ़ी नजर

1. समारू - शालेय खेलों में सरकारी स्कूल फिसड्डी बताए जा रहे हैं।
पहारू - पहले कौन से, तारे तोड़ने का काम हुआ है।

2. समारू - जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुला ने ट्विटर का इस्तेमाल बंद नहीं करने का ऐलान किया है।
पहारू - ऐसी अकड़पन में शशि थरूर अपनी केन्द्रीय मंत्री की कुर्सी गंवा चुके हैं।

3. समारू - 18 केन्द्रीय मंत्रियों ने अपनी संपत्ति छुपाई है।
पहारू - राज खुल गया तो फिर...।

4. समारू - केन्द्रीय कृषि राज्यमंत्री डा. चरणदास महंत, मीडिया में छाए हुए हैं।
पहारू - पद में नहीं थे, उन हासिए के दिनों...।

5. समारू - छग सरकार अभी कुछ नए कानून बना रही है।
पहारू - लागू होने के बाद पालन हो, तब ना।

टेढ़ी नजर

1. समारू - मीडिया, अन्ना-अन्ना अब भी चिल्ला रहा है।
पहारू - कुर्ता फाड़ के टीआपी जो मिली है।

2. समारू - मनरेगा में अनियमितता बढ़ी है।
पहारू - गांधी के मुस्कुराते चेहरे की हरियाली का कमाल है।

3. समारू - शर्मिला ने ‘हजारे’ से समर्थन मांगा है।
पहारू - मीडिया से पहले समर्थन मांगना पड़ेगा।

4. समारू - छग में इंजीनियरिंग छात्रों के पढ़ाई छोड़ने की खबर है।
पहारू - बदहाली रहेगी, तो आगे भी ऐसा ही चलता रहेगा।

5. समारू - छग सरकार ने सामान्य सभा की बैठक की अनिवार्यता तय की है।
पहारू - फिर तो परिषद में घमासान अधिकतर देखने को मिलेगा।

