बुधवार, 12 जनवरी 2011

कांग्रेस की चौरतफा मुश्किलें

देश में बढ़ती महंगाई, घोटाले-घपले और पार्टी के नेताओं द्वारा एक-दूसरे के खिलाफ की जा रही बयानबाजी से कांग्रेस की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही है। हालात यहां तक बन गए हैं कि केन्द्र में दूसरी बार काबिज यूपीए-2 की सरकार जनता की अदालत में कटघरे पर खड़ी है, क्योंकि जिस अंतिम छोर के व्यक्ति के नाम पर कांग्रेसनीत सरकार सत्ता में आई है, वह उन्हीं का कबाड़ा करने में तुली हुई है। यूपीए की सरकार की अपनी दूसरी पाली को दो बरस होने को है, अभी आम चुनाव में तीन साल बाकी है। शायद यही कारण है कि सरकार को जनता की फिक्र नहीं है। ऐसा होता तो सरकार, महंगाई से निपटने की पूरी कोशिश करती, लेकिन यहां हो यह रहा है कि महंगाई समेत घोटालों को लेकर केवल बयानबाजी हो रही है। विपक्ष भी इन मुद्दों को किसी भी तरह से खोना नहीं चाहता और इसी के चलते जहां संसद की कार्रवाई जेपीसी गठन की मांग को लेकर नहीं चलने दी गई, वहीं विपक्ष ने तो यूपीए-2 सरकार को आजादी के बाद की सबसे कमजोर सरकार करार दिया है।
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन अर्थात यूपीए, 2004 में पहली बार काबिज हुई थी और कांग्रेसी सांसदों की बहुमत के आधार पर पूर्ववर्ती नरसिम्हा राव सरकार में वित्तमंत्री रहे और अर्थशास्त्री डा. मनमोहन सिंह का प्रधानमंत्री बनाया गया। इसके पहले जिस तरह के हालात प्रधानमंत्री पद को लेकर बने, शायद उसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी। दरअसल, कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनाए जाने का प्रस्ताव सामने आया तो विपक्ष ने विदेशी मूल का मुद्दा उठाते हुए सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने पर विरोध की बात कही थी। इस दौरान भाजपा की वरिष्ठ नेत्री सुषमा स्वराज ने यहां तक कह दिया था कि श्रीमती सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने की स्थिति में वे सिर मुड़ा लेंगी। हालांकि कई दिनों की राजनीतिक सरगर्मी के बाद श्रीमती सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री की कुर्सी ठुकरा दी और डा. मनमोहन सिंह का नाम संसदीय दल को सुझाया और दुनिया में एक ऐसा करने वाली संभवतः पहली राजनीतिज्ञ बन गई। इस तरह एक अर्थशास्त्री के प्रधानमंत्री बनने पर देश की जनता में एक आस जगी कि महंगाई जैसे बड़ी समस्या से उन्हें निजात मिल जाएगी, लेकिन हुआ ऐसा नहीं और महंगाई, शुरूआत में धीमी गति से बढ़ती रही। पहला कार्यकाल पूरा करने के बाद यूपीए गठबंधन एक बार फिर सत्ता में काबिज हुआ और प्रधानमंत्री की कुर्सी पर डा. मनमोहन सिंह को दोबारा सौगात में मिली, लेकिन इस बार उनके लिए यह ताज, कांटों भरा साबित हो रहा है, क्योंकि जब वे 2009 के मध्य में देश की कमान संभाले, उस दौरान महंगाई अपनी चरम पर थी। इस बीच महंगाई दिन ब दिन बढ़ती रही और सरकार जनता को दिलासा देती रही। फौरी तौर पर कोई नीति सरकार ने महंगाई की समस्या से निपटने नहीं बनाई, आज वही सरकार के गले की फांस बन गई है। यहां दिलचस्प बात यह है कि केन्द्र सरकार के कृषिमंत्री शरद पवार तो महंगाई को लेकर ऐसे-ऐसे बयान दिए, जिससे लगता था कि वे मीडिया के सवालों से बौखालाए हुए हैं। जब-जब वे मुंह खोले, महंगाई और कई गुना बढ़ गई। जिस वस्तु का उन्होंने नाम लिया, उसकी जमाखोरी बढ़ गई। आज हालात यह बन गए हैं कि हर चीजें आम लोगों के हाथों से दूर हो गई है। इन दिनों प्याज के बढ़े दाम ने तो आम जनता के साथ-साथ, सरकार के भी आंसू निकाल दिए हैं। प्याज की महंगाई से निपटने सरकार की कोई भी नीति फिलहाल काम नहीं आ सकी है। बैठक पर बैठक हो रही है, लेकिर कोई परिणाम तक सरकार के कारिंदे तथा मंत्री नहीं पहुंच पा रहे हैं।