गुरुवार, 1 सितंबर 2011

भारतीय शिक्षा में खामियों की बढ़ती खाई

यह तो सही है कि भारत में पहले प्रतिभाओं की कमी रही और ही अब है। पुरातन समय से ही यहां की शिक्षा व्यवस्था की अपनी एक साख रही है। कहा भी जाता है, जब शून्य की खोज नहीं हुई रहती तो फिर हम आज जो वैज्ञानिक युग का आगाज देख रहे हैं, वह कहीं नजर नहीं आता। भारत में विदेशों से भी प्रतिभाएं अध्ययन के लिए आया करते थे, मगर आज हालात बदले हुए हैं। स्थिति उलट हो गई है। भारत से प्रतिभाएं पलायन कर रही हैं, उन्हें नस्लभेद का जख्म भी मिल रहा है, लेकिन यह सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। यहां कहना है कि आखिर आज परिस्थिति इतनी विकट क्यों हो गई ? कभी जहां की शिक्षा का दुनिया भर लोहा माना जाता था।
वैदिक युग से लेकर अब तक भारत ने इस बात को सिद्ध कर दिखाया है कि यहां प्रतिभाओं में दुनिया से अलग कुछ कर-गुजरने का पूरा दमखम है। समय-समय पर इस बात को सिद्ध भी कर दिखाया है। इसे हम इस बात से जान सकते हैं कि अमेरिका जैसे विकसित देशों में भी भारत की प्रतिभाएं छाई हुई हैं और सबसे अधिक वैज्ञानिक भारत से ही हैं। ऐसे बहुत से उदाहरण हैं, जिनसे समझ मंे आता है कि भारत में शिक्षा की नींव काफी मजबूत रही है, मगर अभी ऐसा कुछ भी नहीं है। प्रतिभाएं, शिक्षा व्यवस्था की बदहाली के कारण पूरी तरह दम तोड़ रही हैं और वे विदेशों में बेहतर भविष्य की चाह लिए पलायन करने मजबूर हैं। इसके लिए निश्चित ही हमारी शिक्षा नीति ही जिम्मेदार है। इस बात पर गहन विचार करने की जरूरत है।
भारतीय शिक्षा में तमाम तरह की खामियां हैं, जिसकी खाई में देश की प्रतिभाएं समाती जा रही हैं। स्कूली शिक्षा में जहां-तहां देश में आंकड़ों के लिहाज से बेहतर स्थिति के लिए सरकार अपनी पीठ थपथपा सकती है, लेकिन उच्च शिक्षा व तकनीकी शिक्षा में उनके सभी दावों की पोल खुलती नजर आती है। एक आंकड़े के अनुसार देश में हर बरस 22 करोड़ छात्र स्कूली शिक्षा ग्रहण करते हैं, या कहें कि बारहवीं की शिक्षा प्राप्त करते हैं। दूसरी ओर देश की उच्च शिक्षा में व्याप्त भर्राशाही व खामियों का इस बात से पता चलता है कि यही आंकड़े यहां 12 से 15 फीसदी के रह जाते हैं। कहने का मतलब मुट्ठी भर छात्र ही उच्च शिक्षा की दहलीज पर चढ़ पाते हैं। ऐसी स्थिति में विदेशों में पढ़ने की चाहत छात्रों में बढ़ जाती है, क्योंकि वहां कॅरियर निर्माण की व्यापक संभावनाएं नजर आती हैं।
देश में कुछ प्रतिभाएं ऐसी भी रहती हैं, जो चाहती हैं कि वो पढ़ाई पूरी करने के बाद भारत में ही अपनी उर्जा लगाए, लेकिन यहां हालात उलटे पड़ जाते हैं। उन्हें पर्याप्त संसाधन मुहैया नहीं होता, लिहाजा वे मन मसोसकर यहां पलायन करने में ही समझदारी दिखाते हैं। भारत से हर साल लाखों छात्र पढ़ाई के लिए विदेशी धरती पर जाते हैं, उनमें से अधिकतर वहीं अपना कॅरियर बना लेते हैं। देखा जाए तो अमेरिका, आस्ट्रेलिया, इंग्लैण्ड समेत कुछ और देश हैं, जहां भारतीय छात्र शिक्षा प्राप्त करने के लिए जाते हैं। वैसे दर्जन भर देश हैं, जो भारतीय छात्र दिलचस्पी दिखाते हैं, मगर अमेरिका व आस्ट्रेलिया, इंग्लैण्ड जैसे देश मुख्य खैरख्वाह बने हुए हैं।
बीते साल आस्ट्रेलिया में नस्लभेद के नाम पर भारतीय छात्रों पर कई हमले हुए। इन घटनाओं के बाद आस्ट्रेलिया जाने वाले छात्रों की संख्या में बेतहाशा कमी आई है, लेकिन अंततः प्रतिभा पलायन के आंकड़ों पर गौर फरमाए तो स्थिति कुछ बदली हुई नजर नहीं आती है, क्योंकि इतने छात्र दुनिया के अन्य देशों की ओर उन्मुख हो गए।
भारतीय शिक्षा में व्याप्त खामियों एक बात से और उजागर होती है कि देश में करीब छह सौ विश्वविद्यालय हैं। यहां पर जैसा शैक्षणिक माहौल निर्मित होना चाहिए या कहें कि व्यवस्था में सुधार होना चाहिए, वह नहीं होने से प्रतिभाओं को उस तरीके से विकास नहीं हो पाता और न ही वे पढ़ाई में अपनी प्रतिभा का जौहर दिखा पाते हैं, जिस तरह विदेशी विश्वविद्यालयों की शिक्षा व्यवस्था में देखी जाती है।
हमारा दुर्भाग्य देखिए कि दुनिया में गुणवत्ता व मापदंड वाले 200 विश्वविद्यालयों में भारत का एक भी विश्वविद्यालय नहीं है। अमेरिका व इंग्लैण्ड ही इस सूची में छाए हुए हैं। भारत के लिए विचार करने की जरूरत है कि पहले 20 विश्वविद्यालयों में अधिकांशतः अमेरिका के ही हैं। हम अपनी पुरातन शिक्षा व्यवस्था पर जितना भी गर्व कर लें, इठला लें, मगर आज हमें इत बात का स्वीकारना पड़ेगा कि कहीं न कहीं हमारी शिक्षा व्यवस्था में खामियां हैं, जहां व्यापक स्तर पर सुधार किए जाने की जरूरत है। सोचने वाली बात है कि केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल का, पिछले साल बयान आया था कि देश में 300 विश्वविद्यालय और खोले जाएंगे। इसका मुख्य ध्येय उच्च शिक्षा का विकेन्द्रीकरण करना था। अंतिम तबके के छात्रों तक उच्च शिक्षा की पहुंच बनानी थी, मगर सवाल यह है कि पहले जो विश्वविद्यालय देश में बरसों से संचालित हैं, पहले उनकी हालत तो सुधारा जाए। जब उन्हीं स्थिति बदहाल रहेगी, उसमें भी और विश्वविद्यालय लादने का भला क्या मतलब हो सकता है ? फिलहाल ये विश्वविद्यालय नहीं खोले गए हैं और इसकी प्रक्रिया की सुगबुगाहट की खबर भी नहीं है। हमारा कहना यही है कि यदि शिक्षा व्यवस्था में नीचले स्तर अर्थात स्कूली शिक्षा से सुधार किया जाए तो इसके सार्थक परिणाम सामने आएंगे। इस बात को समझना होगा कि जब तक हमारी नींव मजबूत नहीं होगी, हम उच्च शिक्षा में जैसा परचम लहराना चाहते हैं, वैसा कुछ नहीं कर सकते।
एक अन्य खामियां तकनीकी शिक्षा अर्थात इंजीनियरिंग की शिक्षा में हैं। देश में हर बरस करीब 3 लाख इंजीनियरिंग छात्र पास आउट होते हैं, मगर एक आंकड़ें की मानें तो महज 10 प्रतिशत छात्र ही नौकरी के काबिल होते हैं। यह भी हमारी इंजीनियरिंग शिक्षा के लिए बहुत बड़ा सवाल है ? आखिर कैसी शिक्षा दी जा रही है, जिससे छात्रों की काबिलियत ही कटघरे में खड़ी दिखाई दे रही है। यही कारण है कि जब इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर छात्र आते हैं तो उनमें से अधिकतर को बेरोजगारी की मार झेलनी पड़ती है। इस स्थिति से भी निपटने के लिए सरकार को तकनीकी शिक्षा में भी सुधार के लिए हर स्तर पर प्रयास करना चाहिए, क्योंकि यही ढर्रा आगे भी चलता रहेगा कि तो यह हमारे शिक्षा की सेहत व भविष्य निर्माण के लिए बेहतर नहीं होगा।
इन खामियों की खाई को हमें कैसे पाटना है और इसके लिए कैसी नीति बनाई जाए, इस दिशा में अभी से सरकार को विशेष कदम उठाना होगा। नहीं तो, देश से प्रतिभा पलायन करती रहेंगी। हम इस बात से ही खुश होते हैं कि अमुक भारतीय वैज्ञानिक या छात्र ने विदेश पर उपलब्धि का झण्डा गाड़ रहा है। यहां अपनी छाती चौड़ी करने को हमें कोई हक नहीं बनता, क्योंकि उन प्रतिभाओं को मंच देने में नाकामयाब रहे। निश्चित ही इस समय कहीं न कहीं हमारी साख पर बट्टा लगेगा। यह तो गहन विचार का विषय है।