इन परिस्थितियों में कांग्रेस की दिक्कतें इसलिए और बढ़ गई हैं कि देश में एक के बाद एक घोटाले सामने आ रहे हैं। राश्ट्रमंडल खेल में करोड़ों का खेल होने के बाद सुरेश कलमाड़ी को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। इसके बाद 2-जी स्पेक्ट्रम मामले में भी सरकार की खूब फजीहत हुई, गठबंधन की राजनीति के चलते पहले तो दूरसंचार मंत्री रहे ए. राजा को नहीं हटाया जा रहा था, बाद में सरकार ने खुद की किरकिरी तथा छवि खराब होते देख, इस मामले में भी ए. राजा को मंत्री पद से हटा दिया। इन मामलों के बीच महाराष्ट्र में आदर्श सोसायटी के घपले सामने आ गए। इसके बाद तो जैसे कांग्रेस, विपक्ष के पूरे निशाने पर आ गई और विपक्ष को भी भ्रष्टाचार पर सरकार की खिंचाई करने का एक बड़ा मौका मिल गया। विपक्ष ने जेपीसी गठित करने 23 दिनों तक संसद नहीं चलने दिया, संभवतः ऐसा पहली बार हुआ होगा, जब संसद में इतने दिनों तक कोई काम नहीं हो सका, केवल गतिरोध कायम रहा।
एक के बाद पुरानी बोतल से बारी-बारी भ्रष्टाचार के जिन्न बाहर आने से कांग्रेसनीत यूपीए सरकार की मुश्किलें तो बढ़ी हैं। साथ ही निजी तौर पर कांग्रेस की छवि व्यापक तौर पर धूमिल हो रही है। इसी का परिणाम है कि हाल ही आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन में यूपीए अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने सीधे तौर पर यह कहा कि भ्रष्टाचार से निपटने किसी तरह का कोई समझौता नहीं किया जाएगा, लेकिन यहां सवाल यही है कि जिस तरह सरकार की आंखों के नीचे भ्रष्टाचार का खेल चलता रहा, तब कैसे सरकार को इन बातों की खबर नहीं लगी ? वैसे भी ए. राजा ने मीडिया से यह बातें कही थी कि पूर्व में जो ढर्रा था, उसी पर वे भी चले और इसकी जानकारी प्रधानमंत्री तक को थी ? यही कुछ बातें हैं, जिसके बाद विपक्ष के निशाने पर साफ छवि के माने जाने वाले प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह समेत श्रीमती सोनिया गांधी तथा कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी भी हैं और उन पर भ्रष्टाचार में संलिप्तता का आरोप लगाए जा रहे हैं।
ऐसे अनेक मुद्दे हैं, जिसके बाद कांग्रेस पूरी तरह सकते में है। कांग्रेस की चिंता इसलिए और बढ़ गई है, क्योंकि पिछले महीनों हुए बिहार चुनाव में मुंह की खानी पड़ी और कांग्रेस को उल्टे 5 सीटों का नुकसान हो गया, जबकि बिहार की सभी 246 सीटों पर कांग्रेस ने प्रत्याशी उतारी थी। इस चुनाव के बाद श्रीमती सोनिया गांधी ने, जिन राज्यों में कांग्रेस की हालत पतली है, वहां शून्य से शुरूआत की बात कही है और कांग्रेस का पूरा खेमा यह समझ रहा है कि आने वाले कुछ महीनों में कई राज्यों में विधानसभा चुनाव है, जहां महंगाई, घोटाले जैसे मुद्दे के कारण कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ सकता है। कांग्रेस की फिक्र इसलिए भी समझ में आती है कि युवाओं के बीच गहरी पैठ रखने वाले राहुल गांधी का जादू, बिहार विधानसभा चुनाव में नहीं चला। अब कांग्रेस के समक्ष पश्चिम बंगाल तथा उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव की चुनौती है कि वहां उसका प्रदर्शन कैसा रहेगा ? शायद इन बातों का ख्याल राहुल गांधी को भी है, तभी तो वे अभी से ही उत्तरप्रदेश के कई शहरों में जाकर युवाओं से मिल रहे हैं, मगर कांग्रेस की परेशानी यह भी है कि राहुल गांधी के दौरे का पहली बार इस तरह विरोध हो रहा है, जिससे कांग्रेस अपनी नीति पर कामयाब होती नजर नहीं आ रही है। रही-सही कसर, यूपीए के कांग्रेसी मंत्री एक-दूसरे के खिलाफ बयान देकर पूरा कर रहे हैं। महंगाई के मुद्दे पर सरकार पूरी तरह घिरी है, ऐसे में मंत्रियों के बयानों में विरोधाभास होना, निश्चित ही कांग्रेस के लिए चौतरफा मुश्किलों भरा है। अब कांग्रेस इन मुश्किलों से कैसे निपटेगी है, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।

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